NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
क्या पनामा, पैराडाइज़ व पैंडोरा पेपर्स लीक से ग्लोबल पूंजीवाद को कोई फ़र्क़ पड़ा है?
साल-दर-साल ऐसे लीक सामने आते हैं लेकिन ऐसे भारी स्कैंडल पर भी सरकारों की क्या प्रतिक्रिया रही है? ज़्यादा कुछ नहीं।
बी. सिवरामन
09 Oct 2021
Pandora Papers

ग्लोबल पूंजीवाद की अग्रणी व नेतृत्वकारी पत्रिका, टाइम मैगज़ीन ने 4 अप्रैल 2016 को, पनामा पेपर्स लीक के समय, जो टिप्पणी की थी कि ‘‘पनामा पेपर्स पूंजीवाद के एक बड़े संकट का कारण बन सकता है” (“The Panama Papers could lead to capitalism’s great crisis”), पूर्णतया गलत साबित हो गया है। पांच वर्ष बीत जाने के बाद ऐसे भारी स्कैंडल पर सरकारों की क्या प्रतिक्रिया रही है? ज़्यादा कुछ नहीं।

जो बातें इन वर्षों में खुलकर सामने आई हैं, वे हैं:

* आईसीआईजे (ICIJ) के पनामा पेपर्स ने पहले 1 करोड़ 15 लाख संवेदनशील वित्तीय दस्तावेज लीक किये। ये 2016 की बात है और इसमें वैश्विक कॉरपोरेटों के ‘मनी लॉन्डरिंग’(money laundering) के रिकॉर्ड थे। 500 भारतीयों के नाम भी सामने आए, मस्लन अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, एयरटेल के मालिक सुनील मित्तल के पुत्र केविन भारती मित्तल और पीवीआर सिनेमा के मालिक, आदि।

* 2017 में पैराडाइज़ पेपर्स ने 70 लाख लोन समझौते, वित्तीय विवरण, ई-मेल और ट्रस्ट डीड लीक किये। इनमें 714 भारतीयों के नाम उजागर हुए, जिनमें शामिल थे केंद्रीय राज्य मंत्री, वित्त, जयंत सिन्हा, नीरा राडिया, पूर्व यूपीए वित्त मंत्री पी. चिदाम्बरम के पुत्र कार्ती चिदाम्बरम और सचिन पायलट।

* पैंडोरा पेपर्स लीक ने 3 अक्टूबर 2021 को 1 करोड़ 19 लाख रिकार्डों का खुलासा किया है, जिनमें 29,000 विदेशी बैंक खाते हैं जो 90 से अधिक देशों के वैश्विक धनाड्यों के अवैध धन का ब्योरा दे रहे हैं। यह तो पहले पनामा पेपर्स लीक के बैंक खातों के दुगुना से भी अघिक हैं। ज़ाहिर है ग्लोबल पूंजीवाद की ज़रख़रीदी  का स्तर ज़रा भी कम नहीं हुआ है। भारतीयों में सचिन तेंदुलकर, किरन मज़ुमदार शॉ, और अनिल अंबानी जैसे नामचीन लागों के नाम हैं।

पैसे क्यों निकाले जाते हैं?

पूंजीवादियों और अपराधियों में क्या समानता है? दोनों ही पैसा स्विस बैंक, हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, बहामाज़, केमन द्वीप और सेन्ट किट्स व मॉरिशस जैसे दर्जनों टैक्स हेवन्स ले जाते हैं। पूंजीखोर इन जगहों पर अपना पैसा मनी लॉन्डरिंग के लिए ले जाते हैं-यानी वे अपना काला धन, जिसका कोई हिसाब नहीं होता, इन देशों में ले जाते हैं क्योंकि यहां बहुत कम या शून्य टैक्स लगता है। तो ये लोग अपने पैसे को इन जगहों पर बेनामी शेल कम्पनियां पंजीकृत करके उनके द्वारा निवेश के रूप में दिखाते हैं ताकि यह काला धन अपने देश में सफेद धन में बदल जाए। अब भ्रष्ट राजनेताओं से लेकर, नौकरशाह, व्यापारिक घराने और अपराधी तक अपने काले धन को हवाला ट्रान्सफर के जरिये इन टैक्स हेवन्स में आराम से रख सकते हैं; इस तरह से वे बेइमानी से कमाया धन छिपाकर टैक्स से बच जाते हैं। ये सभी घरेलू और अंतराष्ट्रीय कानूनों को धता बताते हुए अपना धंधा जारी रखते हैं। मकिन्ज़े की एक रिपोर्ट बताती है कि इन टैक्स हेवन्स ने कुल 21 खरब या 21 ट्रिलियन डॉलर गलत किस्म की पूंजी को आकर्षित कर लिया है। यह लगभग यूएसए की जीडीपी के बराबर है!

पर आश्चर्य की बात यह है कि आईसीआईजे द्वारा किये गए खुलासे पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा रहा। खुलासा ठोस साक्ष्य पर आधारित है, क्योंकि जिन वित्तीय निवेश कम्पनियों ने इन भ्रष्ट ‘बड़े लोगों’ के पैसों को हैन्डल किया है, उनके रिकार्ड सामने आ चुके हैं। यदि पनामा पेपर्स के मामले में आईसीआईजे ने एक विदेशी वित्तीय निवेश कम्पनी मोसेक फॉन्सेका (Mossack Fonseca) के सारे डाटा को लीक किया था, तो पैराडाइज़ पेपर्स के मामले में एक ही कम्पनी ऐप्लबाई का डाटा सामने आया था। इस बार तो हद पार हो गई जब 14 अलग-अलग विदेशी वित्तीय-सेवा कम्पनियों के रिकॉर्डों का खुलासा हुआ है। ये स्विटज़रलैंड, सिंगापुर, साइप्रस, बेलिज़ (Belize)और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स में स्थित हैं।

एक शेल कम्पनी, यानी एक अनाम बेनामी कम्पनी जिसमें टैक्स से बचने हेतु पूंजी जमा की जा सकती है और ट्रान्सफर की जा सकती है, को आराम से ऑनलाइन पंजीकृत किया जा सकता है। यह किसी झूठे पते से किसी छोटे धन की मात्रा के लिए करना चंद मिनटों का काम है। इसी तरह इनमें से किसी भी टैक्स हेवन में अनाम खाता खुलवाना भी मिनटों में हो सकता है। न ही अपनी पहचान बताने की आवश्यकता है, न नाम और पता; यहां तक कि हस्ताक्षर तक करने की जरूरत नहीं है। मिनिमम बैलेंस बनाए रखने के रूप में यदि अच्छी खासी रकम निवेशित की जा सके, तो खाता खोला जा सकता है। खाता नम्बर और पासवर्ड मिल जाएंगे। फिर दसियों लाख डॉलर इस खाते में डाले या इससे किसी को भी हस्तांतरित किये जा सकते हैं; बस पासवर्ड इस्तेमाल करना है, और आप अनाम खातों में पैसा भेज सकते हैं, कोई सवाल नहीं पूछे जाएंगे।

टैक्स हेवन्स में धन भेजने के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं

समस्या छोटी-मोटी नहीं है। यद्यपि आईसीआईजे ने पैंडोरा पेपर्स के माध्यम से अवैध विदेशी खातों के एक छोटे हिस्से का खुलासा किया, जो हज़ारों में से केवल 14 निवेश कम्पनियों के माध्यम से चलाए जाते हैं, ऐसे खातों की असल संख्या 29,000 हैं! दोषी व्यक्ति भी कम नहीं हैं। कॉरपोरेट अपराध इतना व्सापक है कि इसका वृहद् मैक्रो-आर्थिक (macro-economic) प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए पनामा पेपर्स खुलासे की पूर्ववेला में एक निग्रानी करने वाली संस्था, ग्लोबल फाइनैंसियल इंटिग्रिटी ने पाया कि 2004-2013 में 7.8 ट्रिलयन डॉलर पूंजी विकासशील देशों से निकल गया और इन टैक्स हेवन्स में जमा हो गया। यह अमेरिका के जीडीपी के एक-तिहाई से अधिक है और भारत के जीडीपी का कि भी ठीक तीन गुना है। इससे बुरा तो यह है कि विकासशील देशों से यह बेइमानी का पैसा बाहर जाने की रफ्तार 6.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। यह इन देशों के जीडीपी विकास दर के दूना से भी अधिक है। यदि यही धन अपने देश में निवेशित किया जाता तो जीडीपी विकास दर किस कदर बढ़ सकता था।

बहरहाल, यह केवल काला धन नहीं है, इसका एक अच्छा खासा हिस्सा ड्रग ट्रेड, अवैध हथियारों के व्यापार, जबरन वसूली का पैसा, फिरौती और साइबर अपराध से कमाया गया पैसा है। बैंकों के उच्च अधिकारियों और शक्तिशाली लोगों के साथ इनका गठबंधन शीर्ष स्तर पर व्यवस्था को जोखिम में डाल सकता है।

बैंकों का क्या काम है? साधारण नागरिकों की बचत के पैसों को सुरक्षित रखना। पर हम देख रहे हैं वे कैसे ‘मनी लॉन्डरिंग’ में मदद करते हैं और उसे बढ़ावा देते हैं। यह बैंकों के उच्च अधिकारियों की अपराधियों के साथ संलग्नता के साथ होता है। यूरोप के सबसे बड़े बहुराष्ट्रीय बैंक एचएसबीसी (HSBC) को 2012 में मेक्सिको और कोलंबिया के ड्रग उत्पादक संघ की मनी लॉन्डरिंग करने के जुर्म में 1.92 अरब डॉलर जुर्माना भरना पड़ा। पर एचएसबीसी (HSBC) की कार्यवाही बन्द नहीं हुई। 21 सितम्बर 2020 को आईसीआईजे (ICIJ) ने खुलासा किया कि 2012 और 2017 के बीच एचएसबीसी ने तकरीबन 4.4 अरब डालर गलत पैसा ट्रान्सफर किया था। एचएसबीसी ही एकमात्र ऐसा बैंक नहीं है। आईएनजी, बार्कलेज़, लॉयड्स, और प्रख्यात स्विस बैंक क्रेडिट स्वीज़े को भी मनी लॉन्डरिंग के लिए जुर्माना भरना पड़ा था।

मकिन्ज़े रिपोर्ट कहती है कि विदेशों के टैक्स हेवन्स में जो 21 ट्रिलियन डॉलर पूंजी है उनमें से 12 ट्रिलियन डॉलर 50 टॉप बहुराष्ट्रीय बैंकों द्वारा स्थनांतरित किया गया है; ये वो बैंक हैं जिन्हें वित्तीय पूंजी के शोपीस समझा जाता है।

सरकारों की प्रतिक्रिया

आईसीआईजे ने गेंद सरकार के कोर्ट में डाल दी है। मीडिया के दबाव में विश्व भर की सरकारों ने कुछ एक्शन रूटीन अपनाया है। परंतु क्योंकि ये मामले सामाजिक व वित्तीय अभिजात्य वर्ग से संबंध रखते हैं, और ये वही वर्ग है जो सत्ता में होता है, ये कार्यवाहियां इतनी कठोर नहीं होतीं कि ऐसी गतिविधियों को रोक सकें। इस कपट में जरूर वर्ग की छाप दिखती है। यदि न्यूयॉर्क की किसी बस्ती में रहने वाला गरीब, अश्वेत ड्रग विक्रेता 10 डॉलर के ड्रग बेचता पाया जाए, उसे 25 साल का कारावास हो सकता है। पर एचएसबीसी के अधिकारी ड्रग माफिया संगठनों के लिए मनी लॉन्डरिंग करते हैं तो वे बैंक के शेयरधारकों के पैसे से जुर्माना भरके बच निकलते हैं!

अलग-अलग देशों के अलग-अलग टैक्स रेट होते हैं। इस कारण जिन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की शाखाएं एक से अधिक देश में हैं, वे टैक्स में इस अंतर का इस्तेमाल करके टैक्स भरने से बच जाते हैं, क्योंकि वे सबसे कम टैक्स रेट वाले देश में अपनी सम्पत्ति और कमाई दिखा देते हैं। यह काफी कानूनी तरीके से किया जाता है और इसे ‘ट्रान्सफर प्राइसिंग’ कहा जाता है। यह तथ्य 2017 में पैराडाइज़ पेपर्स के माध्यम से सामने आया था। इस समस्या के निदान के नाम पर जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों ने जुलाई 2021 में 15 प्रतिशत का घटा हुआ सामान्य कॉरपोरेट टैक्स रेट घोषित किया। इस कथा से जो सीख मिलती है वह है कि यदि कॉरपोरेट चोर टैक्स चोरी करते हैं तो सरकार जो सबसे बेहतर तरकीब सोच सकती है वह है टैक्स को घटाना! पर जी-20 देश ट्रान्सफर मूल्य निर्धारण नियम को दुरुस्त करने के लिए तैयार नहीं है।

भारत की अपराधिक न्याय व्यवस्था इतनी कमज़ोर है कि कोई भी कॉरपोरेट मालिक जेल नहीं जाता। यद्यपि व्यवस्था में नियंत्रण व संतुलन होना लाज़मी है, न्यायतंत्र ने अब तक ऐसे ‘मेगा स्कैंडल’ का स्वप्रेरणा से संज्ञान लेकर कार्यवाही नहीं की।

जब पनामा पेपर्स खुलासा सुर्खियों में आया था, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मल्टी-एजेंसी जांच का आदेश दिया था। पुनः जब पैराडाइज़ पेपर्स ने कई भारतीयों के नाम उजागर किये, उन्होंने उसी एजेंसी से, जो सीबीडीटी, ईडी, आरबीआई, टैक्स एजेन्सियों द्वारा नियंत्रित था, से जांच का आदेश दिया। 5 वर्ष बीत चुके हैं। इन जांचों से कुछ भी नहीं निकला। अब मोदी सरकार ने फिर से आदेश किया है कि उसी मल्टी-एजेन्सी जांच समिति द्वारा पैंडोरा पेपर्स की भी जांच की जाए।

मोदी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों आदित्य ठाकरे, ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक, डी के शिव कुमार, कनिमोझी, अखिलेश यादव, फारुख़  अब्दुल्ला, सुप्रिया सुले, टीटीवी दिनाकरन और तेजस्वी यादव के विरुद्ध आई टी विभाग व डीआरआई (Directorate of Revenue Intelligence) द्वारा रेड का आदेश देती है, ताकि उन्हें ब्लैकमेल किया जा सके। पर अब तक जिन 1200 से अधिक भारतीयों के नाम पनामा और पैराडाइज़ पेपर्स में आए हैं, उन्हें पकड़ा नहीं गया। राहुल गांधी की यह बात सही लगती है कि मोदी कॉरपोरेट दुनिया के अपने मित्रों और फाइनेंसरों को बचाने में लगे हैं।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

pandora papers
Pandora Papers Leak
ICIJ
capitalism
Global capitalism

Related Stories

वित्त मंत्री जी आप बिल्कुल गलत हैं! महंगाई की मार ग़रीबों पर पड़ती है, अमीरों पर नहीं

आर्थिक असमानता: पूंजीवाद बनाम समाजवाद

क्यों पूंजीवादी सरकारें बेरोज़गारी की कम और मुद्रास्फीति की ज़्यादा चिंता करती हैं?

पूंजीवाद के अंतर्गत वित्तीय बाज़ारों के लिए बैंक का निजीकरण हितकर नहीं

पैंडोरा पेपर्स: अमीरों की नियम-कानून को धता बताने और टैक्स चोरी की कहानी

लखीमपुर खीरी कांड, पैंडोरा पेपर और कोरोना अपडेट

मानवता को बचाने में वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं के बाहर भी एक राजनीतिक भूमिका है

हम, अपने लिए, शासकों द्वारा निर्धारित भविष्य से इनकार करते हैं : कार्ल मार्क्स जयंती पर विशेष

पूंजीवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के बिना अंबेडकर के भारत का सपना अधूरा

आईएमएफ का असली चेहरा : महामारी के दौर में भी दोहरा रवैया!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License