NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
शिक्षा
भारत
राजनीति
उत्तराखंड: क्या आप साइंस रिसर्च कॉलेज के लिए 25 हज़ार पेड़ों को कटने देना चाहेंगे ?
“हम दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाएं देख रहे हैं। उत्तराखंड में ही एक के बाद एक प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। अब विकास के नाम पर पेड़ों को काटने का समय खत्म हो गया है। अब पेड़ों के संरक्षण का समय है। हम देहरादून में साइंस रिसर्च कॉलेज का विरोध नहीं कर रहे। हमें दूसरे विकल्पों पर सोचना चाहिए”।
वर्षा सिंह
03 Aug 2021
आंचल और उनके साथी 25 हज़ार पेड़ काटने का विरोध कर रहे हैं
आंचल और उनके साथी 25 हज़ार पेड़ काटने का विरोध कर रहे हैं

देहरादून के बालावाला के जंगल से 25 हज़ार पेड़ों को काटकर साइंस रिसर्च कॉलेज बनाने की योजना है। जहां बायोलॉजी, इकोलॉजी, केमेस्ट्री, जलवायु परिवर्तन, धरती पर जीवन, बायोटेक्नोलॉजी समेत धरती, प्रकृति, मनुष्य से जुड़े विषयों पर शोध किया जाएगा।

साइंस रिसर्च कॉलेज के लिए जो जगह चुनी गई है, वहां जीव-जंतुओं-जैव विविधता का अदभुत संसार बसता है। देहरादून के शिवालिक रेंज में मसूरी वन प्रभाग में आने वाला बालावाला क्षेत्र का जंगल हाथियों की मौजूदगी के लिए जाना जाता है। जो आईयूसीएन की इनडेनजर्ड यानी खतरे की जद में आ चुके वन्यजीवों की रेड लिस्ट में शामिल हैं। हाथियों की आबादी में 1930-40 की तुलना में 50% तक गिरावट आ चुकी है। हाथियों के सबसे बड़ी चुनौती प्राकृतिक आवास का छिनना, जंगलों की गुणवत्ता में गिरावट और एक से दूसरे जंगल में आवाजाही बाधित होना है।

हाथियों के साथ यहां तेंदुए, हिरन, सांप, बंदर, जंगली सूअर और सांप जैसे वन्यजीव निवास करते हैं। साल के बड़े-बड़े वृक्षों के साथ लीची, जामुन, पीपल, नीम, खैर, शीशम जैसे पेड़ हैं। चिड़ियों की चहचहाहट दूर से सुनी जा सकती है।

जैव-विविधता समझने के लिए इस जंगल की पगडंडी पर चुपचाप टहलना काफी है। ये जंगल ही जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाली आपदाओं से हमें बचा सकते हैं। क्या इन्हें काटकर हम किताबों और शोध के ज़रिये जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बारे में समझेंगे?

जंगल के नज़दीक ही सौंग नदी गुज़रती है। देहरादून की रिस्पना, बिंदाल, सुसवा जैसी नदियां दम तोड़ चुकी हैं। रिस्पना और सुसवा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। करोड़ों के प्रोजेक्ट में लाखों पौधे लगाए जा रहे हैं। सौंग नदी में अब भी पानी बहता है। इसके बचे रहने के लिए बालावाला का जंगल बचना जरूरी है। ताकि फिर एक पुनर्जीवन अभियान न चलाना पड़े।  

हाथियों को रिहायशी इलाके में जाने से रोकने के लिए सोलर फेन्सिंग बनाई गई है

इस जंगल के ठीक बगल में शिवालिक एलीफ़ेंट रिज़र्व है।  8 नवंबर 2020 को यहां 3 किलोमीटर लंबी सोलर फेंसिंग का उद्घाटन किया गया था। ताकि हाथी बालावाला जंगल से नजदीकी खेतों और रिहाइशी इलाकों में प्रवेश ना करें। ये सोलर फेन्सिंग यहां हाथियों की मौजूदगी का प्रमाण है।

वनभूमि पर उच्च शिक्षा संस्थान बनाने का प्रस्ताव

बालावाला क्षेत्र में रेंजर राकेश नेगी बताते हैं “जुलाई में अपर सचिव वन आनंद वर्धन ने इस वन भूमि का निरीक्षण किया था। हमने उन्हें जगह दिखायी। तकरीबन 25 हज़ार पेड़ इस जगह हैं”।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च यानी आईआईएसआर स्तर के साइंस रिसर्च कॉलेज के लिए उच्च शिक्षा विभाग ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा है। आईआईटी, आईआईएम की तर्ज पर उत्तराखंड को आईआईएसआर स्तर का शैक्षिक संस्थान भी मिल जाए। नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर विभाग में कार्यरत सदस्य बताते हैं “ये अभी शुरुआती स्टेज़ में है। बालावाला में ही जगह देखी गई है। केंद्र को इसका प्रस्ताव भेजा जा चुका है। अभी इस पर सहमति नहीं मिली है”।

वहीं, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बचते हैं और प्रभागीय वन अधिकारी से प्रतिक्रिया लेने को कहते हैं।

मसूरी वन प्रभाग की डीएफओ कहकशां नसीम व्हाट्सएप संदेश के जवाब में बताती हैं कि उच्च शिक्षा विभाग ने इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट अभी नहीं दाखिल की है।

अपर सचिव वन आनंद वर्धन से इस पर प्रतिक्रिया लेने की लगातार कोशिश की गई। 48 घंटों तक उन्होंने अपना फ़ोन नहीं उठाया। न ही मैसेज का जवाब दिया।

बालावाला जंगल बचाना है!

देहरादून में पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. आंचल शर्मा ने ऑनलाइन पेटिशन दाखिल करने वाली संस्था चेंज डॉट ऑर्ग पर बालावाला के जंगल बचाने के लिए याचिका दाखिल की है। ताकि बालावाला के जंगल को कटने से बचाया जा सके और लोगों का ध्यान इस मुद्दे पर खींचा जा सके। 25 जुलाई  की रात को दाखिल पेटिशन पर 6 दिन में, 2 अगस्त तक 19,545 हज़ार से अधिक लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं।

आंचल कहती हैं कि जैव-विविधता से भरपूर इस जंगल को हमें हर हाल में बचाना होगा। वह साइंस सिटी के लिए कुछ और विकल्पों के बारे में बात करती हैं। जैसे:

- संस्थान के लिए आम लोगों से ज़मीन खरीदें या
- ग्राम पंचायत की भूमि या फिर नगर निगम की भूमि का उपयोग करें
-उत्तराखंड में 102 ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कॉलेज पहले से ही मौजूद हैं, इनमें से किसी को भी आईआईएसआर का दर्जा दिया जा सकता है। या फिर साइंस रिसर्च कॉलेज के तौर पर विकसित किया जा सकता है। 

आंचल कहती हैं “देहरादून की हरियाली तेज़ी से कम होती जा रही है। हम राज्य के पुराने जंगल दांव पर नहीं लगा सकते। हाथियों की संख्या पहले ही कम हो रही है। हम उनसे उनका घर नहीं छीन सकते”। 

वर्ष 2017 में नैनीताल हाईकोर्ट ने नदियों-जंगल को जीवित प्राणी का दर्जा दिया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

अब पेड़ों के संरक्षण का समय है

आंचल और कुछ अन्य युवा जंगल को बचाने की मुहिम के तहत रविवार को बालावाला पहुंचे। द अर्थ एंड क्लाइमेट इनिशिएटिव नाम से पर्यावरणीय मुद्दों पर बात करने वाली अंकु शर्मा कहती हैं “हम दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाएं देख रहे हैं। उत्तराखंड में ही एक के बाद एक प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। अब विकास के नाम पर पेड़ों को काटने का समय खत्म हो गया है। अब पेड़ों के संरक्षण का समय है। हम देहरादून में साइंस रिसर्च कॉलेज का विरोध नहीं कर रहे। हमें दूसरे विकल्पों पर सोचना चाहिए”। अंकु बताती हैं कि ट्विटर पर #अब पेड़ नहीं कटेंगे  हैशटैग से अभियान भी शुरू किया गया है”।

हरेला में पौधे लगाते हैं, विकास के नाम पर हज़ारों पेड़ काटते हैं !

बालावाला जंगल देखने आए स्थानीय पत्रकार अमित गोदियाल भी इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जताते हैं। वह कहते हैं “कॉलेज खोलने के लिए 25 हज़ार पेड़ काटने जा रहे हैं। हम हर साल हरेला पर्व मनाते हैं और लाखों पौधे लगाते हैं। उन पौधों की कोई निगरानी नहीं होती। वे पौधे कहां उगते हैं, हमें नहीं पता। दूसरी तरफ आप हरे-भरे जंगल को उजाड़ने की बात कर रहे हैं”।

सेंटर फॉर अर्बन एंड रीजनल एक्सलेंस और यूएसएआईडी की ओर से कराये जा रहे सिटी वाटर बैलेंस प्लान अध्ययन के मुताबिक देहरादून में वर्ष 1995 से 2015 के बीच 600% कंक्रीट का कवर बढ़ा है। जिसके चलते पानी के स्रोत सूख गए हैं। जिसके चलते मानसून में बाढ़ का खतरा और गर्मियों में जल संकट बढ़ रहा है।

इससे पहले देहरादून में ही जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिए 10 हज़ार पेड़ों के काटने का प्रस्ताव भेजा गया था। जिस पर पर्यावरण प्रेमियों ने तीव्र विरोध जताया था।

इसे पढ़ें: जब 10 हज़ार पेड़ कट रहे होंगे, चिड़ियों के घोंसले, हाथियों के कॉरिडोर टूट रहे होंगे, आप ख़ामोश रहेंगे?

क्या हैं जंगल के अधिकार

वर्ष 2017 में नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना समेत नदियों, झीलों, ग्लेशियर, जंगल, बुग्यालों को जीवित प्राणी का दर्जा दिया था। बाढ़ पीड़ितों समेत अन्य आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। लेकिन जिस तरह से जंगल, नदियों, वन्यजीवों, चिड़ियों के संसार को उजाड़ने के लिए एक के बाद एक योजनाएं तैयार की जा रही हैं, क्या आपको लगता है कि हमें धरती पर बने रहने के इनके अधिकार की कानूनी तौर पर भी रक्षा करनी होगी?

सभी फ़ोटो: वर्षा सिंह

(देहरादून स्थित लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Uttrakhand
Cutting trees
Science Research College
Balawala forest
Forest land
IISR
wildlife
Environment

Related Stories

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

बनारस में गंगा के बीचो-बीच अप्रैल में ही दिखने लगा रेत का टीला, सरकार बेख़बर

दिल्ली से देहरादून जल्दी पहुंचने के लिए सैकड़ों वर्ष पुराने साल समेत हज़ारों वृक्षों के काटने का विरोध

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

समय है कि चार्ल्स कोच अपने जलवायु दुष्प्रचार अभियान के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत करें

पर्यावरण: चरम मौसमी घटनाओं में तेज़ी के मद्देनज़र विशेषज्ञों ने दी खतरे की चेतावनी 

जलवायु बजट में उतार-चढ़ाव बना रहता है, फिर भी हमेशा कम पड़ता है 

उत्तराखंड: गढ़वाल मंडल विकास निगम को राज्य सरकार से मदद की आस


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License