NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
ICJ और सीज़र एक्ट: आवारा-पागल हाथी की तरह बर्ताव करता अमेरिका
ICC मामले पर दोमुहांपन और अपनी नीतियों पर अमेरिका का कपट साफ़ नज़र आता है। एक तरफ़ अमेरिका अंतरराष्ट्रीय ढांचे में ''नियम आधारित'' व्यवस्था का भाषण देता रहता है, तो दूसरी तरफ भू-राजनीतिक वजहों से अपनी मनमर्जी से बिना किसी चीज़ के डर के बर्ताव करता है।

एम. के. भद्रकुमार
17 Jun 2020
icc

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 जून को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (International Criminal Court : ICC) के उन अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जो 19 साल लंबे चले अफ़गानिस्तान युद्ध में अमेरिकी सैनिकों और गुप्चतर संस्थाओं के कर्मियों द्वारा किए गए संभावित अपराधों की जांच कर रहे थे। अब ब्रिटेन ने भी फ्रांस और जर्मनी की तरह, ट्रंप के इस एक़्जीक्यूटिव ऑर्डर से किनारा कर लिया है।

शनिवार, 13 जून को बेहद कड़े शब्दों में ब्रिटिश विदेश सचिव डोमिनिक रब ने कहा, ''ब्रिटेन जघन्य युद्ध अपराधों में सजा दिलवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का पूरा समर्थन करता है।'' उन्होंने आगे कहा, ''हम न्यायालय द्वारा किए गए सकारात्मक सुधारों का समर्थन जारी रखेंगे, ताकि यह जितना संभव हो सके, उतने प्रभावी ढंग से काम कर सके। अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के अधिकारियों को अपना काम करने की स्वतंत्रता और तटस्थता की छूट होनी चाहिए, उन्हें प्रतिबंधों का डर नहीं होना चाहिए।''

ट्रंप का प्रशासनिक आदेश ICC की कई तरीके से निंदा करता है। मसलन:

 

ICC की जांच अमेरिकी ''सहमति'' के बिना हो रही है।
ICC की कार्रवाई ''अमेरिकी लोगों पर हमला'' है और इससे ''हमारी राष्ट्रीय अखंडता का क्षरण'' होता है।
ICC एक गैर-जिम्मेदार और अप्रभावी अंतरराष्ट्रीय नौकरशाह संस्था है, जो अमेरिकी सैन्यकर्मियों और मित्र-साझेदार देशों के सैन्यकर्मियों को निशाना बनाती और डराती है।
ICC ने खुद को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाए।
ICC ''इज़रायल समेत हमारे मित्र देशों के खिलाफ राजनीतिक मंशा वाली जांच'' करती है।

 

अफ़गानिस्तान में ''युद्ध अपराधों के आरोपों को बढ़ावा'' देकर हमारे ''विरोधी देश ICC का फायदा'' उठा रहे हैं।
अमेरिका के पास यह विश्वास करने की ठोस वजह हैं कि ICC में प्रोसेक्यूटर जैसे उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार और कदाचार होता है।

अगले चुनाव जीतने के क्रम में ट्रंप घरेलू राजनीति पर नज़र रखे बिना कुछ बोलते या करते नहीं हैं। ताजा एक़्जीक्यूटिव ऑर्डर 'वेस्ट प्वाइंट' पर अमेरिकी सैन्य अकादमी की ग्रेजुएशन सेरेमनी की शाम को जारी किया गया था। इस शाम में पारंपरिक तौर पर राष्ट्रपति का अभिभाषण भी होता है। यहां उन्होंने बैच को ''क्लास ऑफ 2020'' कहकर संबोधित किया और खुद को अमेरिकी सैन्य शक्ति का मसीहा बताया।

लेकिन बात इससे आगे की है। अमेरिका को डर है कि ICC जांचकर्ता अफ़गानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों द्वारा किए गए युद्ध अपराधों के अकाट्य सबूत पेश कर सकते हैं, जो पहले से ही बड़ी मात्रा में मौजूद हैं। 27 मार्च, 2020 को फॉरेन पॉलिसी द्वारा प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट में अफ़गानिस्तान में अमेरिका की ज़हरीली विरासत को कुछ इस तरह बयां किया गया, ''अब जब अमेरिका अफ़गानिस्तान छोड़ने के लिए तैयार हो रहा है, तब हजारों हत्याओं की जांच बाकी रह गई है। वाशिंगटन इस पर बात करने के लिए तैयार नहीं है।''

यह जगज़ाहिर है कि अफ़गानिस्तान में हिरासत में लिए गए लोगों के खिलाफ अमेरिकी खुफ़िया एजेंसियों द्वारा अपनाए जाने वाले तरीके बेहद बर्बर रहे हैं। अमेरिकी सैन्यकर्मियों द्वारा अपने मनोरंजन के लिए की गई हत्याएं, अमेरिकी प्रशिक्षित मारक दस्तों और अनुबंधित ठेकेदारों द्वारा की गई गैर न्यायिक हत्याओं का बड़े स्तर पर दस्तावेज़ीकरण किया गया है। यहां तक कि अफ़गानिस्तान के बड़े नेताओं द्वारा भी इनकी निंदा की गई है।

अमेरिका के जो यूरोपीय मित्र देश अफ़गानिस्तान में NATO का हिस्सा रहते हुए साथ लड़े थे, उनके पास अमेरिकी सैन्यबलों और खुफ़िया एजेंसियों द्वारा किए गए अत्याचार के कुछ अहम और ख़ास जानकारी हो सकती है। यही चीज ICC की जांच को सनसनीखेज़ बनाती है।

2002 में ICC को बनाए जाने के पीछे बड़ी यूरोपीय शक्तियां की मुख्य कवायद़ थी। ख़ासकर ब्रिटेन ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी। ICC की 10वीं वर्षगांठ पर ब्रिटेन के विदेश सचिव विलियम हेग ने, ''जहां कहीं भी गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराध होंगे, उनमें सजा दिलाने के लिए ब्रिटेन की सक्रिय भूमका'' का वायदा किया था। साथ ही उन्होंने ''ICC को संयुक्त राष्ट्रसंघ का न्यायिक अंग'' बताया था।

बल्कि 2013 में ब्रिटिश सरकार ने एक रणनीतिक पेपर जारी किया था। संयोग है कि ब्रिटेन ही सुरक्षा परिषद में शामिल एकमात्र देश है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice: ICJ) के अनिवार्य न्यायक्षेत्राधिकार को माना है। ICJ के मुताबिक़ अफ़गानिस्तान में युद्ध अपराधों की ICC जांच में बेहद विस्फोटक जानकारी सामने आने का माद्दा है। हर तरफ से यह संकेत हैं कि दो दशक से अफ़गानिस्तान में जारी अमेरिकी कठपुतली सरकारों का अब खात्मा होने वाला है। अब एक नया युग शुरू होना जा रहा है। अफ़गानिस्तान में अब संप्रभुता घर कर रही है, सत्ता में बैठे अमेरिका के एजेंटों को हटाया जा चुका है, अफ़गानी राष्ट्रवाद उभरकर सामने आ रही है,  अब यह केवल वक़्त की बात है कि अमेरिका द्वारा ''आतंक के खिलाफ़ जंग'' के नाम पर की गई ज़्यादतियां अफ़गान राष्ट्र की सामूहिक चेतना में उभरकर सामने आएँगी।

अफ़गान युद्ध में अमेरिका की हार का यही जो़ख़िम है। अफ़गानिस्तान में शांति के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि ज़ालमय खालीज़ाद को देश में उभर रहे किसी ढांचे में खुद को बैठाना बाकी है। वे भविष्य की सरकारों से अपने लिए क्षमदान की व्यवस्था करने में लगे हैं। उन्हें यह सरकारें पिछले दो दशकों के पापों के लिए सजा दे सकती हैं। अटकलें हैं कि तालिबान और पाकिस्तान उनकी मांग मान सकते हैं।

क्योंकि अमेरिका रोम स्टेच्यूट का हिस्सा नहीं रहा है, इसलिए ICC जांच में सहयोग करने के लिए उस पर पर कोई बाध्यता नहीं हैं। लेकिन अफ़गानिस्तान सरकार पर इसमें सहयोग देने की बाध्यता है। अमेरिका द्वारा अफ़गान बातचीत को दिशा देने के लिए रूस को जोड़ने की कवायद की यह एक वज़ह हो सकती है।

बल्कि ट्रंप ने तो यहां तक कहा है कि ''विरोधी देश.... ICC को भरमा रहे हैं'' और ''अमेरिकी सैन्यकर्मियों के खिलाफ़ इन आरोपों को हवा दे रहे हैं।''

 

ट्रंप का एक़्जीक्यूटिव ऑर्डर उनके दोमुंहेपन का सबूत भी है। एक तरफ जब अमेरिका ICC पर अपनी संप्रभुता को भंग करने का आरोप लगा रहा है, तब अमेरिका में ही सीज़र एक्ट नाम का नया कानून पास हुआ है, जो आने वाले हफ़्ते में लागू हो जाएगा। यह कानून सीरिया में कथित उत्पीड़न का शिकार लोगों की तस्वीरों के आधार पर बनाया गया है, इसके ज़रिए सीरिया पर कमरतोड़ प्रतिबंध लगाए जाएंगे।

जैसा इस सप्ताहांत में गार्डियन की रिपोर्ट में लिखा गया, ''पहले की तरह के अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के उलट नया कानून सीरिया के बाहर इसकी सत्ता के समर्थकों को निशाना बनाता है, जिसमें बैंकिंग, बिज़नेस और राजनीति से जुड़े लोग हैं, इसका दायरा पड़ोसी राजधानियों, खाड़ी देशों और यूरोप तक है। वह लोग निशाने पर हैं, जिन्होंने अब भी दमिश्क से संबंध बरकरार रखे हैं। 17 जून से वह संस्थान, बिज़नेस या अधिकारी, जो बशर अल असद की सरकार को आर्थिक मदद मुहैया कराते हैं, उन पर यात्रा प्रतिबंध, राजधानी में पहुंच जैसे प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। साथ में गिरफ़्तारी जैसे दूसरे प्रावधान भी इस कानून में शामिल हैं।''

सीज़र एक्ट का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों को सीरिया के साथ व्यापार करने से रोकना है। इसका एक साफ़ उद्देश्य लेबनान में सत्ता परिवर्तन है, जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूती से सीरिया के बाज़ारों के साथ जुड़ी हुई है। गार्डियन की रिपोर्ट में कहा गया, ''लेबनान में ढहती मुद्रा को आने वाले सीज़र एक्ट में ध्यान में रखा हो सकता है, बेरूत में जारी आर्थिक संकट से सीरिया की अर्थव्यवस्था बेधड़क गिरेगी। कुछ अमेरिकी अधिकारियों द्वारा ऐसी ही समानताएं दिखाते हुए कहा जा रहा है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। इसलिए इनसे निपटने के लिए एक जैसी पहुंच की ही जरूरत है। इस सप्ताहांत सीरिया में अमेरिका के विशेष दूत जेम्स जैफ्री ने दावा किया कि सीरिया में गिरती मुद्रा की एक वजह अमेरिकी प्रतिबंध हैं।''

इन सबसे ऊपर ICC पर ट्रंप के आरोप अमेरिकी नीतियों का दोमुहांपन सामने रखते हैं, एक तरफ तो अमेरिकी नीतियां नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की बात करती हैं, तो दूसरी तरफ़ भूराजनीतिक वजहों से अपने मनमुताबिक़ प्रावधानों को धता बताते हुए काम करती हैं। चाहे पेरिस समझौते हो या UNHRC, UNESCO, WHO और ICC का मामला- ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अंतरराष्ट्रीय ढांचे में आवारा-पागल हाथी की तरह होता नज़र आता है।


 

मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
US’s Stand on ICJ and Caesar Act: The ‘Rogue Elephant’s’ Hypocrisy https://www.newsclick.in/Donald-Trump-Economic-Sanctions-ICC-US-Military-War-Crimes

America
Afganistan
america and icc
afganistan war crime trial aganist america
International Court of Justice
international criminal court

Related Stories

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

तालिबान: महिला खिलाड़ियों के लिए जेल जैसे हालात, एथलीटों को मिल रहीं धमकियाँ

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

पड़ताल दुनिया भर कीः पाक में सत्ता पलट, श्रीलंका में भीषण संकट, अमेरिका और IMF का खेल?

लखनऊ में नागरिक प्रदर्शन: रूस युद्ध रोके और नेटो-अमेरिका अपनी दख़लअंदाज़ी बंद करें

यूक्रेन पर रूस के हमले से जुड़ा अहम घटनाक्रम

यूक्रेन की बर्बादी का कारण रूस नहीं अमेरिका है!

कोविड -19 के टीके का उत्पादन, निर्यात और मुनाफ़ा

आओ पूरी दुनिया को बताएँ कि इस दुनिया में दक्षिणी गोलार्ध के देश भी मौजूद हैं: चौथा न्यूज़लेटर (2022)


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License