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भारत
राजनीति
गुरुग्राम में शुक्रवार की नमाज़ के पीछे जारी विवाद चरमपंथ के लिए एक बेहतरीन नुस्खा है
हिन्दू भीड़ द्वारा हैरान-परेशान किये जाने और भारतीय राज्य के द्वारा अपने हाल पर छोड़ दिए गए गुरुग्राम के मुसलमान अब इस बात को महसूस कर रहे हैं कि हर जुमे के दिन उनकी धार्मिक भावनाओं का माखौल उड़ाया जा रहा है। 
एजाज़ अशरफ़
08 Nov 2021
Gurugram Friday Prayer Controversy
चित्र साभार: द इंडियन एक्सप्रेस 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर के अपने शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के भाषण में कट्टरपंथ के खतरे पर बात की थी, एक ऐसी विषयवस्तु जिसे वे विदेशों में अपने हर संबोधन में व्यक्त करते हैं। मोदी ने अपने वक्तव्य में कहा था, “आज हम देख सकते हैं कि अफगानिस्तान में क्या हो रहा है। एससीओ के सदस्यों के तौर पर हम सभी को इस बात को सुनिश्चित करना जरुरी है कि वहां पर किसी प्रकार का कट्टरपंथ और उग्रवाद और न बढ़ने पाए।”

मोदी के एससीओ भाषण ने जीएस बाजपेयी को प्रेरित किया, जो चरमपंथ पर एक राष्ट्रव्यापी शोध परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने शिक्षाविद अंकित कौशिक के साथ मिलकर द इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है, “भारत को कट्टरपंथीकरण की समस्या के समाधान के लिए एक नीतिगत समाधान की आवश्यकता है।” बाजपेयी और कौशिक ने लिखा, “सबसे पहला प्रयास भारतीय सीमा पार से दुष्प्रचार के प्रवाह को रोकने पर किया जाना चाहिए।”

किंतु कट्टरता का आवेग सिर्फ प्रचार से ही नहीं उत्पन्न होता है। यह नागरिकों के ऊपर अन्यायपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देने से भी फैलता है, विशेषकर जब राज्य भी उन्हें अपने लिए न्याय को हासिल कर पाने की राह में बीच मझधार में छोड़ देता है। ठीक ऐसा ही वाकया दिल्ली के उपनगरीय शहर गुरुग्राम में भी देखने को मिल रहा है। इसकी चमचमाती मीनारों और सम्मोहक रोशनी में एक अंधकारमय रहस्य छिपा हुआ है जिसे कुछ ही लोग बता पाने की हिम्मत जुटा पाते हैं, और वह है: मुसलमानों द्वारा जुमे की नमाज अदा करने को लेकर जारी विवाद में, कट्टरता की आग को भड़काने के लिए सिर्फ एक चिंगारी की जरूरत है।

कट्टरपंथ के खतरों के बारे में दुनिया को भाषण देने के बजाय, मोदी को एक नजर अपने आवास से तकरीबन 25 किमी की दूरी पर स्थित गुरुग्राम पर भी क्रिकेट मैचों में तैनात किये जाने वाले हॉक-आई सिस्टम वाली सटीकता और निष्पक्षता के साथ फेरने की जरूरत है। और यदि मोदी इस तथ्य की पड़ताल करेंगे तो उन्हें यह जानने को मिलेगा कि 2018 से पहले तक जुमे की नमाज के संबंध में यहाँ पर कभी भी किसी को किसी प्रकार की समस्या नहीं थी।

इससे पहले, गुरुग्राम के मुसलमान मस्जिदों सहित कुल 117 स्थलों पर नमाज अदा किया करते थे। हकीकत तो यह है कि एक पॉश डीएलएफ कॉलोनी में तो एक हिंदू व्यापारी द्वारा गर्मियों की चिलचिलाती धूप में लू के थपेड़ों का सामना करते मुसलमानों को खुले में नमाज पपढ़ते देख विचलित कर दिया था, जिसके नतीजे के तौर पर उन्होंने अपने अधूरे निर्माणाधीन भवन में नमाज पढ़ने की पेशकश की थी। उनकी ओर से उन्हें निर्माण स्थल पर मौजूद पानी के टैंकर से हाथ-मुहँ धोने के लिए पानी का उपयोग करने की भी इजाजत दी गई थी।

उनके इमारत की ठंडी छाँव तले नमाज अदा करने वाले उन मुसलमानों ने कृतज्ञता और यकीन से लबरेज होकर कहा होगा कि हिंदुत्व का यह उभार भारत के बहुसांस्कृतिक लोकाचार को कभी भी नष्ट करने में सफल नहीं हो सकता है। 

लेकिन वे मुसलमान गलत थे।

2018 में हिन्दू दक्षिणपंथी समूहों ने गुरुग्राम में सर उठाना शुरू कर दिया था। उन्होंने सार्वजनिक स्थलों पर जुमे की नमाज पर अपनी आपत्ति जतानी शुरू कर दी थी। भारत में उस दौरान लोकसभा चुनाव कुछ महीनों की ही दूरी पर थे। इन समूहों को एक नई शिकायत को उत्पन्न करने की जरूरत महसूस हो रही थी। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शुक्रवार की नमाजों से जगह-जगह ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न होती है। उन्होंने गर्जना की कि यह धर्मनिपेक्षता है या तुष्टीकरण। हिंदू व्यवसायी ने अपने भवन के भीतर नमाज पढ़ने की इजाजत को वापस ले लिया। धार्मिकों का कहना था कि उन्हें व्यवसायी के फैसले के प्रति सहानुभूति थी, जो उन्हें हिन्दू चरमपंथियों से सुरक्षा प्रदान करने की गारंटी दे सकता था।

उनके जुझारूपन ने गुरुग्राम प्रशासन को शांति के लिए समझौता प्रस्ताव पेश करने के लिए प्रेरित किया। प्रशासन द्वारा शरारती तत्वों पर लगाम लगाने के बजाय ऐसे 37 स्थलों को चिंहित किया गया था, जहाँ शुक्रवार को मुसलमान नमाज अदा कर सकते थे। मुसलामन इसके लिए राजी हो गए, भले ही कुछ जगहों पर भीड़भाड़ से निपटने के लिए जुमे की नमाज को कई पारियों में आयोजित करना पड़ रहा था। आखिरकार, शुक्रवार की नमाज के लिए अब पहले से कम स्थान बचे हुए थे।

2021 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू होने के साथ ही हिन्दू दक्षिणपंथी गुटों के द्वारा एक बार फिर से सड़कों पर लौटने, जय श्री राम का उद्घोष करने, खतरनाक नारों का उच्चारण करने और यह मांग करने कि मुसलमान सार्वजनिक स्थलों पर प्रार्थना नहीं कर सकते हैं की शुरुआत कर दी गई है। प्रशासन ने एक बार फिर से हिन्दू चरमपंथियों के लिए जैतून की शाखा थमाने का काम किया है। या इसे दूसरे तरीके से कहें तो, उसकी ओर से मुसलमानों के सामने जो प्रस्ताव रखा गया उसे वे मना नहीं कर सकते थे। और इस प्रकार, दो सप्ताह पूर्व, 37 स्थलों की सूची को घटाकर 29 कर दिया गया था। कुछ हिन्दू चरमपंथियों को गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन उसी दिन रिहा भी कर दिया गया। समस्या निवारण का यह विकृत विचार है।

निश्चित रूप से इससे उत्साहित और निर्भीक होकर हिन्दू हितों के रक्षकों का स्वांग धारण कर हिन्दू चरमपंथियों ने ठीक उसी समय तीन स्थलों पर पूजापाठ करना शुरू कर दिया, जिस समय शुक्रवार की नमाज अदा की जानी थी। इस प्रकार 29 स्थलों की सूची प्रभावी तौर पर घटकर 26 पर आ गई।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए 2020 के दंगों से पहले दिए गये अपने भाषण के कारण कुख्याति बटोरने वाले भाजपा के छुटभैय्या नेता कपिल मिश्रा इस दौरान इन तीन स्थलों में से एक पर मौजूद थे। उनकी ओर से चेतावनी दी गई, “अपनी राजनीति के लिए सड़कों का इस्तेमाल बंद करो। हम इसे शाहीन बाग़ में देख चुके हैं [वहां पर नए नागरिकता कानून के खिलाफ चले 24x7 धरने प्रदर्शन के सन्दर्भ में]। वहां पर इन्होने सड़क जाम करके तमाशा किया था।” मिश्रा ने कहा कि अगले तीन-चार सप्ताह में शहर में किसी भी सार्वजनिक स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी जाएगी।

“राजनीति के लिए सड़कों” का इस्तेमाल करने का दावा गुरुग्राम की वास्तविकता को विकृत बना देने जैसा है। कोविड-19 महामारी में लोगों को अपने घरों की चारदीवारी तक सीमित कर देने और आवश्यक शारीरिक दूरी बनाये रखने के लिए मजबूर कर दिए जाने से पहले कांवरिये हर साल गुरुग्राम होकर गुजरते थे, दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर पैदल चलते हुए सड़कों के किनारे टेंटों शामियाने में आराम करते हुए देखे जा सकते थे। उस दौरान यातायात पूरी तरह से ठप हो जाता था। इसी प्रकार हर साल दुर्गा पूजा के दौरान असंख्य बस्तियों में सार्वजनिक स्थलों पर पूजा के पंडाल लगाये जाते हैं। कई बस्तियों में मंदिर हैं जहाँ पर कान-फोडू स्तर पर भोंपू बजता रहता है और पूजा के लिए आने वाले श्रद्दालुओं की कारों के कारण जाम लगा रहता है।

इसके विपरीत न्यू गुरुग्राम में सिर्फ दो मस्जिद हैं, जहाँ पर वे चमचमाते बड़े-बड़े टावरों और आकर्षक माल्स के मध्य स्थित हैं, और 11 अन्य मस्जिदें पुराने गुडगाँव में हैं। इसके चलते मुस्लिमों के पास प्रशासन की सहमति से हर शुक्रवार को सार्वजनिक स्थलों पर नमाज अदा करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता है।

पूर्व राज्यसभा सदस्य मोहम्मद अदीब जो गुरुग्राम में रहते हैं और जिनको हाल ही में मुसलामानों द्वारा अपनी अगुआई करने के लिए संपर्क किया गया था, ने कहा कि मुसलामानों ने मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और गिरिजाघरों की संख्या, उनके लोकेशन और उनका निर्माण कब किया गया था, का सर्वेक्षण करने की योजना बनाई है। यह धार्मिक समूहों के प्रति राज्य के विरोधाभासी रुख के खिलाफ एक आरोपपत्र का काम करेगा।

अदीब ने मुझसे कहा “समुदाय के सदस्यों के बीच में जबरदस्त भय का माहौल है, उन्हें गहरी चोट लगी है।” जब मैंने पूछा कि क्या गुरुग्राम की जुमे की नमाज का विवाद मुसलमानों के बीच में कट्टरपंथ की तजवीज को नहीं जन्म दे रही है, पर उनका जवाब था “यकीनन, ऐसा है।” जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के जिलाध्यक्ष मुफ़्ती सलीम ने कहा, कुछ लोग हैं जो अपने धार्मिक अधिकारों के कुचले जाने और जो बेइज्जती उनके साथ की जा रही है, पर गुस्से से धधक रहे हैं। बाकियों का कहना है कि वे अपमानित और अनाथ महसूस कर रहे हैं। मुफ़्ती ने कहा कि वे और अन्य मुसलमानों को धीरज रखने और न्याय के लिए नाउम्मीद नहीं होने की सलाह देते हैं। 

इस बात में कोई शक नहीं कि शुक्रवार की नमाज पर विवाद निस्संदेह कट्टरता के आवेग को बढ़ाने में मदद कर रहा है, जिसके लिए किसी प्रचार की जरूरत नहीं है। इस विवाद के केंद्र में जो बात है उसे त्रिनिदाद के अमेरिकी अश्वेत नेता स्टोकेली कारमाइकल ने कुछ विशिष्ट प्रकार के लोगों और राज्य संस्थानों की कमी के तौर पर चिंहित किया है। नागरिक अधिकारों के लिए आदर्श माने जाने वाले मार्टिन लूथर किंग की अपनी आलोचना में, कारमाइकल का कहना है, “उनकी [किंग] की प्रमुख अवधारणा यह थी कि यदि आप अहिंसक हैं, यदि आप पीड़ित हैं, तो आपका विरोधी आपके कष्टों को देखेगा और अपने हृदय परिवर्तन के लिए मजबूर हो उठेगा... लेकिन उन्होंने एक गलत आकलन किया था: अहिंसावादी रुख के सफल होने की एक जरुरी शर्त यह है कि आपके विरोधियों के पास विवेक का होना जरुरी है।”

कट्टरपंथ को लेकर प्रधानमंत्री सहित बाजपेयी और कौशिक को भी यह बात पता होनी चाहिए कि इसकी उत्पत्ति भारतीय राज्य के लीवर को नियंत्रित करने वालों में पहले से मौजूद मान लिए जाने वाले विवेक की अनुपस्थिति के चलते होता है। कट्टरपंथ कमजोरों के लिए आत्मघाती है- और मुसलमान निश्चित तौर पर इस बात को जानते हैं। यह भारत के लिए भी आत्मघाती है। दुर्भाग्यवश, दक्षिणपंथी हिन्दू इस बात से पूरी तरह से बेखबर है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Gurugram Friday Prayer Controversy is a Recipe for Radicalisation

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