NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
ट्रंप और पुतिन फिर से "एल्बे की मूल भावना" पर लौटना चाहते हैं
रूस के लोग शीत युद्ध की शत्रुता के बावजूद पुरानी यादों को आज भी याद करते हैं।
एम.के. भद्रकुमार
29 Apr 2020
रूस

शनिवार की शाम इस मामले में कुछ ख़ास थी, क्योंकि व्हाइट हाउस और क्रेमलिन ने दो राष्ट्रपतियों द्वारा "एल्बे बैठक की 75 वीं वर्षगांठ मनाने" को लेकर दिये गये एक संयुक्त बयान(यहाँ और यहाँ) को प्रमुखता के साथ अपनी-अपनी वेबसाइटों पर अपग्रेड किया। असल में इससे एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक, दोनों ही तरह के संकेत मिलते हैं।

कोविड रोगियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाली एम्बुलेंसों के गूंजते सायरन के बीच, दो बड़ी शक्तियों ने विश्व की राजधानियों को रूसी-अमेरिकी साझेदारी के हसीन दिनों और प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं के उस पक्षी की समकालीन प्रासंगिकता की याद दिला  दी है,जो हवा और समुद्र को शांत करने को लेकर मशहूर रहा है।

एल्बे डे के रूप में जाना जाने वाला 25 अप्रैल, 1945 आधुनिक इतिहास में रूसी-अमेरिकी रिश्तों के बीच उस जगमगाते क्षण के रूप में दर्ज है, जब जनरल आर्मी झोधोव के नेतृत्व वाली रेड आर्मी 5 वीं गार्ड और जनरल  कर्टनी हॉजेज की कमान वाली यूएस फ़र्स्ट आर्मी के सैनिकों ने जर्मन के तोरगऊ शहर के पास इस प्रसिद्ध नदी पर मिलने के बाद एक-दूसरे को गले लगाया था। याल्टा शिखर सम्मेलन ने उस बैठक का ताना-बाना बहुत ही सावधानी के साथ बुना गया था ताकि सुनिश्चित हो सके कि वह एक दोस्ताना बैठक हो।

stalin1.jpg

"एल्बे के उस क्षण" ने यूरोप में युद्ध के ख़ात्मे पर एक तरह से मुहर लगा दी थी। मगर दो हफ़्ते बाद ही रेड आर्मी ने बर्लिन पर धावा बोल दिया था। बाक़ी तो इतिहास है। रूस के लोग शीत युद्ध की शत्रुता के बावजूद पुरानी यादों वाली उस घटना को आज भी याद करते हैं। लेकिन,अमेरिका (और उसके पश्चिमी सहयोगी) बीतते समय के साथ लगातार मौन होता गया और और 2014 से यूक्रेन के घटनाक्रमों के बाद एक घृणा पैदा होती गयी।

मगर,जून 2019 में उस समय हालात निराशाजनक हो गये, जब विश्व के नेता रानी एलिजाबेथ द्वितीय और अन्य राष्ट्राध्यक्षों के साथ डी-डे (6 जून 1944 का दिन जब ब्रिटेन तथा अमरीका की सेनाओं ने उत्तरी फ़्रांस पर आक्रमण किया था) की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए शामिल हुए। क्योंकि जिस विश्व नेता की स्पष्ट ग़ैर-मौजूदगी थी, वह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन थे। उन्हें उस समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था

पुतिन ने दिलेरी दिखाते हुए कहा था, “जहां तक सवाल है कि मुझे आमंत्रित किया गया है या नहीं, तो हम भी हर किसी को हर कार्यक्रम में आमंत्रित कहां करते हैं। मुझे हर जगह किसी न किसी कार्यक्रम में क्यों आमंत्रित किया जाना चाहिए ? क्या मैं एक शादी समारोह में शामिल होने वाला जनरल हूं, या और कुछ हूं ? मेरे पास अपना काम है। यह तो समस्या वाली कोई बात ही नहीं है।”

बहरहाल, यह बात भीतर ही भीतर उबलती रही। लम्बे समय से रूस की यह शिकायत रही है कि पश्चिम में द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ के बड़े पैमाने पर दिये गये बलिदानों की अनदेखी की जाती रही है। इसमें कोई शक नहीं कि वह लाल सेना ही थी, जिसने स्टालिनग्राद, कुर्स्क और प्रोखोरोव्का (इतिहास का सबसे बड़ा टैंक युद्ध) में हुई ज़बरदस्त लड़ाइयों के बाद नाज़ियों के सशस्त्र सेना की कमर तोड़कर रख दी थी, जो सही में द्वितीय विश्व युद्ध के निर्णायक क्षण थे।

दरअसल, ट्रंप और पुतिन द्वारा शनिवार को एक-दूसरे का हाथ थामने के इस फ़ैसले को सही संदर्भ में देखने का मतलब बहुत सारी बातों को फिर से याद करना है और यह इससे इस बात का संकेत देना है कि वॉशिंगटन एल्बे में हुए यूएस-रूस मेल-मिलाप को आगे ले जाना चाहता है।

इस समय पहिया पूरी तरह घूमकर फिर से वहीं आ गया है। रूस-अमेरिका रिश्ते एक बार फिर टकराव के रास्ते पर है। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस को हथियार नियंत्रण समझौते को अगले पांच वर्षों के लिए विस्तार देना होगा, नहीं तो 10 महीने से भी कम समय के भीतर न्यू स्टार्ट संधि (दोनों देशों के बीच सात वर्षों के भीतर अपने परमाणु हथियारों की संख्या में एक-तिहाई तक कटौती करने तथा उन्हें ले जाने वाली पनडुब्बियों, मिसाइलों व बमवर्षकों की संख्या में आधी से अधिक कटौती करने की संधि) ख़त्म हो जायेगी। इस संधि का विस्तार अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक अहम ज़रूरत है। इस तरह की संधि की ग़ैर-मौजूदगी में 1972 के बाद पहली बार अमेरिका या रूसी सामरिक शस्त्रागार पर कोई दबाव नहीं होगा।

न्यू स्टार्ट के नहीं रहने पर अमेरिका और रूस को अपने परमाणु हथियारों को लेकर अपनी-अपनी मान्यताओं और आधुनिकीकरण योजनाओं पर फिर से विचार करेंगे और इस उद्योग पर लगने वाली भारी लागतें इन्हें परेशानी में डाल सकती हैं। इस संधि ने वैश्विक रणनीतिक संतुलन में पारदर्शिता और सहज अनुमान लगाने की स्थिति पैदा की हुई है। मिसाल के तौर पर, अमेरिका और रूस दोनों को एक दूसरे के बारे में हर वक्त इन बातों की सूचनायें मिलती रहती हैं कि किसकी मिसाइल कहां तैनात है या किसकी किस मिसाइल या बमवर्षक की आवाजाही किन  ठिकानों के बीच हो रही है, और किस नयी मिसाइल को पेश किया जा रहा है।

स्पष्ट है कि अगर इस संधि का विस्तार अगले साल के फ़रवरी तक नहीं होता है,तो जैसा कि हम जानते हैं कि रूस और अमेरिका के बीच हथियारों का नियंत्रण प्रभावी तौर पर ख़त्म हो जायेगा। ऐसे में अंदर ही अंदर चल रहे पूर्व-पश्चिम तनाव को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण में एक बेहद ख़तरनाक स्तर तक अनिश्चितता पैदा हो जायेगी।

समझना मुश्किल नहीं है कि एल्बे की सालगिरह पर ट्रंप-पुतिन का संयुक्त बयान उस पूर्व प्रयासों की तरह दिखता है, जिससे न्यू स्टार्ट के विस्तार की संभावना बनती नज़र आती है। पिछले 3 हफ़्तों में ट्रंप और पुतिन ने एक-दूसरे से पांच बार बात की है। स्पष्ट रूप से ट्रंप ने ओपेक प्लस के ढांचे के भीतर तेल उत्पादन में कटौती करने को लेकर पुतिन को उनकी मदद लेने के लिए पहला फ़ोन किया था, लेकिन कुछ ही समय में दोनों राष्ट्रपतियों के बीच होने वाली बातचीत में सुरक्षा मुद्दों अहम होते गये।

चूंकि ओपेक प्लस के सौदे का विवाद हल हो चुका है, इसलिए दोनों राष्ट्रपतियों के बीच होने वाली बातचीत को उसी सौदे के नतीजे के रूप में देखा जा सकता है, जबकि सामरिक मुद्दों पर एक नया-नया बन रहा रूसी-अमेरिकी रिश्ता दिखायी पड़ने लगा है, जिससे आने वाले समय में और ज़्यादा बेहतर नतीजे की उम्मीद पैदा होती है।

मगर,बड़ा सवाल तो यही है कि क्या ट्रंप अपने राष्ट्रपति के अधिकार का इस्तेमाल न्यू स्टार्ट संधि का विस्तार करने के लिए करेंगे। 17 अप्रैल को रूसी विदेश मंत्री सर्जेई लावरोव के साथ फ़ोन पर हुई बातचीत में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ उस फ़ॉर्मूले को लेकर अड़े रहे कि " किसी भी भावी हथियार नियंत्रण वार्ता को राष्ट्रपति ट्रंप के उस नज़रिये पर आधारित होना चाहिए,जिसमें त्रिपक्षीय हथियार नियंत्रण समझौते अहम है और जिसमें अमेरिका के साथ रूस और चीन दोनों शामिल हों।"

हालांकि, अमेरिकी विदेश विभाग ने इस संधि विस्तार को स्पष्ट रूप से खारिज नहीं किया है। इसी तरह, लावरोव ने भी कहा है कि वैश्विक स्थिरता के मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की एक शिखर बैठक इस साल आयोजित हो सकती है।

लावरोव ने कहा, “हम इस समय अपने सहयोगियों के साथ इस शिखर सम्मेलन को लेकर काम कर रहे हैं। इसके साथ रणनीतिक स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा के सभी आयामों को सुनिश्चित करने को लेकर एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ निपटना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह शिखर सम्मेलन इसी साल आयोजित किया जायेगा और यह पूरे वैश्विक समुदाय के लिए उपयोगी होगा।”

लावरोव की इस टिप्पणी से हवा का रुख़ संभवतः प्रस्तावित पी-5 शिखर बैठक के मुख्य आकर्षण के रूप में न्यू स्टार्ट के विस्तार की ओर मुड़ने का ही संकेत करता दिखायी देता है। स्पष्ट रूप से, मास्को व्यावहारिक रूप से आगे बढ़ रहा है, ट्रंप के पद पर बने रहने के दौरान वाशिंगटन के साथ रिश्तों में एक ऐसे नये मानक की तलाश कर रहा है, जो कि तभी मुमकिन है,जब मौजूदा यूएस-रूस टकराव समाप्त हो जाता है।

russia.jpg

ट्रंप भी इस चुनावी साल में विदेश-नीति की इस विरासत से हासिल करने के लिए तैयार दिखते हैं। कोई शक नहीं कि हथियार नियंत्रण, डेमोक्रेट की विदेश नीति की प्राथमिकता रही है और ट्रंप के समर्थकों और पेंटागन कमांडरों के बीच यह एक बेहद लोकप्रिय मुद्दा रहा है। इस तरह, ग़ैर-मामूली "द्विदलीय सहमति" एक ऐसी स्थिति बनाती है,जिससे न्यू स्टार्ट के नवीनीकण की संभावना को आसान बना देती है। एल्बे दिवस के आरंभ स्थल पर वापस आना महज संयोग भर नहीं हो सकता,इसके अपने मायने हैं।

Russia
USA
Soviet Union
Donald Trump
vladimir putin
Joseph Stalin
Red Army

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ

यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 

पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License