NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बीजेपी का पाखंड: सेकुलर स्कूलों में हिजाब से दिक़्क़त, लेकिन गीता का स्वागत
छात्रों को निश्चित तौर पर अलग-अलग विश्वासों का अध्ययन करना चाहिए, ताकि वे समझ पाएं कि कैसे तर्क करने वाला आज का स्वायत्त-स्वतंत्र मनुष्य अस्तित्व में आया। धार्मिक निर्देशों का दायरा यहां ख़त्म होता है।
सुभाष गाताडे
28 Mar 2022
hijab
Image Courtesy: AFP

स्कूली शिक्षा में केंद्र और राज्य सरकार की मदद करने के लिए गठित की गई राष्ट्रीय शोध एवम् प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने 2018 में एक निर्देश पुस्तिका साझा की, जो स्कूलों को अल्पसंख्यक बच्चों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए दिशा-निर्देश देती है। कर्नाटक सरकार ने स्कूल के पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने का जो फ़ैसला किया है, उसकी पृष्ठभूमि में इस निर्देश पुस्तिका को पढ़ने से पता चलता है कि लक्षित उद्देश्यों और मैदानी स्थिति में अभी काफ़ी अंतर है।

कर्नाटक सरकार का यह फ़ैसला, बीजेपी द्वारा ही शासित गुजरात में अगले अकादमिक सत्र से गीता पढ़ाने के ऐलान के एक दिन बाद आया है। यह साफ़ है कि इन फ़ैसलों से इतिहास की गलत समझ प्रदर्शित होती है, जिसके तहत माना जाता है कि अनंत काल से भारत एक हिंदू राज्य रहा है। यह ऐसा इतिहास है जिसमें जैन धर्म, बौद्ध धर्म, आजीवक संप्रदाय और इस धरती पर फलने-फूलने वाले दूसरे मतों को और समुदायों को नजरंदाज़ कर दिया जाता है। इस तरह के इतिहास के नज़रिए में यहूदी, पारसी, ईसाई और मुस्लिम समुदायों को भी किनारे कर दिया जाता है। 

बिना सलाह के लिया गया यह फ़ैसला कुछ चीजों के प्रति सरकार द्वारा आंख बंद करने की प्रवृत्ति को भी दर्शाता है। बीजेपी के कुछ सदस्य हिजाब पर प्रतिबंध को सही ठहराते हुए तर्क देते हैं कि स्कूलों में धार्मिक चिन्हों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जब हिजाब पर प्रतिबंध का समर्थन किया जा रहा था, तब ना तो पार्टी और ना ही सरकार को यह ख्याल आया कि उनका धर्म को स्कूल से दूर करने का इस फ़ैसले में पाखंड की बू आती है। कट्टर हिंदू राष्ट्र समर्थकों का "धर्मनिरपेक्ष योद्धाओं" में यह बदलाव बेहद आश्चर्यजनक है, लेकिन कुछ दिन बाद इन लोगों ने ध्यान हिंदू धार्मिक किताबों पर ला दिया और अब यह लोग स्कूलों में धर्म की जगह को लेकर शांत हैं।   

राज्य सरकारों का यह दृष्टि दोष असीमित है। यह हिंदुत्व की मंशा को संवैधानिक प्रावधानों के ऊपर थोपता है, जो धर्म और शिक्षा को बदलने के सख्त खिलाफ़ हैं। वैधानिक तौर पर सरकार द्वारा मदद प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों को धर्म की शिक्षा नहीं देनी चाहिए। जब गीता की बात होती है, तो ऐसा लगता है कि कर्नाटक सरकार हाल में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फ़ैसलों को भूल गई है, जिनमें अंतरात्मा की स्वतंत्रता के अधिकार को फिर से पुष्ट किया गया था। 

गीता को स्कूलों में नैतिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है, जिससे एक और बुनियादी सवाल खड़ा होता है। यहां विवाद नैसर्गिक तौर पर एक दूसरे की विरोधाभासी स्कूली शिक्षा और धार्मिक ग्रंथों का है। रबींद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि शिक्षा, अज्ञान को दूर करती है और ज्ञान के प्रकाश में ले जाती है। शिक्षा, सीखने की व्यवस्था करती है, मतलब जानकारी, सूचना, मूल्य, विश्वास, आदतें और कौशल को व्यक्ति में समाहित करती है। शिशुकाल से ही सीखना शुरू हो जाता है, जिसमें औपचारिक और अनौपचारिक व्यवहार शामिल होते हैं, इसमें शुरुआत में हमारी देखभाल करने वालों द्वारा सिखाई जाने वाली बातें और बाद में औपचारिक संस्थानों द्वारा दिया जाने वाला ज्ञान शामिल है। इसलिए शिक्षा का कोई अंत नहीं है। इसका सिर्फ लक्ष्य है अज्ञान को दूर करना। धर्म जिन चीजों की वकालत करता है, वो इसकी विरोधाभासी हैं। धर्म अंतिम सत्य, भगवान के अधिनायकवाद की बात करता है, यह अपने माननों वालों से यकीन करने की अपील करता है, ना कि सवाल उठाने की। इसलिए जब शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक किताबें पहुंचेंगी, तो इससे शिक्षा का उद्देश्य खत्म होगा। 

दूसरी बात, एक औपचारिक पंथनिरपेक्ष और बहुधार्मिक देश में धार्मिक किताबों की पढ़ाई करवाना, ऐतिहासिक या समाजशास्त्रीय नज़रिए से धर्म की पढ़ाई करवाने से कहीं अलग है। किसी और वक़्त पर कोई पूछ सकता था कि क्या धार्मिक किताबों की स्कूलों में कोई जगह है, लेकिन आज यह अपमान माना जाएगा। लेकिन इससे इतर, धर्म और दर्शन और वक़्त के साथ उनकी धारा को समझना बेहद जरूरी है। अपने व्यक्तिगत धर्म या विश्वासों से परे, छात्रों को दूसरे विश्वासों का मर्म पता होना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि कैसे आज का तर्क करने वाला स्वतंत्र नागरिक अस्तित्व में आया। आज वैश्विक तौर पर यह मान्यता है कि धर्म व्यक्तिगत मामला है, जिसमें किसी भी बाहरी संस्था का कोई किरदार नहीं है। मानव सभ्यता यहां तक कैसें पहुंची, यह भी शिक्षा का एक जरूरी आयाम है।

तीसरी बात, गीता को स्कूलों में पढ़ाए जाने का फ़ैसला, इस गलत मान्यता को बल देता है कि धर्म लोगों को नैतिक बनाता है। नैतिक व्यवहार कुछ नहीं बस यह तय करना है कि क्या गलत है और क्या सही है, यह सही और गलत वे चीजें हैं, जो वक़्त और जगह के साथ बदलती रहती हैं। बल्कि धार्मिक दिशा-निर्देशों द्वाारा लोगों को नैतिक बनाए जाने पर उपलब्ध सीमित अध्ययन, किसी नतीजे पर नहीं पहुंचते। ऐसा देखा जाता है कि आस्तिक, नास्तिकों या सवाल उठाने वालों को संदेह की नज़रों से देखते हैं। अक्सर नास्तिकों को "दूसरा" माना जाता है, जो भगवान से नहीं डरता, मृत्यु के बाद जन्म में यकीन नहीं करता, बल्कि जिसे वह ज्ञान नहीं है, जो "रास्ता दिखाता" है। जो लोग पूरे दिल से इस विचार को मानते हैं कि धर्म एक सार्वभौमिक नैतिक संहिता को लागू करता है, और इसलिए धार्मिक दिशा-निर्देशों को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए, वे आराम से यह भूल जाते हैं कि अनंत काल से धर्म के नाम पर लोगों को मारा जा रहा है। सूली पर जला देना, नृजातीय नरसंहार, धर्म युद्ध, फिर ऐसे वर्गों का उदय जो दूसरों का अंत करने का आह्वान करते हैं, यह सब दर्ज किए गए इतिहास का हिस्सा है। इतिहास धार्मिक विवादों से भरा पड़ा है। 

विद्वानों ने पाया है कि ज़्यादातर लोग अपने धर्म के लोगों के साथ ज़्यादा नैतिक व्यवहार करते हैं, लेकिन जब वे दूसरे विश्वास वाले लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, तो उनकी नैतिकता कमज़ोर हो जाती है। इस मुद्दे पर एक वैचारिक विमर्श का गहन विश्लेषण कहता है, "धर्म का कुछ 'हिस्सा', एक खास हिस्से की 'नैतिकता' को प्रोत्साहित कर सकता है, वैसे ही जैसे यह दूसरे हिस्सों के लिए नैतिकता का दमन कर सकता है या उन्हें बाधित कर सकता है। कुल मिलाकर क्या धर्म अच्छाई की ताकत है, इस पर विमर्श करने के दौर में हमें यह इस पर बेहद साफ़गोई रखनी होगी कि 'धर्म' क्या है और 'भगवान' से हमारा क्या मतलब है।

चौथा, पाठ्यक्रम में धार्मिक किताबें इसलिए दिक्कत भरी हैं, क्योंकि वे स्तरीय कुलीनता में यकीन करती हैं, जिसमें भारत में प्रचलित जातिगत स्तर भी शामिल है, कुछ किताबें तो हिंसा को भी प्रोत्साहित कर सकती हैं। याद कीजिए 15वीं शताब्दी के धर्म सुधारक मार्टिन लूथर, जिन्होंने रोमन कैथोलिक चर्च से जंग लड़ी, वे अपने विचारों में एक संप्रदाय (यहूदी) के विरोधी (एंटीसेमेटिक) थे। कई शताब्दियों के बाद नाजी पार्टी ने उनके विचारों को यहूदियों के नरसंहार को न्यायोचित ठहराने के लिए उपयोग किया। शिक्षा को आलोचनात्मक विचार करना और शांति के साथ कैसे रहा जा सकता है, इसे सिखाना चाहिए। धार्मिक शिक्षाएं वहां तक पहुंचने का रास्ता नहीं हैं। याद कीजिए मिर्जा गालिब ने क्या लिखा है: 'इंसान सच की तलाश में निकला और जब वह अपने लक्ष्य में थक गया, तो उसने मंदिर, मस्ज़िद और चर्च बना दिए।"

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Hypocrisy of BJP: Hijab Intrudes in Secular Schools, but Gita is Welcome

Religion in schools
Gita in school
NCERT
Nazi party
reformation
Martin Luther
religious instruction
Hijab Row
Karnataka Government
hindu rashtra

Related Stories

क्यों मुसलमानों के घर-ज़मीन और सम्पत्तियों के पीछे पड़ी है भाजपा? 

महंत ने भगवानपुर में किया हनुमान चालीसा का पाठ, कहा ‘उत्तराखंड बन रहा कश्मीर’

अब भी संभलिए!, नफ़रत के सौदागर आपसे आपके राम को छीनना चाहते हैं

नफ़रत की क्रोनोलॉजी: वो धीरे-धीरे हमारी सांसों को बैन कर देंगे

धांधली जब लोगों के दिमाग़ के साथ हो जाती है, तभी उत्तर प्रदेश के नतीजे इस तरह आते हैं

स्वतंत्रता दिवस को कमज़ोर करने एवं हिंदू राष्ट्र को नए सिरे से आगे बढ़ाने की संघ परिवार की योजना को विफल करें: येचुरी 

कर्नाटक: बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या के मामले में 2 और गिरफ्तार

मोदी जी, क्या आपने मुस्लिम महिलाओं से इसी सुरक्षा का वादा किया था?

हिजाब के विलुप्त होने और असहमति के प्रतीक के रूप में फिर से उभरने की कहानी

हिजाब विवाद: कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ शीर्ष अदालत में याचिका दायर


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License