NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
ब्रिटिश राज से अरबपति राज तक – भारत की नवउदारवादी यात्रा
निस्संदेह भारत में चीन के मुकाबले मध्य वर्ग में बढ़ोतरी नहीं हो रही है.
बोदापाती सृजना
21 Dec 2017
Translated by महेश कुमार
inequality

विश्व असमानता रिपोर्ट, 2018 जिसे 20 दिसम्बर को भारत में जारी किया गया, ने दुनिया भर में बढ़ती असमानताओं पर विभिन्न देशों में एक गंभीर बहस पैदा कर दी है. रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों के लिए सोचने के लिए इसमें काफी कुछ है. इसके रिपोर्ट के अनुसार, 1980 के दशक के बाद से अमेरिका, चीन और रूस के साथ भारत भी एक ऐसा देश है, जहाँ असमानता तेजी से बढ़ी है.

विश्व संपत्ति और आय डेटाबेस, जिस पर यह रिपोर्ट आधारित है, दर्शाती है कि भारत की आय में आबादी के ऊपरी 1% का हिस्सा जो 1983 में लगभग 6% था, वह 2014 में बढ़कर 22% हो गया है. और इसके उलट,देश की आय में आबादी के निचले 50% का हिस्सा 1983 में 24% से 2014 में घटकर 15% रह गया है.

स्वतंत्रता के बाद भारत में आय असमानताओं में कमी आई

भारत के लिए असमानता के आंकड़ों का गहन अध्ययन करने वाले चांसल और पिकेटी ने बताया कि 1951 से 1980 तक स्वतंत्रता के बाद भारत में असमानताओं में तेजी से कमी आई क्योंकि आजादी के बाद भारत की विभिन्न सरकारों ने कई प्रगतिशील आर्थिक नीतियों को अपनाया था.

भारतीय सरकार ने 1951 में रेलवे का और 1953 में हवाई परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया, उन्हें निजी पूँजी के हाथों से छीन लिया. इसके बाद, 1960 और 1970 के दशक में, लगभग सारे बैंकिंग क्षेत्र और तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ, साथ ही कई अन्य सुधारों ने सरकार को मजदूर वर्ग और किसानों के हाथों में आय को पुनर्वितरित करने में मदद की, अगर ऐसा नहीं होता तो यह भी अमीर उद्योगपतियों के खजाने में चली जाती.

आजादी के बाद की अवधि (1951 से 1980) में इस देश के मजलूमों के लिए आय में बढ़ोतरी हो गयी. इन 3 दशकों में, जबकि राष्ट्रीय आय में 67% की दर से वृद्धि हुई, और निचले पायदान पर रह रही आबादी के लिए आमदनी इससे भी ऊँची दर से बढ़ी.

आबादी के आधे के करीब निचले हिस्से की आय में 87% की वृद्धि हुई और जनसंख्या के बीच के 40% हिस्से की आय में 74% की दर से बढ़ोतरी हुयी. लेकिन,आबादी के शीर्ष 1% की आय में मात्र 5% की बढ़ोतरी हुई और वह भी पूरे 30 वर्ष की अवधि में. इससे भी ज्यादा तथ्यपरक यह है कि सबसे अमीर की आय, जो  शीर्ष 0.001% जनसंख्या में आते हैं उनकी आय में नकारात्मक -42% वृद्धि हुई.

नतीजतन, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन (1939 में) के दौरान शीर्ष 1% आबादी का हिस्सा कुल राष्ट्रीय आय का 21% था, जो 1983 तक आते-आते 6% से कम हो गया.

नवउदारवाद ब्रिटिश राज को फिर से वापस ले आया है

आजादी के बाद नव-उदार नीतियों के आगमन से असमानतायें तेज़ी से बढी हैं और वे नीतियाँ पलट गयी जो बड़े हिस्से की आमदनी को बढ़ा रही थी. चांसल और पिकेटि ने बताया कि हालांकि, 1991 में नवउदारवाद में आधिकारिक रूप से भारत का प्रवेश हुआ, लेकिन इस तरह की नीतियों की शुरूआत 1984 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा कर दी गई थी – जिसने अधिक उदार शासन के लिए आर्थिक नीति का मार्ग प्रशस्त किया.

अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के लिए खोलने से, सार्वजनिक क्षेत्र का बड़े पैमाने पर निजीकरण, श्रम कानूनों की धज्जियां उडाना  और निजी पूंजी के लिए खानों, स्पेक्ट्रम, भूमि, पानी आदि जैसे सार्वजनिक संसाधनों को का स्पष्ट रूप से खोल दिया. इसके  प्रभावस्वरुप – आय गरीबों गरीबों के हाथों से निकलकर अमीर के हाथ में चली गयी.

इससे असमानताओं का नक्शा ही बदल गया. 1983 से, शीर्ष 1% की आय में हिस्सेदारी बढ़ती गयी. 1983 में 6% से शुरू होकर  उनका हिस्सा 2014 में 22% तक पहुंच गया, जोकि  ब्रिटिश समय से भी ज्यादा था.

आखरी पायदान तक बढ़ोतरी के खोखले दावे

चांसल और पिकेटी ने उन दावों को भी तहस-नहस कर दिया जिनमें यह झांसा दिया गया था कि नव-उदारवाद सबके लिए लाभकारी है जबकि 1980 से 2014 तक के 34 वर्षों में, पिछले तीन दशकों (67% बनाम 187%) की तुलना में बहुत अधिक वृद्धि देखी गई है. इस विकास के फल ज्यादातर समृद्ध लोगों के पास गए हैं. इन 34 वर्षों में निचले पायदान पर 50% आबादी की आय केवल 89% की वृद्धि दर से बढी है. जब 1951 से 1980 तक इस समूह की 87% की विकास दर से तुलना करते हैं तो.

वास्तव में, कल्याणकारी राज्य के पीछे हटने को देखते हुए, नीचे की 50% आबादी की प्रभावी आय इससे भी कम होगी. निजीकरण के दौर के बाद सार्वजनिक परिवहन और सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था सहित अन्य गरीबों से जुडी  विभिन्न सब्सिडी की वापसी के चलते  - उदारीकरण के बाद जीवित रहने की वास्तविक लागत में बढ़ोतरी हुयी यानी जीवन जीना महंगा हो गया है.

इस तथ्य यह स्पष्ट है कि विकास पूरी तरह से सुपर-समृद्ध के पक्ष में हुआ, क्योंकि जनसंख्या के शीर्ष 0.001% आबादी की आय में जिनमें अंबानी और अदानी भी शामिल हैं की आय में 2726% की बढ़ोतरी हुयी है.

हां, यह सही है - 2726% तक की बढ़ोतरी - इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पिछले 3 दशकों में भारत के अरबपतियों की सूची 1 से 132 तक पहुँच गई है. इस दौरान, भारत कुपोषित बच्चों और गरीब लोगों की सबसे बड़ी आबादी वाला घर बन गया है.

भारत के मध्य वर्ग का मिथक

विश्व असमानता रिपोर्ट के आंकड़े के अनुसार अवह इस तथाकथित मिथक को भी तोडती है कि भारत में मध्यम वर्ग की आबादी अब्ध रही है. चांसल और पिक्केटी ने नोट किया है कि, संसाधनों और आय के वितरण संबंधी मामलों में नवउदारवादी अवधि की तुलना में आज़ादी के बाद पहले तीन दशकों में मध्य वर्ग बहुत ज्यादा बेहतर था. 1951-1980 के बीच मध्यम वर्ग (शीर्ष 10% की आबादी के नीचे के 40% हिस्से) ने लगभग 50% वृद्धि दर हासिल की इसके विपरीत, 1980-2014 की अवधि में इसने केवल 23% वृद्धि दर हासिल की.

इसकी तुलना अगर चीन से करें, जिसने पिछले कुछ दशकों में इसी तरह की उच्च वृद्धि दर देखी है, जहां मध्य वर्ग ने भारत के मुकाबले (जोकि आबादी का 40% हिस्सा है) ने आय में 43% पर कब्जा कर लिया है.

इससे जाहिर होता है कि भारत में मध्य वर्ग नहीं बढ़ रहा है क्योंकि वह चीन में बढ़ रहा है.

neo liberalism
capitalism
inequality
gareebi

Related Stories

भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट

वित्त मंत्री जी आप बिल्कुल गलत हैं! महंगाई की मार ग़रीबों पर पड़ती है, अमीरों पर नहीं

RTI क़ानून, हिंदू-राष्ट्र और मनरेगा पर क्या कहती हैं अरुणा रॉय? 

जब तक भारत समावेशी रास्ता नहीं अपनाएगा तब तक आर्थिक रिकवरी एक मिथक बनी रहेगी

आर्थिक असमानता: पूंजीवाद बनाम समाजवाद

क्यों पूंजीवादी सरकारें बेरोज़गारी की कम और मुद्रास्फीति की ज़्यादा चिंता करती हैं?

पूंजीवाद के अंतर्गत वित्तीय बाज़ारों के लिए बैंक का निजीकरण हितकर नहीं

भारत के पास असमानता से निपटने का समय अभी भी है, जानें कैसे?

क्या पनामा, पैराडाइज़ व पैंडोरा पेपर्स लीक से ग्लोबल पूंजीवाद को कोई फ़र्क़ पड़ा है?

मानवता को बचाने में वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं के बाहर भी एक राजनीतिक भूमिका है


बाकी खबरें

  • समीना खान
    विज्ञान: समुद्री मूंगे में वैज्ञानिकों की 'एंटी-कैंसर' कम्पाउंड की तलाश पूरी हुई
    31 May 2022
    आख़िरकार चौथाई सदी की मेहनत रंग लायी और  वैज्ञानिक उस अणु (molecule) को तलाशने में कामयाब  हुए जिससे कैंसर पर जीत हासिल करने में मदद मिल सकेगी।
  • cartoon
    रवि शंकर दुबे
    राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास
    31 May 2022
    10 जून को देश की 57 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी पार्टियों ने अपने बेस्ट उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। हालांकि कुछ दिग्गजों को टिकट नहीं मिलने से वे नाराज़ भी हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 
    31 May 2022
    रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाना, पहले की कल्पना से कहीं अधिक जटिल कार्य साबित हुआ है।
  • अब्दुल रहमान
    पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन
    31 May 2022
    फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर एकतरफा प्रतिबंध लगाए हैं। इन देशों ने रूस पर यूक्रेन से खाद्यान्न और उर्वरक के निर्यात को रोकने का भी आरोप लगाया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट
    31 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,338 नए मामले सामने आए हैं। जबकि 30 मई को कोरोना के 2,706 मामले सामने आए थे। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License