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राजनीति
वडोदरा: अल्पसंख्यकों और दलितों को निशाना बना कर तोड़ी जा रही हैं बस्तियाँ
वडोदरा नगर निगम स्मार्ट सिटीज़ मिशन के नाम पर झुग्गियों को ढाह रही है और कथित तौर उनके निशाने पर केवल झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मुस्लिम और दलित हैं।
उज्ज्वल कृष्णम
07 Jun 2019
Translated by महेश कुमार
वडोदरा

2014 में, नरेंद्र मोदी ने वडोदरा लोकसभा सीट को 5 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत लिया था। जैसे ही मोदी प्रधानमंत्री बने, वडोदरा को मोदी की प्रमुख स्मार्ट सिटीज मिशन (एससीएम) में सूचीबद्ध कर लिया गया था।
न्यूज़क्लिक ने वडोदरा नगर निगम [जो एससीएम के तहत है] में गिराए गए घरों और विध्वंस अभियान की पीछे की कहानी का पता लगाया, जिसमें एक स्पष्ट पैटर्न मिला और इसके विश्लेषण से पता चला कि वड़ोदरा में जहाँ भी ये घर गिराए गए थे वे सभी मुस्लिम और दलित बहुल अबादी वाले क्षेत्र थे। तो विध्वंस के प्रभाव का आंकलन करने के बाद उसकी भयावहता का पता चला जो चौंकाने वाला था कि लोगों को बेदख़ल करने से पहले उनकी सामाजिक संरचना, क़ब्ज़े वाली भूमि के विध्वंस के बाद की स्थिति और पुनर्वास को ध्यान में रखा गया था।

गोत्री

गोत्री वडोदरा के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में एक इलाक़ा है। यहाँ विध्वंस अभियान के तहत रामदेवनगर की झुग्गियों को निशाना बनाया गया था वहाँ आबादी का बड़ा हिस्सा (लगभग 70 प्रतिशत) अनुसूचित जातियों से संबंध रखता है।

रामदेवनगर कभी यूनिसेफ़ का पायलट प्रोजेक्ट था। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ़) ने ग़रीबों के लिए एक आदर्श इलाक़े का निर्माण करने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर यहाँ करोड़ों रुपये ख़र्च किए। इस परियोजना को 1996 में पूरा कर लिया गया था। झुग्गी के उन्नयन के बीस साल बाद और मात्र एक तत्काल नोटिस जारी करके रामदेवनगर में, 12 जून 2016 को 1,500 मकानों को तोड़ दिया गया था।

एक सामाजिक कार्यकर्ता और रामदेवनगर के पूर्व निवासी अमित तिवारी ने कहा, “यह बड़ी साज़िश का नतीजा है। वे ग़ैर-भाजपा मतदाताओं को यहाँ से खदेड़ना चाहते हैं। लोग यहाँ से कांग्रेस के लिए मतदान करते हैं और यह उनके लिए एक नकारात्मक क्षेत्र बन गया था।" उन्होंने आगे आरोप लगाया कि, "एक स्थानीय दैनिक अख़बार ने एक पक्षपाती ख़बर छापी कि रामदेवनगर से निकल कर वहाँ का गंदा पानी गोत्री झील को प्रदूषित कर रहा है। इस ख़बर ने हंगामा मचा दिया। इसका हवाला देते हुए, वडोदरा नगर निगम ने हमे यहाँ से देशनिकाला दे दिया था।”

न्यूज़क्लिक ने यह भी पाया कि अधिकांश वासियों की बिना किसी पूर्ण सहमति के बस्ती का विध्वंस कर दिया गया था। अमित ने कहा, “तब वीएमसी कमिश्नर एचएस पटेल पुलिस के साथ हमारी बस्ती में आए थे; बच्चों की पिटाई की गई और महिलाओं को हिरासत में लिया गया था।" 

स्लम के पूर्व निवासी मंगेशभाई अब अपने रिश्तेदारों के साथ रहते हैं क्योंकि वे अब किराए का घर नहीं ले सकते हैं। उन्होंने कहा, कि अगर झील की गंदगी का कारण “रामदेवनगर के निवासी होते, तो झील अब तक साफ़ हो गयी होती। वर्तमान वीएमसी आयुक्त अजय भादू ने एक महीने पहले पुष्टि की कि गोत्री झील में बहने वाला दूषित पानी दूसरी दिशा [गोरवा] से आ रहा है।”

हटाए गए कुछ क़ब्ज़ेधारियों को रामदेवनगर से 16 किलोमीटर दूर सयाजीपुरा में स्थानांतरित कर दिया गया है। मंगेशभाई ने कहा कि वहाँ कमरों की ख़ासियत को बदल दिया गया है। उन्होंने कहा, "लागत को कम करने के लिए छोटे कमरे बनाए गए हैं। विस्थापन के बाद मृत्यु दर बढ़ी है; मध्यम आयु वर्ग के 27 लोग मारे गए हैं। किस कारण से मरे हम नहीं जानते हैं। प्रदूषण के अलावा और क्या कारण हो सकता है?”

तंदल्जा 

3 जुलाई, 2017 को वडोदरा के मुस्लिम पॉकेट तंदल्जा के सहकारनगर झुग्गी बस्ती में 1,428 घरों को ध्वस्त कर दिया गया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, यहाँ विध्वंस के समय सिटी सेंटर के पास के इलाक़े में लगभग दंगे जैसी स्थिति पैदा हो गयी थी।

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत फ़्लैटों का वादा किया गया था, लेकिन यह अभी भी बस्ती के पूर्व-निवासियों के लिए एक सपना ही बना हुआ है जो अब बिखरे हुए इधर उधर पड़े हैं।

demolition_in_Vadodara1.jpg

ऐयाज़ सैय्यद ने प्लॉट को दिखाते हुए कहा, “यहाँ किसी भी प्रकार के निर्माण का कोई भी निशान नहीं है। हम निजी मकान मालिकों को प्रति माह 6,000 रूपए किराया देते हैं लेकिन सरकार हमें केवल 2,000 रुपया देती है।” कई परिवारों को तो पिछले दो महीनों से 2,000 रुपये का किराया भी नहीं मिला है। यहाँ ठेकेदार गुजरात की फ़र्म क्यूब कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग लिमिटेड है, जो अमित शाह और उनके परिवार के साथ निकटता के कारण विवाद के घेरे में है।

60 साल की ज़ुबेदारबेन पटेल अब मोटर गैरेज में रहती हैं और गुटखा की दुकान चलाती हैं। उन्होंने सहकारनगर की विधवा महिलाओं का रजिस्टर दिखाया। यह कैटलॉग विध्वंस के बाद मरे और विकलांग हुए कई लोगों के नाम इस ख़त्म होने वाले अलग-अलग तरह के लोगों से भरा है।

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विजयाबर अमीनाबेन नेत्रहीन हैं लेकिन उन्हें सरकार से कोई विशेष मदद नहीं मिली है। वह दान दिए जाने वाले भोजन पर जीवित हैं।

शाम शेख़, जोकि अपनी उम्र के तीसरे दशक की शुरुआत में हैं, 2004 में सहकारनगर के पास एक इलाक़े जमजम पार्क में स्थानांतरित हो गए थे, लेकिन वह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की दुर्दशा को देखकर निराश हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि विस्थापन के दर्द के कारण कई बूढ़े लोगों की मृत्यु हो गई। उन्होंने कहा, "वे घुटन महसूस कर रहे हैं क्योंकि वे अब अपने बचपन के दोस्तों से दूर हो गए हैं।"

शाम ने कहा, "इस विध्वंस के बाद, शबदशरण ब्रह्मभट्ट [गुजरात भाजपा के महासचिव और वीएमसी के पूर्व महापौर] वहाँ एक तालाब के होने का दावा करते थे और कहते थे कि यह हिंदुओं से जुड़ा है।" शाम ने स्पष्ट किया, “यह एक तालाब नहीं बल्कि एक गड्ढा था। यह अल्पसंख्यकों के लिए अधिग्रहण हुई भुमि को क़ब्ज़ाने की एक युक्ति मात्र थी।”

अल्कापुरी [रेलवे स्टेशन क्षेत्र]

सावंत खटीक का कहना है कि शहर का एकमात्र मांसाहारी भोजन केंद्र स्टेशन क्षेत्र था। खटिक ने कहा कि पथिक भवन अब ध्वस्त हो गया है, शहर के मध्य क्षेत्र में मांसाहारी भोजन की अच्छी क़िस्म उपलब्ध नहीं है।

यहाँ ज़्यादातर दुकानें, जिन्हें वीएमसी ने ध्वस्त कर दिया था, वो मुसलमानों की थीं।

वीएमसी ने सितंबर 2017 में 1 लाख वर्ग फ़ुट से अधिक के विश्वस्तरीय पीपीएम (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल) के निर्माण के लिए पथिक भवन को ध्वस्त कर दिया।

वीएमसी ने इस्कॉन के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, एक बिल्डर जो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर गुजरात सरकार के साथ ज्यादा नज़दीक से जुड़ा हुआ है।

अब 2019 में, जब इस्कॉन दुकानों के लिए पट्टे जारी कर रहा है, तो मुस्लिम अबादी को हाशिए पर डाल दिया गया है। वडोदरा स्थित एक व्यवसायी और कार्यकर्ता मुनाफ़ पठान ने कहा, "कई मुस्लिम भाइयों ने दुकान के पट्टे के लिए बिल्डर से संपर्क किया, लेकिन वे सफ़ल नहीं हुए।" उन्होंने सवाल किया कि "किसी व्यवसाय से धर्म कैसे जुड़ जाता है? हमारे नाम में ऐसी क्या ख़राबी है? ”

मांडवी (पानी गेट)

दक्षिण-पूर्व वडोदरा के इस क्षेत्र के सुलेमानी चाल में 360 घर थे। इन्हें 31 मई, 2016 को ध्वस्त कर दिया गया था, ताकि वहाँ एक सरकारी भवन का निर्माण किया जा सके। इसमें 80 प्रतिशत मुस्लिम आबादी थी।

अब तक केवल कुछ 255 परिवारों का पुनर्वास किया गया है। उन्हें सोमा तलाव में स्थानांतरित कर दिया गया जो कि पानी गेट से 8 किमी की दूरी पर है और वहाँ अगर शहर की यात्रा की जाए तो लगभग 100 रुपये का ख़र्च आता है।

मो. साजिद शेख़ को अपना सामान इकट्ठा करने की भी अनुमति नहीं दी गयी थी। वह अब ध्वस्त क्षेत्र के सामने ही एक साइनबोर्ड लिखने की कार्यशाला चला रहे हैं।

मुनीर दीवान अब सरदार एस्टेट इलाक़े में एक फ़ैब्रिकेशन वर्कशॉप में मज़दूर के रूप में काम करते हैं, उनके पास एक वर्कशॉप थी। उन्हें बेदख़ली के बाद परिवार की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपनी सभी मशीनें एवं उपकरण बेचने पड़े। उन्होंने कहा, “किराया प्रति माह 8,000 रुपये है। मैंने 1 लाख 50,000 क़र्ज़ भी लिया है। मैं अपना क़र्ज़ कैसे चुका पाऊंगा? मेरे पास पावती है, सबूत है, तब भी मकान नहीं मिला! अब मैं क्या करूंगा?"

सरकार के इस क्षेत्र में एक पुलिस भवन बनाने की योजना थी, लेकिन वहाँ प्रगति का कोई निशान मौजूद नहीं है। ध्वस्त क्षेत्र में जहाँ तक देखा जा सकता है यही दिखता है कि पुलिस की पुरानी बसें खड़ी करने का एक निर्जन परिसर है।

मुस्लिम और दलित बहुसंख्यक क्षेत्र में विध्वंस अभियान के विपरीत, कल्याणनगर के उत्तर भारतीय चाल की कई झुग्गियाँ जो कि दक्षिणपंथी राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों का वोट बैंक है, उनके विध्वंश की कोई योजना नहीं है।

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