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कोविड-19 : मप्र में 94% आईसीयू और 87% ऑक्सीजन बेड भरे, अस्पतालों के गेट पर दम तोड़ रहे मरीज़
देखने की बात है कि राज्य में रोज़ाना औसतन 13,000 मामले आ रहे हैं, जबकि 26 अप्रैल तक 23 ज़िलों में आईसीयू बेड और 10 ज़िलों में ऑक्सीजन बेड उपलब्ध नहीं पाए गए।
काशिफ़ काकवी
28 Apr 2021
Translated by महेश कुमार
कोविड-19 : मप्र में 94% आईसीयू और 87% ऑक्सीजन बेड भरे, अस्पतालों के गेट पर दम तोड़ रहे मरीज़
विदिशा के एक सरकारी अस्पताल की सीढ़ियों पर बेहोश महिला।

भोपाल: त्रिपुरा में तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) के जवान अनिल तिवारी को मध्य प्रदेश के सीधी जिले के अपने घर उस वक़्त लौटना पड़ा जब उनकी पत्नी कोविड-19 से संक्रमित हो गई थी। 20 अप्रैल को जब उनकी तबीयत बिगड़ने लगी, तो जवान अपनी पत्नी को पड़ोसी जिले रीवा ले गया।

आठ घंटे के यातनापूर्ण इंतज़ार के बाद, आखिरकार वे सरकार द्वारा संचालित संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में अपनी पत्नी के लिए एक बिस्तर का इंतजाम करने में कामयाब रहे, लेकिन यह तब हुआ जब अस्पताल के बाहर अपनी पत्नी के साथ रोते हुए उनका वीडियो वायरल हो गया था।

तिवारी की वायरल वीडियो में रोती हुई कह रही हैं, "बताइए हम देश के लिए अपना जीवन का बलिदान करते हैं। मैं अपनी पत्नी के इलाज के लिए मात्र कुछ दिनों के लिए ही घर आया हूं और आठ घंटे की भाग दौड़ के बाद भी मैं बेड की व्यवस्था नहीं कर पाया।"

वीडियो के वायरल होने के तुरंत बाद, मीडियाकर्मियों ने उनकी पत्नी को आईसीयू में भर्ती कराने में मदद की, हालांकि, दाखिले के चार दिन बाद यानी 24 अप्रैल को उनकी पत्नी ने संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया। बीएसएफ जवान का कहना है, कि "डॉक्टर ने उनकी पत्नी के मरने के बाद इसके अलावा कुछ नहीं कहा कि वायरस ने उसके फेफड़ों को संक्रमित कर दिया था," अब वे वे अपने दो बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित हैं, जो आठ और बारह साल के हैं।

हालाँकि, तिवारी उन सौभाग्यशाली लोगों में से थे जिन्हें जद्दोजहद के बाद भी बेड मिल गया जबकि इसके विपरीत इंदौर के गौरव लखवानी और देवेंद्र बिलोर को बिस्तर ही नहीं मिला।  दोनों ने शहर के एक निजी अस्पताल के गेट पर बिना इलाज के तब दम तोड़ दिया जब उनके परिजन घंटों की खोजबीन के बाद भी उनके लिए अस्पताल में बिस्तर नहीं ढूंढ पाए।

इन सब की तरह, अन्य लोगों की भी अप्रैल माह में मध्य प्रदेश में आईसीयू और ऑक्सीजन बेड की कमी के कारण जानें चली गई, उक्त बातें स्वास्थ्य विशेषज्ञ, अमूल्य निधि ने कही, जो जन स्वास्थ्य अभियान की राज्य स्तरीय समन्वयक भी हैं।

 

न्यूज़क्लिक ने कोविड-19 की मॉनिटरिंग के लिए बने राज्य पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों का आकलन किया और पाया कि 26 अप्रैल तक कुल आईसीयू बिस्तर यानी 9,350 में से 5.60 प्रतिशत और 22,580 में से 13.7 प्रतिशत ऑक्सीजन बेड खाली थे। (नीचे दी गई तालिका देखें)

कुल उपलब्ध कोविड-19 बेड की सूचना

 

राज्य के 23 जिलों में कोई आईसीयू बेड उपलब्ध नहीं है जिनमें कोविड-19 से सबसे खराब प्रभावित जिले - इंदौर, उज्जैन, रतलाम, विदिशा हैं, जबकि 10 जिले, बालाघाट, भिंड, छतरूपुर, गुना सहित में ऑक्सीजन बेड उपलब्ध नहीं हैं।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, विदिशा, बालाघाट, देवास और सिवनी सहित छह जिलों में न तो आईसीयू बेड उपलब्ध हैं और न ही ऑक्सीजन।

यहां तक कि भोपाल स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और श्री अरबिंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसएआईएमएस) इंदौर जैसे अस्पतालों ने अस्पतालों के बाहर ‘नो एडमिशन’ का बोर्ड लगा दिया हैं। गुना और मुरैना के जिला अस्पतालों ने अस्पतालों के बाहर नोटिस लगा दिए हैं कि 'नए रोगियों के लिए ऑक्सीजन और ऑक्सीजन बेड की उपलब्धता नहीं'  लिखा हैं।

 

26 अप्रैल को गुना ज़िला अस्पताल के बाहर लगा नोटिस

मध्य प्रदेश, जो पिछले एक सप्ताह से प्रतिदिन औसतन 13,000 कोविड-19 मामलों दर्ज़ कर रहा है, में लगभग 92,000 सक्रिय कोविड के मरीज़ हैं। राज्य के 520 निजी अस्पतालों सहित कुल 829 अस्पतालों में 9,340 आईसीयू बेड और 22,580 ऑक्सीजन बेड हैं। लेकिन, ये संख्या रोगियों की बढ़ती संख्या को संभालने में कामयाब नहीं है और संख्या काफी कम है। नतीजा यह है कि इलाज के बिना अस्पतालों के बाहर दम तोड़ने वाले मरीजों के नज़ारे आम हो गए हैं।

राज्य में कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित 10 जिले जिनमें करीब 45 प्रतिशत मामले इकट्ठे हैं, उनमें से केवल भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में आईसीयू और ऑक्सीजन बेड खाली हैं, और रिपोर्ट के अनुसार उनमें से अधिकांश बेड निजी अस्पतालों में खाली हैं। (नीचे दी गई तालिका पर गौर करें)

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार, 25 अप्रैल को राज्य को दिए अपने संबोधन के दौरान कहा, "हम मांग के अनुरूप लगातार अस्पतालों में बेड की क्षमता बढ़ा रहे हैं और ऑक्सीजन की बढ़ती मांग को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।" उन्होंने 'कुप्रबंधन' के लिए भी 'माफी' मांगी लेकिन इस बात पर खास जोर दिया कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए किए गए प्रयास आखिरकार सफल हो रहे हैं क्योंकि पिछले दो-तीन दिनों में कोविड के सकारात्मकता मामलों की दर में गिरावट आई है।

मध्य प्रदेश में ज़िलावार कोविड बेड का वितरण

 

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य की राजधानी भोपाल में, 105 अस्पतालों में उपलब्ध कुल 1,866 आईसीयू बेड में से सोमवार को केवल 56 बेड खाली थे, जबकि निजी अस्पतालों में 3,759 ऑक्सीजन बेड में से 74 बेड खाली थे। हालांकि, राजनीतिक संबंधों के बिना किसी को भी भोपाल या इंदौर में बिस्तर मिलना असंभव है।

निधि ने बताया कि, महामारी की दूसरी लहर के बड़े तूफान से निपटने के लिए अस्पतालों के बहुत बड़े बुनियादी ढांचे की जरूरत है। उन्होंने कहा, “कोविड-19 की वजह से लोग नहीं मर रहे हैं, बल्कि वे इलाज की कमी के कारण मर रहे हैं। राज्य में पिछले दो हफ्तों में ऑक्सीजन की कमी के कारण लगभग 67 लोगों की मौत हो हुई है, और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, लोग अभी भी अस्पतालों के गेट पर मर रहे हैं।”

गौर करें कि भोपाल ईदगाह हिल्स के रहने वाले नासिर खान के परिवार को राजनीतिक संबंध होने के बाद भी अपनी मां के लिए बेड नहीं मिला और वे पूरी तरह विफल रहे।

24 अप्रैल को, नासिर की बहन सौलत (45) ने कोविड-19 के कारण दम तोड़ दिया क्योंकि परिवार उसे किसी भी अस्पताल में भर्ती करवाने में असफल रहा। 4-5 दिनों पहले कोविड पॉज़िटिव पाए जाने के बाद उन्हें क्वारंटाइन के लिए घर पर ही रखा गया था।

25 अप्रैल को, जब नासिर की मां की तबीयत खराब होने लगी, तो उन्होंने बिस्तर के लिए कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता अब्बास हफीज खान से मदद मांगी। कई असफल प्रयासों के बाद, खान ने मरीज का विवरण देते हुए ट्वीट किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मदद मांगी। जिला प्रशासन और मंत्रियों से मदद की गुहार लगाते हुए ट्वीट को पूर्व सीएम और सांसद दिग्विजय सिंह और साथ ही जाने-माने पत्रकार अजीत अंजुम ने भी रिट्वीट किया लेकिन, सब व्यर्थ चला गया।

नसीर और उसकी माँ दोनों को वक़्त पर चिकित्सा सुविधा न मिल पाने की वजह से संक्रमण के 24 घंटे के भीतर दम तोड़ दिया। हालाँकि, उस दिन, सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भोपाल में लगभग एक दर्जन बिस्तर खाली पड़े थे।

कांग्रेस प्रवक्ता ख़ान ने कहा, “सरकार मृत्यु के आंकड़ों से लेकर बिस्तरों की उपलब्धता, इंजेक्शन और जांच के मामले में हर कदम पर नकली डेटा तैयार कर रही है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि बेड उपलब्ध हैं, लेकिन वास्तव में वे या तो भरे मिलते है या बेड निजी अस्पताल के होते हैं जो मनमाना पैसा वसूल करते हैं और आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं।”

भोपाल स्थित सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ अनंत भान ने कहा कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि, “हम नए रोगियों को दाखिला दे सकें और समय पर उन्हे  ऑक्सीजन बेड और आईसीयू उपलब्ध करा सके। हमें नई सुविधाओं में डॉक्टर, नर्स, स्टाफ और जीवन रक्षक इंजेक्शन और दवा उपलब्ध कराने पर भी ध्यान देना चाहिए। केवल बेड मदद नहीं करेंगे और अलगाव बेड यानि आइसोलेशन बेड अब पूरी तरह से गैर-जरूरी हो गए हैं।"

 

एम्स के बाहर नोटिस। यह 400 बेड वाला एक निजी अस्पताल है जिसे चार दिन पहले राज्य सरकार ने अधिग्रहित किया है

उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-मामलों में गिरावट लाने के लिए लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध जारी रहना चाहिए, इसके लिए ग्रामीण इलाकों पर विशेष गौर करना होगा।

रविवार को, भोपाल रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 6 पर जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता के साथ एक 300-बेड का आइसोलेशन कोच चालू किया गया है और शहर बैरागढ़ में सेना के ईएमई सेंटर में 150-बेड का एक तदर्थ आइसोलेशन अस्पताल शुरू किया गया है। हालाँकि, विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार 21, 867 बेड आइसोलेशन बेड में से लगभग 56 प्रतिशत बेड मध्य प्रदेश में पहले से ही खाली पड़े हैं।

सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मामलों में वृद्धि होने से ऑक्सीजन की खपत 15 अप्रैल को 130 मीट्रिक टन से बढ़कर 267 मीट्रिक टन हो गई थी। लेकिन यह मांग 25 अप्रैल तक एक दिन में 450 मीट्रिक टन पर पहुंच गई थी, जबकि राज्य दैनिक तौर पर 350 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का ही प्रबंधन कर पाया है।

सरकारी और निजी - दर्जनों अस्पताल - कई जिलों में ऑक्सीजन की किल्लत का सामना कर रहे हैं। कथित मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भोपाल के एक दर्जन लोगों को मिलाकर देखें तो पिछले दो हफ्तों में मप्र में 72 मरीजों की मौत हुई है। हालांकि, राज्य सरकार ने इससे इनकार किया है।

 

इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने कोविड-19 रोगियों की निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की घोषणा की है, मप्र में भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों और सामाजिक समूहों ने इसी तरह की मांग उठाई है। राज्य लगभग पूरी तरह से निजी अस्पतालों पर निर्भर है, क्योंकि रपट के हिसाब से राज्य में 80 प्रतिशत निजी अस्पताल और निजी लैब हैं।

एक सामाजिक कार्यकर्ता सीमा कुरुप ने कहा, "सीएम शिवराज सिंह चौहान को सरकार की तरफ से निजी अस्पतालों के बिलों के भुगतान की घोषणा करनी चाहिए क्योंकि निजी अस्पताल पीड़ित लोगों को लूट रहे हैं।" पिछले साल कड़े धर्मांतरण विरोधी कानून को लागू करने और पिछले साल हुए दंगों के बाद पत्थरबाजों और अल्पसंख्यकों के घरों को ध्वस्त करने के मामले में कानून लाने के मामले में यूपी अनुसरण किया था; अब सरकार को यूपी द्वारा मुफ्त इलाज की घोषणा का भी अनुसरण करना चाहिए।”

(पीयूष शर्मा ने डाटा इनपुट दिया है)

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