NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
नस्लवाद किस तरह पूंजीवादी व्यवस्था को बनाये रखने का एक ज़रूरी साधन है
पूंजीवाद की वक़ालत करने वाले पूंजीवाद की बेहद ज़रूरी अस्थिरता को "व्यापार चक्र" का नाम देना पसंद करते हैं।
रिचर्ड डी. वोल्फ़
26 Jun 2020
नस्लवाद

अमेरिकी पूंजीवाद इसलिए बचा हुआ है, क्योंकि इसने अपनी अस्थिरता, यानी अपने व्यापार चक्र के बुनियादी मसले का हल ढूंढ़ लिया है। चूंकि पूंजीवाद कभी भी समय-समय पर आने वाले मंदी के दौर और उनके डरावने असर को कभी ख़त्म नहीं कर पाया, इसलिए इसके वजूद को उन असर को किसी न किसी तरह सामाजिक रूप से सहनीय बनाने की ज़रूरत बनी रही।

व्यवस्थागत नस्लवाद आंशिक रूप से नागरिक युद्ध के बाद भी संयुक्त राज्य अमेरिका में इसलिए बचा रहा, क्योंकि इससे उस सहनशीलता को हासिल करने में मदद मिली। पूंजीवाद ने व्यवस्थागत नस्लवाद के फिर पैदा होने के हालात बनाये, और इन हालात ने पूंजीवाद को बनाये रखा।

औसतन हर चार से सात साल में पूंजीवाद एक मंदी (इसके लिए बार-बार इस्तेमाल होने वाले "व्यापारिक मंदी", "आर्थिक मंदी", "आर्थिक विखंडन", "आर्थिक ध्वंस" जैसे और सारे शब्द) पैदा करता है। राजनीतिक नेताओं, अर्थशास्त्रियों और अन्य लोगों को लंबे समय से पूंजीवाद की इस अस्थिरता के किसी समाधान की तलाश रही है। मगर, कभी कोई समाधान मिला नहीं। इस प्रकार, पूंजीवाद ने इस नयी सदी में (2000 का वसंत, 2008 की शरद ऋतु और अब 2020 में) तीन आर्थिक ध्वंस यानी ‘क्रश’ को दर्ज किया है।

पूंजीवाद की वक़ालत करने वाले इसकी इस बेहद ज़रूरी अस्थिरता को "व्यापार चक्र" का नाम देना पसंद करते हैं। यह कम डरावना लगता है। इसके बावजूद, पूंजीवाद के बार-बार आते मंदी के दौर की कठोर वास्तविकता ने पूंजीवाद की वक़ालत करने वालों को हमेशा डराया है। वे इस बात को मानते हैं कि जब बड़ी संख्या में लोगों के रोज़गार चले जाते हैं, तो कई कारोबार ख़त्म हो जाते हैं, उत्पादन में गिरावट आ जाती है, और सरकारों को कर से होने वाली आमदनी भी नहीं रह जाती है, जिसका नतीजे के तौर पर यह हो सकता है और अक्सर ऐसा होता भी है कि आर्थिक व्यवस्था ही ख़तरे में पड़ जाती है। पूंजीवाद के समय-समय पर आने वाले संकट,इन संकटों से परेशान होने वालों को पूंजीवाद के ख़िलाफ कर सकते हैं और उन्हें इस व्यवस्था के आलोचकों का समर्थक बना सकते हैं।

इस बात की ज़्यादा संभावना रहती है कि समाज में हर कोई इस मंदी के दौर से समान रूप से संकटग्रस्त हो। ऐसे में ज़्यादातर कर्मचारी सही सोच रहे होते हैं कि अगले आर्थिक तबाही में उनकी भी नौकरी नहीं रहेगी। समय-समय पर उनकी आमदनी जाती रहेगी, शिक्षा बाधित होती रहेगी, वे बेघर होते रहेंगे और इसी तरह की और भी समस्याओं का सामना करेंगे। जिस किसी कर्मचारी को ख़ुद के बजाय अपने आस-पास के लोगों के नौकरी से निकाले जाने से राहत मिलती है, उन्हें अच्छी तरह से पता होता है कि अगले दौर में उनकी बारी भी हो सकती है। पूंजीवाद से इस तरह पैदा होने वाले नुकसान, असुरक्षा और चिंताओं ने बहुत पहले ही कर्मचारियों को पूंजीवाद के ख़िलाफ़ कर दिया है और एक अलग व्यवस्था के निर्माण के लिए उन्हें प्रेरित किया है।

अमेरिकी पूंजीवाद ने मुख्य रूप से संपूर्ण मज़दूर वर्ग के एक छोटे से आंशिक भाग को संकट में डालकर कर चक्रीय मंदी से पैदा होने वाली इस अस्थिरता की समस्या का हल ढूंढ़ लिया है। इसने उस अल्पसंख्यक वर्ग को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है कि इस तरह के आने वाले हर चक्र का खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है और इसका नुकसान भी उन्हें ही उठाना पड़ता है। इस छोटे से वर्ग को बार-बार ऐसी स्थिति में लाया जाता रहा है और फिर किसी लादे गये चक्र से उन्हें अपने रोज़गार से बाहर कर दिया जाता रहा है।

जब उनकी नौकरियां चली जाती हैं, तब उनकी जमा पूंजी के भी ख़त्म होने की आशंका पैदा हो जाती है। इस तरह बार-बार निशाना बनते रहने से ये अल्पसंख्यक वर्ग लम्बे समय तक नौकरी में रहने के फ़ायदों (वरिष्ठता, पदोन्नति, घरेलू स्थिरता, आदि) से वंचित कर दिये जाते हैं। ग़रीबी, तितर-बितर होते घर और परिवार, महंगे आवास, शिक्षा और चिकित्सा सेवा इस तरह के लोगों को अपना शिकार बना सकते हैं। ऐसे में चार-से-सात वर्ष की औसत अवधि के दौरान सबसे बाद में काम पर रखा गये,लेकिन पहले निकाल दिये गये लोगों के लिए पूंजीवाद का यह "व्यावसायिक चक्र शॉक ऐबजॉर्बर यानी लगने वाले झटके को हल्का करने वाला" यानी ‘आघात अवशोषक’ बना देता है।

पूंजीवाद के लिए इस तरह के छोटे से वर्ग को पूंजीवाद की इस अस्थिरता की भेंट चढ़ा देने से  ज़्यादतर श्रमिक वर्ग को इस हालात से अपेक्षाकृत छूट मिल जाती  है, उन्हें राहत मिल जाती है, उन्हें इन हालात से आज़ादी मिली होती है। बहुसंख्यक श्रमिक इस चक्र का शिकार कम से कम हो सकते हैं क्योंकि अल्पसंख्यक श्रमिक वर्ग अपेक्षाकृत ज़्यादा शिकार होते हैं। पूंजीवाद इस अल्पसंख्यक वर्ग को नौकरी से दूर किये जाने की क़ीमत पर बहुसंख्यक वर्ग की नौकरियों की सुरक्षा का वायदा करता है।

ज़्यादातर कामगार इस प्रकार के अगले चक्र को लेकर कम चिंता कर सकता है, जबकि छोटी संख्या में श्रमिक वर्ग को ज़्यादा चिंता करनी होती है और अपने जीवन को ज़्यादा समायोजित भी करना होता है। ऐसे में नस्लवादी किसी आबादी के बीच अलग-अलग "नस्लों" की निहित ख़ासियत के आधार पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक वाले भेद की धारणा पैदा कर सकते हैं।

दूसरे विकसित पूंजीवादी देशों ने इस तरह से समस्याओं का हल निकाल लिया है। कुछ लोगों ने अमेरिका में अफ़्रीकी अमेरिकियों के लिए अवसर को अप्रवासियों द्वारा हड़पे जाने की निंदा की। नस्लवाद के निशाने पर आप्रवासी हमेशा से रहे हैं। चक्रीय आर्थिक तरक़्क़ी के दौर में आप्रवासियों को बुलाया जाता है; जैसे-फ़्रांस में उत्तरी अफ़्रीकियों को, स्विट्जरलैंड में दक्षिणी इटालियन को, जर्मनी में तुर्कों को, और इसी तरह से अन्य देशों के प्रवासियों को बुलाया जाता है। इसके बाद जैसे ही चक्रीय मंदी आती है,तो उन आप्रवासियों को उनके गृह देश भेज दिया जाता है।

इस तरह, पूंजीवाद कामगारों को वापस उनके देश भेजकर बेरोज़गारी बीमा, कल्याणकारी भुगतान, आदि पर आ रही लागतों को बचा लेता है। शॉक ऐबजॉर्बर यानी आघात अवशोषक के तौर पर जहां कुछ पूंजीवादी देश अपने घरेलू अल्पसंख्यकों का इस्तेमाल करते हैं,तो कुछ पूंजीवादी अप्रवासियों का इस्तेमाल करते हैं,तो वहीं कुछ देश इसके लिए इन दोनों पर निर्भर होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने घरेलू अफ़्रीकी अमेरिकियों के साथ-साथ मध्य अमेरिकी आप्रवासियों का भी इस तरह से इस्तेमाल किया है, और यह अभी भी करता है। जर्मनी ने ऐसा करते हुए कुछ आप्रवासियों को तुर्की और आस-पास के अन्य आप्रवासी "अतिथि श्रमिकों" को जर्मनी में बसाने और उन्हें जर्मन नागरिकता देने की इज़ाजत भी दी थी।

संयुक्त राज्य अमेरिका में तो शादीशुदा श्वेत महिलाओं ने भी इस व्यापार चक्र के आघात-अवशोषक की भूमिका निभायी है। चक्रीय तरक़्क़ी के दौरान उन्हें भुगतान किये जान वाले श्रम बल के अंशकालिक या पूर्णकालिक पदों पर रखा जाता है। अफ़्रीकी अमेरिकियों की तरह, उन्हें श्वेत पुरुषों के मुक़ाबले कम वेतन मिलते हैं। महिलाओं की नौकरियां भी चक्रीय मंदी में अस्थायी होती है और उनकी नौकरी चले जाने की संभावना ज़्यादा रहती है।

जो भी समुदाय आघात-अवशोषक की भूमिका में शामिल रहे हैं, उनमें बहुसंख्यक श्रमिकों के बनिस्पत ग़रीबी, अवसाद, परिवारिक विखंडन, झुग्गी-झोंपड़ी, अपर्याप्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधायें जैसी समस्यायें उनके बीच बहुत ज़्यादा रही है। नौकरियों, आय, घरों और जीवन की असुरक्षा उनमें अक्सर कड़वाहट, ईर्ष्या, हताशा, अपराध और हिंसा को जन्म देती है। इन होने वाले नुकसानों से उस पूंजीवाद को ‘पार’ पाना था,जिसका वजूद इन समुदायों द्वारा किये गये उत्पादन और पुनर्उत्पादन पर निर्भर है। लेकिन,इन समस्याओं से पार पाने का कार्य पुलिस और जेलों को सौंप दिया गया।

पुलिस और जेलों पर इस बात की ज़िम्मेदारी डाल दी जाती रही है कि वे गंदी बस्तियों और भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में ढकेल दिये गये इन बेचैन और आघात-अवशोषक समुदायों पर "बंदिश" रखे,उन्हें "क़ाबू" में रखे और उन पर "नज़र और नियंत्रण" बनाये रखे। इस नुकसान से पार पाने के लिए जेलों के ज़रिये इस चक्र-पुनर्चक्र के साथ पुलिस के आपसी रिश्ते ही पूंजीवाद के चुने गये तरीक़े थे। इन तरीक़ों से जुड़े कई नुकसान  हुए हैं,मसलन; लम्बे समय तक चलने वाला त्रासद पुलिस उत्पीड़न, हद से ज़्यादा ताक़त का इस्तेमाल, क़ैद के दौरान निष्ठुरता और हिंसा, और ख़ासतौर पर अफ़्रीकी अमेरिकियों की हत्या।

संयुक्त राज्य अमेरिका में चक्रीय आघात-अवशोषक(shock-absorbers) के तौर पर अफ़्रीकी अमेरिकियों (मगर सिर्फ़ इन्हें ही नहीं) का ही "चुना" जाना  इतना अहम क्यों है ? इससे एक कारक जुड़ा हुआ है,और वह है- अमेरिकी दासता की नस्लीय विरासत। उनकी सोच में यह विश्वास भी शामिल था कि दास या तो पूरी तरह से इंसान नहीं हैं या कमतर इंसान हैं। यहां तक कि अमेरिकी संविधान ने जनगणना के मक़सद के लिए एक ग़ुलाम की गणना एक पूर्ण  व्यक्ति (यानी, श्वेत व्यक्ति) के केवल तीन-पांचवें हिस्से के रूप में की थी।

अमेरिकी गृह युद्ध से पहले ग़ुलामी को समायोजित करने के लिए मालिक और ग़ुलाम दोनों में एक नस्लीय चेतना को आकार दे दिया गया था। और क्योंकि अमेरिकी ग़ुलामी की प्रथा ने मालिक और ग़ुलाम (विश्व इतिहास में कई ग़ुलामों के ठीक उलट) के लिए अलग-अलग त्वचा के रंगों को तय कर दिया था, इस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका के ग़ुलामों के एक निश्चित हिस्से को पहले से ही आसानी से पहचाने जाने लायक़ अल्पसंख्यक को नस्लीय रूप में परिभाषित कर दिया गया था। इसके अलावा, यह परिभाषा संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्य हिस्सों में भी फैल गयी थी। अमेरिकी पूंजीवाद ने इस अफ़्रीकी अमेरिकी समुदाय के इस बड़े हिस्से को उस झटके सहने वाले की भूमिका में डालकर ग़ुलामी की उसी विरासत का इस्तेमाल किया, उन्हें  उसी व्यवस्था में खपा लिया,जो उस व्यवस्था की ज़रूरत थी। अमेरिकी ग़ुलाम प्रथा से विकसित नस्लवाद ने अमेरिकी पूंजीवाद को बढ़ाने और उसे मज़बूत करने का काम किया।

सभी तरह के पूंजीवाद में श्वेत श्रमिक वर्ग के एक महत्वपूर्ण हिस्से को भी चक्रीय मंदी से पैदा होने वाले झटके को सहने वाले की भूमिका निभाने के लिए हमेशा मजबूर किया जाता रहा है। अमेरिकी पूंजीवाद में "ग़रीब गोरे लोगों" के हालात अफ़्रीकी अमेरिकियों से अलग कभी नहीं रहे। इस तरह, इन काले और गोरे श्रमिक वर्ग समुदायों के बीच वर्गगत एकजुटता की संभावनायें पैदा हुईं। अमेरिकी इतिहास के जिन पलों में उन संभावनाओं को महसूस किया गया था, उन्हें वॉन वुडवर्ड ने बहुत ही अच्छी तरह से दिखाया है।

अमेरिकी इतिहास में उन संभावनाओं के हक़ीक़त बनने की राह को मुश्किल बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तीव्र नस्लवादी हिंसा के पलों को भी दर्ज किया गया है। नियोक्ता अपने ख़िलाफ़ बनने वाली कर्मचारियों की एकजुटता को ख़त्म करने के लिए नस्लीय भेद-भावों का जमकर इस्तेमाल करते रहे हैं। समय-समय पर पेश आने वाली नौकरियों की दुश्वारियों की हालत में श्वेत और अश्वेत आघात-अवशोषकों के बीच होने वाली कड़वी प्रतिस्पर्धा में गोरे लोग अक्सर नस्लवाद का इस्तेमाल करके उन नौकरियों तक अपनी पहुंच बनाने की कशिश करते थे। इसके बाद कई तरीक़े से पूंजीवाद ने नस्लवाद को बढ़ावा दिया और उसका फ़ायदा उठाया; इस तरह, नस्लवाद व्यवस्था की तह तक जा बैठा।

जहां एक ओर बुनियादी बेइंसाफ़ी ने पुलिस और जेलों के बीच के इस रिश्ते को सामने ला दिया, वहीं दूसरे तरफ़, अफ़्रीकी अमेरिकी और अन्य समुदायों (स्वदेशी, मिश्रित रंग के लोग) ने पूंजीवाद की इस झटके सहने वाली भूमिका की निंदा की। इसका समाधान तो था,लेकिन बेहतर प्रशिक्षण या अधिक वित्त पोषण तो बिल्कुल ही नहीं था,क्योंकि इन दोनों को बार-बार आज़माया गया है और इसी तरह दोनों बार-बार नाकाम भी हुए हैं। इस मसले का वास्तविक समाधान वही है कि हर किसी को एक उचित रूप से भुगतान करने वाली ऐसी नौकरी मिले,जिसे हर कोई एक अधिकार के रूप में चाहता है। ऐसे में बेरोज़गारी भी तब ग़ुलामी, बाल शोषण, आदि की तरह बहुत हद तक ग़ैर-क़ानूनी होगी।

ऐसा होने पर पूंजीवादी उद्यमों पर लगाया जाने वाले कर से  उन लोगों को आर्थिक मदद मिल सकेगी,जिन्हें निजी या सार्वजनिक  नियोक्ता की तरफ़ से नौकरी से निकाला जा सकता है (जितना कि इस तरह के करों से बेरोज़गारी बीमा फ़ंड में मदद मिलती है)। उन फ़ंडों में प्रत्येक श्रमिकों के लिए उन्हें नौकरी से निकाले जाने और काम पर फिर रखे जाने के बीच के समय में भुगतान किये जाने वाले पारिश्रमिक या वेतन शामिल होगा। सार्वभौमिक रूप से लागू न्यूनतम मज़दूरी से उनके उचित आवास, परिवहन, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य जीने की लागतों को पूरा किया जा सकेगा।

अगर इस तरह के समाधान को एक व्यवस्था के रूप में पूंजीवाद के साथ असंगत माना जाता है, तब तो पूंजीवाद को व्यवस्था का ऐसा समाधान देना होगा,जिससे पर्याप्त रूप से भुगतान किये जाने वाले रोज़गार सभी के लिए एक बुनियादी अधिकार बन जाये। तब तो पूंजीवाद की पहले दर्जे वाली सामाजिक प्राथमिकता के रूप में उद्यम के लाभ को अंततः उसके सिंहासन से ही बेदखल कर दिया जाना चाहिए।

इसी तरह का कोई समाधान अंततः अफ़्रीकी अमेरिकियों,देशी, और भूरे लोगों को पुलिस की तरफ़ से और जेलों में लंबे समय तक चलने वाले दुर्व्यवहारों से मुक्त कर सकेगा। इस प्रकार,नस्लवाद को कम किया जा सकेगा और इसी प्रक्रिया में ये संस्थान मिसाल बन गये हैं और और मज़बूत भी हुए हैं। यह पुलिस और जेल कर्मियों पर उन तरीक़ों से व्यवहार करने के दबाव को भी कम करेगा, जो आत्मघाती रूप से अपनी ही मानवता को कुचलने के साथ-साथ दूसरों पर अत्याचार करते हैं। मगर,संयुक्त राज्य अमेरिका में पुलिस और जेल आज व्यवस्थागत नस्लवाद के ज़रिये एक अंतर्निहित अस्थिर पूंजीवाद को आगे बढ़ा रहे हैं। नस्ल विरोधवाद और पूंजी विरोधवाद के बीच के गठबंधन का तर्क बहुत स्पष्ट नहीं हो सका है।

रिचर्ड डी.वोल्फ़, मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट में अर्थशास्त्र के अवकाशप्राप्त प्रोफ़ेसर हैं, और न्यूयॉर्क स्थित न्यू स्कूल विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मामलों में ग्रेजुएट प्रोग्राम में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हैं। वोल्फ़ का साप्ताहिक शो, "इकोनॉमिक अपडेट" 100 से अधिक रेडियो स्टेशनों द्वारा प्रसारित होता है और फ़्री स्पीच टीवी के ज़रिये 55 मिलियन टीवी रिसीवर तक पहुंचता है। डेमोक्रेसी ऐट वर्क के साथ उनकी दो हालिया किताबें- अंडरस्टैंडिंग मार्क्सिज़्म और अंडरस्टैंडिंग सोशलिज़्म आयी हैं, ये दोनों किताबें democracyatwork.info पर उपलब्ध हैं।

यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूशन की एक परियोजना,इकोनॉमी फॉर ऑल द्वारा तैयार किया गया है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

How Racism Is an Essential Tool for Maintaining the Capitalist Order

Black Lives Matter
USA
Donald Trump

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी

जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?

छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

पश्चिम बनाम रूस मसले पर भारत की दुविधा

पड़ताल दुनिया भर कीः पाक में सत्ता पलट, श्रीलंका में भीषण संकट, अमेरिका और IMF का खेल?

क्यों बाइडेन पश्चिम एशिया को अपनी तरफ़ नहीं कर पा रहे हैं?

अमेरिका ने ईरान पर फिर लगाम लगाई


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License