NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अरेबिका कॉफ़ी के दाम सबसे ज़्यादा, पर छोटे किसान को नहीं मिल रहा फ़ायदा
भारी बारिश और फ़सल के नुकसान के कारण उन छोटे किसानों को बड़ा घाटा हुआ है जो बड़े पैमाने पर रोबस्टा कॉफ़ी उगाते हैं।
निखिल करिअप्पा
07 Jan 2022
Translated by महेश कुमार
Cofee beans
पकती कॉफी बेरीज

कोडागु (कूर्ग) जिला जंगलों और वन्य जीवन के मामले में काफी समृद्ध है। इस क्षेत्र के संरक्षण के प्रयासों के चलते उद्योगों को यहां स्थापित करने की अनुमति नहीं दी गई थी। कृषि, खासकर  कॉफी की खेती, कोडागु की अर्थव्यवस्था की मजबूत रीढ़ रही है। कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भारत के कॉफी उत्पादन का 83 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है। अकेले कर्नाटक में इस उत्पादन का 70 प्रतिशत हिस्सा है। हालांकि, इस नकदी फसल ने पिछले तीन वर्षों में किसानों को काफी कम लाभ दिया है। दिसंबर 2021 में, अरेबिका कॉफी की कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं हैं। हालांकि, कोडागु में छोटे किसानों को इसका लाभ नहीं ,मिला  है क्योंकि वे बड़े पैमाने पर रोबस्टा कॉफी उगाते हैं। उन्हें भारी वर्षा, जंगली जानवरों से फसल को नुकसान होने, और खेती की बढ़ती लागत और श्रम की लागत के कारण होने वाले नुकसान को सहने पर मजबूर होना पड़ा है।

कॉफी की खेती का अर्थशास्त्र

भारत में कॉफी की दो किस्मों की खेती की जाती है - अरेबिका और रोबस्टा। अरेबिका की बाज़ार में अधिक कीमत मिलती है क्योंकि इसका स्वाद काफी बेहतर माना जाता है। अरेबिका की फसल का मौसम नवंबर से जनवरी तक होता है और रोबस्टा का जनवरी से मार्च तक रहता है। भारत में, रोबस्टा का कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत हिस्सा है। छोटे किसान रोबस्टा उगाना पसंद करते हैं क्योंकि उपज अधिक होती है और रखरखाव लागत तुलनात्मक रूप से कम होती है। भारी और बेमौसम बारिश के कारण इस साल कॉफी बेरीज शाखाओं से गिर गई थी। एक बार जब रोबस्टा कॉफी की कच्ची बेरी समय से पहले गिर जाती हैं, तो बोने वाले किसान के लिए इसका कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाता है।

कटाई के बाद, बेरी को धूप में सुखाया जाता है, बैग में रखा जाता है और व्यापारियों को बेचा जाता है। कॉफी के प्रत्येक बैग में 50 किलोग्राम उत्पाद होता है। न्यू यॉर्क (अरेबिका) और लंदन (रोबस्टा) में कमोडिटी बाजारों के आधार पर बैग का मूल्य प्रतिदिन बदलता रहता है। कॉफी किसान अधिकतम विदेशी बाजारों पर निर्भर हैं क्योंकि भारत में उत्पादित लगभग 80 प्रतिशत कॉफी का निर्यात किया जाता है।

27 दिसंबर, 2021 को कच्ची कॉफी की कीमतें/बैग निम्न थीं –

ये कीमतें कच्ची कॉफी के एक बैग के मूल्य को संदर्भित करती हैं जो वितरक/व्यापारिक कंपनियां कॉफी किसानों को भुगतान करती हैं। कई किसानों के अनुसार, आदर्श यानि बेहतरीन परिस्थितियों में भी, एक एकड़ कॉफी बागान से रोबस्टा बेरी के 20-30 बैग या अरेबिका बेरी के 10-15 बैग ही पैदा होते हैं। बेरी कॉफी को सूखे प्रसंस्करण के माध्यम से तैयार किया जाता जबकि पार्चमेंट कॉफी को गीले प्रसंस्करण के माध्यम तैयार किया जाता है।

बेरी कॉफी तब तैयार होती है जब पकी हुई कॉफी बेरीज को काटा जाता है और धूप में सुखाया जाता है। पार्चमेंट कॉफी तैयार करने के लिए, पके बेरिज का गूदा निकाला जाना चाहिए और  उसे धोया और सुखाया जाना चाहिए। जल संसाधनों तक अपर्याप्त पहुंच के कारण छोटे किसान चेरी कॉफी का विकल्प चुनते हैं। पार्चमेंट में बेरिज को संसाधित करना महंगा, समय लेने वाला औरर कड़ी मेहनत का काम है, इसके लिए बहुत सारे पानी की भी जरूरत होती है और उससे निकलने वाले अपशिष्टों से छुटकारा पाने के लिए एक सुविधा की भी जरूरत होती है।

वैश्विक बाज़ार

अरेबिका कॉफी के कमोडिटी बाजार चार्ट पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि कॉफी की कीमतें 2011 में 34 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थीं। इससे पहले, यह 1997, 1986 और 1977 में काफी ऊंचे स्तर पर गई थी। मूल्य वृद्धि के कारणों में कई तरह की अटकलें लगाई गई थीं जिसमें नीतिगत बदलाव और प्राकृतिक आपदाएँ शामिल थी। चूंकि कॉफी उत्पाद वैश्विक बाज़ार से जुड़ा है, इसलिए भारत के किसानों का ब्राजील, कोलंबिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, होंडुरास और इथियोपिया के किसानों से प्रतिस्पर्धा होती है। यदि दुनिया के किसी अन्य हिस्से में आपूर्ति की कमी होती है, तो इससे भारतीय किसानों को लाभ होता है। इसी तरह, जब 2001 में कॉफी की कीमतों में गिरावट आई, तो इसका प्रभाव दुनिया भर के किसानों ने महसूस किया था, जिससे वर्तमान मॉडल के लाभार्थियों के बारे में कुछ आत्मनिरीक्षण करना जरूरी हो गया है। 

इनपुट लागत

कॉफी की खेती में उर्वरक, डीजल और श्रम इनपुट लागत का बड़ा हिस्सा होता हैं। न्यूज़क्लिक ने कटेकेरी के एक कॉफी किसान, केके विश्वनाथ एक एकड़ रोपित क्षेत्र की लागत के बारे में बात की। उन्होंने बताया, “रोबस्टा कॉफी के लिए, एक एकड़ ज़मीन पर 50 मजदूरों की प्रति दिन प्रति वर्ष जरूरत होती है। इसमें मजदूरी की लागत 35000 रुपये और अन्य इनपुट 15000 रुपये तक आ सकता है। किसान न्यूनतम 50000 रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष खर्च करता है।"

पहले भी, किसान बुवाई के लिए स्थानीय आदिवासी समुदायों पर निर्भर थे। लेकिन वे अब काम की तलाश में जिले से बाहर पलायन कर रहे हैं। विश्वनाथ के मुताबिक, किसान अब पश्चिम बंगाल और असम के प्रवासी मजदूरों पर निर्भर हैं। अतीत में, बिहार, झारखंड, केरल और यहां तक कि श्रीलंका से तमिलों के प्रवासी श्रमिकों के जत्थे समय समय पर आते थे। 

कॉफी की कीमतों में ठहराव 

किसानों का कहना है कि रोबस्टा कॉफी की कीमतों में इतनी वृद्धि नहीं हुई है जितनी कि इनपुट की लागत में वृद्धि हुई है। अगर पिछली तालिका से तुलना करें तो 9 दिसंबर 2013 को कच्ची कॉफी के एक बैग की कीमत इस प्रकार थी-

2013 में, कर्नाटक में डीजल की कीमत 50 रुपये प्रति लीटर से थोड़ी अधिक थी। 2021 में, कीमत 100 रुपये/लीटर से अधिक हो गई थी। श्रम की लागत भी दोगुनी हो गई है। 2013 में, कर्नाटक में न्यूनतम मजदूरी प्रति दिन 142 रुपये थी। आज, यह 357 रुपये है। जबकि अधिकांश लागत दोगुनी हो गई है, लेकिन कॉफी की कीमतों में मामूली सी वृद्धि देखी गई है। कॉफी की कीमत में हर साल उतार-चढ़ाव होता है, लेकिन लागत हमेशा बढ़ती रहती है।

भूमि जोत

इंडियन कॉफी बोर्ड के एक सूत्र के अनुसार, कोडागु में सबसे बड़ी वाणिज्यिक होल्डिंग या जोत टाटा कॉफी लिमिटेड की है, जिसके पास 10,000 एकड़ से अधिक क्षेत्र का स्वामित्व है। सूचीबद्ध कंपनी टाटा कॉफी ने वित्त वर्ष 2020-2021 में 2289 करोड़ रुपये के वार्षिक राजस्व की कमाई घोषणा की थी। यह आंकड़ा कर्नाटक और तमिलनाडु सहित पूरे भारत में सम्पदा से आय का प्रतिनिधित्व करता है। कोडागु में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी वाडिया समूह के स्वामित्व वाली बॉम्बे बर्मा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (बीबीटीसी) की है। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, निगम के पास कोडागु में 927 हेक्टेयर (2290 एकड़) रोपित क्षेत्र है। बीबीटीसी भी एक सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाला निगम है।

भारतीय कॉफी बोर्ड के अनुसार, 2019-2020 तक, कोडागु में 43765 होल्डिंग्स यानि जोत या कॉफी एस्टेट्स थे। उनमें से अधिकांश का आकार 10 हेक्टेयर (24 एकड़) से कम था। केवल 519 एस्टेट्स, या कोडागु की कुल सम्पदा का 1.1 प्रतिशत का क्षेत्रफल 10 हेक्टेयर से बड़ा था। सम्पदा के बड़े हिस्से को परिवार चला रहे हैं और अक्सर विरासत के ज़रिए वह परिवार में ही रहता है।

फ़सल का नुकसान 

कोडागु के कॉफी किसानों ने जिला प्रशासन से बंदरों और जंगली सूअर से होने वाले नुकसान का समाधान खोजने की अपील की है। चेतल्ली गांव के एक बागान मालिक बी बी मदय्या ने छोटे जानवरों के कारण होने वाली समस्याओं पर दुख जताया है। "जब अरेबिका कॉफी पक जाती है और कटाई के लिए तैयार होती है, तो बंदरों के झुंड बागानों में प्रवेश करते हैं और कॉफी के पौधों की शाखाओं को तोड़कर जामुन के अंदर के मीठे गूदे को चूस लेते हैं। मदय्या के अनुसार, यह वर्तमान और भविष्य के कॉफी किसानों के लिए बड़ा नुकसान है क्योंकि इससे कॉफी के बीज नष्ट हो जाते हैं, और शाखा को वापस बढ़ने में समय लगता है।” 

उपरोक्त किस्म के कॉफी के पौधे को बढ़ने में 5-7 साल लगते हैं और बोने वाले को इससे कोई आर्थिक मुनाफा नहीं होता है। पौधे के एक बार नष्ट हो जाने के बाद, इसके दीर्घकालिक आर्थिक परिणाम होते हैं। कोडवा प्लांटर्स एसोसिएशन ने ऑनलाइन समर्थन जुटाने और वन विभाग पर कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है। उन्हें उम्मीद है कि बिहार की तरह बंदरों और जंगली सूअरों को अस्थायी रूप से हिंसक जानवार के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा ताकि उनकी संख्या को कम किया जा सके।

संगठन के अनुसार, “जंगली सूअर धान के खेतों को नष्ट कर देते हैं। वे मानसून के मौसम में भोजन की तलाश में जमीन खोदकर कॉफी, इलायची और काली मिर्च की बेल की जड़ों को भी नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा, वे जड़ें, कंद और नए पौधों को भी खोद डालते हैं और इस प्रक्रिया में, मिट्टी को ढीला कर देते हैं जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण होता है। जंगली सूअर बहुत अधिक जीवाणु सामग्री वाले मल के साथ जल स्रोतों को दूषित करते हैं।

ब्राजील विश्व में कॉफी का सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि वियतनाम हाल ही में विश्व स्तर पर रोबस्टा कॉफी के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है। विश्वनाथ के अनुसार वहां के किसान खुले मैदान में खेत में उगाई जाने वाली खेती की तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इन देशों में कॉफी उत्पादन का विस्तार वनों की कटाई के माध्यम से किया गया था। भारत के किसान  छाया में उगाई जाने वाली कॉफी की खेती करते हैं, जो टिकाऊ होती है लेकिन कम लाभ देती है। कर्नाटक में, पूरी की पूरी कॉफी की खेती केवल तीन जिलों - कोडगु, चिकमगलूर और हसन में की जाती है। इन तीनों जिलों में वन क्षेत्र भी बड़ा है, इसलिए यहाँ कॉफी की खेती, पेड़ों और जैव विविधता की कीमत पर नहीं हुई है। फिर हर व्यापार में कुछ लागत तो शामिल होती है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Arabica Coffee Prices Hit All-time High in December, Small Farmers Still Unable to Cash in

Coffee
Arabica
Robusta
Commodity Markets
Agriculture

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

क्या वैश्वीकरण अपने चरम को पार कर चुका है?

देशभर में घटते खेत के आकार, बढ़ता खाद्य संकट!

कृषि उत्पाद की बिक़्री और एमएसपी की भूमिका

मोदी जी, शहरों में नौकरियों का क्या?

MSP की लीगल गारंटी मिलने से पर्यावरण को नुक़सान नहीं बल्कि फ़ायदा पहुंचेगा !

किसान मोदी को लोकतंत्र का सबक़ सिखाएगा और कॉरपोरेट की लूट रोकेगा: उगराहां

कृषि क़ानूनों के वापस होने की यात्रा और MSP की लड़ाई


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License