NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
यूक्रेन को लेकर पश्चिमी मीडिया के कवरेज में दिखते नस्लवाद, पाखंड और झूठ के रंग
क्या दो परमाणु शक्तियों के बीच युद्ध का ढोल पीटकर अंग्रेज़ी भाषा के समाचार घराने बड़े पैमाने पर युद्ध-विरोधी जनमत को बदल सकते हैं ?
नतालिया मार्क्वेस
05 Mar 2022
Western media
रूस की तरफ़ से सैन्य संघर्ष को आगे बढ़ाने के बाद किसी पत्रकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से सवाल किया था, "अगर लगाये गये प्रतिबंध भी राष्ट्रपति पुतिन को नहीं रोक पाये, तो क्या सज़ा दी जा सकती है ?"

यूक्रेन में रूसी सैन्य गतिविधि के बढ़ने से पहले नाटो देशों के लोग इस संघर्ष में अपनी ही सरकारों की सैन्य भागीदारी की संभावना को लेकर सबसे ज़्यादा आशंकित थे। नाटो देशों के बीच सबसे अच्छी तरह से सुसज्जित सशस्त्र देश संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों में से महज़ एक चौथाई लोगों ने ही रूसी सैन्य हमले से पहले किये गये एक सर्वेक्षण में यूक्रेन में एक प्रमुख भूमिका निभाने को लेकर अमेरिका का समर्थन किया था। 17 फ़रवरी को स्पेक्टेटर के हवाले से दिये गये एक सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता,तो यूनाइटेड किंगडम के लोगों में से ज़्यादतर लोग इस सैनिक तैनाती का विरोध करते। यूरोपीय लोगों के बीच फ़रवरी की शुरुआत में कराये गये एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि जहां ज़्यादतर लोगों का मानना था कि नाटो को रूसी हमले से यूक्रेन को बचाना चाहिए,वहीं ज़्यादातर का मानना था कि रूसी सैन्य कार्रवाई के ख़तरे की स्थिति में इस तरह की रक्षा कार्रवाई ठीक नहीं है।

ये सर्वेक्षण रूसी सरकार के यूक्रेन में सैन्य संघर्ष को आगे बढ़ाने से पहले किये गये थे। अभी यह साफ़ नहीं है कि नाटो देशों में रहने वाले कितने लोग इसका समर्थन करते हैं। हालांकि, ये संख्यायें स्पष्ट हैं। रूसी सैन्य चढ़ाई से पहले नाटो सैन्य कार्रवाई के समर्थन को लेकर कोई व्यापक आधार नहीं था।

फिर भी, ऐसा लगता है कि अंग्रेज़ी भाषी समाचार मीडिया इस व्यापक समर्थन को बढ़ाने या कम से कम नाटो की उस आक्रामकता से ध्यान हटाने को लेकर अपने स्तर पर पूरज़ोर कोशिश कर रहा है, जिसके कारण यह संघर्ष हुआ है। नस्लवादी रूपकों, सेंसरशिप और ज़बरदस्त झूठ के मिश्रण के ज़रिये नाटो देशों के लोगों और ख़ासकर बेहद सैन्यीकृत संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों के बीच युद्ध-समर्थक बयानबाज़ी लगातार होती रहती है।

आइये,नीचे ऐसे ही कुछ सबसे उल्लेखनीय पहलुओं पर नज़र डालते हैं:

1. युद्ध का ढोल पीटना

24 फ़रवरी को इस संघर्ष की शुरुआत में ही राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से यूक्रेन पर हमले के बाद रूस के ख़िलाफ़ व्यापक प्रतिबंधों के ऐलान के साथ ही प्रेस इस युद्ध के ढोल पीटने को लेकर क़तार में खड़ा था। एबीसी न्यूज़ के एक रिपोर्टर ने बाइडेन से पूछा था, “ज़ाहिर है, इस समय व्लादिमीर पुतिन को रोकने को लेकर ये प्रतिबंध नाकाफ़ी हैं। पुतिन को रोकने के लिए क्या किया जाने वाला है,उसे कैसे और कब अंजाम दिया जायेगा, और क्या आप पुतिन को यूक्रेन से भी आगे जाने की कोशिश करते देख रहे हैं ?" एक दूसरे रिपोर्टर ने पूछा, "आपको इस बात का यक़ीन है कि ये विनाशकारी प्रतिबंध रूसी मिसाइलों और गोलियों और टैंकों की तरह ही विनाशकारी होने जा रहे हैं?" एक और रिपरोर्ट ने बाइडेन से पूछा, "अगर ये प्रतिबंध राष्ट्रपति पुतिन को नहीं रोक पाये, तो फिर किस तरह की सज़ा दी जा सकती है?"

हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी तक रूस के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई नहीं की है, यह पश्चिमी मीडिया की ओर से कोशिश की कमी के चलते नहीं है। इन प्रतिबंधों से आगे बढ़ने का आग्रह के अलावा अंग्रेज़ी भाषी प्रेस ने जल्दबाज़ी में यह ग़लत-सलत सूचना प्रकाशित कर दी थी कि स्नेक आइलैंड पर यूक्रेनी सैनिक रूसी हमले में मारे गये है, जबकि सचाई यह थी कि उस हमले में सबके सब बच गये थे।

परमाणु शक्तियों के बीच किसी भी तरह का टकराव पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी होगा। फिर भी, समय-समय पर अंग्रेज़ी भाषी मीडिया ने धीरे-धीरे या बहुत ही बारीक़ी के साथ या फिर समझ में नहीं आने वाले तरीक़े से हालात में घी डालने का काम किया है। 28 फ़रवरी को एनबीसी न्यूज़ के रिपोर्टर रिचर्ड एंगेल ने ट्वीट किया था, "एक विशाल रूसी काफ़िला कीव से 30 मील की दूरी पर है। अमेरिका/नाटो शायद इसे तबाह कर सकते हैं। लेकिन, यह तो रूस, जोखिम और बाक़ी तमाम चीज़ों के ख़िलाफ़ सीधे-सीधे भागीदारी होगी। क्या पश्चिम चुपचाप इसे देखता रहेगा,क्योंकि अबतक तो इसका रवैया ढुलमुल ही रहा है ?" सवाल है कि क्या पश्चिम सही मायने में "चुपचाप देख रहा है",जबकि वह बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगा रहा है, जिसका रूस और दुनिया के लोगों पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है ? और यदि हां, तो फिर विकल्प क्या है?

"They're not going to stop. They're going to go day and night and I think the target is Kyiv." - Retired Gen. George Joulwan talks to @BrianToddCNN about Russia's strategy following the invasion of Ukraine. https://t.co/8bhmZmJIPW pic.twitter.com/pdaoW28GHZ

— CNN (@CNN) February 25, 2022

दूसरे समाचार घरानों ने नाटो देशों पर 2011 में लीबिया पर नो-फ़्लाई ज़ोन की तरह ही उस नो-फ्लाई ज़ोन को लागू करने को लेकर दबाव डालने वाली आवाज़ को बढ़ावा दिया था, जिसके लागू होने से वह देश तबाह हो गया था। यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने का मतलब रूसी सैन्य विमानों के साथ सीधा टकराव है, जो कि मुख्य रूप से यूक्रेन के लोगों के लिए ही विनाशकारी रूप से हिंसक होगा।

2. पाखंड

एक फॉक्स न्यूज रिपोर्टर ने इराक़ पर हुए 2003 के हमले के प्रमुख वास्तुकारों में से एक कोंडोलीज़ा राइस के समझौते के सिलसिले में कहा था,"जब आप किसी संप्रभु राष्ट्र पर हमला करते हैं, तो यह एक युद्ध अपराध है।"  अंग्रेज़ी भाषा के प्रेस ने दिखा दिया है कि सभी हमलों को एक नज़रिये से नहीं देखा जाता है। जैसा कि फ़िलीस्तीनी पत्रकार अस्मा यासीन ने मोंडोवाइस में लिखा है, "एक हफ़्ते से ज़्यादा समय तक इजरायल के कब्ज़े के दौरान जिन कई फ़िलिस्तीनी लोगों को मार डाला गया, हमला किया गया और गिरफ़्तार किया गया, उनमें से ज़्यादतर नाबालिग़ हैं, फिर भी इन ख़बरों को समाचार स्क्रीन के किसी कोने में मुश्किल से उल्लेख किया गया।"

On BBC radio, @sarahrainsford reports Ukrainians making Molotov cocktails for “self-defense” of homes and towns. They absolutely have that right. But remember when Palestinians use even rocks it’s is “terrorism” that justifies their killing by Western-armed Israeli forces.

— Ali Abunimah (@AliAbunimah) February 26, 2022

जब नाटो देशों या उनके सहयोगी देशों की ओर से किये जाने वाले हमले और आधिपत्य के शिकार हुए लोग विरोध करते हैं, तो उन्हें आतंकवादी क़रार दिया जाता है। लेकिन,वहीं यूक्रेनियाई, जिन्हें भी इस सैन्य आक्रमण का विरोध करने का अधिकार है, "रूस का विरोध करने की उनकी क्षमता में मज़बूती से यक़ीन करने" के सिलसिले में उनका महिमामंडन किया जाता है। यूके के समाचार घराने वाले स्काई न्यूज़ तो पूरे विस्तार के साथ यूक्रेनी नागरिकों के मोलोटोव कॉकटेल,यानी पेट्रोल बम, गैसोलीन बम, बोतल बम बनाने के फ़ुटेज को दिखाने की हद तक चला जाता है। नाटो देशों की ओर से इराक़, सीरिया या लीबिया पर भी हमले किये गये थे,लेकिन उस हमले का विरोध करने वालों को लेकर इस तरह के कवरेज के बारे में ऐसा कभी नहीं कहा-सुना गया। जैसा कि पत्रकार अली अबुनिमा ने ट्वीट किया, "क्या आपने कभी पश्चिमी समर्थित इज़रायल के कब्ज़ों को लेकर निहत्थे फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का इतना चमकदार और सहायक कवरेज देखा है?"

3. नस्लवाद

सीबीएस के विदेशी संवाददाता चार्ली डी'अगाटा ने यूक्रेन की राजधानी कीव के नज़दीक रूसी सेना की तैनाती पर कहा था, "यह कोई ऐसी जगह नहीं है...जहां इराक़ या अफ़ग़ानिस्तान की तरह दशकों से संघर्ष को देखा गया हो। यह तो यूरोप के बाक़ी शहरों के मुक़ाबले सभ्य... शहर है।"

नाटो देशों के समाचार घरानों ने यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को लेकर कई नस्लवादी टिप्पणियां की हैं,जिस पर ग़ौर नहीं किया गया है और अपनी रिपोर्टिंग के स्वर और विषयों के साथ नस्लवादी दोहरे मानक का प्रदर्शन किया है। जैसा कि बीबीसी पर टिप्पणी करते हुए यूक्रेन के एक अधिकारी ने कहा है कि रिपोर्टर और पत्रकार इस बात से हैरान और भ्रमित हैं कि एक यूरोपीय देश या "नीली आंखों और सुनहरे बालों वाले लोगों" वाले इस देश में भला इस तरह की हिंसा कैसे हो रही है।

अंग्रेज़ी भाषी मीडिया ने यूक्रेन में नस्लवादी वास्तविकता को भी कम करके दिखाया है।यूक्रेन एक ऐसा देश है, जहां खुले तौर पर आज़ोव बटालियन जैसे फ़ासीवादी समूहों को सैन्य और पुलिस बलों में शामिल किया गया है। बीबीसी ने उस नाइजीरियाई छात्र का ज़िक़्र करते एक ट्वीट को तुरंत हटा लिया था, जिसने पोलैंड में इस हमले से बचने के लिए शरण पाने की कोशिश में यूक्रेनी सेना से जूझने के बाद कहा था, "वे बेहद बेरहम हैं... वे हमारे साथ जानवरों की तरह पेश आये।"

.@bbcworld deleted this tweet about the savage racism faced by Africans in Ukraine and replaced it with one that soft-pedals the reality. They call this blatant whitewashing “more context and clarity.” https://t.co/UJ51btLtCL pic.twitter.com/56Ob8kw99U

— Ali Abunimah (@AliAbunimah) March 1, 2022

4. सेंसरशिप और झूठ

YouTube just banned our page within Europe. IG has also shadowbanned our account, and we expect a full ban on all platforms soon. But remember how it ended last time for totalitarianism in Europe.

FOLLOW US ON TIKTOK: https://t.co/8stQaIllFk
TELEGRAM: https://t.co/cizlQMKqVp pic.twitter.com/vAh5s8KGbE

— redfish (@redfishstream) March 2, 2022

रूस टुडे, स्पुतनिक न्यूज़ और रेडफ़िश जैसे रूसी सरकार से वित्त पोषित समाचार मीडिया को गूगल,मेटा और ट्विटर जैसी कंपनियों ने सेंसर कर दिया है, यूरोपीय संघ ने उन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, और DStv जैसी प्रसारण सेवाओं ने उनहें पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया है। इस हालिया सैन्य चढ़ाई से बहुत पहले ही इन घरानों पर रूसी सरकार से उनके सम्बन्धों के चलते "रूसी सरकार से जुड़े मीडिया" या "रूसी सरकार से नियंत्रित मीडिया" के रूप में ठप्पा लगा दिया गया था। यूके स्थित बीबीसी या यूएस स्थित एनपीआर जैसे मीडिया घराने भी तो उनके यहां के सम्बन्धित सरकारों से वित्त पोषित हैं, लेकिन उन पर तो इस तरह का ठप्पा कभी नहीं लगाया गया।

जहां कुछ मीडिया को सेंसर किया गया है, वहीं पश्चिमी मीडिया झूठ को बढ़ावा देने को लेकर आज़ाद है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस को नज़र में रखकर नाटो के विस्तार को एक प्रमुख कारण के रूप में बताते हुए इस हमले का ऐलान किया था, जिसके बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, "मिस्टर पुतिन अपने भाषण का एक बड़ा हिस्सा पिछले 30 सालों को झूठे पश्चिमी उन वादों के इतिहास के रूप में बताते हुए ख़र्च डालते हैं, जो यूरोप को अमेरिकी और रूसी प्रभाव क्षेत्रों के बीच एक स्थायी संतुलन में बांटने को लेकर था।" अमेरिकी सरकार के गोपनीय दस्तावेज़ों पर एक सरसरी निगाह डालने से यह साफ़ हो जाता है कि ये "पश्चिमी वादे" झूठे ही हैं, क्योंकि रूस के साथ दशकों से ये वादे किये जाते रहे हैं कि नाटो का विस्तार पूर्व की ओर नहीं किया जायेगा। इस ज़रूरी संदर्भ के बिना ही अंग्रेज़ी भाषी मीडिया यूक्रेन संघर्ष पर रिपोर्ट करता है।

5. चीन और नया शीत युद्ध

द हिल में छपे 2 मार्च की हेडलाइन है,"ट्रम्प का कहना है कि वह मानते है कि चीन ताइवान पर हमला करेगा।" एक दूसरी हेडलाइन,जो फ़ॉक्स न्यूज़ पर 2 मार्च को प्रसारित होती है,वह कहती है, "चीन रूस-यूक्रेन युद्ध का 'बड़ा विजेता', चीन में काम करने वाले पूर्व एफ़बीआई एजेंट की चेतावनी।"

चीन यूक्रेन में  चल रहे संघर्ष का हिस्सा नहीं है। सचाई तो यह है कि चीन ने यूक्रेन में जन-जीवन के नुक़सान को लेकर चिंता जतायी है और इस संघर्ष को रूसी सरकार की तरफ़ से कहे जा रहे "विशेष सैन्य अभियान" के साथ चिपके रहने के बजाय इसे युद्ध क़रार दिया है। हालांकि, पश्चिमी मीडिया की ओर से जो ख़बरें दी जा रही है,अगर उस पर सरसरी निगाह डाली जाये,तो बेख़बर लोगों को भी यह यक़ीन हो सकता है कि चीन रूस के समर्थन में रूस के साथ मिलकर काम कर रहा है, या यहां तक कि चीन अपने ख़ुद के सैन्य आक्रमण का नेतृत्व करने की योजना बना रहा है। पश्चिमी मीडिया में हाल के कई लेखों में ताइवान को भविष्य में चीनी आक्रमण के संभावित स्थल के रूप में बताया गया है। यूके से प्रकाशित होने वाले टैब्लॉइड द डेली मेल लिखता है, "अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने इस द्वीपीय देश के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन से मुलाक़ात की और चेतावनी दी कि रूस के बर्बर हमले के बाद यूक्रेन की जो दुर्गति हुई है,उसकी इजाज़त ताइवान में नहीं दी जानी चाहिए।" रॉयटर्स में छपी रिपोर्ट कुछ इस तरह है, "एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ताइवान को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं के पीछे मज़बूती के साथ खड़ा है,ग़ौरतलब है कि ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने चीन के बढ़ते सैन्य ख़तरे के जवाब में सहयोगियों के साथ ज़्यादा निकटता से काम करने की प्रतिबद्धता जतायी है।" बाद में यह स्वीकार करते हुए कहा गया है कि "चीन ताइवान को ख़ुद का क्षेत्र होने का दावा करता है, ऐसे में अगर बीजिंग इस द्वीपीय देश पर कोई भी क़दम उठाने के लिहाज़ से यूक्रेन संकट के अवसर का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है,तो इसे लेकर ताइवान सतर्क है, हालांकि सरकार ने इस क्षेत्र में किसी तरह की असामान्य चीनी गतिविधि की सूचना नहीं दी है।" (इस पर ख़ासा ज़ोर दिया गया है)

पीपुल्स डिस्पैच ने चीन के ख़िलाफ़ पश्चिम के इस "नये शीत युद्ध" पर पहले भी लिखा है। पश्चिमी वर्चस्ववादी शक्तियां चीन को एक ऐसे देश के रूप में देखती हैं, जो अमेरिका और नाटो के प्रभाव से स्वतंत्र रूप से विकसित हो रहा है और यहां तक कि यह एक संपन्न देश भी है, इसे वे ख़ुद के लिए ख़तरे के रूप में देखते हैं। ऐसा लगता है कि मुख्यधारा का अंग्रेज़ी भाषी मीडिया यूक्रेन पर रूस के हमले का चीन के इस ख़तरनाक चित्रण को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के मौक़े के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।

इस नये शीत युद्ध को लेकर की जा रही बयानबाज़ी की रोशनी में इस बात का स्पष्ट होना ज़रूरी है कि चीन ने ताइवान पर हमले के सिलसिले में किसी तरह का इरादा नहीं दिखाया है, और न ही इस बात का कोई ठोस सबूत है कि यूक्रेन में सैन्य संघर्ष में चीन की कोई भूमिका है, जैसा कि अस्पष्ट तरीक़े से "पश्चिमी ख़ुफ़िया" रिपोर्ट” से अलग इस बात का दावा किया गया है कि चीन को इस रूसी सैन्य कार्रवाई की पहले से जानकारी थी।

—

यह साफ़ नहीं है कि रूस के आगे बढ़ने के बाद यूक्रेन में नाटो सैन्य हस्तक्षेप को लेकर नाटो देशों के लोगों की राय क्या है। लेकिन, अगर लीबिया, इराक़, सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान में हुई तबाही की याद अगर दिल-ओ-दिमाग़ में बाक़ी है,तो इस तरह की चढ़ाई,ख़ासकर यूक्रेन के लोगों के लिए ही विनाशकारी होगी।

ऐसा लगता है कि पश्चिमी मीडिया न सिर्फ़ रूस,बल्कि नाटो की खींची गयी लकीर पर चलने से इनकार करने वाले हर एक देशों को इसी तरह के संघर्ष में धकेलने का इरादा रखता है। हालांकि, पश्चिम के लोग नाटो के सम्मोहन में एकजुट नहीं हैं, और कई लोगों ने तो नाटो के विस्तार का विरोध तक किया है। लंबे समय तक अमेरिका में रहने वाले युद्ध-विरोधी कार्यकर्ता ब्रायन बेकर इस बात को कुछ इस तरह स्पष्ट करते हैं:

“युद्ध का वह ख़तरा, जो यहां संयुक्त राज्य अमेरिका से निकलता है, वह दरअस्ल अमेरिकी लोगों तक यहां के प्रतिष्ठान की ओर से मुहैया कराये गये औचित्य और तर्क पर आधारित होता है और फिर मीडिया में वही प्रतिध्वनित होता है।... मज़दूर तबक़े और ग़रीबों को अपनी तरफ़ करते हुए उनके बीच युद्ध विरोधी राजनीतिक शिक्षा देकर हम एक ऐसी मज़बूत ताक़त का निर्माण कर सकते हैं, जो असली बदलाव ला सकती है।”

साभार:पीपुल्स डिस्पैच

2011 NATO invasion of Libya
ANSWER-Act Now to Stop War and End Racism-Coalition
Azov Battalion
Brian Becker
News censorship
North Atlantic Treaty Organization
Press freedom
Russia Today
Russia-Ukraine war
War in Ukraine

Related Stories

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

धनकुबेरों के हाथों में अख़बार और टीवी चैनल, वैकल्पिक मीडिया का गला घोंटती सरकार! 

दिल्ली : फ़िलिस्तीनी पत्रकार शिरीन की हत्या के ख़िलाफ़ ऑल इंडिया पीस एंड सॉलिडेरिटी ऑर्गेनाइज़ेशन का प्रदर्शन

इज़रायल को फिलिस्तीनी पत्रकारों और लोगों पर जानलेवा हमले बंद करने होंगे

भारत को मध्ययुग में ले जाने का राष्ट्रीय अभियान चल रहा है!

भारत में ‘वेंटिलेटर पर रखी प्रेस स्वतंत्रता’, क्या कहते हैं वैकल्पिक मीडिया के पत्रकार?

प्रेस स्वतंत्रता पर अंकुश को लेकर पश्चिम में भारत की छवि बिगड़ी

Press Freedom Index में 150वें नंबर पर भारत,अब तक का सबसे निचला स्तर

प्रेस फ्रीडम सूचकांक में भारत 150वे स्थान पर क्यों पहुंचा

नागरिकों से बदले पर उतारू सरकार, बलिया-पत्रकार एकता दिखाती राह


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License