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भारत
राजनीति
नागालैंड: विपक्षहीन राजनीति के सबक़
नागालैंड में एक ऐसी साझा सरकार है जिसमें सदन के भीतर कोई विपक्ष नहीं है। हालांकि इस राज्य के बारे में यह भी सच है कि इसकी समस्याएं भले ही स्थानीय हों लेकिन उनका समाधान हमेशा केंद्रीय सरकार के पास होने के दावे किए गए हैं।
सत्यम श्रीवास्तव
07 Dec 2021
Nagaland
नागालैंड में नागरिकों की हत्या के विरोध में प्रदर्शन। फोटो साभार: पीटीआई

समग्र भारतवर्ष से बहुत दूर एक शेष भारत है जो इस उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर में बसा है और जिसे कई दफा बाज़ कारणों से सात बहनें कहा जाता है। ये सात बहनें केवल तभी समग्र भारतवर्ष के अखबारों में खुद को दर्ज़ करा पाती हैं जब इनके साथ आए दिन होने वाली हिंसा का स्वरूप काफी बड़ा हो जाता है। काफी बड़ा मतलब इतना जितना हिमालय में बसे इन छोटे छोटे राज्यों के भूगोल में समा नहीं सकता।

अभी बहुत वक़्त नहीं बीता जब इन सात राज्यों में से एक राज्य त्रिपुरा में साम्प्रादायिक हिंसा बड़े पैमाने पर हुई और तभी इसकी खबरें हिंदुस्तान के अखबारों और न्यूज़ चैनलों में शाया हो सकीं। हालांकि आज वहाँ की स्थिति है यह जानने के लिए इस हिंदुस्तान के पास कोई प्रामाणिक माध्यम नहीं है। इसकी खबरें अब इसी की तरह लापता हैं।

नागालैंड, अब खबरों में है। इसकी वजह फिर वही है कि इस छोटे से राज्य में 4 दिसंबर को कम से कम 14 नागरिकों की 'राजकीय हत्याएं' हुईं हैं। जिनकी हत्या नहीं हो सकी वो गंभीर रूप से ज़ख़्मी हैं और उसी सेना के अस्पतालाओं में उनका इलाज़ चल रहा है।

4 दिसंबर के बाद से नागालैंड इस मैन लैंड में कुछ सुना सुना सा शब्द बन गया है। भारत की संसद में भी इसकी गूंज सुनाई दी है।

4 दिसंबर को जिन नागरिकों की हत्या सेना ने की है उसे संसद में महज़ एक गलती होने जितना महत्व देश की गृहमंत्री ने दिया है। गलतियों पर जिस तरह अफसोस जताया जाता है उसे जता दिया गया है। गलतियाँ क्यों हुईं यह जानने के लिए रस्मी तौर पर एक विशेष जांच समिति का गठन कर दिया गया है जिसकी रिपोर्ट अगले एक महीने में होगी। हमें आश्वस्त रहना चाहिए कि तब तक नागालैंड हमारे ज़हन से उतर चुका होगा और हमें याद भी रहेगा कि इन हत्याओं के कारणों और उद्देश्यों की पड़ताल के लिए देश के गृह मंत्रालय द्वारा गठित की गयी समिति ने क्या खोजा है?

बहरहाल, नागालैंड अपनी अन्य छह बहनों से एक सी नियति साझा करते हुए भी इस वक़्त एक मायने में न केवल पूर्वोत्तर राज्यों में बल्कि पूरे देश में बहुत अलग है कि यहाँ की सरकार में आधिकारिक रूप से कोई विपक्ष नहीं है। विपक्ष हीन सरकार अपने नागरिकों के साथ क्या बर्ताव कर सकती है, नागालैंड इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है।

नागालैंड विधानसभा की स्थिति पर एक नज़र डालें तो हम पाएंगे कि 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में नागालैंड के लोगों ने किसी भी एक राजनैतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया था। नागालैंड में चार प्रमुख राजनैतिक दल हैं जिनमें नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी), नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ़), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस इस राज्य की विधानसभा में समय समय पर अपनी सरकारें बनाते रहे हैं। 2018 में कांग्रेस को इस राज्य ने पूरी तरह नकार दिया। मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। सबसे ज़्यादा विधायक एनपीएफ के पास है जिनकी संख्या 25 है। इस दल को प्राय: नागा समुदायों की आकांक्षाओं के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है जो भारत जैसे गणराज्य के साथ टकराने का माद्दा रखता है। दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर 2018 के चुनावों में लोगों ने एनडीपीपी को चुना और इसे 21 विधायक दिये। भाजपा ने अच्छी बढ़त लेते हुए 12 विधायकों के साथ 2018 में अपनी सशक्त मौजूदगी इस राज्य में बनाई। इसके अलावा 60 विधायकों की इस विधानसभा में 2 निर्दलीय विधायकों को जनता ने चुना।

अपनी विशिष्ट राजनीतिक परिस्थितियों के कारण एक व्यावहारिक रास्ता निकालने की कोशिश में सबसे बड़े दल ने दूसरे और तीसरे बड़े क्रम के दलों की संयुक्त सरकार में अपनी सकारात्मक हिस्सेदारी करने पर सहमति बनाई। इसे स्वाभाविक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन हम वाकई इतना कम इस राज्य के बारे में जानते हैं कि जो वृहत भारत के लिए असामान्य लगता है वह कैसे इस विशिष्ट परिस्थितियों के राज्य के लिए सामान्य हो सकता है, समझना मुश्किल है।

फिलहाल नागालैंड में एक ऐसी साझा सरकार है जिसमें सदन के भीतर कोई विपक्ष नहीं है। हालांकि इस राज्य के बारे में यह भी सच है कि इसकी समस्याएँ भले ही स्थानीय हों लेकिन उनका समाधान हमेशा केंद्रीय सरकार के पास होने के दावे किए गए हैं।

भारत के संविधान में प्रदत्त राज्यों की स्वायततता के नाम पर इन राज्यों को एक ऐसा कानून मिला है जो राज्य के नागरिकों की स्वायत्ता का बलात अपहरण करते हुए राज्य की स्वायत्ता स्थापित करता है।

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) कानून (AFSPA- अफस्पा) देश के गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। अपने अमल में आने के साथ ही यह कानून विवादित रहा है। इसमें जो विशिष्ट शक्तियाँ निहित हैं वो इतनी विशिष्ट हैं कि महज़ नागरिकों को देखते ही गोली मारी जा सकती है।

राज्य के नागरिकों को अनिवार्यतया अपराधियों के रूप में देखे जाने की सख्त पैरवी करने वाला यह कानून राज्य की स्वायत्तता और सरहदों की सुरक्षा करने में कितना कारगर साबित हुआ है कहना कठिन है लेकिन इस कानून की वजह से कितने निर्दोष नागरिकों की हत्याएं हुईं हैं उनका आंकड़ा भयभीत करने वाला है।

बहरहाल हत्याओं का सिलसिला सेना द्वारा इंसान को पहचानने में हुई महज़ एक चूक के रूप में इन राज्यों की नियति में दर्ज़ होते जा रहा है।

नागालैंड की विपक्षहीन विधानसभा के मुखिया नीफिऊ रियो ने 4 दिसंबर को हुई 14 नागरिकों की हत्याओं के बाद मजबूती से फिर उसी मांग को उठाया है जिसके इर्द-गिर्द इन राज्यों की राजनीति कई दशकों से संचालित हो रही है कि अब यहाँ से सश्स्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) कानून यानी अफस्पा हटाने की मांग को दोहराया है।

उल्लेखनीय है कि इस समय केंद्र में भाजपा की सरकार है जो नागालैंड में भी सरकार में शामिल है। भाजपा के लिए आदर्श स्थिति भी है कि यह राज्य समूल रूप से कांग्रेसमुक्त है। साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री रियो की आवाज़ में इस राज्य के सभी राजनीतिक दलों की आवाज़ शामिल है। यानी पूरा राज्य ही यह मांग कर रहा है कि यहाँ से इस दुर्दांत कानून को हटाया जाये। यह भाजपा के लिए एक आदर्श स्थिति है कि वह विपक्षमुक्त विधानसभा की इस मांग को मान ले।

हालांकि नागालैंड एक स्पष्ट संदेश भी इस देश को देना चाहता है जो देश में विपक्ष को लगातार कमजोर किये जाने की परिणति में समझा जा सकता है। इस देश में विपक्ष को न केवल राजनीतिक रूप से कमजोर किया जा रहा है बल्कि तमाम माध्यमों से उसे जनता की नज़रों से ओझल किए जाने के आक्रामक अभियान भी चलाये जा रहे हैं।

मौजूदा सरकार जब साढ़े सात पहले सत्ता में आने के लिए अपना प्रचार अभियान चला रही थी तब उसका एक प्रमुख नारा कांग्रेसमुक्त भारत बनाने का ही रहा है। कांग्रेस जो तब और आज सत्ता का प्रमुख विपक्ष है लोगों की नज़रों से इस कदर उतारा जा चुका था कि इस नारे में निहित व्यंजनाओं को समझे बिना देश के लोगों ने इस नारे से अपनी सहमति जताई और कांग्रेस को अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया।

कांग्रेस मुक्त भारत का अभियान कब और कैसे विपक्ष मुक्त भारत में बदलने लगा इस देश को पता ही नहीं चला। जब चला या चलेगा तब तक बचा खुचा विपक्ष नागालैंड की भांति सरकार के साथ गठजोड़ कर चुका होगा और जिस तरह एक राज्य आज अपनी विधान सभा में विपक्ष हीन हो चुका है कल संसद की तस्वीर भी इससे जुदा नहीं होगी।

नागालैंड ने विपक्षहीनता की स्थिति का चयन किया है। इसके पीछे इरादा था अपने राज्य को शांतिमय बनाना जो कभी उग्रवाद का एक गढ़ माना जाता रहा है। उग्रवाद के उभार के ऐतिहासिक संदर्भों और मौजूदा परिस्थितियों को एक झटके में मुख्य धारा की संसदीय राजनीति ने किनारे लगाते हुए अचानक राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित करने के पवित्र लेकिन संदिग्ध उद्देश्यों से एक ऐसी सरकार बनाने की पहल ले ली जहां कोई भी राजनीतिक दल विपक्ष की भूमिका का निर्वाह नहीं करेगा बल्कि सब के सब सरकार में प्रत्यक्ष भागीदारी करेंगे। इस तरह जहां सहमति की एक विराट व्यावहारिक परिस्थिति का निर्माण तो हुआ लेकिन लोकतन्त्र की अनिवार्य शर्तों और अर्हताओं को धता बता दिया गया।

काश यह प्रयोग वाकई अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर पाता। नागालैंड वाकई शांति की दिशा में उठाए गए इस अभूतपूर्व और अप्रत्याशित परिदृश्य से लाभान्वित होता। लेकिन स्थिति इसके उलट दिखलाई दे रही है। नागा पीपल्स फ्रंट के साथ केंद्र सरकार द्वारा किए गए तमाम वादे और संधियाँ जहां झूठ साबित हो रही हैं वहीं राज्य की जनता अपने लिए खुद की प्रतिनिधि आवाज़ की तलाश में असहाय पा रही है।

(लेखक डेढ़ दशकों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Nagaland Killings
Nagaland
Mistaken Identity
Assam Rifles
NSCN
Nagaland Tribes
Hornbill Festival
Nagaland Students’ Federation
Neiphiu Rio

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