शराब की दुकानें खुलते ही ख़रीदारों की लंबी-लंबी लाइनें लग गईं, मारामारी मच गई। अब पीने वाले चहक रहे हैं तो बहुत लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं कि राज्य सरकारें अपने राजस्व के लिए लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं।
लॉकडाउन-3.O में थोड़ी ढील मिलते ही, सबसे पहले शराब की दुकानें खुली हैं, क्योंकि राज्य सरकारों को मिलने वाले राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब और पेट्रोल-डीजल की बिक्री से ही आता है। इसलिए ये दोनों चीज़ें महंगी भी हुई हैं। अब दुकान खुली है तो पीने वाले भी जुटेंगे ही। संकेत मिलते ही दो दिन पहले से ही मीम बनने लगे थे कि “जिन्हें हम बेवड़ा समझते थे वो तो इकॉनमी वॉरियर्स निकले!”...आदि, आदि। इसलिए दुकानें खुलते ही ख़रीदारों की लंबी-लंबी लाइनें लग गईं, मारामारी मच गई। अब पीने वाले चहक रहे हैं तो बहुत लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं कि राज्य सरकारें अपने राजस्व के लिए लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं। लेकिन लोग भी कहां मानते हैं...
सच, ये कैसा विरोधाभास है कि एक तरफ़ सरकारें शराब के ख़िलाफ़ टीवी पर बड़े-बड़े विज्ञापन देती हैं, किसी फिल्म में भी ऐसा कोई दृश्य आता है तो तुरंत उसके साथ नीचे लिखा आता कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और दूसरी तरफ़ लॉकडाउन में ढील देते हुए सबसे पहला फ़ैसला शराब की दुकाने खोलने का ही करती हैं।