राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 जून को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (International Criminal Court : ICC) के उन अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जो 19 साल लंबे चले अफ़गानिस्तान युद्ध में अमेरिकी सैनिकों और गुप्चतर संस्थाओं के कर्मियों द्वारा किए गए संभावित अपराधों की जांच कर रहे थे। अब ब्रिटेन ने भी फ्रांस और जर्मनी की तरह, ट्रंप के इस एक़्जीक्यूटिव ऑर्डर से किनारा कर लिया है।
शनिवार, 13 जून को बेहद कड़े शब्दों में ब्रिटिश विदेश सचिव डोमिनिक रब ने कहा, ''ब्रिटेन जघन्य युद्ध अपराधों में सजा दिलवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का पूरा समर्थन करता है।'' उन्होंने आगे कहा, ''हम न्यायालय द्वारा किए गए सकारात्मक सुधारों का समर्थन जारी रखेंगे, ताकि यह जितना संभव हो सके, उतने प्रभावी ढंग से काम कर सके। अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के अधिकारियों को अपना काम करने की स्वतंत्रता और तटस्थता की छूट होनी चाहिए, उन्हें प्रतिबंधों का डर नहीं होना चाहिए।''
ट्रंप का प्रशासनिक आदेश ICC की कई तरीके से निंदा करता है। मसलन:
ICC की जांच अमेरिकी ''सहमति'' के बिना हो रही है।
ICC की कार्रवाई ''अमेरिकी लोगों पर हमला'' है और इससे ''हमारी राष्ट्रीय अखंडता का क्षरण'' होता है।
ICC एक गैर-जिम्मेदार और अप्रभावी अंतरराष्ट्रीय नौकरशाह संस्था है, जो अमेरिकी सैन्यकर्मियों और मित्र-साझेदार देशों के सैन्यकर्मियों को निशाना बनाती और डराती है।
ICC ने खुद को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाए।
ICC ''इज़रायल समेत हमारे मित्र देशों के खिलाफ राजनीतिक मंशा वाली जांच'' करती है।
अफ़गानिस्तान में ''युद्ध अपराधों के आरोपों को बढ़ावा'' देकर हमारे ''विरोधी देश ICC का फायदा'' उठा रहे हैं।
अमेरिका के पास यह विश्वास करने की ठोस वजह हैं कि ICC में प्रोसेक्यूटर जैसे उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार और कदाचार होता है।
अगले चुनाव जीतने के क्रम में ट्रंप घरेलू राजनीति पर नज़र रखे बिना कुछ बोलते या करते नहीं हैं। ताजा एक़्जीक्यूटिव ऑर्डर 'वेस्ट प्वाइंट' पर अमेरिकी सैन्य अकादमी की ग्रेजुएशन सेरेमनी की शाम को जारी किया गया था। इस शाम में पारंपरिक तौर पर राष्ट्रपति का अभिभाषण भी होता है। यहां उन्होंने बैच को ''क्लास ऑफ 2020'' कहकर संबोधित किया और खुद को अमेरिकी सैन्य शक्ति का मसीहा बताया।
लेकिन बात इससे आगे की है। अमेरिका को डर है कि ICC जांचकर्ता अफ़गानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों द्वारा किए गए युद्ध अपराधों के अकाट्य सबूत पेश कर सकते हैं, जो पहले से ही बड़ी मात्रा में मौजूद हैं। 27 मार्च, 2020 को फॉरेन पॉलिसी द्वारा प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट में अफ़गानिस्तान में अमेरिका की ज़हरीली विरासत को कुछ इस तरह बयां किया गया, ''अब जब अमेरिका अफ़गानिस्तान छोड़ने के लिए तैयार हो रहा है, तब हजारों हत्याओं की जांच बाकी रह गई है। वाशिंगटन इस पर बात करने के लिए तैयार नहीं है।''
यह जगज़ाहिर है कि अफ़गानिस्तान में हिरासत में लिए गए लोगों के खिलाफ अमेरिकी खुफ़िया एजेंसियों द्वारा अपनाए जाने वाले तरीके बेहद बर्बर रहे हैं। अमेरिकी सैन्यकर्मियों द्वारा अपने मनोरंजन के लिए की गई हत्याएं, अमेरिकी प्रशिक्षित मारक दस्तों और अनुबंधित ठेकेदारों द्वारा की गई गैर न्यायिक हत्याओं का बड़े स्तर पर दस्तावेज़ीकरण किया गया है। यहां तक कि अफ़गानिस्तान के बड़े नेताओं द्वारा भी इनकी निंदा की गई है।
अमेरिका के जो यूरोपीय मित्र देश अफ़गानिस्तान में NATO का हिस्सा रहते हुए साथ लड़े थे, उनके पास अमेरिकी सैन्यबलों और खुफ़िया एजेंसियों द्वारा किए गए अत्याचार के कुछ अहम और ख़ास जानकारी हो सकती है। यही चीज ICC की जांच को सनसनीखेज़ बनाती है।
2002 में ICC को बनाए जाने के पीछे बड़ी यूरोपीय शक्तियां की मुख्य कवायद़ थी। ख़ासकर ब्रिटेन ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी। ICC की 10वीं वर्षगांठ पर ब्रिटेन के विदेश सचिव विलियम हेग ने, ''जहां कहीं भी गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराध होंगे, उनमें सजा दिलाने के लिए ब्रिटेन की सक्रिय भूमका'' का वायदा किया था। साथ ही उन्होंने ''ICC को संयुक्त राष्ट्रसंघ का न्यायिक अंग'' बताया था।
बल्कि 2013 में ब्रिटिश सरकार ने एक रणनीतिक पेपर जारी किया था। संयोग है कि ब्रिटेन ही सुरक्षा परिषद में शामिल एकमात्र देश है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice: ICJ) के अनिवार्य न्यायक्षेत्राधिकार को माना है। ICJ के मुताबिक़ अफ़गानिस्तान में युद्ध अपराधों की ICC जांच में बेहद विस्फोटक जानकारी सामने आने का माद्दा है। हर तरफ से यह संकेत हैं कि दो दशक से अफ़गानिस्तान में जारी अमेरिकी कठपुतली सरकारों का अब खात्मा होने वाला है। अब एक नया युग शुरू होना जा रहा है। अफ़गानिस्तान में अब संप्रभुता घर कर रही है, सत्ता में बैठे अमेरिका के एजेंटों को हटाया जा चुका है, अफ़गानी राष्ट्रवाद उभरकर सामने आ रही है, अब यह केवल वक़्त की बात है कि अमेरिका द्वारा ''आतंक के खिलाफ़ जंग'' के नाम पर की गई ज़्यादतियां अफ़गान राष्ट्र की सामूहिक चेतना में उभरकर सामने आएँगी।
अफ़गान युद्ध में अमेरिका की हार का यही जो़ख़िम है। अफ़गानिस्तान में शांति के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि ज़ालमय खालीज़ाद को देश में उभर रहे किसी ढांचे में खुद को बैठाना बाकी है। वे भविष्य की सरकारों से अपने लिए क्षमदान की व्यवस्था करने में लगे हैं। उन्हें यह सरकारें पिछले दो दशकों के पापों के लिए सजा दे सकती हैं। अटकलें हैं कि तालिबान और पाकिस्तान उनकी मांग मान सकते हैं।
क्योंकि अमेरिका रोम स्टेच्यूट का हिस्सा नहीं रहा है, इसलिए ICC जांच में सहयोग करने के लिए उस पर पर कोई बाध्यता नहीं हैं। लेकिन अफ़गानिस्तान सरकार पर इसमें सहयोग देने की बाध्यता है। अमेरिका द्वारा अफ़गान बातचीत को दिशा देने के लिए रूस को जोड़ने की कवायद की यह एक वज़ह हो सकती है।
बल्कि ट्रंप ने तो यहां तक कहा है कि ''विरोधी देश.... ICC को भरमा रहे हैं'' और ''अमेरिकी सैन्यकर्मियों के खिलाफ़ इन आरोपों को हवा दे रहे हैं।''
ट्रंप का एक़्जीक्यूटिव ऑर्डर उनके दोमुंहेपन का सबूत भी है। एक तरफ जब अमेरिका ICC पर अपनी संप्रभुता को भंग करने का आरोप लगा रहा है, तब अमेरिका में ही सीज़र एक्ट नाम का नया कानून पास हुआ है, जो आने वाले हफ़्ते में लागू हो जाएगा। यह कानून सीरिया में कथित उत्पीड़न का शिकार लोगों की तस्वीरों के आधार पर बनाया गया है, इसके ज़रिए सीरिया पर कमरतोड़ प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
जैसा इस सप्ताहांत में गार्डियन की रिपोर्ट में लिखा गया, ''पहले की तरह के अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के उलट नया कानून सीरिया के बाहर इसकी सत्ता के समर्थकों को निशाना बनाता है, जिसमें बैंकिंग, बिज़नेस और राजनीति से जुड़े लोग हैं, इसका दायरा पड़ोसी राजधानियों, खाड़ी देशों और यूरोप तक है। वह लोग निशाने पर हैं, जिन्होंने अब भी दमिश्क से संबंध बरकरार रखे हैं। 17 जून से वह संस्थान, बिज़नेस या अधिकारी, जो बशर अल असद की सरकार को आर्थिक मदद मुहैया कराते हैं, उन पर यात्रा प्रतिबंध, राजधानी में पहुंच जैसे प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। साथ में गिरफ़्तारी जैसे दूसरे प्रावधान भी इस कानून में शामिल हैं।''
सीज़र एक्ट का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों को सीरिया के साथ व्यापार करने से रोकना है। इसका एक साफ़ उद्देश्य लेबनान में सत्ता परिवर्तन है, जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूती से सीरिया के बाज़ारों के साथ जुड़ी हुई है। गार्डियन की रिपोर्ट में कहा गया, ''लेबनान में ढहती मुद्रा को आने वाले सीज़र एक्ट में ध्यान में रखा हो सकता है, बेरूत में जारी आर्थिक संकट से सीरिया की अर्थव्यवस्था बेधड़क गिरेगी। कुछ अमेरिकी अधिकारियों द्वारा ऐसी ही समानताएं दिखाते हुए कहा जा रहा है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। इसलिए इनसे निपटने के लिए एक जैसी पहुंच की ही जरूरत है। इस सप्ताहांत सीरिया में अमेरिका के विशेष दूत जेम्स जैफ्री ने दावा किया कि सीरिया में गिरती मुद्रा की एक वजह अमेरिकी प्रतिबंध हैं।''
इन सबसे ऊपर ICC पर ट्रंप के आरोप अमेरिकी नीतियों का दोमुहांपन सामने रखते हैं, एक तरफ तो अमेरिकी नीतियां नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की बात करती हैं, तो दूसरी तरफ़ भूराजनीतिक वजहों से अपने मनमुताबिक़ प्रावधानों को धता बताते हुए काम करती हैं। चाहे पेरिस समझौते हो या UNHRC, UNESCO, WHO और ICC का मामला- ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अंतरराष्ट्रीय ढांचे में आवारा-पागल हाथी की तरह होता नज़र आता है।
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US’s Stand on ICJ and Caesar Act: The ‘Rogue Elephant’s’ Hypocrisy https://www.newsclick.in/Donald-Trump-Economic-Sanctions-ICC-US-Military-War-Crimes