NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्या कोई निजी बैंक किसी दूर-दराज की जगह पर अपनी शाखा खोलेगा?
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऐसी जगहों  तक सुविधाएं दे रहे हैं, जहां पानी, बिजली, अस्पताल या स्कूल तक मौजूद नहीं हैं। सरकार अचानक इन्हें मंझधार में डूबने के लिए नहीं छोड़ सकती।
रोहित घोष
20 Mar 2021
बैंक
Image Courtesy: The Economic Times

मेरे एक दोस्त का भाई पूर्व सैन्यकर्मी है। सरकारी बैंकों की नौकरियों में कुछ हिस्सा पूर्व सैन्यकर्मियों के लिए आरक्षित होता है। उसे भी बैंक में नौकरी मिली थी।

उसने नियुक्ति पत्र में लिखी गई तारीख़ को बैंक में भर्ती ली, लेकिन एक दिन बाद ही इस्तीफ़ा दे दिया।
मेरे दोस्त का भाई कानपुर में रहता है और उसे पड़ोसी उन्नाव जिले के दूर-दराज के इलाके में नियुक्ति दी गई थी। उस गांव तक पहुंचने के लिए उसे कई बार बस और टेम्पो बदलनी पड़नी होतीं। 

गांव में बैंक के आसपास कुछ कच्ची झोपड़ियां थीं। वहां उसे केवल पक्षियों और कुछ दूर स्थित कुओं से पानी निकलने की आवाज़ ही सुनाई देती थी। हर तरफ सिर्फ़ और सिर्फ़ खड़ी फ़सल ही दिखाई देती थी। 

गांव की दूरदराज की स्थिति और वहां मौजूद सन्नाहट ने मेरे दोस्त के भाई को हतोत्साहित कर दिया। उसका मानना था कि बैंक की शाखा आसानी से डकैतों का शिकार बन सकती है। उसे डर था कि किसी दिन डकैत आकर उसे और उसके सहकर्मियों को मारकर बैंक से पैसा ले उड़ेंगे।

डकैती और अपनी हत्या की संभावना बताने को लेकर वह मजाक का पात्र बन गया। लेकिन इस घटना से पता चलता है कि सरकारी बैंक ऐसे दूरदराज के ऐसे गांवों में तक नौकरियां दे रहे हैं, जहां ना तो बिजली है और ना ही पानी, अस्पताल, स्कूल और शौचालयों की व्यवस्थाएं हैं।

क्या कोई निजी बैंक भारत में ऐसी दूरदराज की जगह अपनी शाखा खोलेगा?

मैंने मार्क टुली की "नो फुल स्टॉप्स इन इंडिया" साल 2000 के आसपास पढ़ी थी। तब मुझे शीर्षक का मतलब समझ में नहीं आया था। कुछ साल बाद एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि इसका मतलब था कि भारत बहुत बड़ा और कभी ख़त्म ना होने वाला देश है। मुझे भारत की व्यापकता का अंदाजा तब हुआ, जब मैंने पहली बार वाराणसी से लखनऊ की बस यात्रा की।
हाईवे के दोनों तरफ क्षितिज तक खेत ही खेत नज़र आ रहे थे। कई घंटों तक बस एक ही तरीके से सपाट मैदान पर चली जा रही थी। अचानक मुझे एक सफेद इमारत नजर आई, जिस पर एक तख़्ती के ऊपर "स्टेट बैंक ऑफ इंडिया" लिखा हुआ था। आज हम जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं- नौकरियां, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, नागरिक सुविधाएं और हर चीज की कमी, उसके लिए आम-आदमी 1947 के बाद से आई सरकारों को दोष देता है। वह एक हद तक सही भी है। 

इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार को गांवों में अभी और भी ज़्यादा करने की जरूरत है। लेकिन अगर आज गांवों में कुछ प्राथमिक स्कूल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद हैं, भले ही उनका ठीक ढंग से प्रबंधन ना हो रहा हो, तो उसकी श्रेय उन्हीं पुरानी सरकारों को जाता है।

अगर किसी गांव में बच्चे स्कूल जा रहे हैं या गांव वालों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं, तो उसके लिए सरकारों की तारीफ़ करनी होगी।

स्वास्थ्य और शिक्षा हमेशा से स्वतंत्र भारत में निजी क्षेत्र के लिए खुले थे। तो गांवो में कितने निजी अस्पताल और स्कूल बनाए गए हैं? आप सामाजिक सेवा की उम्मीद सिर्फ़ सरकार से कर सकते हैं, निजी क्षेत्र की कंपनियों से नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि व्यापार करना और सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाईयों का संचालन सरकार का काम नहीं है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण न सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों के निजीकरण किए जाने के बारे में बताया।

यह तथ्य है कि सरकारी स्कूल और अस्पताल मुनाफ़ा नहीं कमाते। बहुत हद तक संभव है कि सरकार कह दे कि वे लगातार घाटे में चल रहे स्कूल और अस्पतालों को आगे जारी नहीं रख सकती। 

अगर ऐसा होता है तो भारत के लोगों की एक बड़ी संख्या बुनियादी शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा से वंचित हो जाएगी।

हर इंसान को अपना पैसा सुरक्षित रखने के लिए बैंक की जरूरत होती है। भारत के पिछड़े जिलों के दूरदराज के गांवों में केवल सरकारी बैंकों की ही शाखाएं होती हैं।

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए अधिकारों और कल्याण के लिए लगातार संघर्ष करने वाले दिवंगत अब्दुल जब्बार ने एक बार मुझसे कहा था कि कल्याणकारी राज्य लाभ कमाने के बारे में नहीं सोच सकता। अब्दुल जब्बार के मुताबिक़, "सरकार किसी स्कूल या अस्पताल को इसलिए बंद नहीं कर सकती कि उससे उन्हें नुकसान हो रहा है। रेलवे के घाटे में चलने के चलते सरकार उसे बंद या उसका निजीकरण नहीं कर सकती। सरकार को गरीब़ों के कल्याण और उनकी जरूरतों का ध्यान रखना होगा।"

अब हमारे पास सरकार है और निजी बैंक हैं। लगातार एक बात दोहराई जाती है कि सरकारी बैंक, निजी बैंकों की तुलना में कम कार्यकुशल होते हैं।

मैं कानपुर में रहता हूं और करीब़ चार साल तक एक सरकारी बैंककर्मी हमारे किरायेदार थे। उनकी तैनाती इटावा की खड्ड भूमि के पास किसी गांव में थी।

वह सुबह 6 बजे ऑफ़िस के लिए निकलते थे। मानसून के दौरान कानपुर में कई बार बारिश हो रही होती थी, ठंड के मौसम में कोहरा छाया हुआ रहता था। लेकिन वह घड़ी लगाकर 6 बजे निकलते थे। एक भी दिन कभी उन्हें निकलने में 6 बजकर 5 मिनट नहीं हुए। वह अपनी मोटरबाइक से रेलवे स्टेशन तक जाते। वहां से गोमती एक्सप्रेस पकड़कर इटावा उतरते, जहां उन्होंने एक और मोटरबाइक रखी हुई थी। इसके बाद वे 20 किलोमीटर उसे चलाकर अपनी नौकरी की जगह पर पहुंचते। उन्होंने कभी एक दिन के लिए भी ऑफिस नहीं छोड़ा। किसी बैंककर्मी को अकुशल कैसे कहा जा सकता है?

8 नवंबर 2016 को नोटबंदी कर दी गई। 2 दिसंबर को कानपुर देहात (जिसे पिछड़े इलाकों में से एक माना जाता है) की सर्वेश देवी नाम की महिला पैसा निकालने बैंक गई थीं। वह गर्भवती थीं और पंक्ति में खड़े रहने के दौरान ही उन्हें प्रसव क्रिया शुरू हो गई।

बैंक तक जाने वाली सीढ़ियों पर उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। चूंकि बैंक में उस बच्चे का जन्म हुआ था, इसलिेए उसका नाम खजांची रखा गया। खजांची का जन्म किसी निजी बैंक में नहीं, बल्कि एक पिछड़ी जगह पर स्थित सरकारी बैंक की एक शाखा में हुआ था। 

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वे उत्तरप्रदेश के कानपुर में रहते हैं।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Will a Private Bank Open Branches in Remote Villages?

Bank Privatisation
rural banking
demonetisation
Public Sector banks
bank strike

Related Stories

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

पूंजीवाद के अंतर्गत वित्तीय बाज़ारों के लिए बैंक का निजीकरण हितकर नहीं

बैंक निजीकरण का खेल

मोदी जी की नोटबंदी को ग़लत साबित करती है पीयूष जैन के घर से मिली बक्सा भर रक़म!

बैंक कर्मचारियों की हड़ताल पर खामोश क्यों मीडिया?

निजीकरण के खिलाफ़ बैंक कर्मियों की देशव्यापी हड़ताल

बैंक हड़ताल: केंद्र द्वारा बैंकों के निजीकरण के ख़िलाफ़ यूनियनों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी दी

निजीकरण को लेकर 10 लाख बैंक कर्मियों की आज से दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल

यूपी : निजीकरण के ख़िलाफ़ 900 बैंकों के 10,000 से ज़्यादा कर्मचारी 16 दिसम्बर से दो दिन की हड़ताल पर

नोटबंदी: पांच साल में इस 'मास्टर स्ट्रोक’ ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License