NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
बिहार चुनाव: भूमि सुधार क्यों नहीं बन पाता बड़ा चुनावी मुद्दा
बिहार में भूमि सुधार आयोग के गठन और सिफ़ारिशों के एक दशक से अधिक समय बीतने के बाद भी भूमिहीनों को ज़मीन नहीं मिली, जबकि सरकार के पास लाखों एकड़ ज़मीन है जिसे ग़रीबों में बाँटा जा सकता है।
मुकुंद झा
05 Oct 2020
बिहार चुनाव
फोटो साभार : द वायर

बिहार में एकबार फिर से चुनाव है और इसका बिगुल बज चुका है। पिछले कईबार की तरह ही इसबार भी चुनाव के शोर में कही दलित वंचित भूमिहीनों की आवाज़ गुम न हो जाए इसलिए इस वर्ग ने अपनी कमर कस ली है। बिहार में भूमिहीनों की तादाद काफ़ी बड़ी है इनकी संख्या लाखों में है। इसमें अधिकांश समाज के सबसे पिछड़े और कमजोर तबके से है। परन्तु वाम दलों को छोड़कर बाकी सभी दल जो खुद को दलितों वंचितों का परम् हितैषी बताते है सभी ने इनके समस्याओं और मांगो पर चुप्पी साधी हुई है। इसबार भी यही सवाल है की क्या नेता इनके मुद्दों पर बात करेंगे या एकबार फिर ये ठगे जायेंगे।

आपको बता दें बिहार में भूमि सुधार आयोग के गठन और सिफ़ारिशों के एक दशक से अधिक समय बीतने के बाद भी भूमिहीनों को ज़मीन नहीं मिली, जबकि सरकार के पास लाखों एकड़ ज़मीन है जिसे ग़रीबों में बाँटा जा सकता है। बिहार के मधुबनी ज़िले के रांटी में लगभग 300 अनुसूचित जाति के भूमिहीन और आवासहीन लोगों ने सीलिंग से फ़ाज़िल ज़मीन पर अपने घरों का निर्माण किया है , जिस कारण इलाक़े के जमींदार और भू माफ़िया उनके जान के दुश्मन बन बैठे है। इस कोरोना काल में भू माफ़िया ने उन्हें डराने और भगाने के लिए उनके घरों में आग लगा दी थी। इसमें 300 परिवारों में से 50 परिवार पूर्ण रूप से घुमंतू थे।

इन सभी परिवारों से न्यूज़क्लिक की टीम ने जाकर मुलाकात की और बातचीत की, जिसमें उन्होंने बतया कि इसी वर्ष मार्च में हुए अग्निकांड में कई परिवारों के घर-मकान सहित सारा समान भी जलकर ख़ाक हो गया था। लेकिन स्थानीय निवासी इससे डरे नहीं, बल्कि इसका डंटकर सामना किया और दो दिन बाद ही लाल झंडे और सीपीएम के नेतृत्व द्वारा अपने ज़मीन पर दावा किया और एक छोटा मार्च और जन-सभा का भी आयोजन किया गया जिसमें स्थानीय लोगों ने एक साफ संदेश दिया कि वो अपनी इस भूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ेंगे।

सीपीएम. के स्थानीय नेता राजेश मिश्रा ने कहा कि ये कोई अकेला मामला नहीं है। बिहार में ज़मीन के मालिकाना हक के लिए संघर्ष का आपने इतिहास रहा है। इन संघर्षों में कई बार भू माफिआओं द्वारा लोगों की नृशंस हत्या की गयी। हाल ही में मधुबनी के रहिका प्रखंड के सुंदरपुर भिठ्ठी गांव में माले नेता ललन पासवान जो भूमिहीन लोगों के अधिकार के लिए भी संघर्षरहित थे, उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी। इस हत्या का आरोप भाजपा के ज़िला महासचिव और गाँव के मुखिया अरुण झा पर लगा और वो इस मामले में अभी जेल में भी है। इस हत्याकांड में लोगो ने आम आदमी पार्टी पर भी जाँच को प्रभावित करने का आरोप लगया क्योंकि अरुण झा दिल्ली में आप विधायक संजीव झा के सगे भाई हैं।

पिछले साल 2019 में मधुबनी के मुगलाहा में कोर्ट के आदेश पूरी उजाड़ दिया गया था। इस बस्ती में 150 से अधिक महादलित परिवार रहते थे। यह लगभग 40 वर्षों से इस ज़मीन पर बसे हुए थे,परन्तु सरकार ने इनका पक्ष अदालत में नहीं रखा जिस कारण कोर्ट ने इनके ख़िलाफ़ आदेश दे दिया। इसके उपरान्त सीपीएम ने स्थानीय आंदोलन शुरू किया, जिसके दबाव में सरकार ने इन सभी 150 परिवारों का पुनर्वास किया।

कई मामलो में स्थानीय जमींदार और प्रशासन की मिली-भगत मिलती है। कई परिवारों को सरकार द्वारा ज़मीन वितरण के बाद मालिकाना हक का पर्चा मिल गया है, परन्तु अभी तक उन लोगों को मलिकाना हक़ नहीं मिला है। स्थानीय लोगों ने बातचीत में साफतौर पर कहा कि इन सभी बेदख़ली और हत्याकांड में सीधे तौर पर स्थानीय प्रशासन और भूमाफिया जिम्मेदार है।

न्यूज़क्लिक की टीम जब मधुबनी का दौरा कर रही थी तो ऐसे कई लोगो मिले जो अपना अपना पर्चा दिखा रहे थे, परन्तु आज भी वह भूमिहीन है, क्योंकि स्थानीय भू माफियाओं ने उन्हें ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं करने दिया। ऐसे ही मधुबनी के पलिवार गांव में सोममिता और बच्चू पसवान मिले जिन्हें कई वर्ष पहले पर्चा मिल चुका है पर कब्ज़ा अभी तक नहीं मिला है। उन्होंने बताया उनके साथ कुल 105 महादलित भूमिहीन परिवारों को 10 डिसमिल ज़मीन का आंवटन किया गया था, परन्तु आजतक एक भी व्यक्ति को हक नहीं मिला है। जबकि स्थानीय लोगों ने दावा किया कि इस गांव में 27 एकड़ ज़मीन सीलिंग से फाजिल है।

बिहार में भूमि संघर्ष से कानून तो बने लेकिन सरकार उन्हें लागू न कर सकी

ऐसा नहीं है कि बिहार में भूमि सुधार व कृषि को उन्नत व लाभकारी बनाने की कोशिशें नहीं हुई, कोशिशें तो हुईं, लेकिन वे कोशिशें कभी मुकाम पर नहीं पहुंच सकीं। बिहार में भूमि संघर्ष की शुरुआत 1930 से हो गई थी, इसका ही असर था कि बिहार देश का पहला राज्य था जहाँ भूमिसुधार को लेकर कानून बना। परन्तु आज भी बिहार में भूमि सुधार नहीं हो सका है। सबसे पहले भूमि आंदोलन श्रद्धानंद सरस्वती के नेतृत्व में हुआ, उसके बाद सीपीआई के नेतृत्व में और आखिरी में सीपीएम के नेतृत्व में भूमि अंदोलन चला और 1990 के दशक में माले भी इस आंदोलन का हिस्सा बना। इस दौरान कई बार आंदोलन हिंसक भी हुआ जिसमें लोगों की जान भी गई। अभी भी बिहार में यह आंदोलन वाम दलों के नेतृत्व में ही चल रहे हैं। इन आंदोलनों का सरकार पर भी असर हुआ और उसने कुछ ज़मीन भूमिहीनों के बीच बाँटी, लेकिन अभी भी उन ज़मीन पर कई जगह भू माफियाओं का कब्ज़ा है जो कि सरकार की नाकामी को दिखाते हैं।

सबसे पहले 60 के दशक में कांग्रेस सरकार ने बिहार में भूमि-सुधार की प्रक्रिया शुरू की लेकिन ज़मींदारों के विरोध के कारण उसने यह अभियान ठंडे बस्ते में डाल दिया। कहा जाता है उस समय बिहार कांग्रेस में बिहार के स्वर्ण भू-मालिकों का दबाव था। 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव ने भी भूमि सुधार को लेकर बड़े वादे किये यहाँ तक कि उन्होंने इसे चुनावी मुद्दा बनाया, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन्होंने भी भूमिहीनों को उनके हाल पर ही छोड़ दिया।

उसके बाद नीतीश कुमार ने वर्ष 2005 में जब पहली बार सीएम बने, तो उन्होंने भूमि सुधार के लिए डी. बंद्योपाध्याय की अध्यक्षता में भूमि सुधार आयोग का गठन किया था।

आपको बता दें कि डी. बंद्योपाध्याय बंगाल के भूमि आंदोलन के नेता थे और सन् 1977 में पश्चिम बंगाल में जब वाममोर्चा की सरकार बनी थी, तो वहां के बटाईदार किसानों को समुचित अधिकार देने के लिए ‘ऑपरेशन वर्गा’ चलाकर भूमि सुधार किया था, जिसे अब तक का सबसे सफलतम भूमि सुधार माना जाता है। इस ऑपरेशन का नेतृत्व डी. बंद्योपाध्याय ने ही किया था।

बिहार के किसान नेता और सीपीएम के केंद्रीय कमेटी सदस्य अरुण मिश्रा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि वाम दल को छोड़कर जो भी सरकार बिहार में बनी या जो राजनैतिक दल है वो सभी ज़मीदारों के हित में काम करती थी और उसके ही दबाव में काम कर रही हैं।

उन्होंने कहा नीतीश कुमार ने भूमि सुधार को लेकर कमेटी बनाई परन्तु उसकी सिफारिशों को लागू नहीं किया और उस रिपोर्ट को बक्से में बंद कर दिया क्योंकि वो भी जमींदारों के दबाव में आ गए।

आगे अरुण मिश्रा कहते हैं कि नीतीश सरकार ने तो सदन में पूछे गए एक सवाल के जबाब में कह दिया कि बिहार में कोई ज़मीन ही नहीं है ,इसलिए उनकी सरकार भूमिहीनों को ज़मीन नहीं दे सकती है, उसके बदले उन्होंने पैसे देने की बात कही थी, परन्तु सच्चाई यह है कि जितना पैसा सरकार दे रही है उसमें बिहार में कहीं भी ज़मीन लेना असंभव है।

डी. बंद्योपाध्याय कमेटी ने क्या कहा

नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने कई ऐसे काम और वादे किए जिससे लगा बिहार बदलाव पर है। ऐसा ही एक काम था साल 2006 में बंद्योपाध्याय की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन, जिसका मकसद बिहार में भूमि सुधार करना था। इस कमेटी ने साल 2008 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, लेकिन तब से यह सरकार के पास बंदे बक्से में पड़ी है। बंदोपाध्याय कमेटी को रिपोर्ट जमा किये हुए बारह साल हो गए। इस रिपोर्ट में बटाईदारों को अधिकार देने की बात कही गई थी और इसके लिए एक क़ानून बनाने का प्रस्ताव दिया गया था।

इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में भूमिहीनों की संख्या भी बताई थी और ज़मीन कितनी हैं इसको भी सार्वजनिक किया था। इसके साथ ही इसने भूमिहीन किसानों के लिए कुछ सुझाव भी दिए थे। जिसमें सबसे प्रमुख है कि सरकार की ज़मीन को भूमिहीनों में बाँटा जाए। रिपोर्ट के अनुसार यह ज़मीन 23 लाख एकड़ है। इसमें सभी तरह के ज़मीन का समायोजन है सरकारी ,गरमजरुआ यानी विवादित, सीलिंग से फाज़िल ,सर्वोदय आंदोलन जो विनोद भावे के कहने पर भूदान के तहत दिया गया था। इन सभी ज़मीन को भूमिहीनों में बाँटे जाने की अनुशसंसा कमेटी ने की थी। रिपोर्ट के मुताबिक उस समय बिहार में भूमिहीनों संख्या भी उतनी ही थी इसलिए सभी को एक-एक एकड़ ज़मीन देने की बात कहीं गई थी।

इसके साथ ही इसकी दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हर बँटाईदार को उस ज़मीन का पर्चा देना चाहिए, जिस ज़मीन पर वह खेती कर रहा है। इस पर्चे में भू-स्वामी का नाम व खेत का नंबर रहेगा। इसके साथ उन्होंने उनके अधिकारों के लिए कानून बनाने की बात कही क्योंकि आज अगर कोई आपदा आती है या सरकार किसानों को मदद देती है तो उसका लाभ इन भूमिहीन किसानों को नहीं मिलता है।

इन सबके अलावा भी भूमिहीन ग्रामीण किसानों के लिए कई बातें कही गई थी, परन्तु राजनीतिक मजबूरियों के चलते कुमार ने भी बाकी के मुख्यमंत्रियों की तरह इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली।

अपनी सिफ़ारिशें को न लागू होता देख 2009 में डी. बंद्योपाध्याय ने एक लेख में अफ़सोस जताते हुए कहा था कि सिफ़ारिशें लागू न कर बिहार ने खाद्यान्न उत्पादन को क़ानूनी तरीके से व्यवस्थित करने का एक और अवसर गँवा दिया। 

आज भी भूमि आंदोलन के लिए संघर्ष कर रहे नेताओ ने कहा कि लोग आवासीय पर्चा यानी जो एक तरह का प्रमाण पत्र जिससे वहाँ रहे लोगो को क़ानूनी वैधता मिले, इसके लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। सारा मामला यही है। कब्जेदारों जो कि भूमिहीन हैं उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें अब उनका वैधानिक हक़ मिलने वाला है लेकिन ऐसा न हो पाया।

Bihar Elections 2020
Bihar land reforms
Land Reform
Land Reform Policies
Land reform commission
Dalits in Bihar
Nitish Kumar
bjp-jdu
Narendra modi
CPM
D. Bandyopadhyay Committee

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

सालवा जुडूम के कारण मध्य भारत से हज़ारों विस्थापितों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग 

बिहार: "मुख्यमंत्री के गृह जिले में दलित-अतिपिछड़ों पर पुलिस-सामंती अपराधियों का बर्बर हमला शर्मनाक"

यूपी चुनाव परिणाम: क्षेत्रीय OBC नेताओं पर भारी पड़ता केंद्रीय ओबीसी नेता? 

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

शर्मनाक: वोट नहीं देने पर दलितों के साथ बर्बरता!

झारखंड: ‘स्वामित्व योजना’ लागू होने से आशंकित आदिवासी, गांव-गांव किए जा रहे ड्रोन सर्वे का विरोध


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License