NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
डॉ. कलाम दरअसल सही समय पर राष्‍ट्रवाद के जाल में फंस गए थे
सौजन्य: हस्तक्षेप
29 Jul 2015

डॉ. कलाम नहीं होते तो उनकी जगह किसी और को महान बना दिया जाता सारे वैज्ञानिक पोंगा पंडित ही बने रहते हैं मरहूम डॉ. अब्‍दुल कलाम भी कोई अपवाद नहीं थे. न तो मैं डॉ. कलाम के मिसाइलमैन और राष्‍ट्रपति बनने के जश्‍न का हिस्‍सा था और न ही आज राष्‍ट्रीय शोक में भागीदार हूं।

इस देश में वैज्ञानिकों की भरमार है। एक से एक मौलिक वैज्ञानिक, लेकिन लैब के बाहर सब एक जैसे। बीएचयू के फिजिक्‍स विभाग में एक प्रोफेसर होते थे जो हर मंगलवार संकटमोचन में पाए जाते। एक हमारे गणित के प्रोफेसर थे जो भोर में तीन बजे लोटा लेकर श्‍लोक रटते हुए घाट पहुंच जाते थे। एक और गणित के जाने-माने प्रोफेसर थे जो डायनमिक्‍स की क्‍लास में गीता का प्रवचन देते थे। बीएचयू के एक बड़े वैज्ञानिक और हमारे शिक्षक तो आगे चलकर कुलपति भी बने, लेकिन टीकी रखना और टीका लगाना जारी रहा।

                                                                                                                  

कहने का मतलब कि हमारे संस्‍थानों में विज्ञान सिर्फ प्रयोगशालाओं और कक्षाओं तक सीमित रहा है। इसके बाहर सारे वैज्ञानिक पोंगा पंडित ही बने रहते हैं और उसमें गर्व भी महसूस करते हैं। मरहूम डॉ. अब्‍दुल कलाम भी कोई अपवाद नहीं थे।

इसीलिए डॉ. कलाम नहीं होते तो उनकी जगह किसी और को महान बना दिया जाता। याद करें कि जिस वक्‍त उनकी महानता अंगडाई ले रही थी, एक वैज्ञानिक को पाकिस्‍तान में भी महान बनाया जा रहा था। दरअसल, हर दौर में सत्‍ता ऐसे लोगों का आविष्‍कार देर-सवेर कर ही लेती है जिन पर महानता का टैग लगाया जा सके। यह महानता योग्‍यता पर आधारित नहीं होती। क्‍वांटम फिजिक्‍स का सहारा लें तो कह सकते हैं कि ईश्‍वर की तरह सत्‍ताएं भी ज़रूरत पड़ने पर पासा फेंकती हैं। सियासी चौपड़ की बिसात पर जो फंस गया, सो महान बन गया।

डॉ. कलाम दरअसल सही समय पर राष्‍ट्रवाद के जाल में फंस गए थे। वे लगातार फंसते गए और इस फंसान का उन्‍होंने अंत तक सुख भी भोगा।

क्‍या आपने प्रोफेसर एस.के. सिक्‍का का नाम सुना है? ज़रा खोजिए उनके बारे में। पोखरण परीक्षण के सूत्रधार थे वे, लेकिन उनका नामलेवा कोई नहीं है।

हमने तो पोखरण के बाद प्रो. सिक्‍का का लेक्‍चर भी सुना है अपने फिजिक्‍स विभाग में। बीएचयू में उनका आना बड़ी खबर था उस वक्‍त। तब कलाम का नाम पीछे से धकेला जा रहा था (शायद आरएसएस से… मेरा मुंह मत खुलवाइए, अभी छह दिन का शोक बाकी है)। सिक्‍का इस बात से 1999 में ही दुखी थे। उन्‍होंने बताया था कि डॉ. कलाम की डीआरडीओ के भीतर क्‍या हैसियत थी।

हम चाहें तो और भी बहुत कुछ जान सकते हैं, लेकिन फिलहाल हम इतना तो जानते ही हैं कि शिलांग के लेक्‍चर की फर्जी तस्‍वीरें हर जगह घूम रही हैं।

आइआइएम शिलांग की वेबसाइट पर न तो उनके आने की, न जाने की कोई खबर है। कुछ वर्षों से डॉ. कलाम की परछाईं बने रहे (श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन के सदस्‍य और संघ संचालित कई परियोजनाओं से संबद्ध) सृजनपाल सिंह, जो लगातार उनकी यात्राओं-व्‍याख्‍यानों की तस्‍वीरें पोस्‍ट करते नहीं थकते थे, उनके ट्विटर पर शिलांग यात्रा का कोई सुराग नहीं है। और पांच दिन पहले झारखंड के आरएसएस के एक स्‍कूल में उन्‍हें श्रद्धांजलि दी ही जा चुकी है।

 मैं यह सब सिर्फ इसलिए लिख रहा हूं क्‍योंकि न तो मैं डॉ. कलाम के मिसाइलमैन और राष्‍ट्रपति बनने के जश्‍न का हिस्‍सा था और न ही आज राष्‍ट्रीय शोक में भागीदार हूं। जिन्‍होंने महाभोज छका है, वे ही उलटने के अधिकारी हैं। सत्‍य और विज्ञान के हक़ में मुझे सिर्फ एक उम्‍मीद है कि हो सकता है कभी भविष्‍य में डॉ. कलाम की मौत की दास्‍तान राष्‍ट्रवाद द्वारा उनके इस्‍तेमाल की एक लिजलिजी कहानी के रूप में सामने आ सके।

हो सकता है ऐसा न भी हो। मैं तमाम तथ्‍यों को एक महान संयोग मानकर खारिज करने को तैयार हूं, क्‍योंकि आखिर प्रकृति के तीन बुनियादी नियमों में एक नियम हाइज़ेनबर्ग का अनिश्चिततता का सिद्धांत भी है।

जब विज्ञान ही संयोगों से संचालित है, तो जीवन और मृत्‍यु के बारे में क्‍या कहें!

सौजन्य: हस्तक्षेप

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

डॉ. कलाम
राष्ट्रपति
मिसाइल मैन
भाजपा
संघ
प्रो. एस.के.सिक्का
परमाणु कार्यक्रम

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?

भारत बंद के बाद, दलितों पर हो रहे दमन के खिलाफ DSMM ने दिया राष्ट्रपति को ज्ञापन


बाकी खबरें

  • समीना खान
    ज़ैन अब्बास की मौत के साथ थम गया सवालों का एक सिलसिला भी
    16 May 2022
    14 मई 2022 डाक्टर ऑफ़ क्लीनिकल न्यूट्रीशन की पढ़ाई कर रहे डॉक्टर ज़ैन अब्बास ने ख़ुदकुशी कर ली। अपनी मौत से पहले ज़ैन कमरे की दीवार पर बस इतना लिख जाते हैं- ''आज की रात राक़िम की आख़िरी रात है। " (राक़िम-…
  • लाल बहादुर सिंह
    शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा
    16 May 2022
    इस दिशा में 27 मई को सभी वाम-लोकतांत्रिक छात्र-युवा-शिक्षक संगठनों के संयुक्त मंच AIFRTE की ओर से दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित कन्वेंशन स्वागत योग्य पहल है।
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: किसानों की दुर्दशा बताने को क्या अब भी फ़िल्म की ज़रूरत है!
    16 May 2022
    फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी का कहना है कि ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि किसान का बेटा भी एक फिल्म बना सके।
  • वर्षा सिंह
    उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!
    16 May 2022
    “किसी स्थान की वहनीय क्षमता (carrying capacity) को समझना अनिवार्य है। चाहे चार धाम हो या मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल। हमें इन जगहों की वहनीय क्षमता के लिहाज से ही पर्यटन करना चाहिए”।
  • बादल सरोज
    कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी
    16 May 2022
    2 और 3 मई की दरमियानी रात मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले के गाँव सिमरिया में जो हुआ वह भयानक था। बाहर से गाड़ियों में लदकर पहुंचे बजरंग दल और राम सेना के गुंडा गिरोह ने पहले घर में सोते हुए आदिवासी धनसा…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License