NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
इतवार की कविता : 'तुम अपने सरकार से ये कहना, ये लोग पागल नहीं हुए हैं!'
कविता-कहानी की कहकशाँ में आज पढ़ते हैं शायर जौन एलिया की नज़्म "दो आवाज़ें"
न्यूज़क्लिक डेस्क
10 Nov 2019
protest

हिंदुस्तान के अमरोहा में जन्मे शायर जौन एलिया की 8 नवम्बर 2019 को 17वीं बरसी थी।

आज उनको ख़िराज ए अक़ीदत पेश करते हुआ, हम आपके बीच लाए हैं जौन एलिया की नज़्म 'दो आवाज़ें'

जो ज़ुल्म के शिकार मज़दूरों और ज़ालिम हाकिम ए वक़्त की मफ़ाहमत का सच बताती है।

दो आवाज़ें

पहली आवाज़

हमारे सरकार कह रहे थे ये लोग पागल नहीं तो क्या हैं

के फ़र्क़ ए अफ़लास ओ ज़र मिटा कर निज़ाम ए फ़ितरत से लड़ रहे हैं

निज़ाम ए दौलत ख़ुदा की नेमत ख़ुदा की नेमत से लड़ रहे हैं

हर इक रिवायत से  लड़ रहे हैं हर इक सदाक़त से लड़ रहे हैं

मशीयत ए हक़ से हो के ग़ाफ़िल ख़ुद अपनी क़िस्मत से लड़ रहे हैं

ये लोग पागल नहीं तो क्या हैं…

हमारे सरकार कह रहे थे अगर सभी मालदार होते

तो फिर ज़लील ओ हक़ीर पेशे हर एक को नागवार होते

ना कारख़ानों में काम होता न लोग मसरूफ़ ए कार होते

इन्हीं से पूछो के फिर ज़माने में किस तरह कारोबार होते

अगर सभी मालदार होते, 

तो मस्जिद ओ मंदिर ओ कलीसा में कौन सिनतगरी दिखाता

हमारे राजों की और शाहों की अज़्मतें कौन फिर जगाता

हसीन ताज और जलील अहराम ढाल कर कौन दाद पाता

हमारी तारीख़ को फ़रोग़ ए हुनर से फिर कौन जगमगाता

हमारे सरकार कह रहे थे ये लोग पागल नहीं हैं तो क्या हैं…

दूसरी आवाज़

तुम अपने सरकार से ये कहना ये लोग पागल नहीं हुए हैं

ये लोग सब कुछ समझ रहे हैं ये लोग समझ चुके हैं

ये ज़र्दरू नौजवान फ़नकार जिनकी रग रग में वलवले हैं

ये ना तवान ओ नहीफ़ ओ नाचार जिनके क़दमों पे ज़लज़ले हैं

ये जिनको तुमने कुचल दिया है ये जिनमें जीने के हौसले हैं

दिया है फ़ाक़ों ने जन्म जिनको जो भूख की गोद में पले हैं

ये लोग पागल नहीं हुए हैं…

निज़ाम ए फ़ितरत हवा ए सहन ए चमन से पूछो जो पूछना है

मशाम ए दैर ओ दयार ओ दश्त ओ दमन से पूछो जो पूछना है

निज़ाम ए फ़ितरत फ़िज़ाओं की अंजुमन से पूछो जो पूछना है

निज़ाम ए फ़ितरत को कुलज़िम ए मौजज़न से पूछो जो पूछना है

के चाँद सूरज की जगमगाहट ज़मीं ज़मीं है वतन वतन है

कली कली की कुँवारी ख़ुशबू रविश रविश है चमन चमन है

निज़ाम ए फ़ितरा का बह्र ए मव्वाज पस्त ओ बाला पे मौजज़न है

हवाएँ कब इसको देखती हैं के ये है सहरा वो अंजुमन है

वो पेशे जिनसे उरूस ए तहज़ीब को मिले हैं लिबास ओ ज़ेवर

है जिनसे दोशीज़ा ए तमद्दुन चमन ब दामन बाहर दरबर

है जिनका एहसां तुम्हारी अस्लों तुम्हारी नस्लों पे और तुम पर

उन्हीं को तुम गालियाँ भी देते हो अब ज़लील हो हक़ीर कह कर

सुनो के फ़िरदौसी ए ज़माना परख चुका ज़र्फ़ ए ग़ज़नवी को

जो फिक्र ओ फ़न को ज़लील कर के अज़ीज़ रखता है अशरफ़ी को

तकद्दूस से बुतशिकन में देखा तकल्लुफ़ ए ज़ौक़ ए बुतगरी को

अब एक हज्व ए जदीद लिखनी है अस्र ए हाज़िर की शायरी को

तुम अपने सरकार से ये पूछो के फ़िक्र ओ फ़न की सज़ा यही है

हो उनका दिल ख़ून जिनके दम से ये ताज़गी है ये दिलकशी है

वो जिनके खूँ से नुकूश ओ अश्काल को दरक़्शंदगी मिली है

वो जिनके हाथों की खुरदुराहट से किश्तितार ए हरीर उगी है

तुम अपने सरकार से ये कहना निज़ाम ए ज़र के वज़ीफ़ाख्वारों

निज़ाम ए कोहना की हड्डियों के मुजाविरों और फ़रोशकारों

तुम्हारी ख़्वाहिश के बर ख़िलाफ़ इक नया तमद्दुन तुलू होगा

नया फ़साना नया ज़माना नया तराना शुरू होगा

जमूद ओ जुंबिश की रज़्म गाहों में साअत ए जंग आ चुकी है

समाज के इस्तखांफ़रोशों से ज़िंदगी तंग आ चुकी है

तुम्हारे सरकार कह रहे थे ये लोग पागल नहीं तो क्या हैं

ये लोग जमहूर की सदा हैं ये लोग दुनिया के रहनुमा हैं

ये लोग पागल नहीं हुए हैं…

तुम अपने सरकार से ये कहना, ये लोग पागल नहीं हुए हैं 

इसे भी पढ़े: इतवार की कविता : सस्ते दामों पर शुभकामनायें

इसे भी पढ़े: जौन एलिया : एक अराजक प्रगतिशील शायर!

jaun eliya commint poet
death anniversary jaun eliya
progressive poetry
shayad by jaun eliya
niyaz mandana
jaun eliya anarchist
nihilism
Government
Labour's
Workers
Sunday Poem

Related Stories

दक्षिण अफ्रीका में सिबन्ये स्टिलवाटर्स की सोने की खदानों में श्रमिक 70 दिनों से अधिक समय से हड़ताल पर हैं 

कश्मीर: कम मांग और युवा पीढ़ी में कम रूचि के चलते लकड़ी पर नक्काशी के काम में गिरावट

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

इतवार की कविता : 'आसमान में धान जमेगा!'

महामारी का दर्द: साल 2020 में दिहाड़ी मज़दूरों ने  की सबसे ज़्यादा आत्महत्या

इतवार की कविता: लखीमपुर के शहीद किसानों का मर्सिया

गुजरात के एक जिले में गन्ना मज़दूर कर्ज़ के भंवर में बुरी तरह फंसे


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License