NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
विवादित ढांचे की बात: मोदी को इसे रामजन्मभूमि क्यों नहीं कहना चाहिए
पीएम अपने राजनीतिक मुद्दे को जनता, विवाद करने वाले और न्यायपालिका तक पहुंचा रहे हैं।
नीलांजन मुखोपाध्याय
30 Oct 2019
ayodhya

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के लिए अपनी पार्टी के कैडर और संघ परिवार के सहयोगियों को तैयार कर रहे हैं जो अयोध्या मामले में पूरी तरह से हिंदू पक्षकारों के पक्ष में नहीं है?

या, क्या उन्होंने मुस्लिम पक्षकारों को संदेश दिया कि उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2010 में दी गई विवादित भूमि के एक तिहाई हिस्से पर स्वामित्व से वंचित होने पर भी इस निर्णय को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि उनके विचार में अयोध्या में विवादित स्थल केवल “रामजन्मभूमि” ही है?

महीने में एक बार रेडियो से प्रसारित होने वाले उनके पसंदीदा कार्यक्रम मन की बात के हालिया कार्यक्रम में 27 अक्टूबर को दिवाली के दिन मोदी ने राजनीतिक रूप से उल्लेखनीय बयान में 30 सितंबर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद " सरकार, राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, नागरिक समाज, संप्रदायों और संतों के प्रतिनिधियों की प्रतिक्रिया को याद किया।"

ये रेडियो कार्यक्रम महत्वपूर्ण था क्योंकि अब तक मोदी ने अपने एकतरफा रेडियो संवाद के ज़रिए लोगों से मानवीय संबंध बनाने के प्रयास में राजनीतिक विषयों को अलग रखा था।

इस रेडियो शो को संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूजवेल्ट के फायरसाइड चैट की तर्ज पर तैयार किया गया है। यह एक ऐसा फॉर्मेट था जो उन्हें अपनी शख्सियत को बताने में आसानी से सक्षम बनाया और लोगों के घरों के भीतर तक पहुंच बनाने में सफल हुआ।

हालांकि मोदी के लिए मन की बात महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जल्द ही स्थापित मीडिया चैनलों को नाकाम करने के लिए एक साधन बन गया। इसके अलावा इस कार्यक्रम के लिए वे अपने स्वयं के विषयों को चुनते हैं और उन पर अपनी बात रखते हैं।

मोदी ने विभिन्न दलों की प्रतिक्रिया को याद किया जिसे उन्होंने "संयमित और संतुलित" के रूप में सूचीबद्ध किया और इसे उदाहरण के रूप में पालन किया। प्रधानमंत्री का दख़ल पूरी तरह से एक राजनीतिक मामला है जिसने तीन दशकों से भारतीय राजनीति को आकार दिया है जो बेहद महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत का फैसले अगले पखवाड़े के भीतर किसी भी दिन आने की उम्मीद है।

भारत के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और अगर इस वक्त तक फैसला नहीं सुनाया जाता है तो पूरी सुनवाई फिर से होने की संभावना होगी क्योंकि उन्हें स्थानांतरित करने और पांचवें न्यायाधीश की जगह भरने के लिए एक नए न्यायाधीश को नामित किया जाएगा।

चूंकि ये संबोधन हिंदू के सबसे अहम त्योहार दिवाली के दिन प्रसारित हुआ और जब ज़्यादातर लोगों को रोज़मर्रा की ख़बरों और घटनाओं को लेकर कम समय और दिलचस्पी होती है ऐसे में मोदी के दावे का महत्व अभी भी कम नहीं है। फिर भी, उनका दखल इस विषय पर संभवतः उनके द्वारा प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद सबसे महत्वपूर्ण है और वह भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसला आने के काफ़ी क़रीब है।

अयोध्या पर मोदी की टिप्पणियों के दो हिस्से हैं। विवादित धर्मस्थल का ज़िक्र करते समय सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात उनकी पसंद है। उन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले को "रामजन्मभूमि" पर फैसला कहा और "विवादित स्थल" नहीं कहा क्योंकि उनके स्थान पर बैठे व्यक्ति को शीर्ष अदालत के फैसले से पहले विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि का उल्लेख करना चाहिए।

आखिरकार, एक साधारण सिविल टाइटल सूट होने के अलावा इस मामले में जो मुद्दा दशकों से खींचा गया है उसमें आस्था से लेकर परंपरा तक के कारक मौजूद हैं।

ऐसे समय में जब विवाद के हर पहलू की न्यायिक जांच की जा रही है ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए इसे रामजन्मभूमि कहना अनुचित था। इस प्रक्रिया में उन्होंने इस मामले पर अपना राजनीतिक दांव चला है जो स्पष्ट है। निस्संदेह, मोदी देश के मुख्य कार्यकारी के रूप में विफल रहे हैं और अपने राजनीतिक दृष्टिकोण को बरकरार रखा है।

पिछले सभी प्रधानमंत्री जिन्होंने अयोध्या विवाद के बाद से कार्यालय संभाला उन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू किया था। उन्होंने 6 दिसंबर 1992 को गिराए गए ढ़ांचा का हवाला दिया और साथ ही इस मामले से संबंधित भूमि को विवादित ढ़ांचा या भूमि बताया। इनमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शामिल हैं। वीडियो क्लिप सार्वजनिक है जो इस तरह के बयान की पुष्टि करते हैं।

फिर भी मोदी ने इस जगह को रामजन्मभूमि कहा है जो उनकी खुद की मंशा को स्पष्ट करता है और यह भी दर्शाता है कि वह इसे बताने के लिए न्यायपालिका सहित अन्य पर कैसे प्राथमिकता देंगे।

मोदी ने यह भी याद किया कि 2010 के उच्च न्यायालय की सुनवाई से पहले की अवधि में देश में किस तरह तनाव था: "तनाव पैदा करने के लिए इस तरह की भाषा बोली जाती थी!" उन्होंने आगे कहा कि कई "बड़बोले लोगों का एक मात्र इरादा उस समय सुर्खियां बटोरना था। और हम सभी जानते हैं कि किस तरह की गैर-जिम्मेदाराना चर्चाएं हो रही थीं।"


1980 के दशक के मध्य से जब संघ परिवार के घटकों द्वारा इस आंदोलन का संरक्षण किया गया और अयोध्या पर सबसे ज़्यादा अपमानजनक टिप्पणियां भगवा संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दिया ऐसे में मोदी ने अपने संबोधन में कुछ भी स्वीकार नहीं किया।


विवादित भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान बताते हुए मोदी का आरोप अज्ञात लोगों पर है जो पुलिस का अज्ञात व्यक्ति के ख़िलाफ़ एफआईआर जैसा है। इस अज्ञात व्यक्ति को पुलिस को छोड़कर हर कोई जानता है!

इस मामले में यह स्पष्ट है कि मोदी राजनीतिक भाषण में मुसलमानों पर क्रूरता भरने के प्रयासों का आरोप लगा रहे हैं।

मोदी के रुख के बावजूद फैसले को लेकर कोई निश्चितता नहीं है जो उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीश देने वाले हैं। यही कारण है कि मोदी ने अपने कैडर को पूरी तरह से अनुकूल निर्णय न होने के लिए भी तैयार किया है।

यह याद रखना ज़रुरी है कि उच्च न्यायालय के फैसले को "पंचायती फैसला" कहा गया था क्योंकि इसने उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच विवादित संपत्ति को विभाजित किया था। ऐसा हो भी सकता है कि सुप्रीम कोर्ट एक दशक के इंतजार के बाद हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रख सकता है।

यह बताता है कि मोदी ने दिवाली के मौके पर रेडियो के अपने संबोधन में "सामाजिक-राजनीतिक माहौल में तनाव को कम करने के प्रयासों" को क्यों याद किया। हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में कई मौके आए हैं जब वह न्यायपालिका के ख़िलाफ़ रहे हैं फिर भी प्रधानमंत्री ने कहा कि वह "खुश थें कि न्यायपालिका की गरिमा को बरक़रार रखा गया"।

मोदी ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद जो भी प्रतिक्रिया आई उसे "हमेशा याद किया जाना चाहिए क्योंकि वे हमें बहुत ताकत देते हैं।"

हालांकि उनका बयान यह स्पष्ट करता है कि वह और उनके सहयोगी जिस फैसले की उम्मीद कर रहे हैं, हिंदू दलों के पक्ष में निर्णय नहीं होने की स्थिति में वह समर्थकों से अपने गुस्से पर लगाम लगाने के लिए कह रहे हैं।

इस बार मोदी पूरी तरह बहुसंख्यकों के मुद्दे के लिए समर्थन का ढोल पीटने की स्थिति में नहीं हैं जबकि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है।


(नीलांजन मुखोपाध्याय दिल्ली के पत्रकार और लेखक हैं। उन्होंने बाबरी मस्जिद ढ़ाचा गिराए जाने के बाद द डिमोलिशन: इंडिया एट द क्रॉसरोड नामक पुस्तक लिखा। हाल में लिखी गई उनकी पुस्तक द आरएसएस: आइकन्स ऑफ द इंडियन राइट है।)

ram janmbhumi vivaad
raam janmbhumi vivaad vs baabri masjid vivad
disputed land on ayodhya
ayodhya and narednra modi

Related Stories


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License