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पंजाब चुनाव : पुलवामा के बाद भारत-पाक व्यापार के ठप हो जाने के संकट से जूझ रहे सीमावर्ती शहर  
स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान के साथ व्यापार के ठप पड़ जाने से अमृतसर, गुरदासपुर और तरनतारन जैसे उन शहरों में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी पैदा हो गयी है, जहां पहले हज़ारों कामगार,बतौर ट्रक ड्राइवर, कुली, चित्रकार, मैकेनिक, निकासी एजेंट, वेटर काम कर रहे थे।
रवि कौशल
17 Feb 2022
punjab

यह उत्तर भारत के सभी प्रमुख शहरों को जोड़ने वाली महाद्वीप की सबसे पुरानी सड़क है। जैसे ही कोई ग्रैंड ट्रंक रोड से ऐतिहासिक शहर अमृतसर से अटारी तक जाता है, तो सीमा के भारतीय हिस्से पर स्थित इस आख़िरी शहर, खालसा कॉलेज और युद्ध स्मारक के मनमोहक दृश्य इसकी अहमियत को सामने रखते हुए उभर आते हैं। हालांकि, परिदृश्य तेज़ी से बदल जाता है, क्योंकि कम आबादी वाले कई छोटे-छोटे गांव दिखायी देने लगते हैं।

एक ऐसी अजीबोगरीब मंज़र, जो अचानक दिमाग़ में कौंध जाता है, वह है सड़कों पर छोड़ दिये गये ट्रकों की क़तार। ये ट्रक कभी अपने दम भर सड़कों पर दौड़ा करते थे, लेकिन 2019 में भारत के पुलवामा पर पाकिस्तानी हमले के बाद व्यापार के ठप पड़ जाने से अब ये ट्रक सड़कों पर ऐसे ही पड़े हुए हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान के साथ व्यापार के ठप पड़ जाने से अमृतसर, गुरदासपुर और तरनतारन जैसे उन शहरों में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी पैदा हो गयी है, जहां कभी हज़ारों कामगार बतौर ट्रक चालक, कुली, चित्रकार, मैकेनिक, निकासी एजेंट, वेटर काम किया करते थे। अंतर्राष्ट्रीय सीमा से होने वाले उस व्यापार से स्थानीय व्यवसायों को भी बढ़ावा मिलता था, क्योंकि ये व्यापारी अपने साथ के व्यापारियों के साथ सीमेंट, फल और सब्ज़ियां, नमक और औद्योगिक उत्पादों की आपूर्ति किया करते थे।

हालांकि, 20 फ़रवरी को राज्य में चुनाव होने जा रहे हैं और राजनीतिक नेताओं के भाषणों में यह बड़ा मुद्दा नज़र नहीं आता है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने 2014-16 से यहीं के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की नुमाइंदगी की थी। पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मौजूदा अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने भी लोकसभा में इसी इलाक़े का प्रतिनिधित्व किया था। फिर भी कार्यकर्ता इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं।

न्यूज़क्लिक ने व्यापार के ठप पड़ जाने से होने वाले नुक़सान को समझने के लिए अमृतसर के सीमावर्ती इलाक़ों की यात्रा की।यहां स्थानीय लोगों की हताशा को आसानी से समझा जा सकता है। बाहरी घुसपैठ और तस्करी से देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए ज़िम्मेदार सीमा सुरक्षा बल (BSF) का स्थानीय गांवों के निवासियों के साथ कटु सम्बन्ध हैं। यहां रह रहे लोगों का आरोप है कि इस इलाक़े में खेतीबाड़ी करना बेहद मुश्किल कार्य है।

सीमा सुरक्षा बल उन्हें गन्ना, मक्का, कपास और किन्नू जैसी नक़दी फ़सलें उगाने की संभावनाओं को ख़त्म करते हुए तीन फीट से ज़्यादा बढ़ने वाली किसी भी फ़सल की खेती करने की इजाज़त नहीं देता है। अमृतसर के बाहर शायद ही ऐसी कोई औद्योगिक इकाई हो,जो बड़ी संख्या में बेरोज़गार नौजवानों को रोज़गार दे पाने के क़ाबिल है। पंजाब में पहले से ही पसरे बेरोज़गारी के चलते हर साल 1.5 लाख नौजवानों का बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है।

मोहौक गांव के गुरदेव सिंह ने अपने खेतों की ओर इशारा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगी बाड़ दिखायी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वे इन नज़रअंदाज़ किये जाने वाले फ़सलों के खेतों पर बहुत कम समय देते हैं। उन्होंने बताया,“हालांकि खेतों पर जाने की इजाज़त का समय सुबह 8 से शाम 5 बजे तक का है, लेकिन हमें अक्सर दोपहर 2 बजे तक खेत ख़ाली कर देने के लिए कहा जाता है। हम अपने खेतों की पर्याप्त देखभाल नहीं कर सकते। इसी तरह, तस्कर किसी भी खेत में ड्रग्स और हथियार जमा कर छोड़ देते हैं और गिरफ़्तारी से बचने के लिए भाग जाते हैं,लेकिन इसे लेकर भी यहां लोगों पर ही तस्करी के मामले दर्ज कर दिये जाते हैं। ”

मोहौक वापस लौटने वाले रंजीत सिंह ने अपनी आपबीती सुनायी। उन्होंने कहा कि बेरोज़गारी ने नौजवानों को चोरी, जेबकतरी आदि जैसी असामाजिक गतिविधियों में संलग्न होने के लिए मजबूर कर दिया है। “भले ही मेरे पास क़रीब 6 एकड़ ज़मीन है, लेकिन मुझे बतौर मैकेनिक काम इसलिए करना पड़ा, क्योंकि खेतों से होने वाली आमदनी नाकाफ़ी है। प्राइवेट स्कूल ज़्यादा फ़ीस की मांग कर अभिभावकों को लूट रहे हैं। पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए हर महीने 2,500 रुपये का भुगतान करना होता है। अगर कोई बीमार पड़ जाता है, तो वह महंगे टेस्ट नहीं करा सकता। कुछ लोग तो सिर्फ़ इसलिए मर जाते हैं, क्योंकि उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं होते। किसी सरकार ने इस स्थिति में सुधार के लिए कुछ भी नहीं किया है। हमारी एकलौती उम्मीद व्यापार के साथ बनी हुई है, लेकिन यह भी ढाई से ज़्यादा सालों से ठप पड़ा हुआ है।

उस अटारी बाज़ार में छोटे-छोटे कारोबार में लगे लोगों में गहरी निराशा है, जहां हज़ारों लोगों की आय ख़त्म हो गयी है। ये कारोबार न सिर्फ़ व्यापार पर निर्भर थे, बल्कि उन हज़ारों पर्यटकों पर भी निर्भर थे, जो वाघा बार्डर घूमने आते थे। कोविड के चलते लगे प्रतिबंधों के कारण तब रोज़-रोज़ होने वाला समारोह बंद कर दिया गया था, जब दोनों देशों ने अपने-अपने दरवाज़े बंद कर लिये थे।

हरजीत सिंह सोनी अटारी बाज़ार में एक छोटे से ढाबे वाला होटल सांझ हवेली चलाते हैं। व्यापार बंद हो जाने के बाद उनका कारोबार चौपट हो गया है। “मैंने कभी 35 श्रमिकों को अपने यहां काम पर रखा करता था। कुछ मज़दूर बिहार, यूपी से थे, तो कुछ स्थानीय गांवों के थे। लोगों को मेरे ढाबे (सड़क किनारे स्थित भोजनालय) में जगह पाने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था। देश भर के व्यापारी इन्हीं कमरों में रुकते थे, क्योंकि पैसों के लेन-देन, लोडिंग और परिवहन को सामग्री के गंतव्य तक पहुंचने के लिए साझे चेक पोस्ट पर कई-कई दिन लग जाते थे। अब मेरे पास दो वेटर, एक रसोइया और एक सफ़ाईकर्मी सहित महज़ चार कर्मचारी रह गये हैं। आमदनी नहीं होगी,तो मैं उन्हें आख़िर कब तक काम पर रख पाऊंगा ? जब कोई आमदनी ही नहीं रह गयी है, तो लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकालने के लिए मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि स्कूल फ़ीस जमा करने के लिए दो अतिरिक्त दिन भी देने को तैयार नहीं हैं। छोटे-छोटे किसानों के पास पहले से ही कोई आमदनी नहीं है। आसमान छूती एलपीजी और रसोई गैस की क़ीमत से घरों में महंगाई ने कहर बरपा रखा है।”

एक दूसरे ढाबे के मालिक ने बताया कि व्यापार के बंद होने के बाद उन्हें भी कामगारों को छोड़ देना पड़ा। “जब व्यापार और समारोह होते थे, तब तो मैंने 22 श्रमिकों को अपने यहां काम पर रखा था। अब वे यहां से चले गये हैं। मेरी बचत ख़त्म हो गयी है। ढाई साल से किसी तरह चला पा रहा हूं। कोविड का दौर अपने आप में एक मुश्किल लड़ाई था। मैं केंद्र सरकार से यहां आयोजित होने वाले समारोह को फिर से शुरू करने का अनुरोध करूंगा।”

इसी गांव के निर्मल सिंह ने कहा कि स्थानीय व्यापारी पाकिस्तान के साथ व्यापार करने में बहुत दिलचस्पी रखते हैं, क्योंकि वहां से उन्हें सस्ता सीमेंट, सेंधा नमक और जिप्सम मिल जाते हैं। "जब आप व्यापार ही नहीं कर रहे हैं, तो इतने बड़े लैंड पोर्ट(सीमा पर स्थित सामान लाने-ले जाने की जगह) के निर्माण का क्या मतलब है। व्यापार को अब खोल देना चाहिए। यहां का ट्रक स्टैंड जर्जर हो चुका है। कई ट्रांसपोर्टरों ने अपने ट्रकों को खेतों में छोड़ दिया है, क्योंकि कोई मांग ही नहीं रह गयी थी।”

नौजवानों के पलयान के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने भावुक होकर कहा, “वे विदेश जा रहे हैं, क्योंकि यहां कोई काम ही नहीं रह गया है। हम यह भी जानते हैं कि वे वापस नहीं आयेंगे। यहां कोई नहीं होगा, जो हमें एक गिलास पानी भी दे सके। पर क्या करूं ! उनकी जवानी बर्बाद हो रही है।"

सीमा के क़रीब स्थित अटारी ट्रक यूनियन के दफ़्तर में ऐसे बहुत कम ट्रांसपोर्टर रह गये हैं,जिन्हें अब किसी ऑर्डर का इंतज़ार हो। इन ट्रांसपोर्टरों के साथ बातचीत से यहां के व्यवसायों को हुए नुक़सान की सही सीमा का पता चलता है। अमृतदास ने बताया कि हालात इतने बुरे हैं कि कुछ ट्रांसपोर्टरों ने तो आत्महत्या कर ली है, और कुछ डिप्रेशन में चले गये हैं। ‘हमने कॉन्वेंट स्कूलों से बच्चों को निकाल लिया है और उन स्कूलों में दाखिला करा दिया है, जहां उन्हें सब्सिडी वाली शिक्षा मिलेगी।’

सिंह इस दलील का भी खंडन करते हैं कि भारत-पाकिस्तान व्यापार इस अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिहाज़ से बहुत छोटा घटक है। “अटारी स्थित दोनों ही चेक पोस्ट के लैंड पोर्टों के बीच होने वाले व्यापार से भारत सरकार को सबसे ज़्यादा राजस्व मिला। इसे बनाने में 150 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। अब यहां सिर्फ़ जंगली घास उगती है। टेलीविज़न स्टूडियो में बात करने वाले लोगों को व्यापार और उसके प्रभाव का कोई ज़मीनी तजुर्बा ही नहीं है। अमृतसर ही नहीं गुरदासपुर और तरनतारन के कामगार भी यहां काम करते थे। यह यहां का एक अहम मुद्दा है, लेकिन हमारी समस्या को समझने के लिए कोई मीडिया यहां नहीं आता।

राजस्व और रोज़गार को हुए नुक़सान को दर्ज करने की कोशिश करने वाले आर्थिक विशेषज्ञों की बातों में भी इसी की झलक मिलती है। नई दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र थिंक टैंक ब्यूरो ऑफ़ रिसर्च ऑन इंडस्ट्री एंड इकोनॉमिक फ़ंडामेंटल्स (BRIEF) में एसोसिएट डायरेक्टर निकिता सिंगला ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह ऐसा वक़्त है,जब भारत-पाकिस्तान के बीच के व्यापार को रोज़ी-रोटी के नज़रिये से देखना शुरू करना चाहिए।

उन्होंने बताया, "राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है, और सीमा पार व्यापार प्रक्रियाओं को उसके तहत ही मज़बूती देने की ज़रूरत है। अमृतसर जम़ीन से घिरा हुआ है, यह कोई महानगर नहीं है और परंपरागत रूप से यहां कोई बड़ा उद्योग भी नहीं है। यह उस मुंबई जैसा नहीं है, जहां किसी एक देश के साथ व्यापार के ठप पड़ जाने का उसके स्थानीय निवासियों पर उस तरह का कोई असर होता है,जैसे कि सिंह पर प्रभाव पड़ा है।सिंह कभी छह ट्रकों का मालिक हुआ करते थे, लेकिन अब यूनियन के दफ़्तर में बतौर क्लर्क काम करते हैं।

बहुत ही अफ़सोस जताते हुए उन्होने न्यूज़क्लिक को बताया, "इस यूनियन की सदस्यता 165 से घटकर 55 हो गयी है। सदस्यों के पास 700 ट्रक थे, जिनमें से 500 ट्रक बेचे जा चुके हैं। ईएमआई के लगातार नहीं दिये जाने पर बैंक और फ़ाइनेंसर इन ट्रकों को उठा ले गये। ज़ाहिर है,इससे अर्थव्यवस्था और व्यापार भावित हुए हैं। भारत-पाकिस्तान व्यापार के सिलसिले में लिये जाने वाले किसी भी फ़ैसले का अमृतसर और आसपास के इलाक़ों के लोगों पर सीधा असर पड़ता है। मेरा अनुमान है कि फ़रवरी 2019 के बाद व्यापार के ठप पड़ जाने से तक़रीबन 50,000 लोग सीधे-सीधे प्रभावित हुए हैं और अमृतसर को अपनी 30 करोड़ रुपये की मासिक अर्थव्यवस्था को लगभग तीन-चौथाई का नुक़सान उठाना पड़ा है।

‘यूनिलेटरल डिज़िन्स एंड बाइलेटरल लॉसेज़ की लेखिका सिंगला ने बताया कि कनेक्टिविटी के मोर्चे पर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए रचनात्मक कोशिश करने की ज़रूरत है। “स्थानीय लोगों ने पंजाब में तरनतारन ज़िले के पट्टी क्षेत्र और फ़िरोज़पुर ज़िले के मखू क्षेत्र के बीच 25.47 किलोमीटर लंबी रेल लिंक पट्टी-मखू रेल परियोजना को तेज़ी से पूरा करने का प्रस्ताव दिया है।इससे अमृतसर से मुंबई की यात्रा की दूरी 240 किमी कम हो जायेगी। इसलिए, ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है।"

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रस्ताव देने वाले 9,354 परिवारों में 1,724 व्यापारी, 4,050 ट्रक वाले, 2,507 मज़दूर और 126 कस्टम एजेंट शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन(MFN) यानी व्यापार के ख़्याल से सबसे ज़्यादा तरज़ीह पाने वाले राष्ट्रों के दर्जे को रद्द कर देने से भारत को पाकिस्तानी से होने वाले निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट आयी है। “2018-19 में भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 2.6 बिलियन अमरीकी डॉलर था; पाकिस्तान को भारत का निर्यात 2.06 बिलियन अमरीकी डॉलर था, और पाकिस्तान से भारत होने वाला आयात 495 मिलियन अमरीकी डॉलर का था। भारत सरकार के इस फ़ैसले,यानी एमएफएन के दर्जे को वापस लेने और 200% शुल्क लगाने से भारत को पाकिस्तान से होने वाले निर्यात प्रभावित हुए हैं, जो  कि 2018 में प्रति माह तक़रीबन 45 मिलियन अमरीकी डॉलर से गिरकर मार्च-जुलाई 2019 में प्रति माह 2.6 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया था।

चंडीगढ़ स्थित सेंटर फ़ॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट की ओर से तैयार किये गये और आरएस घुमन और हक़ीक़त सिंह लिखित एक अन्य रिपोर्ट इकोनॉमिक इंप्लिकेशन्स ऑफ़ ट्रेड कर्ब्स बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान थ्रू वाघा बॉर्डर'(वाघा बॉर्ड से भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले व्यापार पर लगे प्रतिबंधों के आर्थिक प्रभाव) में इस पर रौशनी डालते हुए कहा गया है, "200 प्रतिशत सीमा शुल्क लगाने से पहले, 2018-19 (फ़रवरी 2019 तक) के दौरान सीमा शुल्क से मिलने वाला राजस्व 457.80 करोड़ रुपये का था, जो कि प्रति माह 41.60 करोड़ रुपये का था। लेकिन, मार्च-दिसंबर 2019 के दौरान यह मासिक औसत सिर्फ़ 19.80 करोड़ रुपये का रह गया था। सीमा शुल्क में इस बढ़ोतरी से पाकिस्तान से होने वाली आयात में भारी गिरावट आयी है।

इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "असल में इस लगाये गये शुल्क में अफ़ग़ानिस्तान से होने वाली आयात पर लगा वह कस्टम शुल्क भी शामिल है, जो व्यापार प्रतिबंध से प्रभावित नहीं था। सीमा शुल्क के अलावा, प्लांट प्रोटेक्शन, क्वारंटाइन स्टोरेज डिपार्टमेंट ने 2018-19 के दौरान अपनी सेवाओं से 5.38 करोड़ रुपये (औसत मासिक 51 लाख रुपये) का राजस्व इकट्ठा किया था। सीमा शुल्क में बढ़ोतरी के बाद सितंबर 2019 में यह मासिक औसत सिर्फ़ 63,700 रुपये का रह गया था। केंद्रीय भंडारण निगम की कमाई भी 2017-18 में 53.28 करोड़ रुपये (मासिक औसत, 4.44 करोड़ रुपये) से शून्य हो गयी है। इस तरह, व्यापार प्रतिबंधों से पहले इन तीन स्रोतों से होने वाली कुल आय सालाना 516.16 करोड़ रुपये की होती थी, जो कि व्यापार प्रतिबंध के बाद ख़त्म हो गयी।”

इन दोनों लेखकों में से एक लेखक हक़ीक़त सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि राजनीतिक दल इस मुद्दे से बहुत अच्छी तरह अवगत हैं, लेकिन उनकी चुप्पी का कोई मतलब समझ नहीं आता। उन्होंने कहा, 'हमने रिपोर्ट तैयार की और इसे नेताओं के सामने पेश कर दी, लेकिन उनकी उदासीनता समझ में नहीं आती। जहां तक पंजाब की बात है, तो इस कारोबार से उसे सालाना 5,000-7000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुक़सान हो रहा है। विश्व बैंक का कहना है कि इस रूट में 37 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार की क्षमता है। यह प्रतिबंध ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन एक्सपोर्ट आइटम’ की नीति के भी विपरीत है। नुक़सान के लिहाज़ से हमने बेहतर गुणवत्ता वाले सीमेंट और जिप्सम को सस्ती दरों पर हासिल करने का अवसर खो दिया है। व्यापारियों को अब सामग्रियों को आयात करने के लिए दुबई का रास्ता मिल गया है, लेकिन यह हमें महंगा पड़ रहा है।’

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Punjab Elections: Border Towns Face Crisis as Indo-Pak Trade Remains Suspended Since Pulwama

Punjab Elections
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