NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
हरियाणा: आज़ादी के 75 साल बाद भी दलितों को नलों से पानी भरने की अनुमति नहीं
रोहतक के ककराणा गांव के दलित वर्ग के लोगों का कहना है कि ब्राह्मण समाज के खेतों एवं अन्य जगह पर लगे नल से दलित वर्ग के लोगों को पानी भरने की अनुमति नहीं है।
शिवम चतुर्वेदी
22 Nov 2021
water pump

हरियाणा के रोहतक जिले के ककराणा गांव में दलित वर्ग के लोगों को आज़ादी के 75 साल के बाद भी सामाजिक न्याय का बुनियादी अंश भी नहीं मिल पाया है। गांव के लोगों को हर रोज जाति के आधार पर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, मंदिर में प्रवेश से लेकर नल एवं कुएं में पानी भरने तक की अनुमति नहीं है। मामले को लेकर गांव में ब्राह्मण समुदाय एवं दलित समुदाय के लोगों के बीच तनातनी बरकरार है।

नल एवं कुएं से पानी भरने की अनुमति नहीं।

गांव के दलित वर्ग के लोगों का कहना है कि ब्राह्मण समाज के खेतों एवं अन्य जगह पर लगे नल से दलित वर्ग के लोगों को पानी भरने की अनुमति नहीं है। यदि कोई व्यक्ति नल से पानी भरता है तो उसे रोक दिया जाता है तथा हिदायत दी जाती है की वह अगली बार उस नल से पानी भरने की हिमाकत भी ना करें। 

साथ ही अगर कोई दलित वर्ग का व्यक्ति गांव के कुएं में पानी भरने या पीने की कोशिश करता है, तो वहां मौजूद ब्राह्मण समुदाय के लोगों के द्वारा यह कहते हुए उन्हें रोक दिया जाता है कि 'उधर कहां जा रहा है आ मैं पानी पिला देता हूं"। लोगों ने बताया कि ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा यह होती है कि कोई दलित वर्ग का व्यक्ति उनके कुएं एवं नल को ना छुए।

मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित

गांव के बीचो-बीच एक विशालकाय हनुमान मंदिर है जिस मंदिर पर तथाकथित तौर पर ब्राह्मणों का कब्जा बताया जाता है, स्थानीय लोगों की बात मानी जाए तो मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित है। यदि कोई छोटा बच्चा भी भूलवश मंदिर के अंदर प्रवेश कर‌ जाता है तो आसपास के लोगों एवं पुजारी के द्वारा उसके परिवार की पहचान एवं जाति पूछी जाती है। 

ब्राह्मण वर्ग के लोग मंदिर को अपनी निजी प्रॉपर्टी बताते हैं जिसके कारण वह दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देते। लेकिन मंदिर ओबीसी समुदाय के लोगों के लिए खुला रहता है, मंदिर में ओबीसी समुदाय के लोगों के साथ कोई भेद-भाव नहीं किया जाता। हालांकि अधिकतर दलित वर्ग के लोग मंदिर में जाने के इच्छुक नहीं रहते,‌ लेकिन उनका कहना है कि मंदिर में मेरी आस्था है या नहीं सवाल यह नही‌ है सवाल समानता और संवैधानिक अधिकार का है गांव में सार्वजनिक मंदिर हैं जिनमें कुत्ते बिल्ली जा सकते हैं लेकिन गांव के दलित वर्ग को क्यों नहीं जाने दिया जाता। इसलिए मंदिर प्रवेश हमारा और हमारे समाज के आत्मसम्मान की लड़ाई है।

लोगों ने सुनाई आपबीती

वैसे तो गांव में कई सारे लोग ऐसे हैं जिन्हें जाति के आधार पर भेदभाव का सामना हर रोज करना पड़ता है लेकिन कुछ लोगों ने अपनी आपबीती हमसे साझा की।

ककराणा गांव के‌ रवि जो एक दलित परिवार से आते है, उन्होंने हमें एक घटना बताई, कि जब वह अपने बुआ की बेटी के जिद पर अपने भाई के साथ मंदिर में प्रवेश करने के लिए गए। तब उन्हें वहां मौजूद दो औरतों ने रोक लिया और कहा की जब तुम्हारे बाप दादा कभी इस मंदिर में प्रवेश‌‌ नही‌ किए तो तुम कैसे इस मंदिर में प्रवेश कर सकते हो। रवि ने बताया कि यह घटना सन 2018 के जून महीने की है, रवि की उम्र मात्र 24 साल है और वह कानून की पढ़ाई कर रहे हैं।

ककराणा के ही रहने वाले मंजीत अपनी कहानी बताते हैं, कि अभी कुछ महीने पहले ही जब वह एक ब्राह्मण समुदाय के खेत में लगे नल पर पानी भरने के लिए गए। तब वहां मौजूद ब्राह्मण वर्ग के लोगों ने उन्हें नल से पानी भरने से रोक‌ दिया ‌एवं जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए नल से दूर हटने के लिए कहा।

साथ ही मनजीत ने बताया कि अगर ब्राह्मणों की गैर मौजूदगी में किसी दलित वर्ग के द्वारा नल से पानी भरने की खबर ब्राह्मणों को मिलने पर ब्राह्मण वर्ग के लोगों के द्वारा नल का शुद्धिकरण किया जाता है। मंजीत भी दलित समुदाय से आते है और मेहनत मजदूरी का काम करते है।

ककराणा के निवासी नीरज बताते हैं कि किस तरह से उन्हें सार्वजनिक कुए में से पानी पीने से रोका गया, और मौके पर मौजूद ब्राह्मणों ने कहा की "तू किधर जा रहा है, उधर मत जा रुक मैं पानी पिला देता हूं"।

नीरज ने बताया कि उनका इशारा साफ था कि कहीं नीरज ब्राह्मणों के कुएं एंव उनके कुएं पर रखी बाल्टी को ना छूए।

साथ ही नीरज ने गांव का एक और वाकया बताया कि गांव के सरकारी स्कूल में एक दलित वर्ग की बावर्ची की नियुक्ति हो गई थी, जिसके बाद ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल में खाना खाने से मना कर दिया। इस मामले को लेकर गांव में ब्राह्मणों की बैठक बैठी और दलित वर्ग की बावर्ची को स्कूल से निकलवाया गया।

नाम ना छापने की शर्त पर ककराणा गांव के एक कामकाजी व्यक्ति ने बताया कि ब्राह्मणों के यहां काम करने वाले दलित वर्ग के लोगों के लिए बर्तन अलग रखा जाता है, एवं उनके पानी पीने के लिए अलग से एक मटका रखा जाता है। दलित वर्ग के लोगों को कप में चाय पीने के बाद कफ को खुद ही धोना पड़ता है। 

मंदिर में प्रवेश को लेकर 2 नवंबर को दलित युवाओं ने खोला था मोर्चा

मंदिर में प्रवेश के मुद्दे को लेकर ककराणा गांव के दलित वर्ग के युवाओं ने ब्राह्मणों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ककराणा गांव के ही एक नौजवान हेमंत उर्फ राहुल ने गांव के लोगों को इकट्ठा करके ब्राह्मणों के खिलाफ बगावत का रास्ता अख्तियार किया, एवं ब्राह्मणों को चेतावनी दी कि वह 2 नवंबर 2021 को मंदिर में प्रवेश करेंगे। 

2 नवंबर को पूरे गांव में तनावपूर्ण स्थिति थी एवं 2 नवंबर से पहले 1 नवंबर को ही हेमंत को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस प्रशासन एवं स्थानीय लोगों के दबाव से ब्राह्मण वर्ग के लोगों ने नाटकीय अंदाज में कुछ लोगों को मंदिर में प्रवेश करवाया लेकिन हेमंत और उनके सहयोगी इस पूरे प्रकरण को केवल मामले को निपटाने का एक जरिया बताते हैं।

इसी बीच ब्राह्मणों की एवं दलित समुदाय की पुलिस के साथ सामूहिक बैठक हुई थी जिसमें कथित तौर पर ब्राह्मण वर्ग के लोगों के द्वारा कहा गया कि चाहे मेरी लाश ही क्यों ना बिछ जाए हम दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देंगे।

गौरतलब है की 2 अक्टूबर को ही ब्राह्मणों के द्वारा गांव में दलितों के आंदोलन के विपरीत परशुराम जयंती मनाई गई थी। पूरे गांव में ब्राम्हण समुदाय के लोगों को लाठी-डंडे और हटियारों के साथ गांव में गुमते देखा गया था।

ब्राम्हण समाज के लोगों का क्या कहना है?

ब्राह्मण समाज के सुरेंद्र ने बताया कि मंदिर हमारी निजी संपत्ति है इसे एक परिवार के लोगों ने अपने पुरखों के याद में निजी तौर पर बनवाया है, इस मंदिर में उन लोगों (दलित) का क्या काम। सार्वजनिक स्थान पर बना मंदिर निजी कैसे हो सकता है इस सवाल पर सुरेंद्र ने कहा कि जो बात कहनी थी कह दी, मंदिर निजी है बात खत्म।

सुरेंद्र के साथ ही मौजूद स्थानीय 2 महिलाओं ने भी इसी बात को दोहराया कि मंदिर निजी संपत्ति है अथवा यहां उन्हीं लोगों को प्रवेश दिया जाएगा जिन्हें हम अनुमति प्रदान करेंगे।

गांव के सरपंच का क्या कहना है?

ककराना गांव के सरपंच हरिभगवान जो एक ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, उन्होंने बताया कि गांव का माहौल बिल्कुल ठीक है मंदिर में रोके जाने की एवं नल से पानी ना भरने दिए जाने की सारी बातें बेबुनियाद हैं, गांव में शांति है किसी को कोई समस्या नहीं है। उन्होंने बताया कि कुछ लोग नेतागीरी चमकाने के लिए हंगामा कर रहे हैं।

साथ ही सरपंच ने माना कि ब्राह्मण समुदाय के लोगों के द्वारा मंदिर में प्रवेश ना दिए जाने की बात कही गई थी लेकिन अब स्थिति सामान्य है।

पुलिस का क्या कहना है? 

ककराना गांव के पास के ही कलानौर थाना के एसएचओ रोहताश ने दलित समुदाय के लोगों के द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। एसएचओ रोहताश ने बताया कि मंदिर में प्रवेश को लेकर कोई रोका टोकी नहीं है, और नल से पानी ना भरने दिए जाने की कोई शिकायत हमारे पास नहीं आई। अगर ऐसा होता तो हम खुद जाकर मामले की तस्दीक करते।

साथ ही पुलिस पर लग रहे ब्राह्मण समुदाय के लोगों का साथ देनें के आरोप को भी एसएचओ रोहतास ने खारिज कर दिया।

क्या है पूरा मामला ?

ककराना गांव रोहतक जिले से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर कलानौर तहसील में स्थित है, गांव की जनसंख्या तकरीबन 5000 के करीब है, गांव में 80% आबादी ब्राह्मण समुदाय की है जिनके ऊपर आरोप लगता है कि वह दलित समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव करते हैं। एवं वह सार्वजनिक मंदिरों में दलितों को प्रवेश नहीं करने देते साथ ही सार्वजनिक नलों से वह दलित समुदाय के लोगों को पानी भरने की अनुमति नहीं देते।

गांव में 10 से 12% लोग एससीएसटी समुदाय के रहते हैं जिनमें जाटव एवं बाल्मीकि जाति के लोग हैं। 7 से 8% आबादी ओबीसी समाज की है जिन्हें ब्राह्मणों के द्वारा ज्यादा कोई परेशानी नहीं होती। गांव में ब्राह्मणों के बहुसंख्यक होने के कारण दलितों को आए दिन सामाजिक तौर पर यातना झेलनी पड़ती है। 2 नवंबर को गांव के युवाओं के द्वारा हेमंत के अगुवाई में सामाजिक अधिकार के लिए ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया था जिसके बाद से ही मामला गरमाया हुआ है हालात अभी भी पूर्णतः सामान्य नहीं हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Haryana
Dalits
Dalit Rights
Dalit Discrimination
ROHTAK
untouchability
Casteism
caste politics

Related Stories

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

दलितों में वे भी शामिल हैं जो जाति के बावजूद असमानता का विरोध करते हैं : मार्टिन मैकवान

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

बागपत: भड़ल गांव में दलितों की चमड़ा इकाइयों पर चला बुलडोज़र, मुआवज़ा और कार्रवाई की मांग

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License