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भारत
राजनीति
एनएमडीसी का सफ़र : कच्चे लोहे की खुदाई से स्टील-निर्माता तक 
इस बीच बीजेपी शासित केंद्र और कर्नाटक सरकार इस कोशिश में लगी है कि डोनिमलाई गतिरोध को दूर किया जा सके।
रबींद्र नाथ सिन्हा
28 Jan 2020
NMDC’s Trajectory: From Ore Miner
छवि उपयोग मात्र प्रतिनिधित्व के लिए। सौजन्य: द फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस

कोलकाता: राष्ट्रीय खनिज विकास निगम लिमिटेड (एनएमडीसी), प्रशासनिक मंत्रालय के लिहाज़ से केंद्रीय इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत आता है। यह देश का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक विक्रेता है, जिसने अब जाकर इस बात पर ध्यान देना शुरू किया है कि पिछले 15 महीने से डोनिमलाई को लेकर जो गतिरोध बना हुआ है, उसके तत्काल राजनीतिक समाधान की आवश्यकता है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मंत्रालय का मानना है कि ऐसे में राजनीतिक पहल अत्यावश्यक है, क्योंकि केंद्र और कर्नाटक दोनों में ही भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकारें हैं।

एक तथ्य स्पष्ट होकर सामने आ रहा है कि नई दिल्ली और बेंगलुरु में अधिकारियों के स्तर पर चलाए गए प्रयासों से इस समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है। लेकिन इस समय जो दिलचस्प बात देखने को मिल रही है, वह यह है कि राजनीतिक स्तर पर इसके समाधान की इच्छा का प्रदर्शन करते हुए इस्पात मंत्री  धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में कर्नाटक के मुख्य सचिव विजय भास्कर से बातचीत की पहल की है, और उन्हें डोनीमलाई गतिरोध के चलते इसके प्रमुख हितधारकों- एनएमडीसी, केंद्र सरकार और कर्नाटक पर पड़ने वाले असर से अवगत कराने का काम किया है।

बेल्लारी जिला जो रेड्डी बंधुओं के दबदबे के लिए जाना जाता है, वहाँ पर डोनीमलाई से सात मिलियन टन वार्षिक क्षमता वाले लौह अयस्क का उत्पादन कार्य 3 नवंबर  2018 से ठप पड़ा है। कंपनी अपने डोनीमलाई से संबद्ध ग्राहकों की ज़रूरतों की आपूर्ति अपने कुमारस्वामी खदान से जो कि पास में ही है, करती आ रही है।

प्रहलाद जोशी, जिनके पास केंद्रीय कोयला और खनन मंत्रालय [लौह अयस्क सहित] का कार्यभार है, कर्नाटक से ही आते हैं। इस्पात मंत्रालय में इस बात की उम्मीद की जा रही है कि मुख्य सचिव विजय भास्कर अपनी ओर से इस बात की पहल करेंगे कि जोशी, कर्नाटक के खनन मंत्री सी चंद्रकांत पाटिल और निश्चित तौर पर प्रधान को बातचीत में शामिल कर इस समस्या के निपटारे के लिए किसी फार्मूले को निकालने की कोशिश करें।

इस सम्बन्ध में न्यूज़क्लिक की ओर से पाटिल जी से पूछे जाने पर कि भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र में जहां पर खनन मंत्री भी कर्नाटक से ही हैं- और भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार इस सम्बन्ध में कोई समाधान निकालने में सक्षम क्यों नहीं हो पा रही है, आपका कहना था “मैं आपके प्रश्न से सहमत हूँ। हमें इस विषय पर गंभीरता से प्रयास की जरूरत है। हमारे मुख्य सचिव इस कोशिश में लगे हैं। किस प्रकार से हमें अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो, हमारे लिए यह प्रश्न महत्वपूर्ण है। हम अपनी इस प्रमुख माँग के लिए कुछ त्याग करने के लिए भी तैयार हैं। मुझे उम्मीद है कि हम इस मसले का हल निकाल लेंगे।”

न्यूज़क्लिक द्वारा कर्नाटक के खनन मामलों के मुख्य सचिव महेश्वर राव से इस स्थिति के बारे में नवीनतम जानकारी के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था कि इस मुद्दे को एनएमडीसी की ओर से अपने प्रशासनिक मंत्रालय के माध्यम से केंद्रीय प्रशासनिक मंत्रालय में संशोधन अधिकारी (रिविजनरी ऑफिसर-आरओ) के पास भेज दिया गया है। एनएमडीसी ने यह कदम तब उठाया है जब राज्य सरकार की ओर से 17 अगस्त  2019 को खदान के पट्टे के विस्तार की मंजूरी को निरस्त कर दिया गया था, और खदान के ब्लॉक को एक निजी क्षेत्र की पार्टी को नीलाम करने का फ़ैसला लिया गया।

इस मामले का निपटान कर रहे कार्यालयों से आगे की पूछताछ में पता चला है कि आरओ (RO) की ओर से एक आदेश जारी किया गया था, जिसमें राज्य सरकार को 17 अगस्त, 2019 के आदेश को और प्रस्तावित नीलामी को “ठंडे बस्ते” में डाल देने के लिए कहा गया था। 21 अगस्त  2019 को आरओ के समक्ष होने वाली अगली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से कोई अधिकारी उपस्थित नहीं था। इसके बाद कोई हलचल देखने को नहीं मिली है, क्योंकि राज्य सरकार ने आरओ के समक्ष प्रतिपक्ष में कोई हलफ़नामा दायर नहीं किया है।

कर्नाटक-बनाम-एनएमडीसी संघर्ष के इस चरण से पहले कम्पनी की ओर से प्रीमियम की माँग के राज्य के फैसले को (लौह अयस्क के औसत बिक्री मूल्य के 80% के बराबर, जैसा कि भारतीय खनन ब्यूरो (आईबीएम) द्वारा प्रकाशित किया गया) उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने राज्य के आदेशों पर अपनी रोक लगा दी थी।

इस प्रकार जिस तरह से घटनाक्रम देखने को मिले हैं वह इस बात की पुष्टि करता है कि किस प्रकार से पहले पहल राज्य सरकार ने बिना किसी “प्रीमियम” की शर्त के लीज को अगले 20 साल तक के लिए विस्तारित करने का फैसला लिया था। फिर इसके बाद इसने एनएमडीसी को प्रीमियम चुकाने का आदेश दिया, और जब उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो राज्य सरकार ने पट्टे की अवधि के विस्तार को रद्द कर खदान ब्लॉक की नीलामी का फैसला ले लिया। फिलहाल क़ानूनी तौर पर एनएमडीसी की स्थिति मज़बूत दिखाई देती है। ग़ौरतलब है कि राज्य सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अवकाश की याचिका नहीं डाली है।

इस गतिरोध को तोड़ने में सफलता प्राप्त करने के नवीनतम दौर के प्रयासों में कर्नाटक को ही झुकना पड़ेगा। उसे खदान को अपने हिटलरशाही फ़रमान और उसे किसी निजी क्षेत्र के हाथों नीलाम करने से पीछे हटने को बाध्य होना पड़ेगा। इसका सीधा मतलब है कि उसे पट्टे की अवधि के लिए अतिरिक्त कमाई की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि मुख्य सचिव की ओर से प्रधान, जोशी और पाटिल के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए क्या ज़मीन तैयार की जाती है, और क्या एनएमडीसी को मौजूदा प्रावधानों के तहत लेवी देने के लिए "कुछ हद तक उदार" होने के लिए राजी किया जा सकता है। न्यूजक्लिक के साथ बातचीत के दौरान राज्य खनन मंत्री ने रॉयल्टी का उल्लेख किया है।

जहाँ एक ओर डोनिमलाई को लेकर नकारात्मकता बनी हुई है, वहीँ दूसरी ओर एनएमडीसी ने एक सकारात्मक विकास की ओर कदम बढ़ा दिया है जो उसके दशकों पुरानी अयस्क खानों के विक्रेता की छवि को बदलकर रख देने वाला साबित होने जा रहा है। अगले छह महीने से एक वर्ष के दौरान, इसके खनन के साथ ही इस्पात निर्माता के रूप में उभर आने की आशा की जा रही है, क्योंकि प्रबंधन ने छत्तीसगढ़ के नगरनार में अपनी तीन मिलियन टन क्षमता के एकीकृत स्टील प्लांट (आईएसपी) को  चरणबद्ध रूप से आरंभ करने का काम शुरू कर दिया है। क्योंकि यह इलाका ख़ास तौर पर नक्सल प्रभाव क्षेत्र में पड़ता है, इसलिये उसके कारण इस परियोजना में कहीं अधिक समय और लागत लग जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इस परियोजना की अंतिम लागत 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की होने जा रही है, जो कि इस समय के हिसाब से 5,000 करोड़ रुपये या इससे अधिक के होने की संभावना है।

नक्सल प्रभाव के संदर्भ में इस बात का उल्लेख करना आवश्यक रहेगा कि कंपनी के दो प्रमुख लौह अयस्क परिसर - बचेली और किरंदुल भी दांतेवाड़ा जिले के बैलाडीला इलाके में पड़ते हैं, और जो अक्सर नक्सल हमलों और मुठभेड़ों के चलते सुर्ख़ियों में छाया रहता है। जिन खतरों की पहचान की गई है, उनमें से इस बात का उल्लेख आधिकारिक रिपोर्टों में किया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने इस बात को इंगित किया है कि प्रबंधन इस आधार को लेकर आगे बढ़ रहा है कि स्टील टाउनशिप के बन जाने से अंततः इस इलाके के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका साबित होने जा रही है, और इस इलाके को अशांत परिस्थितियों से मुक्ति मिलेगी जो नागरिक प्रशासन के लिए एक चुनौती बनी हुई हैं।

नगरनार आईएसपी ईकाई मूल्य-वर्धित हॉट रोल्ड कॉइल्स / शीट / प्लेट्स जैसे फ्लैट उत्पादों का उत्पादन करेगा और इसमें एलपीजी सिलेंडर और ऑटोमोटिव ग्रेड के साथ सिलिकॉन स्टील के उत्पादन को भी शामिल करेगा। सभी मुख्य उत्पादन सुविधाओं को यूक्रेन, चेक गणराज्य, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, इटली और जर्मनी से संयंत्र और उपकरण के साथ लाया जा रहा है। इसके ज़रिये 4,000 लोगों के लिए प्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर मुहैय्या होंगे, और इसमें प्राथमिकता उन लोगों को दी गई है जिनकी जमीनें अधिग्रहित की गई हैं। इसकी सहायक इकाइयों, डाउनस्ट्रीम इकाइयों और ऐसे संस्थान जो विभिन्न प्रकार की सेवाएं देंगे, के ज़रिये लोगों को कहीं बड़ी संख्या में अप्रत्यक्ष रोज़गार मिलने को संभव बनाया जा सकेगा।

इस्पात निर्माण की प्रक्रिया में अंततः एनएमडीसी को कोयले के खनन क्षेत्र में भी प्रवेश करना होगा। दिसम्बर माह के दौरान केंद्रीय कोयला मंत्रालय की ओर से कंपनी को कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम 2015 की धारा 5 (1) के तहत दो कोयला खदानों का आवंटन कर दिया गया है। ये दो कोयला ब्लॉक रोहने और उत्तर तोकिसुद ब्लॉक झारखंड के हज़ारीबाग़ ज़िले में स्थित है। रोहने से जो कोकिंग कोयला निकलेगा, वह स्टील निर्माण के काम आता है। इसके साथ-साथ कंपनी कोल वाशरी स्थापित करने पर विचार करेगी। उत्तर तोकिसुद गैर-कोकिंग कोयले का उत्पादन करेगा।

कंपनी की ओर से 10 जनवरी को अपने चार लौह अयस्क खनन पट्टों- डिपॉजिट 5, 10, 14 और 14 एनएमजेड को 2015 से 2035 तक 20 वर्षों के लिए दस्तावेज तैयार कर लिए गए हैं। इसका पंजीकरण 13 जनवरी को कर लिया गया था। डीड के निष्पादन और पंजीकरण में स्टाम्प ड्यूटी और फीस के रूप में छत्तीसगढ़ सरकार को 387 करोड़ रुपये जमा करा दिए गए हैं। दिसंबर के तीसरे सप्ताह में छत्तीसगढ़ सरकार ने बैलाडीला इलाके की चार खदानों के लीज की अवधि को आगे बढ़ा दिया है, जिनकी अवधि अगले मार्च तक थी। अब इसके पास कुल पाँच खदानें हैं। एक खदान के लीज की अवधि 2017 में बढ़ा दी गई थी।

इस बीच कंपनी को कर्नाटक में कुमारस्वामी लौह अयस्क खदानों के विस्तार के लिए आईबीएम की मंज़ूरी मिल गई है, जो मौजूदा सात मिलियन टन से 10 मिलियन टन प्रति वर्ष तक विस्तारित करने के लिए मंज़ूर की गई है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

NMDC’s Trajectory: From Ore Miner to Steel-maker

National Mineral Development Corporation Ltd
Union Steel Ministry
Donimalai impasse
karnataka
Chhattisgarh Govt
Iron ore
Steel

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