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कमज़ोर वर्गों के लिए बनाई गईं योजनाएं क्यों भारी कटौती की शिकार हो जाती हैं
क्या कोविड-19 से उत्पन्न संकट ने सरकार के बजट को बुरी तरह से निचोड़ दिया है, या यह उसकी तरफ से समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की सरासर उपेक्षा है? इनके कुछ आंकड़े खुद ही सब कुछ बयां करते हैं।
भारत डोगरा
13 Apr 2022
underprivileged
प्रतीकात्मक फ़ोटो, साभार: फ्लिकर

सदियों से, भारत के दमनकारी सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य ने अपने समाज के सबसे कमजोर वर्गों को उनकी जाति-आधारित पारंपरिक काम-धंधों को छोड़ देने पर विवश कर दिया है और सामाजिक-आर्थिक पायदान पर आगे बढ़ने से भी उन्हें रोक दिया है। इस परिदृश्य एवं प्रणाली को बदलने के लिए, जो कि उन समुदायों को शिक्षा और काम के अवसरों तक उनकी पहुंच को सीमित करती है, आजादी बाद की सरकारों ने कई योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य शिक्षा एवं काम के अवसरों तक उन समुदायों की पहुंच में सुधार करके उनकी आकांक्षाओं को बढ़ावा देना है, जैसे अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए आवासीय विद्यालय की स्थापना किया जाना या ऐसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना जो विमुक्त (डि-नोटिफाइड) जनजातियों और घुमंतू या अर्ध-घुमंतू समुदायों के सदस्यों के बीच नई आजीविका या उद्यमशीलता के अवसरों को प्रोत्साहित करते हैं।

हालांकि, पिछले साल से इन योजनाओं के बजट में मनमाने ढंग से कटौती की गई है। यहां तक कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में इनके मद में किए गए आवंटन या तो बहुत कम हैं या आधिकारिक दस्तावेजों में उनके आवंटन के उल्लेख बहुत ही अस्पष्ट तरीके से किए गए हैं। हम जिन कटौतियों का यहां आकलन कर रहे हैं, उन्हें केवल कल्याणकारी योजनाओं में आवंटित की कटौती कह कर नहीं समझाया जा सकता है, जैसे कि राजस्व-संसाधन में कमी होने पर कल्याणकारी योजनाओं के आवंटन में कटौती एक सामान्य प्रवृत्ति है। यहां बात दूसरी है, कुछ योजनाओं में, समान रूप से लगातार और गंभीर बजटीय कटौती के पीछे सरकार का एक पूर्वाग्रह दिखाई देता है।

उदाहरण के लिए,अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए स्कालरशिप फॉर हायर एजुकेशन फॉर यंग अचीवर्स (श्रेयस) योजना के लिए 2021-22 के लिए बजट अनुमान (बीई) में 450 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। लेकिन जब वित्त मंत्रालय ने संशोधित अनुमान (आरई) तैयार किया, तो इसे घटाकर केवल 260 करोड़ रुपये कर दिया गया। इस वर्ष (2022-23) का बजट अनुमान रु.364 करोड़ रुपये किया गया है, जो 2021-22 की तुलना में काफी कम है। पिछड़े और बेहद पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए एक और श्रेयस योजना में 2021-22 में बजट अनुमान 130 करोड़ रुपये था, जबकि संशोधित अनुमान में उसमें कटौती कर 90 करोड़ रु. कर दिया गया। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए इसका बजट अनुमान बहुत ही कम 80 हजार करोड़ रु. रखा गया है।

बहुत बार, आवासीय या हॉस्टल की सुविधा एकमात्र ऐसा तरीका है, जिससे कमजोर वर्गों के छात्र शिक्षा हासिल कर सकते हैं और उसमें तरक्की कर सकते हैं। हालांकि, अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण आवासीय विद्यालय उपलब्ध कराने के लिए पिछले वर्ष शुरू की गई श्रेष्ठ योजना (लक्षित क्षेत्रों में उच्च विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के लिए आवासीय शिक्षा योजना) इस संभावना को हरा देती है, जो इस योजना का मूल लक्ष्य था। इसके लिए,2021-2022 के बजट में, 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन आरई में कटौती कर उसे 63 करोड़ रुपये कर इसकी क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर दिया गया। यह ध्यान रखने की बात है कि जब किसी योजना में दो तिहाई से अधिक बजट राशि में कटौती कर दी जाती है तो वह सैकड़ों युवाओं को एक अवसर से वंचित कर देती है। इस साल बजट अनुमान 89 करोड़ रुपये रखा गया है, जो आवश्यकता को देखते हुए काफी कम है।

यह तथ्य ज्यादातर लोगों को चकित कर देगा कि बहुचर्चित एकलव्य मॉडल आवासीय योजना ने 2021-22 में अपना बजट घटा दिया था। 1,418 रुपये के बजट अनुमान को संशोधित अनुमान में घटा कर 1057 करोड़ रु.कर दिया गया था। अनुसूचित जनजातियों के विकास के लक्ष्य से शुरू किए गए महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम को भी 2021-22 के बजट अनुमान 4,303 करोड़ रुपये को संशोधित अनुमान में घटा कर 3,797 करोड़ रु. कर दिया गया था। और अन्य कमजोर समूहों के लिए महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम के लिए 2020-21 से 2022-23 तक के बजट में 2,140 करोड़ रुपये में कटौती कर 1,930 करोड़ रुपये कर दिया गया था, जिसका वर्तमान में संशोधित अनुमान मोटे तौर पर पिछले वर्ष के समान है।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकार की तरफ से शुरू की योजनाओं और उनके बजट में कमी की गई है, उन योजनाओं की सूची लगभग अंतहीन है। विश्वास (VISVAS) वंचित सामाजिक समूहों के लिए एक वित्तीय सहायता योजना है, जिसमें सबसे अधिक कटौती की गई है। इस मद में 2021-22 के बजट अनुमान में 150 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन संशोधित अनुमान में इसे केवल 20 करोड़ रुपये तक रहने दिया गया। यहां एक बार फिर 2022-23 के लिए बजट अनुमान 80 करोड़ रुपये रखा गया है, जिसमें संशोधन करने की गुंजाइश कम दिखती है।

ये कटौतियां चिंता के कारण हैं, क्योंकि वह सबसे कमजोर वर्गों को नुकसान पहुंचाती है। इन सबसे कमजोर वर्गों के प्रति अधिकारियों के दयनीय एवं अनुचित दृष्टिकोण के बारे में इस वर्ग के सशक्त विद्वानों ने समय-समय पर अपनी चिंताएं स्वतंत्र रूप से जाहिर करते रहे हैं। चूंकि उनके समुदायों को ऐतिहासिक रूप से भेदभाव और अन्याय का सामना करना पड़ा है, ऐसे में भारत उन लोगों के जिए हुए अनुभवों को सुने बिना उनकी समस्याओं का कारगर इलाज करने की उम्मीद कैसे कर सकता है? इन लक्षित समुदायों के विद्वानों को भी उनकी उन्नति से संबंधित मामलों पर महत्त्वपूर्ण राय देनी चाहिए।

फिर भी, बजट कटौती वैकल्पिक दृष्टिकोण को प्रतिबंधित करने के प्रयासों की ओर इशारा करती है। क्या यह एक और कारण नहीं है कि क्यों वंचित वर्गों के लिए शैक्षणिक और आकांक्षात्मक योजनाओं को बजट में लगातार हतोत्साहित किया जा रहा है?

महत्त्वपूर्ण स्व-रोजगार योजना की बात करें जो पूर्व में मैला ढोने वालों के लिए नए और विविध आजीविका के अवलंबन का वादा करती है। 2021-22 में इसका बजट अनुमान 100 करोड़ रुपये था। लेकिन संशोधित अनुमान ने इसमें कटौती कर 43 करोड़ रु कर दिया। यह कटौती इन खबरों के बावजूद आई है, जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के दौरान हाशिए पर चल रहे इन समुदायों को ही भारी शिकस्त खानी पड़ी हैं। फिर से 2022-23 के बजट अनुमान में इस योजना को सिर्फ 70 करोड़ रुपये मिले हैं।

यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल नहीं होगा कि भेदभाव कई बजट कटौती को निर्धारित करता है,यहां तक कि स्माइल (SMILE) योजना,जो समाज के हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों की आजीविका और उद्यमिता के प्रयासों को समर्थन देने के लिए लागू की गई है, उसको 2021-22 के बजट अनुमान में मात्र 70 करोड़ रुपये मिले। बाद में इसे घटाकर 35 करोड़ रु. कर दिया गया। अब कोई भी व्यक्ति इतने बड़ी कटौती का स्वागत मुस्कुरा कर तो नहीं करेगा। अब उसी योजना में 2022-23 में महज 45 करोड़ दिए गए हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष के बजट अनुमान से काफी कम है।

सरकार ने सीड (SEED) शुरू किए जाने का जोर-शोर से व्यापक प्रचार किया, इतना कि 2021 और 2022 वित्तीय वर्षों में इसके शुभारंभ की घोषणा की गई। सीड डी-नोटिफाइड, खानाबदोश और अर्ध-खानाबदोश जनजातियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई है। इस योजना के दायरे में आने वाले लाखों लोगों की शिक्षा (विशेष कोचिंग कक्षाओं सहित), आवास, आजीविका और स्वास्थ्य आवश्यकताओं को कवर किया जाता है। स्वाभाविक रूप से,2021-22 में 50 करोड़ रुपये के बजट अनुमान इन उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और इस वर्ष के बजट अनुमान 28 करोड़ रुपये की मामूली राशि को देखते हुए शायद यह मान लेना चाहिए कि योजना कारगर नहीं रह गई है।

वित्त मंत्रालय द्वारा फरवरी 2022 में जारी किए गए व्यय प्रोफाइल में वित्तीय वर्ष 2020-21 में कई योजनाओं पर किए गए वास्तविक व्यय को दर्शाया गया है। इसके मुताबिक सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप के लिए 119 करोड़ रुपये, ओबीसी और ईबीसी के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप (33 करोड़ रुपये), अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों की नि:शुल्क कोचिंग के लिए (33 करोड़ रुपये) खर्च किए हैं। हालांकि इन योजनाओं के मद में अगले दो वर्षों में किए जाने वाले का आवंटन का विस्तृत ब्योरा नहीं दिया गया है, उनके स्थान खाली छोड़ दिए गए हैं। इसके क्या मायने लगाया जाए, इन मदों में काम आवंटन किया जाएगा या योजनाओं का आपस में विलयन हो जाएगा या फिर इसके दोनों ही मानी हैं? इस बारे में कोई नहीं जानता है।

और फिर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत दिए जाने वाली राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं हैं, जिनके पास बजट की समस्या नहीं है। पर इसमें अनावश्यक रूप से प्रतिबंधात्मक शर्तें थोप दी गई हैं। ताजा जारी किए गए दिशा-निर्देश में कहा गया है कि इस छात्रवृत्ति की मांग करने वाले छात्र सामाजिक विज्ञान के तहत ("भारतीय संस्कृति/विरासत/इतिहास/सामाजिक अध्ययन से संबंधित कुछ भी") का अध्ययन नहीं कर सकते हैं।

कुल मिलाकर, कमजोर वर्गों के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं में धन के आवंटन में सरकार की मनमानी और उसमें की गई भारी कटौती के प्रतिकूल प्रभावों के मद्देनजर और फिर उनके लिए भविष्य में सरकार की योजनाओं की अनिश्चितता चिंता का बड़ा कारण है।

(लेखक अभियान टू सेव अर्थ नाउ के मानद संयोजक हैं। उनकी हाल की पुस्तकों में मैन ओवर मशीन और इंडिया क्वेस्ट फॉर सस्टेनेबल फार्मिंग एंड हेल्दी फूड शामिल हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/why-schemes-weakest-cections-face-massive-cuts

Budget cuts
Discrimination
Government's schemes
Welfare Schemes Under Modi Government

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