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भारत
राजनीति
अहिंसा से नफ़रत और प्यार तक का सफ़र
कुछ ही लोग इतिहास के रास्ते को प्यार से बदल सकते हैं। हाल ही में शुरू किए गए टोल-फ़्री नंबर हेट क्राइम के मामलों को रिपोर्ट करने के लिए ऐसी ही एक पहल है।
सागरी छाबरा
18 Jul 2019
अहिंसा से नफ़रत और प्यार तक का सफ़र

हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हमें हमेशा भारतीय होने पर गर्व रहा है। ऐसा इसलिए कि यह धरोहर अहिंसा और सत्याग्रह की नींव पर लड़े गए स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों से जुड़ी हुई है।

10 मार्च 1930 को जब साबरमती आश्रम में 2,000 से अधिक लोग प्रार्थना में शामिल हुए तो गांधी ने सत्याग्रह की बारिकियों को समझाया। उन्होंने कहा, “आप कैसे हैं जो निडर होकर यहां आए हैं। मुझे नहीं लगता कि आप में से कोई भी यहां होता अगर आपको राइफ़ल शॉट्स या बम का सामना करना पड़ता। मान लीजिए कि मैंने घोषणा की होती कि मैं एक हिंसक अभियान शुरू करने जा रहा हूं, यह ज़रूरी नहीं कि राइफ़लों से लैस लोगों के साथ बल्कि लाठी और पत्थरों के साथ, क्या आपको लगता है कि सरकार मुझे अब तक आज़ाद छोड़ दिया होता? और आप यहां आए हैं क्योंकि आप स्वैच्छिक कारावास की मांग के विचार से अब तक परिचित हो चुके हैं। भारत के 7,00,000 गांवों में से प्रत्येक गांव के दस लोग नमक अधिनियम बनाने और अवज्ञा करने करने के लिए आगे आते है, तो यह सरकार क्या कर सकती है?”

मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य उन लोगों से मिलना रहा है जिन्होंने वास्तव में महात्मा गांधी के साथ काम किया था। वीरबालाबेन नगरवाडिया ने मुझे बताया कि वह साबरमती आश्रम में मौजूद थीं जब गांधी द्वारा डांडी मार्च का आरंभ किया गया था। मैं मोहित हो गई क्योंकि वे इतिहास के इस महत्वपूर्ण क्षण देखा था।

मैंने सांस रोककर उनसे पूछा, "आपने क्या देखा?"

“पूरी रात प्रार्थना और गायन होता रहा। गांधीजी ने कहा कि जब तक स्वराज नहीं मिलता, मैं नहीं लौटूंगा। हम सब यह जानकर रो पड़े कि हम उन्हें दोबारा नहीं देख पाएंगे।"

यह सच है कि गांधी कभी साबरमती आश्रम नहीं लौटे।

हाल ही में मैंने एक और ऐतिहासिक क्षण देखा। नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में आधुनिक समय के एक्टिविस्ट का एक छोटा समूह जिसे मैं आज के सत्याग्रहियों के नाम से पुकारना पसंद करती हूं उन्होंने मॉब लिंचिंग और क्राइम ऑफ़ हेट के ख़िलाफ़ 24 घंटे की हॉटलाइन सेवा शुरू की। चूंकि विभिन्न राज्यों में क्राइम ऑफ़ हेट और मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं और लिंचिंग की 78 घटनाएं हुई हैं ऐसे में लोगों का एक समूह साहस और दृढ़ता से एकजुट हुआ है। यह कुछ ऐसा है जिसे राज्य को बहुत पहले करना चाहिए था। 16 जुलाई 2019 को भारत के आम लोगों ने 'भारत की धारणा' पर एकजुट हुए जो सभी धर्मों के लोगों को भाईचारे की भावना के साथ एकजुट रहने को लेकर है। यह ऐसे समय में जब सरकार ख़ामोश है।

लिंचिंग की गिनती फिर से हो सकती है: ट्रेन में जुनैद नाम के 17 साल के एक युवा लड़के की घटना से लेकर अलवर में पहलू ख़ान (जिसकी मौत के बाद उसे आरोपी कहा जा रहा है और परिवार पर उनके ख़िलाफ़ कई आरोप लगाए जा रहे हैं) और रक़बर ख़ान तक जहां पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाने के बजाय चाय पीने के लिए होटल के पास वाहन रोका था। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने रक़बर को मृत घोषित कर दिया। ये सभी घटनाएं हमारे समाज के अमानवीयता को बयां करता है। ये सब सरकार के अधिकारियों द्वारा उनके कर्तव्य का अपमान है।

नाज़ी जर्मनी में एक 15 वर्षीय लड़की ने गुप्त रूप से यहूदियों को कनसेंट्रेशन कैंप में निर्वासन से बचाने में मदद करने के लिए 'व्हाइट रोज़' नामक एक समूह का गठन किया। उसे पकड़ा गया और उससे मुक़दमा के दौरान पूछा गया:

"तुमने ऐसा क्यों किया?"

उसने जवाब दिया, "किसी को यह करना है!"

हां, किसी को यह करना होगा और जब गांव या किसी महानगर से कम से कम 10 लोग ऐसी शक्तियों से नफ़रत अपराध को लेकर पूछेंगे तो यह अब आगे ख़ामोश,अस्पष्ट या अनियंत्रित नहीं रहेगा। वकीलों की एक टीम एफ़आईआर भी करेगी जो किसी भी मुक़दमे का आधार है।

हालांकि, जो अहिंसा और सत्याग्रह के सभ्यतामूलक मूल्यों को वापस लाएगा वह है प्रेम और भाईचारा। यही कारण है कि मैं सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदेर को सलाम करता हूं जो अपने दोस्तों के समूह के साथ उन सभी क्षेत्रों तक 'प्रेम का कारवां' लेकर जा रहे हैं जहां हम सभी की तरफ़ से सहानुभूति, पश्चाताप और खेद व्यक्त करते हुए नफ़रत वाली लिंचिंग हुई है। ये लोग भारत के मानसिक स्तर को दहशत में बदलता हुआ देख रहे हैं। वे प्रत्येक परिवार के पास जाते हैं जिसने अपनों को खो दिया है और हाथ जोड़कर उन लोगों से गहरा दर्द, पीड़ा और दुःख व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं, 'नॉट इन माइ नेम'।

किसी को तो करना है!

टोल-फ़्री नंबर 1800-313-60000 है। जब आप नफ़रत वाले अपराध देखते हैं तो अब फ़ोन करें और अपनी नाराज़गी व्यक्त करने के लिए पुलिस, गृह मंत्रालय और मानवाधिकार आयोग को फ़ोन करें।

आपको बता दें कि हमारे बीच कपटी और छिपे हुए लोगों की तुलना में ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ना कहीं ज्यादा आसान था। जब मृतक के ख़िलाफ़ 'गाय की तस्करी'और 'गोमांस खाने' और 'सीट साझा न करने' जैसे कई ऊटपटांग आरोप लगाए गए हैं तो एडवोकेट संतोष हेज ने जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के उपन्यास आर्म्स एंड द मैन से एक वाक्य उद्धृत किया है - "मैं ख़ुद की सुरक्षा के लिए शैतान को क़ानून का लाभ दे दूंगा।" हां, क़ानून के शासन की तरह सरल है, अगर आपको लगता है कि कोई व्यक्ति एक 'गाय तस्कर' है तो आप पुलिस को बुलाएं, लेकिन क़ानून को अपने हाथों में न लें!

बैठक में गोरखपुर के डॉ. कफ़ील ख़ान ने नफ़रत की बीज बोने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की आलोचना करते हुए यह भी कहा कि उनकी पुस्तक चाइल्डकेयर एंड पेडियाट्रिशियन की लॉन्चिंग को उनके राजनीतिक दृष्टिकोण के चलते एम्स के प्रतिष्ठित हॉल में किस तरह रद्द कर दिया गया था। रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने उन्हें किसी भी तरह पुस्तक लॉन्च करने में मदद की।

साउथ एशियन डॉक्यूमेंटेशन सेंटर और तीन दशकों से मानवाधिकारों के लिए अभियान चलाने वाले रवि नायर ने सभी को चेताया था कि राज्य और सरकार के बीच अंतर था। राज्य को अपना कर्तव्य निभाना था, जबकि सरकार हर पांच साल में बदल जाती थी। उन्होंने राज्य को उसके प्राथमिक कर्तव्य यानी नागरिक की रक्षा न करने को लेकर चर्चा की।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने भारत की वास्तविकता के बारे में बात की जहां ईसाई, दलित और मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हिंसा हर रोज़ हक़ीक़त बन रही थी और हर किसी को बोलने की ज़रूरत थी।

तभी मैंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को दर्शकों के बीच देखा। आख़िरी बार मैं उनसे कन्स्टीट्यूशन क्लब में मिली थी जहां वह धर्मनिरपेक्षता पर एक बैठक में शामिल होने आए थे। उसने कहा "मुझ पर गोली चली है'। मैंने देखा कि मानो मेरा देश की काल्पनिक दुनिया का दुःस्वप्न बन गया था क्योंकि उन्होंने बताया कि कैसे किसी ने उन्हें कन्स्टीट्यूशन क्लब के बाहर धक्का दिया था और गोली मारने की कोशिश की थी जो संसद से महज कुछ ही मिनट की दूरी पर है। यह बहुत ही चौंकाने वाली घटना थी कि ऐसी घटना संसद से कुछ मिनट की दूरी पर होनी चाहिए जब वह शांतिपूर्ण बैठक में हिस्सा लेने आए थे। घटना के बाद पुलिस को बुलाया गया और ख़ालिद को उनका बयान दर्ज करने के लिए ले जाया गया। प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने तब शांत रहने की अपील की थी और गार्ड से कहा था कि वे हॉल के अंदर सभी को बंद न करें क्योंकि बाहर गोलियां चली थी।

आज मैंने ख़ालिद से पूछा कि केस का क्या हुआ? मुझे पता था कि आरोपियों के ख़िलाफ़ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया गया था।

यह मेरा देश धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों पर स्थापित है और मैं नहीं चाहता कि यह नफ़रत का गणराज्य बने।

1800-313-60000 पर कॉल करें क्योंकि हम संबंधित नागरिकों के समूह यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के साथ हैं लेकिन मुझे भी कहीं न कहीं चाहिए जहां आप और मैं दोनों यूनाइटेड फॉर लव के लिए कॉल कर सकते हैं। कुछ ही लोग थे जो उस रात महात्मा गांधी के साथ कमरे में बैठकर भजन गा रहे थे और मुट्ठी भर सत्याग्रहियों ने उनके साथ डांडी यात्रा की। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का रास्ता बदल दिया।

कुछ ही लोग इतिहास के रास्ते को प्यार से बदल सकते हैं। प्रिय पाठक इसे आप कर सकते हैं।

लेखक फिल्म-निर्देशक और पुरस्कार विजेता लेखक हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी है।

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