NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
एक वक़्त था जब कुवैत भारत का अहम साझेदार था
कुवैती लोग अपने उद्यम, लचीलेपन और व्यापारिक व साख तंत्र पर पकड़ रखने में राजस्थान के मारवाड़ियों से काफ़ी मिलते-जुलते नज़र आते हैं।
एम. के. भद्रकुमार
08 Oct 2020
एक वक़्त था जब कुवैत भारत का अहम साझेदार था

कुवैत में अमीर शेख सबाह अल-सबाह की सत्ता खत्म हो चुकी है। उनके इस दुनिया से अलविदा कहने के बाद कुवैत का राजनीतिक परिदृश्य बदल पूरी तरह बदला गया है। जो लोग खाड़ी देशों को केवल दो पक्षों- यूएई और सऊदी अरब की नज़र से देखते हैं, कुवैत का बदलता परिदृश्य उन्हें याद दिलाता है कि खाड़ी क्षेत्र ना केवल अपने भूगोल में, बल्कि अपनी राजनीति और धर्म में भी काफ़ी विविधताएं रखता है।

कुवैत अपनी धार्मिक सहिष्णुता और बहुलवाद के अपने अनोखे ढांचे के साथ-साथ सहमति वाली राजनीति के चलते बहुत विशेष है। कुवैत की करीब़ 35 फ़ीसदी आबादी शिया है। कुवैत में विचारशील मंच के तौर पर चुनी हुई एक संसद है। जिसके चलते यह एक संघर्षग्रस्त इलाके में अपने स्थायित्व के लिए अलग नज़र आता है।

इसलिेए यह समझने में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि क्यों ईरान के विदेश मंत्री जावेद ज़रीफ़ खुद राष्ट्रपति हसन रुहानी का संदेश लेकर नए अमीर नवाफ अल-अहमद अल-जाबेर अल-सबाह के पास पहुंचे। संदेश में दोनों देशों के मित्रवत् संबंधों और क्षेत्र में स्थायित्व के साथ-साथ, सुरक्षा स्थापित करने में आपसी सहयोग का संदेश दिया गया था।

मध्यपूर्व में कई दशकों से शिया-सुन्नी का विभाजन हिंसा का आधार रहा है। यह विभाजन कुवैत में भी है। लेकिन इसके बावजूद देश के 35 फ़ीसदी अल्पसंख्यक शिया खुले तौर पर अपने विश्वासों का पालन करते हैं। उन्हें अपने धार्मिक संबंधों को छुपाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। यह वह सहिष्णुता है, जो खाड़ी देशों में बिरले ही देखने को मिलती है (एक ओमान के अपवाद को छोड़कर)। कुवैत ने एक राष्ट्रीय एकता कानून पास किया है, जो "पंथगत विभाजन को उकसावा" देने को प्रतिबंधित करता है।

इस तरह के मानवीय गुण को प्रोत्साहन की एक वज़ह यह भी हो सकती है कि धार्मिक कलह व्यापार के लिए खराब होती है और कुवैत "व्यापार" से ही उड़ान भरता है। कुवैती लोग अपने उद्यम, लचीलेपन और व्यापारिक-साख तंत्र पर पकड़ रखने में राजस्थान के मारवाड़ियों से काफ़ी मिलते-जुलते नज़र आते हैं। सत्ताधारी अल-सबाह परिवार के कुवैती शिया उद्यमी परिवारों से कई शताब्दी पुराने नज़दीकी संबंध है। यहां जब हम कुवैती शिया उद्यमी परिवारों की बात करते हैं, तो हमारा मतलब उन ईरानी शिया परिवारों से होता है, जो कई पीढ़ियों से कुवैत में रहने के बावजूद भी फारसी में बात कर सकते हैं।

कुवैत सऊदी अरब से पूरी तरह अलग है, जहां कुल आबादी के 10 से 15 फ़ीसदी शियाओं को राज्य निशाना बनाता है। वहां उन्हें वहाबी राजतंत्र के शासन की असहिष्णुता के चलते दबकर रहना पड़ता है।

पुराने कुवैती अमीर सऊदी अरब की नीतियों को लेकर बहुत आशंकित थे। उन्हें डर था कि सऊदी अरब की नीतियों के चलते उनके जैसे छोटे देशों को जंग का सामना करना पड़ेगा, जबकि यह देश ऐसा बिलकुल नहीं चाहते। उन्होंने सावधानी से अरब दुनिया के आंतरिक झगड़ों और विवाद से दूरी बनाई। बता दें इन झगड़ों में हाल में सऊदी और अमीरात द्वारा कतर में सत्ता परिवर्तन की साजिश, सीरिया में असद सरकार को उखाड़ने के लिए खूनी संघर्ष और यमन-लीबिया में सऊदी-अमीरात की विस्तारवादी नीतियों जैसे मुद्दे शामिल हैं।

इस बात में कोई शक नहीं है कि पुराने अमीर की स्वतंत्र क्षेत्रीय नीतियों के चलते कुवैत और ईरान में दोस्ताना संबंध बने रहे। यह संबंध ऐसे दौर में स्थायी रहे, जब अमेरिका के नेतृत्व में क्षेत्रीय रणनीति में ईरान के अलग-थलग किया जा रहा था। ईरान कुवैत के इस रवैये की तारीफ़ करता है। इस बात की बहुत संभावना है कि नए अमीर नवफ़ अल-अहमद अपने पूर्ववर्ती शासक की नीतियों के साथ आगे बढ़ेंगे।

इसकी एक वज़ह जरूरत है, लेकिन दूसरी वज़ह कुवैती संसद की तेजतर्रार भूमिका है। संसद कुवैत की नीतियों में तार्किकता लाती है और देश की राजनीतिक ताकत को दिशा देती है। मतलब, कुवैत भले ही वेस्टमिंस्टर प्रवृत्ति का संसदीय लोकतंत्र ना हो, लेकिन देश में लोकतांत्रिक विकल्पों, बहुलतावाद और आजादी पर्याप्त मात्रा में है।

कुवैत के संविधान के मुताबिक़ राष्ट्रीय विधानसभा (संसद) में चार साल में चुनाव होने होते हैं। अगर कुवैत का अमीर या संवैधानिक कोर्ट चुनी हुई सभा को भंग कर देता है, तो चुनाव पहले भी हो सकते हैं। इस चुनावी तंत्र में वयस्क मताधिकार का प्रयोग किया जाता है और राजनीतिक समूहों के साथ साथ संसद में मतदान समूह बनाए जाने की अनुमित दी जाती है, हालांकि कानून के ज़रिए राजनीतिक दलों को मान्यता नहीं दी गई है।

2016 में हुए चुनाव में सलाफियों और मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रत्याशियों ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए 50 में से 24 सीटें हासिल, इस दौरान एक महिला प्रत्याशी ने भी जीत दर्ज की थी! साफ़ है कि कुवैत की आंतरिक स्थिति, जिसके तहत मीडिया और जनता के मत को भी स्वतंत्रता प्राप्त है, वह यूएई की तरह इज़रायल के साथ संबंधों को सामान्य नहीं होने देगी।

इन चीजों के मद्देनज़र हमें मोदी सरकार द्वारा खाड़ी देशों में अपने मित्रों और साझेदारों का चुनाव अजीबो गरीब प्राथमिकता वाला लगता है। मोदी सरकार ने खाड़ी देशों में अपने प्राथमिक साझेदारों के तौर पर तीन सबसे ज्यादा प्रतिक्रियावादी और दमनकारी- सऊदी अरब, यूएई और बहरीन की सरकारों को चुना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इन सभी तीन देशों की यात्रा की है, लेकिन उन्होंने कुवैत और ओमान को छोड़ दिया। जबकि यह वह खाड़ी देश हैं, जो राजनीतिक, सांस्कृतिक और सभ्यता के माहौल के हिसाब से भारत के सबसे ज़्यादा पास हैं। अपनी राजनीतिक सहिष्णुता और बहुलवाद के चलते, कुवैत और ओमान किसी दिन बनने वाले नए मध्यपूर्व के लिए उम्मीद की किरण हैं।

मोदी सरकार की खाड़ी नीतियों में रास्ते से आया भटकाव समझ से परे है। यह अतार्किक है। दिल्ली को कुवैत एक विशेष दूत भेजकर पुराने अमीर, जिन्हें अक्सर "कूटनीति और मानवता का राजकुमार" कहा जाता था, उनकी मौत पर संवेदनाएं व्यक्त करनी चाहिए थीं।

जिन विदेशी नेताओं ने हाल में कुवैत की यात्रा की है, उनमें जॉर्डन के राजा अबदुल्लाह, ओमान के सुल्तान हैथम, बहरीन के राजकुमार सलमान बिन हमद अल खलीफ़ा, इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सीसी और इराक के राष्ट्रपति बरहम सालिह शामिल हैं।

ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स ने संवेदनाएं व्यक्त करने के लिए रविवार को कुवैत की यात्रा की। अमेरिका के रक्षा सचिव मार्क एस्पर भी ट्रंप प्रशासन के प्रतिनिधि के तौर पर कुवैत पहुंचे थे। 

मुझे 1991 में खाड़ी युद्ध खत्म होने के महज एक हफ़्ते के बाद कुवैत मामलों का प्रभारी (चार्ज'अफेयर्स) बनाया गया था। यह नियुक्ति विदेश मंत्री आई के गुजराल द्वारा संसद को दिलाए गए भरोसे के बाद की गई थी। उस वक़्त कुवैत में रहने वाले प्रवासियों में से आधे भारतीय थे। 

कुवैत भारत के लिए संबंधों में इतनी प्राथमिकता रखता था कि उस वक़्त चंद्रशेखर सरकार में उद्योग मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी विशेष प्रतिनिधि के तौर पर निर्वासन से वापस लौट रही कुवैत सरकार का स्वागत करने पहुंचे थे। उस वक़्त हार के बाद पलटते इराकी सैनिकों ने बड़े तेल कुओं में आग लगा दी थी। पूरा देश कर्फ्य़ू के साये में था। 

हाल के आंकड़ों में बताया गया है कि जब कोरोना महामारी का दौर शुरू हुआ था, उस वक़्त तक 43 लाख की आबादी वाले कुवैत में 14.5 लाख भारतीय में रह रहे थे। यह कुल प्रवासियों की आधी संख्या है। यह आंकड़े अपने-आप में गवाही देते हैं।

नई दिल्ली से तिरुवनंतपुरम जाने में जितना वक़्त लगता है, उससे कम वक़्त कुवैत पहुंचने में लगता है। अब भी देर नहीं हुई है, मोदी सरकार को तुरंत अपनी गलतियों को ठीक करना चाहिए। दुख में चल रहे किसी परिवार को सांत्वना देना पुराना भारतीय रिवाज है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Once Upon a Time, Kuwait was a Key Partner for India

Kuwait
Saudi Arabia
UAE
Sabah al-Sabah
Hassan Rouhani
Middle East
Shia
Sunni
Gulf

Related Stories

ज़ी न्यूज़ के संपादक को UAE ने अपने देश में आने से रोका

फ़ारस की खाड़ी में भारत रास्ता कैसे भटक गया

अमेरिकी-ईरान गतिरोध भंग करने के मिशन पर क़तर 

भारत की सैन्य कूटनीति भ्रमित है

खाड़ी देशों के साथ भारतीय रणनीति चीनी प्रेतछाया का पीछा कर रही है! 

कोविड-19 : यूएई की मदद के लिए भारत से 88 नर्सों का पहला समूह दुबई पहुंचा

अरब देशों में भारत की साख दांव पर ?

तेल की कीमतों में कमी लेकिन लोगों को फायदा क्यों नहीं?

कश्मीर से 370 हटने के 100 दिन का हाल, आरटीआई पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला और अन्य ख़बरें

महाराष्ट्र की सियासत, बोलीविया के पूर्व राष्ट्रपति ईवा मोरालेस देश छोड़ने पर मजबूर और अन्य


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License