NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
यह अपने बुजुर्गों के साथ खड़े होने का समय है
भारत जैसे देश में बुजुर्गों की आबादी साल 2016 में तकरीबन 11.6 करोड़ थी और साल 2026 में यह 17.9 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। यहाँ बुढ़ापे में गुजारे के लिए पेंशन सम्बन्धी योजनाओं की सख्त जरूरत है।
अजय कुमार
17 Oct 2018
दिल्ली में पेंशन परिषद का प्रदर्शन

उम्र हमारी जिजीविषा का साथ नहीं देती। एक ख़ास उम्र के बाद हमें सहारे की जरूरत होती है। हम चाहें जितना कह लें कि हम अकेले ही सबकुछ संभाल लेंगे लेकिन हमारी जैविक मजबूरियां हमारे अकेलेपन को सहन करने लायक नहीं होती। दुनिया के केंद्र में बाजार की बसावट ने अकेलापन पैदा किया है। परिवार से अलग होकर लोग अकेले जीने के लिए मजबूर हुए हैं। कुछ लोगों के पास जिन्दगी है तो बहुत सारे लोग मरने की हालात में जिन्दगी गुजराने के लिए मजबूर हुए हैं। इन सबकी परिणिति यह हुई कि जूझना ही जिन्दगी बन गया है। लेकिन यह जूझना एक उम्र के बाद साथ छोड़ देता है। हम बूढ़े हो जाते हैं। हमारे लिए सहारा जरूरी हो जाता है। यह चिंता हमारे आज का सामाजिक यथार्थ है। जिसकी उपज हमारे सरकारों द्वारा अपनाये गए विकास के मॉडल से हुई है। इसलिए जीवन भर समाज को योगदान देने के बाद बुढ़ापे के गुजारे के लिए यह जरूरी हो जाता है कि सरकार सहारा बने।

भारत जैसे देश में बुजुर्गों की आबादी साल 2016 में तकरीबन 11.6 करोड़ थी और साल 2026 में यह 17.9 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। यहाँ बुढ़ापे में गुजारे के लिए पेंशन सम्बन्धी योजनाओं की सख्त जरूरत है।

हाल ही में पेंशन परिषद ने साल 2018 के पेंशन की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत की और 30 सितंबर को दिल्ली में संसद मार्ग पर एक बड़ा प्रदर्शन भी किया, जिसमें देश के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में बुजुर्ग शामिल हुए। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कई लोगों ने कहा कि "हम अपने अधिकार माँग रहे हैं, राज्य से भीख नहीं माँग रहे।" यही जज़्बा वहाँ मौजूद सभी बुज़ुर्गों ने दिखाया। 

यह भी पढ़ें :- https://hindi.newsclick.in/yaha-daesa-baujauragaon-kae-laie-nahain-haai…

पेंशन परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार सहित कई राज्यों और संगठित क्षेत्र से उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि भारत में तकरीबन 2 करोड़ 20 लाख लोगों को पेंशन मिल रही है। बहुत सारे राज्यों में केंद्र सरकार की तरफ से केवल उन्हीं लोगों को पेंशन दी जाती है जो गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं। इन सब को जोड़ देने के बाद भी तकरीबन 5 करोड़ 80 लाख लोगों को पेंशन नहीं मिलती है। यानी वृद्धों की तकरीबन आधी आबादी पेंशन से महरूम रह जाती जाती है।

अब सवाल उठता है, वह वृद्ध जो संगठित क्षेत्र के हिस्से नहीं है, उन्हें पेंशन के तौर पर कितनी राशि मिलती है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार वृद्धों को पेंशन के तहत 200 रुपये पेंशन का मामूली अंशदान करती है जो 80 साल या उससे अधिक उम्र के बुजुर्ग के लिए 500 रुपये महीना है। यह राशि बताती है कि सरकारें वृद्धों के साथ कितना क्रूर मजाक कर रही हैं। एक बार जरा सोचकर देखिये कि एक 80 साल का बूढ़ा आदमी जो यूपी-बिहार में किसी सुदूर गाँव में रहता है, उसे पेंशन के लिए 50 किलोमीटर दूर अपने ब्लॉक पर जाना होता है, उसे पेंशन लेने के लिए कितना परेशान होना पड़ता होगा और 200 रुपये में उसके पास कितना बचता होगा। साल 2007 के बाद इस राशि पर अभी तक कोई विचार नहीं किया गया है। उस समय 200 रुपये में जितना सामान मिलता था उतना  ही सामान खरीदने के लिए आज तकरीबन 400 रुपये चुकाना पड़ते हैं। सरकारों ने इस बात तक पर ध्यान नहीं दिया है। महंगाई और जरूरत का हिसाब किताब तो छोड़ ही दीजिए। केंद्र सरकार द्वारा दिए गए पेंशन की इस राशि में राज्य सरकार कुछ और पैसा जोड़कर वृद्धों को पेंशन देती है। केंद्र और राज्य द्वारा मिली पेंशन राशि को जोड़ने के बाद भी ऐसा नहीं हो सकता कि किसी राज्य के वृद्ध को 2000 रुपये से अधिक पेंशन मिल जाए।

अगर उम्र के बेसहारा पड़ाव की परेशानी इतनी दयनीय है तो इस परेशानी का हल क्या होना चाहिए। ‘सभी को पेंशन मिले’ जैसे विषय पर काम कर रही पेंशन परिषद नामक संस्था का कहना है कि बुढ़ापा जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। इससे कोई नहीं बच सकता। जीवन भर समाज को श्रम से योगदान करने के बाद अपने बुढ़ापे में श्रम योगदान से दूर रह जाने वालों को उपेक्षित नहीं छोड़ा जा सकता है। जिन औरतों ने घर के बाहर और अंदर काम किया है बुढ़ापे में उनकी भी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। इन सबकी समाज और अर्थव्यवस्था को गढ़ने में भूमिका होती है। पेंशन सबका अधिकार है जिससे बुढ़ापे की उम्र को मदद मिले। यह केवल कर्मचारी होने के बाद ही मिला हुआ अधिकार नहीं है बल्कि नागरिक होने के तौर भी दिया जाने वाला अधिकार है। न्यूनतम मजदूरी का आधा तकरीबन 3000 रुपये तो पेंशन के तौर पर सभी को मिलना ही चाहिए।

लोग पूछते हैं कि इतने पैसा का खर्चा सरकार कहां से उठाएगी? हाल- फिलहाल सरकार पेंशन के तौर पर जीडीपी का तकरीबन 0.4 फीसदी खर्च करती है। जीडीपी में वृद्धों के लिए की गयी यह हिस्सेदारी नेपाल और बोलीविया जैसे विकासशील देशों से भी कम है। इसके विपरीत देखा जाए तो पांच फीसदी सरकारी नौकरों पर पेंशन के तौर पर तकरीबन 2 लाख करोड़ खर्च किया जाता है, जो कुल जीडीपी का तकरीबन 2 फीसदी होता है। अगर सभी सरकारी नौकरों को मिलने वाली पेंशन राशि सभी में बाँट दी जाए तो सभी वृद्ध लोगों को आराम से 3000 रुपये पेंशन के तौर पर मिल सकते हैं। इसके अलावा अन्य तरीके भी हो सकते हैं।

चुनावी गणित के लिहाज से भारत के वृद्धों की कुल वोटरों में तकरीबन 15 फीसदी की हिस्सेदारी है, लेकिन यह हिस्सेदारी एकजुट होकर वोट दे, ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं। एक लोक कल्याणकारी राज्य के तौर भारत सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह वृद्धों की उपेक्षित होते जीवन पर ध्यान दे। जिन्हें पेंशन मिल रही है और जिन्हें पेंशन नहीं मिल रही है उन सभी के लिए सोचे कि उन्हें पेंशन के तौर पर इतनी आय मिले जिससे उनका बुढ़ापा परेशानी के बगैर गुजर सके। लेकिन अब तो सरकार सरकारी कर्मचारियों की ही पेंशन खत्म कर रही है तो असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के बारे में सरकार सोचेगी, ये अभी दूर की कौड़ी है।

यह भी पढ़ें :- https://hindi.newsclick.in/paensanabhaogaiyaon-nae-kai-apanae-kai-bauna…

pension
Pensioners
pension parishad
old age pension
organised sector pension
unorganised sector pension

Related Stories

वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद

क्या हैं पुरानी पेंशन बहाली के रास्ते में अड़चनें?

पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर अटेवा का लखनऊ में प्रदर्शन, निजीकरण का भी विरोध 

वृद्धावस्था पेंशन में वृद्धि से इंकार, पूंजीपतियों पर देश न्यौछावर करती मोदी सरकार

केरल की वाम सरकार ने महामारी के दौरान ग़रीबों के हित में सही फ़ैसला लिया

झारखंड: शासन की उपेक्षा के शिकार सामाजिक सुरक्षा पेंशन के हक़दारों ने उठाई आवाज़!

यह देश बुज़ुर्गों के लिए नहीं है - दिल्ली में बुज़ुर्गों ने पेंशन के हक़ के लिए किया प्रदर्शन

पेंशनभोगियों ने की अपने की बुनियादी अधिकारों की माँग


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License