NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
भारत सरकार कैम्ब्रिज एनालिटिका को जो प्रश्न कर रही है वे उसकी जनक कंपनी एससीएल की भूमिका पर क्यों नहीं?
सरकार ने एस.सी.एल. और फेसबुक के भारतीय उप-ठेकेदारों को प्रशन करने से नज़रंदाज़ कर दिया है
सुबोध वर्मा
26 Mar 2018
Translated by महेश कुमार
फेसबुक

23 मार्च को, भारत के आईटी मंत्रालय ने कैम्ब्रिज एनालिटिका (सीए) को एक नोटिस जारी किया, कि ब्रिटेन की फर्म ने चुनाव अभियान और अन्य व्यवहारिक मनोवैज्ञानिक कार्यकर्मों को पूरा करने के लिए फेसबुक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और 31 मार्च तक छह सवालों के जवाब देने के लिए कहा गया। ये प्रश्न हैं: i) क्या वे किसी भी परियोजना के लिए फेसबुक से एकत्रित भारतीयों के डेटा का उपयोग कर रहे हैं ii) इस काम के लिए उन्होंने किसे जिम्मेदारी दी  iii) उन्होंने इस तरह के डाटा को कैसे हासिल किया iv) क्या व्यक्तियों से सहमति ली गई थी v) कैसे इस तरह के डाटा का उपयोग किया गया और vi) क्या इस डाटा का उपयोग कर किसी की भी प्रोफाइलिंग की गयी थी?

किसी विदेशी कंपनी को उसकी भूमिका के सम्बन्ध में कुछ सवाल पूछने के बजाय मुद्दे को एक तरफ छोड़कर, मंत्रालय जो कुछ प्रशनों के बारे में ही सोच पाया और वह ये प्रश्न केवल कैम्ब्रिज एनालिटिका को ही संबोधित कर रहा है हैं, न कि इसकी मूल कंपनी स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन लेबोरेटरीज (एससीएल) को, जो कैम्ब्रिज एनालिटिका की जनक कम्पनी है? इससे पता चलता है कि भारत सरकार जंगल में एक बच्चे की तरह है जिसे कुछ नहीं मालूम है।

यह अब तक स्पष्ट हो चूका है कि कैम्ब्रिज एनालिटिका लगातार कई कंपनियों के प्रतिनिधि संगठन के तौर पर काम करती है क्योंकि उन्हें दुनिया में भूतही रूप में बुलाया जाता है। चैनल 4 का ऑन-कैमरा खुलासे में एलेक्जेंडर निक्स से पता चलता है कि, बर्खास्त कैम्ब्रिज एनालिटिका  बॉस इस खुलेआम के बारे में घमंड से बात करते हैं। इन मोर्चों में नियोक्ता के साथ कोई भी संबंध नहीं है इसलिए, कैम्ब्रिज एनालिटिका को अपना रहस्य बताने की कोई जरूरत ही नहीं हैं।

लेकिन यही सब कुछ नहीं है। एससीएल से कोई सवाल नहीं पूंछा गया है, जिन्होंने खुले तौर पर दावा किया है कि वह नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, घाना, सोमालिया, दक्षिण सूडान, रवांडा, लीबिया, यूक्रेन, मैक्सिको और 'पैन-प्रशांत' जैसे क्षेत्रों में काम कर रहा है यही नहीं वह संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा नाटो जैसी क्षेत्रीय ब्लॉक्स में भी काम कर रहा है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, एससीएल का कार्यलय भारत की सूची में दर्ज है – जो दिल्ली के उपनगर में गाजियाबाद में स्थित है। यह कार्यालय ओवलनो बिजनेस इंटेलिजेंस लिमिटेड (ओबीआईएल) से सम्बंधित है और इसका मालिक कोई अन्य नहीं है, बल्कि भाजपा सहयोगी जेडी (यू) के नेता के.सी.तायगी के बेटे अमरिश त्यागी के स्वामित्व में है।

भारतीय सरकार ओबीआईएल जैसी सक्रिय संस्थाओं की जांच के जरिए सीए के गुप्त लेनदेन के बारे में ज्यादा जानकारी होनी चाहिए, जो यहां की कम्पनी हैं, और जो उसकी उसकी अपनी नाक के नीचे काम कर रही हैं। वे शायद सीए/एससीएल के संचालन के बारे में और शायद उनके मोर्चों के अपने नेटवर्क के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। लेकिन अपने ज्ञान के इज़हार में, आईटी मंत्रालय ने यह सबसे स्पष्ट मार्ग खो दिया, और इस तरह से पूरी स्पष्ट जांच की प्रक्रिया को धुंधला कर दिया है।

दूसरे छोर पर - शीर्ष पर बैठी एससीएल से - मंत्रालय कोई भी सवाल पूछने के लिए तैयार नहीं है। एससीएल को 1993 में एडमैन निगेल ओके द्वारा स्थापित किया गया था। मीडिया की जांच के अनुसार, एस.सी.एल. ब्रिटेन में 18 कंपनियों और अमेरिका में 12 अन्य के माध्यम से संचालित होता है। इसके 17 अंतरराष्ट्रीय कार्यालय हैं, जिसके बारे में भारत में उल्लेख किया गया है। सीए एससीएल की एक शाखा है, जो 2013 के चुनावों में एस.सी.एल. के अवतार के रूप में उभरा।

टेड क्रूज़ और डोनाल्ड ट्रम्प के अलावा, एससीएल ने नेपाल में माओवादियों के आंकड़ों को भी एकत्र किया है, अफगानिस्तान में स्थानीय आचरणों का सर्वेक्षण किया, और केन्या में एक विवादास्पद चुनाव जीतने में मदद की, मैक्सिको में ड्रग्स पर अमेरिकी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन किया, और इसी तरह यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि एससीएल और सीए निकट समन्वय में काम कर रहे हैं।

एससीएल/सीए दोनों का यूएस और ब्रिटेन के रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इसे न केवल अमरीकी राज्य विभाग और ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय के लाखों डॉलर के ठेके प्राप्त हुए हैं, बल्कि इसके नाटो और सैंडिया (अमेरिकी परमाणु प्रतिष्ठान से जुड़े) से भी तार जुड़े हैं। एससीएल का प्रबंधन कंसर्वेटिव और नव-उदारवादी हाक के समूह द्वारा किया जाता है।

अगर भारत में सोशल मीडिया के दुरुपयोग का कोई संदेह नहीं है, तो एससीएल जांच के लिए सबसे स्पष्ट और प्राकृतिक विकल्प है। ऐसे किसी कदम की अनुपस्थिति में ही भारत सरकार के प्रयासों की गंभीरता के बारे में संदेह पैदा होता है।

इसके अलावा, फेसबुक से सीधे क्यों नही पूंछा जा रहा है? आईटी मिनिस्ट्री द्वारा फेसबुक के साथ इंटरैक्ट करने के लिए उपयोगकर्ता खातों से डेटा प्राप्त करने या खातों से डेटा को संरक्षित करने में सुपर सक्रिय है। फेसबुक के अनुसार, भारतीय सरकार ने 2017 के पहले छमाही में फेसबुक से डेटा के लिए 9853 अनुरोध किए थे। फिर भी, जब यह पूछे जाने पर कि क्या भारतीय उपयोगकर्ता डेटा एससीएल / सीए या किसी अन्य संस्था द्वारा उपयोग किया गया है, तो इसका मतलब स्पष्ट है कि भारत सरकार अभिनय ढोंग कर रही है या फिर अनजान बन रही है।

इस सबसे यह पता चलता है कि भारतीय आईटी मंत्रालय ने सीए से जो सवाल किये हैं, वे व्यक्तियों के बारे में डेटा के दुरुपयोग के बारे में उसकी "गहरी चिंता" से दूर की कहानी है और चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों के बारे में उकी चिंता की बात, केवल खाली बयानबाजी है।

 

कैम्ब्रिज एनालिटिका
फेसबुक
भाजपा
SCL
जेडी(यु)

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?

बिहार: सामूहिक बलत्कार के मामले में पुलिस के रैवये पर गंभीर सवाल उठे!


बाकी खबरें

  • अनिल सिन्हा
    उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!
    12 Mar 2022
    हालात के समग्र विश्लेषण की जगह सरलीकरण का सहारा लेकर हम उत्तर प्रदेश में 2024 के पूर्वाभ्यास को नहीं समझ सकते हैं।
  • uttarakhand
    एम.ओबैद
    उत्तराखंडः 5 सीटें ऐसी जिन पर 1 हज़ार से कम वोटों से हुई हार-जीत
    12 Mar 2022
    प्रदेश की पांच ऐसी सीटें हैं जहां एक हज़ार से कम वोटों के अंतर से प्रत्याशियों की जीत-हार का फ़ैसला हुआ। आइए जानते हैं कि कौन सी हैं ये सीटें—
  • ITI
    सौरव कुमार
    बेंगलुरु: बर्ख़ास्तगी के विरोध में ITI कर्मचारियों का धरना जारी, 100 दिन पार 
    12 Mar 2022
    एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल के मुतबिक, पहली कोविड-19 लहर के बाद ही आईटीआई ने ठेके पर कार्यरत श्रमिकों को ‘कुशल’ से ‘अकुशल’ की श्रेणी में पदावनत कर दिया था।
  • Caste in UP elections
    अजय कुमार
    CSDS पोस्ट पोल सर्वे: भाजपा का जातिगत गठबंधन समाजवादी पार्टी से ज़्यादा कामयाब
    12 Mar 2022
    सीएसडीएस के उत्तर प्रदेश के सर्वे के मुताबिक भाजपा और भाजपा के सहयोगी दलों ने यादव और मुस्लिमों को छोड़कर प्रदेश की तकरीबन हर जाति से अच्छा खासा वोट हासिल किया है।
  • app based wokers
    संदीप चक्रवर्ती
    पश्चिम बंगाल: डिलीवरी बॉयज का शोषण करती ऐप कंपनियां, सरकारी हस्तक्षेप की ज़रूरत 
    12 Mar 2022
    "हम चाहते हैं कि हमारे वास्तविक नियोक्ता, फ्लिपकार्ट या ई-कार्ट हमें नियुक्ति पत्र दें और हर महीने के लिए हमारा एक निश्चित भुगतान तय किया जाए। सरकार ने जैसा ओला और उबर के मामले में हस्तक्षेप किया,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License