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राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
ट्रम्प की मूर्खतापूर्ण हरकतों से, क्या अमेरिका और ईरान विनाशकारी टकराव से बच सकते हैं?
फ़िलहाल तो ऐसा लग रहा है कि यहां पर सिर्फ ईरानी ही हैं जो परिपक्व होने का सुबूत देते हुए शांति की कामना कर रहे हैं।
प्रबीर पुरकायस्थ
30 Jan 2020
Iran US

अमेरिका के संयुक्त कार्रवाई की व्यापक योजना से किनारा करने के साथ ही (जेसीपीओए-JCPOA), जिसे आमतौर पर ईरान समझौते के नाम से जाना जाता है, हम सभी लोग ज़्यादा खतरे वाले क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं। अपने बयानों और ट्वीट्स के माध्यम से ट्रम्प ने ईरान के खिलाफ युद्ध की धमकी देना जारी रखा था और अब इराकी धरती पर कार्यरत ईरानी और इराकी जनरलों की हत्या करवाकर अपनी कार्यवाही के जरिये अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। इस क्षेत्र में युद्ध के छिड़ने का अर्थ है इसके पूरे तेल और समुद्री यातायात के बुनियादी ढांचे को खतरे में डालना और साथ ही इसके समूचे वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी अपने आगोश में ले लेने का खतरा भी मंडराने लगा है।

जहाँ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ईरान पर स्पष्ट तौर पर अवैध अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के मामले में सांठ-गाँठ किये हुए था, वहीँ अब सुलेमानी और मुहन्दिस की हत्या पर इसने मौन धारण कर लिया है। सिर्फ और सिर्फ संयुक्त राष्ट्र की ओर से लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध ही वैध प्रतिबंधों की श्रेणी में आते हैं। वैश्विक वित्तीय नेटवर्क पर अपनी मजबूत पकड के चलते ही अमेरिका अपने घरेलू कानून को गैर-क़ानूनी तरीके से दुनिया के बाकी हिस्सों पर थोपने की हैसियत रखता है, जिसमें: स्विफ्ट (SWIFT) अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रांसफर प्लेटफॉर्म, अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली, वैश्विक वित्तीय संस्थान आदि शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून के हिसाब से ये आर्थिक प्रतिबंध गैर-क़ानूनी हैं, और नागरिक आबादी को सामूहिक तौर पर दण्डित करने के समान हैं।

हाल ही में यूरोपीय संघ के तीन हस्ताक्षरकर्ताओं, यूके, फ्रांस और जर्मनी (ईयू-3) देशों ने अपने विवादों के निपटान तंत्र के तहत एक औपचारिक शिकायत दर्ज की है, जिसमें कहा गया है कि ईरान जेसीपीओए(JCPOA) के नियमों का उल्लंघन कर रहा है, और इसके जरिये जिन संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को वापस ले लिया गया था, उसे दोबारा चालू कराने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। यह कदम गलत इरादे के साथ उठाया जा रहा है। ट्रम्प की अगुआई में तो अमेरिका ने पहले ही से खुद को जेसीपीओए से बाहर कर लिया था, और जैसा कि ईरान से वायदा किया गया था, ये ईयू-3 देश इन प्रतिबंधों को रोक पाने में नाकाम साबित हुए हैं।

ईरान अपने मुख्य निर्यातक वस्तु तेल को बेच पाने में असमर्थ है। अमेरिकी प्रतिबंधों को धता बताने के लिए यूरोपीय संघ द्वारा जिस स्थापित वित्तीय तंत्र आईएनएसटीईएक्स (INSTEX) को लागू किया जाना तय था, उसमें ईरान के साथ कोई लेनदेन देखने को नहीं मिला है। प्रभावी रूप से कहें तो ईरान एक बार फिर से 2015 से पहले के युग में धकेल दिया गया है, या कहें जो हालात जेसीपीओएए पर हस्ताक्षर करने से पहले प्रचलन में थे, उसी स्थिति में वापस लौट चुका है।

ईरान ने जेसीपीओए के तहत नोटिस दे रखा है कि वह अपनी वचनबद्धता से कदम-दर-कदम दूर होता चला जायेगा, जैसा कि समझौते के तहत इस बात की अनुमति दी गई थी कि यदि कोई पक्ष या कई पक्ष एक बार फिर से प्रतिबंधों को थोपते हैं, तो वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है। यदि हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा अपनी वचनबद्धता का पालन किया जाता है, तो इसे भी अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा करना होगा। किसी भी समझौते में सिर्फ एक पक्ष को इसके पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, यदि दूसरा पक्ष अपनी प्रतिबद्धताओं के पालन से मुकर रहा हो।

रूस और चीन के पास अमेरिकी प्रतिबंधों से निपट पाने की एक सीमा है। उसी तरह ईरान से भारी मात्रा में तेल का आयात करने वाले देश भारत की भी ऐसी हालत है। सभी देशों को बार्टर सिस्टम वाले सौदों के अलावा ईरान के साथ लेन-देन करने में काफी अड़चने हैं। बिना मौजूदा वैश्विक वित्तीय बुनियादी ढांचे की हुबहू नकल तैयार किये इस आधुनिक युग में अमेरिका से आजाद होकर व्यापार कर पाना असंभव कार्य है। अमेरिका दुनिया के वित्तीय ढाँचे पर पूरी मजबूती से अपनी पकड़ बनाए हुए है और इसके जरिये ही अमेरिका अपने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों वाले क़दमों को खुल्लम-खुल्ला थोपने से नहीं हिचकता।

ऐसे में यदि अमेरिकी प्रतिबंध जारी रहते हैं और शेष विश्व ईरान के कष्टों को कम करने के लिए कोई कदम आगे नहीं बढाता है, तो यह युद्ध के लिए निर्मित की गई स्वचालित सीढ़ियों को एक बार फिर से शुरू करने जैसा साबित होने जा रहा है। ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम की दिशा में बढ़ते क़दमों की पुष्टि कर दी है, जबकि अमेरिका ने ईरान के ऊपर और अधिक प्रतिबंधों को थोपने की धमकी दी है और संभवतः परमाणु और अन्य आधारभूत ढांचों पर वास्तविक हमले की तैयारी कर रहा है।

इस तरह के रास्ते में यदि कोई पटरी से उतरने वाली अनहोनी न हो, तो यह रास्ता अंततः मुठभेड़ में या युद्ध की परिणिति में जाकर ही खत्म होता है। चार दशकों से अमेरिकी एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को झेलते हुए ईरान के पास इस बात की संभावना नजर नहीं आती कि वो अपने परमाणु और मिसाइल क्षमता को विकसित करने के इरादे से पीछे हट जाये। ऐसे ही क़दमों को जब सद्दाम हुसैन और गद्दाफी ने उठाया था तो उनके साथ क्या हुआ, इसके बारे में वह बाखबर है।

तो फिर ईरान के खिलाफ ट्रम्प बार-बार युद्ध के नगाड़े क्यों बजा रहे हैं? क्या प्रतिबंधों के जरिये सत्ता की अंतिम बाजी पलटी जा सकती है? या क्या ईरान के साथ युद्ध कर इसके अस्तित्व के विनाश के जरिये इसे हासिल किया जायेगा?

साफ़ तौर पर हम इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते कि कोई इंसान क्या सोच रहा है या क्या करने वाला है। एक ऐसे राष्ट्रपति के बारे में तो यह विशेष तौर पर सच है, जिसकी जिंदगी ट्विटर के सहारे बीतती हो और जो सोचता हो कि अभी भी वह जैसे किसी रियलिटी टीवी शो में हिस्सा ले रहा है, जहाँ पर अपने सहकर्मियों की छुट्टी करने से लेकर अन्य देशों के राष्ट्रपतियों को अपदस्थ करने से वास्तविक दुनिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा है।

वृहत्तर अमेरिकी गेम प्लान पर नजर डालें तो उसकी योजना ईरान को किसी जागीर वाले राज्य में कमतर कर देने वाली लगती है। ओबामा-क्लिंटन योजना का ट्रम्प-बोल्टन-पोम्पेओ सोच के बीच में अगर कोई फर्क है तो वह मात्र कार्यनीति और उन संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर है, न कि अंतिम लक्ष्य को लेकर इनके बीच कोई गहरे मतभेद दिखाई पड़ते हैं। ओबामा जब प्रतिबंधों के माध्यम से ईरान को रोकने में विफल रहे तो अंतत: उन्होंने संधि का रास्ता चुना, जिससे भविष्य में ईरान को शांति, व्यापार और एक तरह की क्रांति के जरिये मोड़ा जा सके। ट्रम्प भी एक बार फिर से उसी खेल को दोहराना चाहेंगे, जिसकी पूर्ववर्ती अमेरिकी प्रशासकों ने जोर आजमाइश की थी, और आख़िरकार विफलता हाथ लगी है, जिसमें ईरान से यह पूछते रहना शामिल था कि वह आत्मसमर्पण कर दे, वरना!

अमेरिका के पास ईरान को आर्थिक तौर पर नुकसान पहुँचाने और कष्ट में बनाये रखने की ताकत है। इसके जरिये वह ईरानी राजनीतिक व्यवस्था में असंतोष पैदा करने, खासकर युवाओं को भड़काने में सफलता हासिल कर सकता है। युवाओं को कट्टर इस्लामिक ढांचों में बंधे रहना पसंद नहीं जो उनकी राय और संगठनों को संकीर्णता के दायरे में समेटने को मजबूर करता है। लेकिन ईरान में होने वाले आम चुनावों के साथ-साथ इसके राज्य सत्ता के ढाँचे की वैधता अभी भी आम लोगों के बीच बनी हुई है। जितने ज्यादा प्रतिबन्ध ईरान के ऊपर थोपे जायेंगे और उसे धमकाने की कोशिशें होंगी, उतना ही अधिक यह उन्हें इसके नेताओं के पीछे राष्ट्रवादी गोलबंदी में मजबूत करने का काम करने वाला साबित होगा।

सैन्य समीकरण किस प्रकार के हैं? यदि अमेरिका अपनी ओर से बल प्रयोग कि हरकत करता है तो क्या ईरान के पास अमेरिका को ऐसा करने से रोकने के लिए पर्याप्त जवाबी हमले कर सकने की क्षमता है?

इस बात के प्रमुख संकेत ईरान द्वारा इराक स्थित अमेरिकी ठिकानों पर किये गए हालिया मिसाइल हमले में देखने को मिले हैं कि मिसाइल क्षमता के विकास के मामले में ईरान ने कितनी प्रगति कर ली है। इससे पहले भी हम इसकी काबिलियत 60,000 फीट से ऊपर उड़ रहे एक विशालकाय जासूसी ड्रोन को मार गिराने के रूप में देख चुके हैं। इस बार फिर से दो अमेरिकी ठिकानों पर किये गए मिसाइली हमले ने ईरानी मिसाइलों के अचूक निशाना साधने की योग्यता के रूप में पहले की तुलना में बड़े बदलाव को ही प्रदर्शित किया है। जैसा कि रक्षा विशेषज्ञों की दलील है कि अगर ईरान की मिसाइल दागने की क्षमता में जबर्दस्त सुधार देखने को मिला है, तो उसके सहयोगी मित्रों जैसे कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह, यमन के हौथियों और सीरियाई सरकार की सेना की क्षमता में भी सुधार हुआ है।

तो आइये देखते हैं कि ईरान की मिसाइल दागने की क्षमता कितनी बेहतर हुई है? ईरान ने कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया है। उसने इस बार क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल नहीं किया है, जिसके बारे में बताया जा रहा है कि उसके जखीरे में ये भी मौजूद है। इस बार छोटी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें फतेह-110 जिसकी रेंज तकरीबन 300 किलोमीटर तक की है, के अलावा 800 किलोमीटर तक की रेंज वाले क़ईम-1 (Qaim-1) को शामिल किया गया था। 

अमेरिका में रक्षा मामलों की एक वेबसाइट ने अपने निष्कर्षों को लिखा है कि ईरान पूरे आत्मविश्वास के साथ "700 किमी की सीमा के भीतर ईरान सैकड़ों किलोग्राम के बेहद विस्फोटक को निशाने पर" बेहद आसानी से मार कर सकता है, भले ही निशाना अचूक न हो। कई अन्य हथियार विशेषज्ञों द्वारा भी व्यापक रूप से इस दृष्टिकोण को साझा किया गया है। स्कड युग की मिसाइलों की तुलना में जिनकी सीईपी के संदर्भ में 1-2 किलोमीटर की सटीकता थी (गोलाकार त्रुटि संभावित, मिसाइलों की सटीकता की माप), वे अब दस से दस मीटर सीईपी की सटीकता तक पहुंच चुकी है।

एक दूसरा मुद्दा ये है कि हालाँकि अमेरिका ने इस बात का दावा किया है कि संभावित हमले के बारे में उनकी प्रारंभिक चेतावनी सिस्टम के जरिये ही उन्हें पहले से हमले की सूचना मिल गई थी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि ईरानियों ने हमले की चेतावनी पहले पहल इराकी सरकार को दी थी, और तब जाकर उनकी ओर से इराक द्वारा यह चेतावनी अमेरिका को दो घंटे पहले मिली थी। अमेरिकी सैनिक बंकरों में छिप कर बैठ गए थे, लेकिन इसके बावजूद उनमें से कम से कम 34 को मस्तिष्क आघात/मस्तिष्क की चोट से पीड़ित होने के चलते जर्मनी और कुवैत के अस्पतालों में स्थानांतरित करना पड़ा है। ईरानियों द्वारा जो गोला-बारूद इस्तेमाल किया गया था, वो भी कम मात्रा में था जो इस संभावना की ओर इशारा करता है कि ईरान का मकसद किसी अमेरिकी को हताहत करने का नहीं था, बल्कि अपनी मिसाइल क्षमता के प्रदर्शन को लेकर था।

ऐसा प्रतीत होता है कि जिन दो ठिकानों पर ईरान ने हमला बोला था, वहाँ पर अमेरिका की ओर से अतिरिक्त हवाई हमले से सुरक्षा की तैनाती नहीं की गई थी, या उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था। जब अरामको पर हौथी मिसाइलों के हमले हुए थे, उस समय भी पैट्रियट आक्रमण उसे बचा पाने में विफल रहे थे। कई विशेषज्ञों का मानना है कि पेट्रियटस को काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है, और ईरानी मिसाइलों के आगे ये किसी काम के नहीं हैं।

इज़राइल द्वारा विकसित किए गए आयरन डोम या अन्य रक्षा सिस्टम के बारे में क्या राय हैं? हालांकि वे गाजा से कच्चे और कम परिष्कृत रॉकेट के खिलाफ काम आ सकते हैं, लेकिन यदि बेहतर सटीक निशाने के साथ बड़ी संख्या में मिसाइलों को एक साथ लॉन्च किया गया, तो इस प्रकार के सिस्टम से काम चलने नहीं जा रहा है। ईरान के पास जिस किस्म की मिसाइलें हैं, यदि वैसी ही लेबनान में हिज़बुल्लाह और हौथियों को हासिल हो जाये तो इस क्षेत्र में इजराइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे अमेरिकी सहयोगी देशों के रासायनिक और परमाणु संयंत्रों और जनसंख्या के लिहाज से केन्द्रित इलाकों वाले संवेदनशील बुनियादी ढांचे के बर्बाद हो जाने का खतरा बढ़ जाता है।

अपने सहयोगियों के साथ ईरान के पास अमेरिकी ठिकानों और समुद्री जहाजों को गंभीर क्षति पहुँचाने और हताहत करने की क्षमता भी है। ईरान की ओर से जो नवीनतम हमले किये गए हैं, वे दिखाते हैं कि इस क्षेत्र में स्थित सभी अमेरिकी ठिकाने ईरान के हमले की जद में हैं। ऐसा मालूम होता है कि ईरान ने जिस प्रकार से मिसाइल के क्षेत्र में प्रगति हासिल की है, उसमें परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के बिना भी अमेरिकी सैन्य शक्ति के खिलाफ उसे एक रणनीतिक अवरोध प्राप्त होता दिखता है।

इन सभी पहलुओं पर गौर करते हुए ऐसा लगता है कि पश्चिम एशिया में कोई भी एक पक्ष, वो चाहे अमेरिकी-इजरायल-सऊदी धुरी हो या ईरान-हिजबुल्ला-हौथी-सीरियाई गठबंधन हो, ये दोनों ही पक्ष नहीं चाहते कि युद्ध और उसके दुष्परिणामों से उन्हें दो-चार होना पड़े। समस्या यह है कि दुर्घटनावश अक्सर ऐसे युद्ध छिड जाते हैं, या कई बार सेना की कारगुजारी के चलते अनपेक्षित दुष्परिणामों को भुगतना पड़ता है जहाँ पर सैन्य बल गहरे तनाव के बीच अलर्ट की मुद्रा में आमने सामने होते हैं।

इस बार इसने खुद को एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना तक सीमित कर रखा है, जिसमें एक यूक्रेनी विमान को मार गिराया गया है, जिसमें ईरानी मूल के ईरानी और कनाडाई नागरिक मारे गए। हो सकता है कि अगली बार निशाना कोई युद्ध पोत बन जाये, या युद्ध का भूखा डॉक्टर स्ट्रेंजलव कहीं बैठा हुआ परमाणु हमले का बटन न दबा रहा हो, या किसी गलत खुफिया इनपुट के चलते गलत निष्कर्षों पर कोई पक्ष पहुँच जाये जिसके कारण लड़ाई छिड़ जाये, और फिर जवाबी हमले शुरू हो जाएँ, जिसका अंत एक औपचारिक युद्ध में हो।

ईरानी समझौते को जिस तरह से अमेरिका की ओर से नुकसान पहुंचाया गया था, और उसके बाद जिस तरह से जनरल सुलेमानी की ट्रम्प द्वारा की गई अवैध हत्या वो भी इराकी धरती पर कर दिए जाने ने आग में घी डालने का काम किया है। लेकिन इस बार इस आग ने बड़े पैमाने पर विस्तार नहीं लिया है। फिलहाल ऐसा लगता है कि ईरानियों के रूप में इस जगह पर ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपने परिपक्व होने का सबूत दे रहे हैं।

लेकिन अपनी तकनीक के परिष्कृत करने के अधिकार और अपने मिसाइल अवरोध की क्षमता को त्यागने की कीमत पर वे ऐसा हर्गिज नहीं करने जा रहे हैं। यदि अमेरिका को ऐसा लगता है कि वे जितना अधिक दबाव ईरान पर डालेंगे, उससे मजबूर होकर ईरान आत्मसमर्पण कर देगा तो वे पिछले चार-दशकों के ईरान-अमेरिका के इतिहास को अभी भी ठीक से समझ नहीं पाए हैं। जो लोग इतिहास से नहीं सीखते हैं, वे उसे दोहराने से बाज नहीं आते। लेकिन सच्चाई तो ये है कि अमेरिका को चला रहे एक रियल एस्टेट एजेंट से और बिगडैल लड़कों के झुण्ड से इतिहास को समझने की उम्मीद ही कैसे की जा सकती है?

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

After Trump’s Stupid Acts, Can the US and Iran Avoid a Disastrous Collision?

IRAN
USA
Donald Trump
Iran USA Crisis
Qassem Soleimani
JCPOA

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