NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
विकास का नारा और आम आदमी
महेश कुमार
16 Oct 2014

विकास,विकास और विकास – आज पूरी दुनिया के सामने यही एक मुख्य नारा है. नरेन्द्र मोदी भी विकास के रथ पर चढ़कर वोट मांगने निकले और जनता ने उन्हें राजपाठ थमा दिया इस उम्मीद में कि शायद अब विकास होगा और हमारे अच्छे दिन आयेंगे। लेकिन अगर आज बढ़ती महंगाई पर नज़र डालें तो पायेंगें कि जनता की थाली से मूलभूत वस्तुए भी गायब हो रही हैं। इसलिए नहीं कि जनता ने किन्ही और व्यंजनों को अपनी थाली का हिस्सा बना लिया है बल्कि इसलिए कि बढ़ती महंगाई ने आम जनता को बुनियादी खाने को अपनी थाली से दूर करने पर मजबूर कर दिया है। यह बात अलग है कि मुख्यधारा की प्रेस में ‘फ़ूड इन्फ्लेशन, काफी कम स्तर पर है को प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन क्या इसका जनता के ऊपर सीधा कोई असर पड़ा है? आइये इसकी जांच करते हैं।

फ़ूड इन्फ्लेशन’ की जुगत में ही इसकी सच्चाई छिपी है। ‘फ़ूड इन्फ्लेशन’ का आंकड़ा निकालने के लिए मुख्यत: सरकार द्वारा नियंतरण संस्थाओं से बेचे जाने वाली खाद्य सामग्री की कीमत के आधार पर निकाला जाता है और इसे सरकारी संस्थाएं जारी करती है और उसके आधार पर यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि महंगाई का स्तर कम हो रहा है। यह भी एक सच्चाई है कि ‘फ़ूड इन्फ्लेशन’ का महंगाई से कोई सीधा रिश्ता नहीं होता है। आम जनता खुली मार्किट से सब्जी, अनाज, दालें, मीट आदि खरीदती हैं जहाँ उन्हें कोई राहत नज़र नहीं आती। लेकिन आंकड़ों के इस उतार-चढ़ाव की रस्सा-कसी में आम जनता पीसती रहती है । उसे अपनी थाली में वे व्यंजन नज़र नहीं आते जो शायद आज से 15 साल पहले नज़र आते थे।

                                                                                                              

आर्थिक सुधार उन्मुख आर्थिक नीतियां जिनकी शुरुवात कांग्रेस ने की और भाजपा ने उसे बिना किसी ख़ास बदलाव के वैसे-के वैसे ही अपना लिया, इन नीतियों ने दो तरह के तबके देश में पैदा कर दिए – अमीर माध्यम वर्ग जिसके पास जरूरत की सभी चीजें मौजूद है और वह पूरी दुनिया को एक वैश्विक गाँव की तरह देखता है। दूसरी तरफ वह निम्न माध्यम वर्ग और गरीब मजदूर तबका है, जिसके पास न्यूनतम जीने के साधन भी मौजूद नहीं है। हालांकि अन्य देशों के मुकाबले में या कहिये अपने पडोसी मुल्क चीन के मुकाबले में हमारा अमीर मध्यमवर्गीय तबके की बढ़ोतरी की दर काफी कम हैं। लेकिन यह तबका भारतीय राजनीती में इतना प्रभावशाली है कि प्रचार के सभी माध्यमों, चाहे वह सरकारी हो या गैर-सरकारी के तहत इन आर्थिक नीतियों का समर्थक बना हुआ है। उसे कहीं न कहीं यह महसूस होता है कि इन नीतियों के तहत उसके विकास के रास्ते व्यापक रूप से खुले हैं। और इस तबके को यही खवाब शासक पार्टियों द्वारा दिखाया जाता रहा है। यह वैसी ही स्थिति है कि इस तबके का हर इंसान कोई न कोई लाटरी लगने के इंतज़ार कर रहा है लेकिन इनको यह नहीं मालूम कि सरकार ने बम्पर लाटरी केवल बड़े पूंजीपतियों जिसमें रिलायंस और अदानी जैसे महारथी शामिल है, के हवाले कर दिया है।

गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय तबके की तो बात ही निराली है। यह तबका सीजनल तबका है। इसकी याद केवल चुनावों के दौरान आती है और उसे ‘अच्छे दिन’ और ‘विकास’ जैसे नारों से गुमराह किया जाता है। धर्म संकट में है, देश की संस्कृति दूषित हो रही है और लव-जिहाद जैसे मुद्दों में फ़सा कर रखा जाता है ताकि यह वर्ग हमेशा गुमराह होता रहे और सरकार की नीतियों के खिलाफ कोई वाजिब चुनौती न बने। अगर मांसाहारी परिवारों की बात करें तो मटन ने उनकी थाली से सालों पहले नाता तौड़ दिया है। मुस्लिम परिवारों में मटन की जगह बीफ के मीट ने ले ली है। जब मैंने इस सम्बन्ध में कुच्छ मुस्लिम परिवारों से बात की तो उन्होंने बताया कि मटन 380 से 400 रूपए किलो है, और इतना महंगा खाना हमारी औकात के बाहर है इसलिए बीफ के मीट से काम चलाते हैं। हिन्दू मांसाहारी परिवारों ने या तो पोर्क या फिर मुर्गे से मटन को रिप्लेश कर दिया है। शाकाहारी परिवारों में आलू की सब्जियां बनाना मुश्किल है क्योंकि वह भी 35 से 50 रूपए किलो बिक रहा है। हरी सब्जियों की तो बात ही क्या है? हर डाक्टर हरी सब्जियां, दालें, दूध और दही खाने की हिदायत देता है लेकिन खाए कैसे अगर खुद दूध-दही खायेंगे तो बच्चों को क्या देंगे। हर सब्जी 10 रूपए पाँव यानी 40 रूपए किलो है, ऐसी स्थिति में गरीब परिवार जो 5,000 से 10,000 रूपए महीना की आय पर जीते हैं वे कोई भी पोषक खाना नहीं खा पाते हैं। इन तबको में महिलाओं और बच्चों की दशा सबसे खराब है। खून की कमी और असंख्य बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं और सरकारी अस्पतालों के चक्कर काट-काटकर थक जाते हैं। वहां भी जांच शुल्क और बिमारी के ऊपर खर्च से उन पर भारी मार पड़ती है।

मनमोहन सरकार हो या मोदी सरकार – इनकी आर्थिक नीतियाँ अम्बानी-अदानी का मुनाफा तो बेताहाशा बढ़ाएंगी लेकिन साथ ही देश में भुखमरी में भी इजाफा करेंगी क्योकि देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया एक बड़े फ़ूड संकट की और बढ़ रही है। ये नीतियाँ जहाँ असमानता को बढ़ाएंगी वहीँ बड़े इजारेदारी को इस हद तक पहुंचा देगी कि वह दिन दूर नहीं जब देश की सारी संपत्ति पर केवल कुछ घरानों का अधिपत्य कायम होगा।  गरीब आदमी यही सोचता रह जाएगा कि मेरी थाली से खाना कहाँ गायब हो रहा है। है किसी सरकार के पास है इसका जवाब? निश्चित तौर पर नहीं है।

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

खाद्य स्फीति
भाजपा
अच्छे दिन
अम्बानी
अदानी
नरेंद्र मोदी

Related Stories

कार्टून क्लिक : नए आम बजट से पहले आम आदमी का बजट ख़राब!

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

कोयला आयात घोटाला : अदानी समूह ने राहत पाने के लिए बॉम्बे हाइ कोर्ट का रुख किया

रोज़गार में तेज़ गिरावट जारी है

अविश्वास प्रस्ताव: विपक्षी दलों ने उजागर कीं बीजेपी की असफलताएँ

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

यूपी-बिहार: 2019 की तैयारी, भाजपा और विपक्ष

चुनाव से पहले उद्घाटनों की होड़

अमेरिकी सरकार हर रोज़ 121 बम गिराती हैः रिपोर्ट


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License