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भारत
राजनीति
छत्तीसगढ़ : सरकार नई, नीति पुरानी
बघेल सरकार के शासन काल में भी आदिवासियों के लिए कुछ नहीं बदला है। आदीवासी कहते  हैं कि भूपेश बघेल एक तरफ सामाजिक मंचों पर कहते हैं की ‘‘संविधान के द्वारा हमें बोलने, काम करने कि आजादी प्राप्त है, जो जिसका हक है उसको मिलना चाहिए’’। दूसरी तरफ वे आदिवासियों के संवैधानिक हकों पर डाका डालते हैं उनकी बोलने की आजादी को छीन रहे हैं!
सुनील कुमार
10 Oct 2019
chhatiisgarh

छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सभी मुठभेड़ों की जांच कराएंगे, निर्दोष आदिवासियों को जेलों से रिहा करेंगे और छत्तीसगढ़ में फर्जी मुठभेड़ नहीं होने देंगे।

यही नहीं चुनाव प्रचार के समय कांग्रेस नेता राज बब्बर ने कहा था कि ‘‘नक्सलवादी के सवालों का जवाब देना पड़ेगा जो लोग क्रांति के लिए निकले हुए हैं उनको डरा कर या लालच देकर  रोका नहीं जा सकता। जब ऊपर के लोग उनका अधिकार छीनते हैं तो गांव के आदिवासी अपना अधिकार पाने के लिए अपने प्राणों की आहूति देते हैं। बंदूकों से फैसले नहीं होते हैं।’’

सरकार बनने के बाद भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  1 जून, 2019 को सुकमा जिले के पोलमपल्ली पहुंचे और घोषणा की कि जेल में बंद आदिवासियों के लिए जांच कमेटी गठित की जायेगी।

इससे पहले जनवरी में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह चुके हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच या उससे अधिक विशेषज्ञ वाली कमेटी गठित की जायेगी जिसमें सेवानिवृत्त डीजीपी भी होंगे।

इस घोषणा के 10 माह बाद भी आदिवासियों की रिहाई को लेकर सरकार सोती रही तो आदिवासी नेता सोनी सोरी आदिवासियों के साथ सरकार के घोषणा पत्रों और वादों को याद दिलाने के लिए 6 अक्टूबर को जब दंतेवाड़ा जिले के पलनार में इक्ट्ठा हुईं तो आदिवासियों पर लाठीचार्ज किया गया और सोनी सोरी को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रशासन के डराने-धमकाने के बावजूद दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा जिले से पहुंचे हजारों आदिवासी जब तीन दिन तक खुले आसमान के नीचे डेरा डाले रहे तो प्रशासन ने नकुलनार के खेल मैदान में छह हजार लोगों तक की सभा करने की अनुमति दे दी।

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इस पर चिंता जाहिर करते हुए भूतपूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा कि मुख्यमंत्री ने पोलमपल्ली जनसभा को संबोधित करते हुए जो घोषणाएं की थी उन घोषणाओं को अमल में लाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है, कहीं इन घोषणाओं का हाल भी निर्मला बुच कमेटी जैसा ना हो जाये।

दरअसल कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकार और माओवादियों की तरफ से मध्यस्थता करने वाले लोगों को लेकर निर्मला बुच की अध्यक्षता में कमेटी का निर्माण किया था जिसमें निर्दोष आदिवासियों को जेलों से छोड़े जाने से लेकर आदिवासियों की जमीनों को कारपोरेट को दिये जाने तक की बात करनी थी।

सितम्बर, 2014 तक बुच कमेटी ने कई बैठकें की जिसमें 650 से अधिक केसों पर विचार करने के बाद 350 से अधिक मामलों में जमानत दिए जाने की सिफारिश की लेकिन एक भी सिफारिश लागू नहीं हुई।

इस कमेटी के अध्यक्ष निर्मला बुच सहित कमेटी के सदस्य बीडी शर्मा की मृत्यु भी हो गई लेकिन कमेटी की सिफारिशों को सरकार ने कूड़े दान में फेंक दिया। क्या बघेल सरकार भी अपने चुनावी घोषणा पत्र और जनवरी व जून में किये गये अपने घोषणा को भूल जाना चाहती है?

पुलिस ने  26 मई को किरंदुल क्षेत्र के हिरोली के जंगलों में पुलिस के साथ मुठभेड़ में हार्डकोर नक्सली के मारे जाने की बात कही थी। एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव ने कहा कि ‘‘हिरोली के जंगल में माओवादियों के होने की खबर पर डीआरजी और पुलिस के जवान सर्चिंग पर गये थे। सर्चिंग के दौरान माओवादियों और जवानों की मुठभेड़ हुई जिसमें विधायक भीमा मांडवी की हत्या में शामिल गुड्डी मारा गया वह 40 से अधिक घटनाओं में नामजद था।’’

सोनी सोरी बताती है कि गुड्डी सरकारी योजना के तहत सड़क बनाने के काम में मजदूरी करता था और नन्दराज पहाड़ को बचाने कि लड़ाई लड़ रहा था। पुलिस ने काम करते समय गुड्डी को दौड़ा कर गोली मार दी और मुठभेड़ में माओवादी के मारे जाने कि घोषणा कर दी।

सोनी सोरी के साथ गुड्डी की वृद्ध मां (65 साल) एसपी से शिकायत करने गयी तो एसपी ने गुड्डी के 65 वर्षीय वृद्ध मां को गाली दिया और कहा कि ‘‘अभी गुड्डी को मारे हैं आगे भीमा और पोदिया को तंदूरी जैसा सेंक सेंक कर मारूंगा’’। बेटे के गम में गुड्डी की मां कुछ दिन बाद यह दुनिया छोड़ कर चली गई।

गुड्डी की हत्या होने के बाद नन्दराज पहाड़ की लड़ाई और तेज हो गई इस लड़ाई को लड़ने वालों को माओवादी कहा जा रहा है।

एसपी चैलेंज कर कहते हैं कि आपके पास तीन विकल्प हैं- आत्मसमर्पण करो, जेल जाओ या मरने के लिए तैयार रहो इसके अलावा और कोई चारा नहीं है। सोनी सोरी ने जिस बात को 1 सितम्बर को दिल्ली के एक कार्यक्रम में बताया उसके ठीक 12 दिन बाद पुलिस ने पोदिया और लच्छु को 13 सितम्बर कि रात को एक मुठभेड़ में मारे जाने की बात बताई।

किन्दुल पुलिस थाने के एफआईआर नंबर 0061 में दर्ज है कि मलांगिर एरिया कमेटी के नक्सली कमांडर गुण्डाधुर, प्रदीप, सोमड़ा, पोदिया, लच्छू, विनोद, देवा, जयलाल, योगी सहित 10-15 माओवादियों की उपस्थिति की सूचना मिली थी। 40 संयुक्त जवानों के साथ पुलिस कुटरेम, मड़कामीरास और समलवार के जंगल के बीच पहुंची तो घात लगाए माओवादियों ने जान से मारने एवं हथियार लूटने की नीयत से स्वचालित हथियारों से फायरिंग कर दी। माओवादी चिल्ला रहे थे कि हथियार लूट लो और जान से मार दो। पुलिस ने बताया कि इस मुठभेड़ में दो माओवादी मारे गये जिन पर 5-5 लाख का इनाम है। क्या किसी भी मुठभेड़ में कोई छिपकर हमला करता है तो हल्ला कर वह अपना लोकेशन बताता है? जैसा कि पुलिस के एफआईआर में लिखा हुआ है!

इस केस में चार सामाजिक कार्यकर्ताओं (बेला भाटिया, सोनी सोरी, लिंगाराम कोडपी, हिडमे मडकाम) ने जांच  में पाया कि इस घटना के तीन गवाह है। तीनों गवाहों की जांच दल के साथ बातचीत हुई जिसका वीडियो भी जांच दल के पास है। जांच दल को बताया गया कि गांव के पांच दोस्तों ने मिल कर खाने-पीने का प्लान बनाया था। वे लोग स्कूल परिसर में बैठे हुए थे वहां पर अचानक 15-20 की संख्या में पुलिस बल आ गया। उससे आधे घंटा पहलें पोदिया शराब पीने के बाद स्कूल के पास एक दोस्त के घर चला गया था।

चार लोगों को पुलिस ने पकड़ा और पिटाई करते हुए ले जाने लगी। पुलिस बल में आए दो सिपाहियों को ये लोग पहचान गये जिसमें एक मडकामीरास गांव का पोदिया मडकाम और दूसरा मदारीगांव के भीमा कइती था। पोदिया को भी उसके दोस्त के घर से पकड़ कर लाए। अंधेरे में पांच में से दो लोग भागने में सफल रहे। तीन लोगों को लेकर पुलिस ले गई जिसमें से पोदिया और लच्छु को रास्ते में ही मार दिया गया। तीसरे व्यक्ति अजय तेलाम को फोर्स अपने साथ ले गई। अजय की मां दो दिनों तक थाने में बेटे से मिलने के लिए बैठी थी।

16 तारीख को जांच दल की सोनी सोरी, बेला भाटिया और कंजामी पांडे ने किरदुल थाने में अर्जी देने गये जिस पर लिखा था कि सुरक्षा दल व पुलिस के द्वारा गोमियापाल के दो ग्रामीण पोदिया सोरी और लच्छु मांडवी की हत्या के संबंध में। पुलिस ने उस अर्जी का प्राप्ति भी दी, बाद में अर्जी देने वालों पर ही धारा 144 तोड़ने के सम्बंध में धारा 188 के तहत केस दर्ज कर लिया गया। पोदिया के साथ पार्टी करने वाला कांछा (जो कि रात के अंधेरा में भागने में सफल रहा था) 23 सितम्बर को दंतेवाड़ा उपचुनाव में मतदान भी किया जिसको 20 सितम्बर को पुलिस ने आत्समर्पण दिखाया था। अगर यह मान लिया जाए कि पोदिया और उसके साथी माओवादी थे तो कांछा के पास वोट देने के दस्तावेज कहां से आए? क्योंकि पुलिस खुद कहती है कि माओवादी अपनी पहचान पत्र या दस्तावेज नहीं बनवाते हैं।

बीपी मंडल जयंती के अवसर पर 25 अगस्त को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में ‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के द्वारा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ‘सामाजिक न्याय रत्न’ से सम्मानित किया गया। ‘भूपेश बघेल ने कहा की संविधान के द्वारा हमें बोलने, काम करने कि आजादी प्राप्त है, जो जिसका हक है उसको मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत जंगल है, जहां पर हीरा, कोयला, सोना, डोलोमाइट, टीन, बक्साइट सब कुछ है। छत्तीसगढ़ भौगोलिक दृश्टि से तमिलनाडू से बड़ा राज्य है लेकिन पूरे प्रदेश की आबादी  दो करोड़ 80 लाख है। संसाधनों से भरपूर राज्य में 39.9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। मुख्यमंत्री खुद स्वीकार करते हैं कि छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी समस्या कुपोषण है। जिस राज्य में खनिज सम्पदा का भंडार हो और उस राज्य की सबसे बड़ी समस्या कुपोषण हो तो इसका कारण वहां के सम्पदा पर बाहरी व्यक्तियों की लूट ही कारण हो सकती है।

लेकिन इस लूट के खिलाफ बोलने वाले लोगों को सरकार जेलों में बंद कर दे रही है या फर्जी मुठभेड़ में मार दे रही है। छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने दिल्ली के एक कार्यक्रम में बताया कि छत्तीसगढ़ में कुछ भी नहीं बदला है जैसे पहले आदिवासियों पर अत्याचार होते रहते थे वैसा ही अब भी आदिवासियों के साथ अन्याय हो रहा है।

सोनी सोरी कहती हैं कि जमीन लौटाने और किसानों के कर्ज माफ करने से यह नहीं कहा जा सकता है कि सरकार अच्छा कर रही है। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं ने पहले सुरक्षा बलों द्वारा बलात्कार की शिकायत कि थी पुलिस उनको जाकर मारती-पीटती है। पहले छत्तीसगढ़ सरकार जन सुरक्षा अधिनियम के तहत केस दर्ज करती थी अब यूएपीए कानून के तहत केस दर्ज कर रही है जिससे कि बेकसूर आदिवासी जल्दी जेल से बाहर न आ सके।

27 मई की पत्रिका समाचार में छपी खबर के अनुसार बीजापुर जिले के पोडिया निवासी युवती अपनी शादी का सामान लेने बचेली बाजार गई थी। बाजार से पुलिस ने युवती को उठा कर माओवादी के आरोप में जेल भेज दिया।

बघेल सरकार के शासन काल में भी आदिवासियों के लिए कुछ नहीं बदला है। आदिवासी कहते हैं कि भूपेश बघेल एक तरफ सामाजिक मंचों पर कहते हैं की ‘‘संविधान के द्वारा हमें बोलने, काम करने कि आजादी प्राप्त है, जो जिसका हक है उसको मिलना चाहिए’’। दूसरी तरफ वे आदिवासियों के संवैधानिक हकों पर डाका डालते हैं उनकी बोलने की आजादी को छीन रहे हैं।

कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में ‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के द्वारा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ‘सामाजिक न्याय रत्न’ से जिस मंच पर सम्मानित किया गया उसी मंच से भूपेश बघेल के पिता नन्द कुमार बघेल कहते हैं कि माओवादी सही कर रहे हैं पुलिस को माओवादियों के तरफ से लड़ना चाहिए। आखिर क्या बात है कि सरकार के बाहर रहते हुए माओवादी के क्रियाकलाप को सही बताया जाता है तो सरकार में आते ही दुश्मन नं. 1 मान लेते हैं?

यह दुश्मन नं. 1 किसके फायदे के लिए माना जाता है? बघेल सरकार को अपने चुनावी वादों को पूरा करना चाहिए और एक स्थायी समाधान का रास्ता खोजना चाहिए।

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