NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
घर पहुंच कर भी कम नहीं हो रही बिहारी मज़दूरों की दुश्वारियां
दो महीने की तकलीफ़ और जोख़िम व परेशानी भरी यात्राओं के बाद पहुंचे बिहार के प्रवासी मज़दूरों को अपने गांव में भी चैन नसीब नहीं है। अमूमन गांव के लोग उन्हें कोरोना का वाहक मान रहे हैं।
पुष्यमित्र
13 May 2020
बिहारी मज़दूर

इस सोमवार को बिहार के जहानाबाद जिले के सरता मध्य विद्यालय में क्वारंटीन में रह रहे मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच झड़प हो गयी और इस झड़प में ग्रामीणों ने इन मज़दूरों पर रोड़े (पत्थर) चला दिये। इसमें एक प्रवासी मज़दूर अंबिका यादव का सिर फूट गया। बाद में पता करने पर इस झगड़े की वजह यह मालूम हो गयी कि स्कूल में बने उप क्वारंटीन सेंटर पर शौचालय की समुचित व्यवस्था नहीं थी, ऐसे में कुछ मज़दूर शौच करने बाहर निकल गये थे। ग्रामीणों ने इस भय से उन पर पत्थर चलाना शुरू कर दिया कि ये कहीं उनके गांव में कोरोना न फैला दें।

सोमवार को लगभग ऐसी ही घटना जहानाबाद से तकरीबन 400 किमी दूर बिहार के फारबिसगंज स्थित एक अन्य क्वारंटीन सेंटर पर घटी। वहां भी क्वारंटीन सेंटर से शौचालय के लिए निकले प्रवासी मज़दूरों और स्थानीय ग्रामीणों के बीच मारपीट हो गयी। ग्रामीणों ने इन प्रवासी मज़दूरों की लाठी-डंडे से पिटाई कर दी। वहीं मुजफ्फरपुर जिले के अमनौर पंचायत में भी प्रवासी मज़दूरों और ग्रामीणों के बीच झड़प हुई, इसकी वजह यह थी कि ग्रामीण चाहते थे, हर हाल में सभी प्रवासी मज़दूरों का कोरोना टेस्ट कराया जाये।

ये कुछ दृश्य हैं, जो यह बताते हैं कि दो महीने की तकलीफ़ और जोख़िम व परेशानी भरी यात्राओं के बाद पहुंचे बिहार के प्रवासी मज़दूरों को अपने गांव में भी चैन नसीब नहीं है। अमूमन गांव के लोग उन्हें कोरोना का वाहक मान रहे हैं। बिहार के आम लोगों में कुछ दिनों से यह धारणा बन रही है कि इन प्रवासी मज़दूरों की वजह से राज्य में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलेगा। संक्रमण से अब तक सुरक्षित रहे उनके गांव भी अब तेजी से इसके चपेट में आयेंगे।

लोगों की इस धारणा को उस सरकारी बयान से भी बल मिल रहा है, जिसके तहत पिछले तीन-चार दिनों से पॉजिटिव मरीजों की घोषणा के वक्त अलग से यह बताया जा रहा है कि फलां प्रवासी मज़दूर है।

आज, बुधवार, 13 मई को बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने अलग से यह जानकारी दी कि चार मई से 12 मई के बीच बिहार आये 190 प्रवासी मज़दूर कोरोना से संक्रमित पाये गये। यह बताते हुए वे एक तरह से यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि प्रवासी मज़दूरों के बिहार आने की वजह से कोरोना के संक्रमण में राज्य में तेजी आयी है। हालांकि उन्होंने इसके साथ यह नहीं बताया कि इस अवधि के दौरान प्रवासी मज़दूरों के कितने सैंपल लिये गये, आम लोगों के कितने। यह भी नहीं बताया कि अब तक राज्य में 900 से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हैं, उस लिहाज से पिछले एक हफ्ते में राज्य में पहुंचे एक लाख 33 हजार से अधिक प्रवासी मज़दूरों के मुकाबले संक्रमित लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं कही जा सकती।

एनएपीएम के समन्वयक महेंद्र यादव कहते हैं, दरअसल बिहार सरकार शुरुआत से ही प्रवासी मज़दूरों की जिम्मेदारी लेने से हिचक रही थी। वह चाहती थी कि ये मज़दूर इस संकट के दौरान वहीं रहें, जहां वे काम करते हैं। जब ये किसी से तरह आ गये तो अब अपने फ़ैसले को जस्टिफाई करने के चक्कर में राज्य में यह संदेश दे रही है कि इन मज़दूरों की वजह से बिहार में कोरोना बढ़ रहा है। जबकि यही वे मज़दूर हैं, जिनके मेहनत मजदूरी के पैसे से बिहार जैसा गरीब राज्य आ किसी तरह जी रहा है। गांव थोड़े समृद्ध दिखते हैं। ऐसे में इन विपरीत परिस्थिति में सरकार और समाज को इन मज़दूरों के साथ भावनात्मक रूप से खड़ा होना चाहिए था। गांव पहुंचने पर इनका स्वागत होना चाहिए था कि इतना दुख काट कर गांव आये हैं। मगर यहां भी उन्हें दुत्कारा जा रहा है, उन्हें कोरोना की उपाधि दी जा रही है।

महेंद्र यादव की बातों की सत्यता का पता इन्हीं आंकड़ों से चलता है कि पहली मई से शुरु हुए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 12 मई तक बिहार पहुंचने वाले मज़दूरों की संख्या महज एक लाख 33 हजार थी। इन ग्यारह दिनों में सिर्फ 115 रेलगाड़ियां बिहार आयीं। जबकि इसी अवधि में मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में चार लाख से अधिक मज़दूर आ चुके हैं। खुद राज्य सरकार ने जानकारी दी है कि राज्य के 30 लाख से अधिक मज़दूरों ने इस लॉक डाउन में उनसे मदद की मांग की है। अगर इसी रफ्तार से राज्य में मज़दूर आते रहे तो सभी मज़दूरों को आने में पूरा साल लग जायेगा। कई दूसरे राज्यों ने मज़दूरों को भेजने के लिए अधिक संख्या में ट्रेनों के परिचालन का प्रस्ताव बिहार सरकार को दिया, मगर सरकार एक बार में अधिक संख्या में मज़दूरों को बुलाने के पक्ष में नहीं थी। 

इसकी एक वजह यह भी थी कि राज्य सरकार की तैयारी राज्य में पहुंचने वाले सभी मज़दूरों को क्वारंटीन में रख पाने की नहीं है। अभी पिछले दिनों पहुंचे 1.33 लाख मज़दूरों को ही वह ठीक से रख नहीं पायी है। 

हालांकि मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भीषण दबाव के बीच राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि राज्य के जो लोग भी बाहर से बिहार आने के लिए इच्छुक हैं, उन्हें एक हफ्ते के भीतर ले आया जाए। मगर उनके इस निर्देश पर कितना अमल हो पायेगा यह देखना होगा।

सोमवार को राज्य के आधा दर्जन से अधिक इलाकों में इन प्रवासी मज़दूरों द्वारा प्रदर्शन करते हुए सड़क जाम करने की खबरें हैं। इनमें आरा के चरपोखरी, सहरसा के बिहरा, फारबिसगंज के कलावती कॉलेज, मुजफ्फरपुर आदि इलाकों में इन मज़दूरों से सड़कों पर आकर क्वारंटीन सेंटरों की दुर्व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन किया और नारेबाजी की।

तेजस्वी यादव ने सोमवार को अपने ट्विटर हैंडल से अररिया के एक क्वारंटीन सेंटर में मज़दूरों को सिर्फ चावल और नमक परोसे जाने का वीडियो जारी किया था। मंगलवार को बांका के एक क्वारंटीन सेंटर में अच्छा खाना मांगने के आरोप में एक मज़दूर का हाथ तोड़ दिये जाने का वीडियो शेयर किया है। दोनों मामलों में उन्होंने सरकार से पूछा है कि क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था इतनी खराब क्यों है।

कोरोना के वक्त स्कूलों को क्वारंटीन सेंटर बनाने की वजह से इन स्कूलों की अपनी अव्यवस्था भी सामने आ रही है। ज्यादातर स्कूलों में काम के लायक शौचालय नहीं हैं। बिजली कनेक्शन नहीं है। क्वारंटीन सेंटरों में अब तक सरकार खाने-पीने की काम चलाऊ व्यवस्था भी नहीं करवा पायी है। मज़दूरों को दोनो टाइम चावल दाल खिलाया जा रहा है। हर क्वारंटीन सेंटर में सौ से अधिक मज़दूर हैं। लिहाजा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ठीक से नहीं हो पा रहा। कई क्वारंटीन सेंटर में पीने तो छोड़िये, नहाने के पानी की भी ढंग की व्यवस्था नहीं है। 

खिड़कियां टूटी हैं, लिहाजा मच्छरों का प्रकोप रहता है। इन्हीं वजहों से जगह-जगह मज़दूर आक्रोशित हो रहे हैं। वे कभी शौच के लिए तो कभी मच्छर मारने वाली अगरबत्ती खरीदने के लिए बाहर निकल जाते हैं। ऐसे में आसपास के लोग उन पर हमलावर हो जाते हैं।

राज्य के इन क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली का आलम यह है अब तक मधुबनी, औरंगाबाद और भागलपुर में कुल तीन मज़दूर की मौत इन सेंटरों में हो चुकी है। हालांकि सरकार इनकी मौत की अलग अलग वजहें बता रही है।

पटना स्थित टाटा इंस्टिट्यूट के प्रमुख पुष्पेंद्र से जब इस समस्या की वजह पूछी जाती है तो वे कहते हैं कि एक तो इस बीमारी के असर को ही सरकार ने स्थानीय संदर्भो में नहीं समझा और इतना बढ़ा चढ़ा कर पेश किया है कि हर कोई पैनिक में है। इसी वजह से पहले मरकज को कोरोना का जिम्मेदार बताया गया। अब प्रवासी मज़दूरों को इसके लिये दोषी ठहराया जा रहा है। सरकारों का भी इन मज़दूरों के साथ व्यवहार बहुत नकारात्मक रहा है। इन्हें सम्मान के साथ घर नहीं लाया गया, न इनके रहने की समुचित व्यवस्था की जा रही है। ऐसे में समाज भी इन्हें अपनाने और स्वागत करने के बदले इन्हीं पर हमलावर है और घर पहुंच कर भी इनके दुख कम नहीं हो रहे। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Lockdown
Migrant workers
migrants
Bihar
Bihari Labourers
Nitish Kumar

Related Stories

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह

हैदराबाद: कबाड़ गोदाम में आग लगने से बिहार के 11 प्रवासी मज़दूरों की दर्दनाक मौत

ग्राउंड रिपोर्ट: कम हो रहे पैदावार के बावजूद कैसे बढ़ रही है कतरनी चावल का बिक्री?

बिहारः खेग्रामस व मनरेगा मज़दूर सभा का मांगों को लेकर पटना में प्रदर्शन

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

सड़क पर अस्पताल: बिहार में शुरू हुआ अनोखा जन अभियान, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जनता ने किया चक्का जाम


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License