NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
पेंटागन का भारी-भरकम बजट मीडिया की सुर्खियां क्यों नहीं बनता?
पेंटागन का भारी-भरकम बजट आम अमेरिकियों के कल्याण के लिए मिलने वाले सरकारी लाभों से चुराया जा रहा है। लेकिन कॉरपोरेट मीडिया या नीति-निर्माता इसे मानने के लिए तैयार नहीं हैं, इस मुद्दे पर उनसे बहस की अपेक्षा की बात तो जाने ही दें। 
सोनाली कोल्हटकर
30 Nov 2021
 Pentagon
छवि सौजन्य: फ़्लिकर 

बिल्ड बैक बेटर (बीबीबी) के विधान पर सघन वाद-विवाद ने अमेरिकी सरकार के व्यय पर राजस्व अनुदारवादियों के तीखे व्याख्यानों को लहका दिया है। यह विधेयक, जो प्रगतिशील सांसदों और किर्स्टन सिनेमा और जो मैनचिन जैसे कंजरवेटिव डेमोक्रेट सीनेटर के बीच राजनीतिक अधर में लटक गया है, उसकी अपने मौजूदा स्वरूप लागत 10 वर्षों में 1.75 ट्रिलियन डॉलर है, जो प्रति वर्ष $175 बिलियन डॉलर के समतुल्य है। 

इसकी तुलना वित्तीय वर्ष 2022 के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के $753 बिलियन डॉलर के प्रस्तावित सैन्य बजट व्यय से करें। सुरक्षा नीति सुधार संस्थान (Security Policy Reform Institute) के अनुसार, "सैन्य बजट में यह वृद्धि $12 बिलियन डॉलर से अधिक की बढ़ोतरी के बराबर है, जिसका अर्थ है कि बाइडेन ने पेंटागन बजट को बढ़ाकर उसे सीडीसी के पूरे वार्षिक बजट के बराबर ला दिया है।" 

इस राशि को 10 वर्षों में बहिर्वेशन करते हुए सालाना परियोजना की राशि को बढ़ाना-इस विचार से एक अच्छी धारणा है कि सैन्य बजट में वर्ष दर वर्ष बढ़ोतरी कभी रुकी नहीं है- यह बताता है कि अमेरिकी करदाता आने वाले दशकों में हमारे बजटीय कचौड़ी (पाई) से $8 ट्रिलियन डॉलर का हिस्सा "रक्षा" बजट में पाएंगे। 

सुरक्षा नीति सुधार संस्थान के सह-संस्थापक स्टीफन सेमलर ने एक इंटरव्यू में मुझे बताया कि "यह आश्चर्यजनक है कि सिस्टम कितना हाइड्रोलिक (तरल) है।" उनके मुताबिक, इसका मतलब है कि "उन्होंने बीबीबी बिल के चलते घरेलू देखभाल मद में $25 बिलियन राशि की कटौती की है"। उन्होंने कहा, "जबकि कांग्रेस ने लगभग उसी समय बाइडेन के सैन्य बजट में $25 बिलियन की वृद्धि कर दी।"

जबकि नया-नया पारित बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण बिल की लागत, जिसे राष्ट्रपति बाइडेन के हस्ताक्षर से कानून बनाया जाना है, और पारित नहीं हुए बीबीबी विधेयक पर देश के प्रमुख समाचार पत्रों के पहले पन्नों पर एवं टेलीविजन चैनलों पर खूब चर्चाएं की गई हैं, लेकिन साल दर साल गुब्बारे की मानिंद फूलते जा रहे रक्षा-बजट के बारे में उन्हीं मीडिया में चूं तक नहीं किया जाता। 

उदाहरण के लिए, सितंबर के अंत में इसी वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख का शीर्षक था, "बाइडेन, पेलोसी इम्बार्क ऑन लेट स्क्रैम्बल टू सेव $1 ट्रिलिएन इंफ्रास्ट्रक्चर बिल” (बाइडेन एवं पेलोसी ने $1 ट्रिलियन के बुनियादी संरचना वाले विधेयक को बचाने के लिए देर से कवायद शुरू की)। यह देश के प्रमुख समाचार पत्रों में इसी तरह के कई विधेयकों के हिस्से पर गर्मियों के अंत और शरद ऋतु के शुरुआत में प्रमुख मीडिया संस्थानों द्वारा कई विधेयकों के किए गए उल्लेखों में से एक था। 

ऐसे में,पेंटागन के वित्तीय पोषण पर उंगली उठाने वाले एक शीर्षक की परिकल्पना करें। यह तथ्य है कि अमेरिकी सैन्य बजट का आकार बीबीबी विधेयक (यह वित्तीय रूप से एक उत्तरदायी विधेयक है,जिसका मकसद लंबी अवधि में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में राजस्व घाटे को कम करना है। इसे सुनिश्चित करने के लिए सबसे धनी अमेरिकी और सबसे बड़े निगमों द्वारा संघीय करों में अपने उचित हिस्से का भुगतान कराना है।) के आकार से चार गुना से अधिक है, जिसे हमारे अखबारों की सुर्खियों में झलकना चाहिए। किंतु हम इस तरह के विषयों एवं विचारों पर मुख्यधारा के मीडिया में विमर्श किए जाने की कल्पना तक नहीं कर सकते क्योंकि सैन्य बजट को बड़ा पवित्र माना जाता है। यह सोच अमेरिका के नीति-निर्माताओं की ही नहीं है,बल्कि कॉर्पोरेट मीडिया इकाइयों का भी यही मानना है कि सैन्य बजट पर अखबारों में चर्चा नहीं की जा सकती। 

सेमलर ने बताया कि "खर्च करने की दो अवधारणाएं हैं-सामाजिक खर्च और सैन्य खर्च-जो खर्च करने के नियमों के दो अलग-अलग सेटों द्वारा खेलती हैं।" 

अमेरिकी लोगों को सीधे-सीधे लाभान्वित करने वाले कानूनों की कीमतों पर राष्ट्रीय स्तर पर वाकछल, सामाजिक खर्च से कई गुनी लागत वाले सैन्य बजट का मौन स्वीकार अंदर से झनझना देता है-लेकिन यह स्थिति केवल उन लोगों को ही कचोटती है, जो इन तथ्यों पर बहुत करीब से गौर कर रहे हैं या स्वतंत्र मीडिया के प्रकाशनों को पढ़ रहे हैं। 

निष्पक्ष रिपोर्टिंग का एक उदाहरण हफ़िंगटन पोस्ट के लेखक अकबर शाहिद अहमद का लेख है, जिसके शीर्षक का एक भाग है- "पेंटागन का बजट बाइडेन के सामाजिक नीति विधेयक से चार गुना अधिक है।" 

एक अन्य उदाहरण प्रकाश नंदा का लेख है, जो यूरेशियन टाइम्स नामक एक गैर-अमेरिकी आउटलेट में प्रकाशित हुआ है, और इसका शीर्षक है, "जो बाइडेन का $ 778 बिलियन के रक्षा बजट पर किसी का ध्यान नहीं जाता,लेकिन उनके $170B सामाजिक एजेंडे पर एक बड़ी बहस हो जाती है।”

लेकिन अमेरिका के प्रमुख समाचारपत्र संस्थानों में तो ऐसी कोई हेडलाइंस नहीं दिखाई दी। 

ऐसा नहीं है कि व्यय की हमारी प्राथमिकताओं पर देश में कोई बहस नहीं हो रही है। यदि वाशिंगटन पोस्ट जैसे कॉरपोरेट मीडिया संस्थान बर्नी सैंडर्स जैसे प्रगतिशील सांसदों से उनका रुख जान रहे थे तो उन्होंने शायद वर्मोंट सीनेटर के हालिया ट्वीट पर रिपोर्ट किया होगा कि "यह बिल्कुल बकवास है कि एक ही समय में जब हमारा देश अमेरिका अपना सैन्य खर्च लगातार बढ़ाता जाता है,जो लगभग 12 देशों को मिला कर किए जाने वाले खर्च से भी कहीं ज्यादा है,वहीं हमें बार-बार बताया जाता है कि हम अपने देश में कामगारों की जरूरतों की पूर्ति के लिए धन निवेश करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।” 

लेकिन इस सवाल को आगे बढ़ाने की बजाय, वाशिंगटन पोस्ट और अन्य मीडिया संस्थानों ने अपनी खबर दर खबर में पेंटागन पर खरबों डॉलर खर्च करने की कंजरवेटिव डेमोक्रेट सीनेटर जो मनचिन (डी-डब्ल्यूवी) जैसे प्रतिनिधियों की इच्छा और मांगों को आगे बढ़ाने का पालन किया है। राजस्व अनुदारवादियों के पाखंड और सैन्य व्यय के उनके एकमुश्त अनुमोदन की ओर इशारा करता हुआ एक लेख खुद ही इसकी कहानी कह देगा। पर इस तरह के आख्यान को प्रकाशित करने से बचने की कोशिश की जाती है। 

यहां तक कि कुछ अमेरिकी लोग भी सैन्य बजट को लेकर ऐसी मूर्खतापूर्ण चुप्पी पर गौर करते हैं। वाशिंगटन प्रांत में रहने वाली एलिस सी मैक्केन ने किट्सप सन नामक एक स्थानीय अखबार को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने सैन्य बजट के आकार पर सवाल उठाया था। वे बाइडेन प्रशासन की प्राथमिकताओं में स्पष्ट अंतर को देखने में सक्षम थीं। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, "उनमें से वे ही कुछ लोग जो बीबीबी योजना को बहुत महंगी बता कर उसे खारिज करते हैं, वे पेंटागन को एक वर्ष के लिए $778 बिलियन, या दस वर्षों में लगभग $8 ट्रिलियन देने वाले बिल को पारित करने के लिए उत्सुक हैं।" 

वे सीधे पूछती हैं, "हमारे देश पर और उसके लोगों पर पैसा खर्च करना इतना कठिन क्यों है जबकि हमारी सेना को बेशुमार धन देना इतना आसान क्यों है?" उनका सवाल यह है कि मीडिया संस्थानों ने इस सवाल को उठाने से वर्षों से जानबूझ कर परहेज किया है।

संगठन और थिंक टैंक जैसे प्रोजेक्ट ऑन गवर्नमेंट ओवरसाइट, नेशनल प्रायोरिटी प्रोजेक्ट, और सेमलर की सिक्युरिटी पॉलिसी रिफॉर्म नियमित रूप से पेंटागन के अनुचित रूप से विशालकाय बजट की आलोचना करते हैं, उनमें एक बेहतर सांख्यिकीय तुलना की पेशकश करते हैं, लेकिन इनमें से कोई पेशकश प्रमुख मीडिया संस्थानों को गंभीर तरीके से सवाल उठाने के लिहाज से अच्छी नहीं लगती है।

आखिरकार मीडिया संस्थान राजनेताओं की तरह ही साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षाओं में निवेशित दिखाई देते हैं। सेमलर ने बताया कि कैसे, "बाइडेन के राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना के साथ एक डर था, वह यह कि चुनाव की गहमागहमी के बीच बाइडेन और उनके प्रतिद्वंद्वी [पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड] ट्रम्प के बीच चीन के मुद्दे पर एक दूसरे से अधिक सख्त और अधिक 'मर्दाना' होने-दिखाने की होड़ आगे चल कर बाइडेन की नीतियों में फलित हो जाएगा।” 

वह डर जायज था। जून में, बाइडेन ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें "पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के सैन्य-औद्योगिक जटिलताओं से उत्पन्न खतरे" का हवाला देकर और अमेरिकी सैन्य बजट में वृद्धि का प्रस्ताव करते हुए चीन विरोधी भावना को जारी रखा गया है। चीन के परमाणु हथियारों के बढ़ते जखीरे के बारे में अमेरिकी प्रशासन को आगाह करतीं वाशिंगटन पोस्ट और अन्य कॉर्पोरेट मीडिया संस्थानों की रिपोर्टें पेंटागन के बजट को बढ़ाने के तर्क का पूरी निष्ठा से समर्थन करती हैं।

सेमलर ने कहा, "सामाजिक क्षेत्रों में किया जाने वाला खर्च भी सैन्य-खर्च में बढ़ोतरी के समान नियमों का पालन कर सकता है कि अमेरिका के पास हमेशा पर्याप्त धन है।" उन्होंने कहा, "लेकिन चूंकि कांग्रेस केवल एक निश्चित राशि [सामाजिक व्यय के लिए] चुन रही है, तो बढ़ता जा रहा सैन्य-खर्च, प्रभावी रूप से, सामाजिक कार्यों के लिए खर्च किए जाने वाले धन को ही चुरा रहा है।" हमारे प्रमुख मीडिया संस्थान में ऐसी एक रेडिकल और तिस पर भी बिना लाग-लपेट के जाहिर इरादे वाली टॉप स्टोरी देखने की तो बस कल्पना कीजिए। 

(सोनाली कोल्हाटकर फ्री स्पीच टीवी और पैसिफिक स्टेशनों पर प्रसारित होने वाले "राइजिंग अप विद सोनाली" टेलीविजन और रेडियो शो की संस्थापक, मेजबान और कार्यकारी निर्माता हैं। वे इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट में इकोनॉमी फॉर ऑल प्रोजेक्ट की राइटिंग फेलो हैं।)

स्रोत: इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूट 

क्रेडिट लाइन: यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूट के एक प्रोजेक्ट इकोनॉमी फॉर ऑल द्वारा प्रकाशित किया गया है।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Why Don’t We See Headlines Touting Pentagon’s Hefty Price Tag?

Asia/China
Asia/India
Biden
Democratic Party
Economy
GOP/Right Wing
Interview
Media
North America/United States of America
opinion
politics
Social Benefits
Time-Sensitive
trump
War

Related Stories

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

आर्यन खान मामले में मीडिया ट्रायल का ज़िम्मेदार कौन?

गतिरोध से जूझ रही अर्थव्यवस्था: आपूर्ति में सुधार और मांग को बनाये रखने की ज़रूरत

अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी

विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License