NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
बिहार चुनाव : एपीएमसी हटने से बिहार के किसान और ग़रीब हुए हैं नीतीश जी
इस साल बिहार में मक्के की फसल हर जगह 900 से 1,100 रुपये क्विंटल की दर से बिकी, जबकि इस साल मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1760 रुपये तय किया गया था। राज्य में गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपये तय है, मगर ज्यादातर किसानों को अपना गेहूं इस साल 15 से 17 सौ रुपये की दर से बेचना पड़ा। यही धान का हाल है।
पुष्यमित्र
29 Sep 2020
अरविंद पोद्दार
मक्का किसान अरविंद पोद्दार

बिहार के पूर्णिया जिले के किसान अरविंद पोद्दार के दरवाजे पर आज भी उनकी मक्के की फसल पड़ी है। यह फसल उन्होंने अप्रैल महीने में ही काटी थी। कोरोना, लॉकडाउन और मौसम की मार की वजह से उचित मूल्य मिलने की सम्भावना आज तक नहीं बन पायी है। वे कहते हैं, इसकी तैयारी करने में भी नुकसान ही है, थ्रेसर वाले को पैसा देना पड़ेगा। बेच कर वह पैसा भी निकलेगा या नहीं कहना मुश्किल है। 

इस साल बिहार में मक्के की फसल हर जगह 900 से 1,100 रुपये क्विंटल की दर से बिकी, इसलिये कोसी अंचल के कई किसानों के दरवाजे पर अभी भी मक्के की फसल नजर आ जाती है। जबकि इस साल मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1760 रुपये तय किया गया था। अगर इस दर पर सरकारी खरीद हुई होती तो शायद किसानों को यह दिन नहीं देखना पड़ता। मगर बिहार में फसलों की सरकारी खरीद की अनिवार्यता 2006 से ही खत्म है। मक्के की सरकारी खरीद शुरू करवाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र यादव ने जब पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की तो जवाब में बिहार सरकार की तरफ से हलफ़नामा दायर किया गया कि केन्द्र सरकार के नियमों के मुताबिक सरकार सिर्फ उन्हीं फसलों को न्यूनतम मूल्य पर खरीद सकती है, जिनका वितरण खाद्यान्न सुरक्षा योजना के अन्तर्गत राशन वितरण के लिए किया जाता है। इसलिये मक्के की सरकारी खरीद के लिए सरकार पर दबाव नहीं बनाया जा सकता।

महेंद्र यादव की इस जनहित याचिका की सुनवाई दो महीने पहले ही पूरी हो चुकी है, मगर राज्य के किसान आज भी पटना हाईकोर्ट के उस फैसले का इंतजार कर रहे हैं कि क्या सरकार द्वारा मक्के की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कराई जाये या नहीं। इस बीच पूरे देश में कानून बनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है। इस कानून के बनने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक ऑनलाइन इलेक्शन रैली में दावा किया है कि 2006 में राज्य सरकार द्वारा एपीएमसी एक्ट को खत्म करने का लाभ बिहार के किसानों को मिला है। मगर मक्के के इस ताजा उदाहरण से जाहिर है कि इस एक्ट को 14 साल पहले खत्म कर देने का किसानों को क्या लाभ मिला है।

पूर्णिया में पत्रकारिता करने वाले बासु लगातार मक्का किसानों पर लिखते रहे हैं, वे कहते हैं जिले के गुलाबबाग में काफी बड़ी मंडी है, वहां हर साल बड़ी संख्या में मक्का खरीदने होर्लिक्स जैसे फूड सप्लीमेंट और कॉर्न फ्लेक्स कम्पनियों के एजेंट पहुँचते रहे हैं। मगर शायद ही कोई ऐसा साल गुजरा होगा जब किसानों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत मिली होगी। अमूमन किसान घाटे में ही रहते हैं। 

गेहूं किसान का भी यही हाल

मक्के की बात को छोड़िये गेहूं किसानों का भी यही हाल है। राज्य में गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपये तय है, मगर ज्यादातर किसानों को अपना गेहूं इस साल 15 से 17 सौ रुपये की दर से बेचना पड़ा। इस बारे में संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा, उत्तर बिहार के अध्यक्ष आनन्द किशोर कहते हैं कि उन्होने खुद अपना गेहूं 16सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा है। जबकि बिहार सरकार ने गेहूं की सरकारी खरीद शुरू की थी, मगर कहीं ठीक से खरीद नहीं हुई। वे कहते हैं कि गेहूं की खरीद व्यवस्था को इसी बात से समझा जा सकता है कि इस साल राज्य में उपजे कुल गेहूं का सिर्फ 0.05 फीसदी हिस्सा ही सरकार खरीद पायी। पिछ्ले साल भी स्थिति अमूमन ऐसी ही थी।

यही धान की कहानी है

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस दावे पर कि 2006 में एपीएमसी एक्ट खत्म कर देने से बिहार के किसानों को काफी लाभ हुआ, आनन्द किशोर उखड़ जाते हैं। वे कहते हैं कि आज भी बिहार के किसान अपना धान 11 से 12 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचने को विवश हैं। जबकि एमएसपी 1650 रुपये हैं। गेहूं और मक्के की कहानी आप सुन ही चुके हैं। 

किसानी के मसले पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता इश्तेयाक अहमद कहते हैं कि यह तो केन्द्र सरकार की रिपोर्ट से जाहिर है कि देश में सबसे कम आय बिहार के किसानों की है। जहां हरियाणा के किसानों की औसत मासिक आय 14,400 रुपये है, बिहार के किसानों की आय सिर्फ 6 हजार रुपये प्रति माह है। ऐसे में यह दावा करना कितना उचित है कि एपीएमसी एक्ट के लागू होने से बिहार के किसान सम्पन्न हो गये। 

बिहार में 2006 से पहले देश के दूसरे राज्यों की तरह ही सरकारी मंडियां थीं। आनन्द किशोर कहते हैं, हमारे यहां बाज़ार समिति हुआ करती थी और वहां आढ़तिये किसानों की उपज खरीदते थे। इसके अलावा एफसीआई भी जिले और अनुमंडल मुख्यालयों में एमएसपी पर खरीद करती थी। आढ़तियों की व्यवस्था में कुछ गड़बड़ियाँ जरूर थीं। मगर अगर सरकार उसमें सुधार करने की कोशिश करती तो व्यवस्था ठीक हो सकती थी। मगर सरकार ने इसे बन्द ही करा दिया और विकेंद्रीकरण के नाम पर पैक्स नामक एक नई संस्था को लेकर आ गये।

कागज पर तो यह व्यवस्था बहुत आदर्श मालूम होती है। किसानों की सहकारी संस्था है। इसके अध्यक्ष चुने जाते हैं और हर पंचायत में सरकारी खरीद होती है। मगर यह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गयी है। गाँव का दबंग व्यक्ति ही चुनाव जीत कर इसका अध्यक्ष बनता है और मनमानी करता है। 

बिहार राज्य किसान सभा के महामन्त्री विनोद कुमार कहते हैं कि पैक्स के जरिये सिर्फ थोड़ी बहुत धान की खरीद होती है। वह भी फरवरी माह में शुरू होती है। जब राज्य के अधिकांश किसान अपनी फसल बिचौलिये को बेच चुके होते हैं। बाद में यही बिचौलिया धान की फसल को पैक्स में बेचता है। इस तरह राज्य में आढ़तियों से कहीं बड़ा बिचौलिया खड़ा हो गया है। 

इसके अलावा पैक्स हमेशा भुगतान करते वक़्त किसानों से 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कमीशन काट लेता है, अधिकारियों को चढावा देने के नाम पर। वजन कम बताने और नमी बता कर फसल खरीदने से इनकार करने के मामले अलग हैं।

आनन्द किशोर कहते हैं कि बिहार में 90 फीसदी से अधिक किसान एक हेक्टेयर से कम जमीन वाले हैं। वे कर्ज लेकर खेती करते हैं, उनकी रक्षा सिर्फ सरकारी खरीद से ही मुमकिन है। वह भी जब खरीद समय से हो। नहीं तो कर्ज लेकर खेती करने वाले इन किसानों के सिर पर यह बोझ रहता है कि जल्द से जल्द फसल बेचकर कर्जा चुकाएं। खुली खरीद में उन्हें हमेशा कम कीमत मिलती है। इनके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी ही बचाव है। एपीएमसी की अनिवार्यता हटने से इनका नुकसान ही हुआ है।

Bihar
farmer
Bihar Farmer
farmer crises
Nitish Kumar
Nitish Kumar Government
APMC withdrawal
APMC Act

Related Stories

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

बिहार: कोल्ड स्टोरेज के अभाव में कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर आलू किसान

ग्राउंड रिपोर्ट: कम हो रहे पैदावार के बावजूद कैसे बढ़ रही है कतरनी चावल का बिक्री?

किसानों और सरकारी बैंकों की लूट के लिए नया सौदा तैयार

एमएसपी कृषि में कॉर्पोरेट की घुसपैठ को रोकेगी और घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी

पीएम के 'मन की बात' में शामिल जैविक ग्राम में खाद की कमी से गेहूं की बुआई न के बराबर

बिहारः खाद न मिलने से परेशान एक किसान ने की आत्मदाह की कोशिश

MSP की लड़ाई जीतने के लिए UP-बिहार जैसे राज्यों में शक्ति-संतुलन बदलना होगा

बिहार खाद संकटः रबी की बुआई में देरी से किसान चिंतित, सड़क जाम कर किया प्रदर्शन

कृषि क़ानूनों के वापस होने की यात्रा और MSP की लड़ाई


बाकी खबरें

  • मुकुल सरल
    ज्ञानवापी प्रकरण: एक भारतीय नागरिक के सवाल
    17 May 2022
    भारतीय नागरिक के तौर पर मेरे कुछ सवाल हैं जो मैं अपने ही देश के अन्य नागरिकों के साथ साझा करना चाहता हूं। इन सवालों को हमें अपने हुक्मरानों से भी पूछना चाहिए।
  • ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई
    17 May 2022
    कोविड-19 महामारी लोगों को एक साथ ला सकती थी। यह महामारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) जैसे वैश्विक संस्थानों को मज़बूत कर सकती थी और सार्वजनिक कार्रवाई (पब्लिक ऐक्शन) में नया विश्वास जगा सकती थी…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    धनकुबेरों के हाथों में अख़बार और टीवी चैनल, वैकल्पिक मीडिया का गला घोंटती सरकार! 
    17 May 2022
    “सत्ता से सहमत होने के लिए बहुत से लोग हैं यदि पत्रकार भी ऐसा करने लगें तो जनता की समस्याओं और पीड़ा को स्वर कौन देगा?“
  • ukraine
    सी. सरतचंद
    यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 
    16 May 2022
    यूरोपीय संघ के भीतर रुसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने के हालिया प्रयास का कई सदस्य देशों के द्वारा कड़ा विरोध किया गया, जिसमें हंगरी प्रमुख था। इसी प्रकार, ग्रीस में स्थित शिपिंग कंपनियों ने यूरोपीय…
  • khoj khabar
    न्यूज़क्लिक टीम
    नफ़रती Tool-Kit : ज्ञानवापी विवाद से लेकर कर्नाटक में बजरंगी हथियार ट्रेनिंग तक
    16 May 2022
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बताया कि किस तरह से नफ़रती Tool-Kit काम कर रही है। उन्होंने ज्ञानवापी विवाद से लेकर कर्नाटक में बजरंगी शौर्य ट्रेनिंग में हथियारों से लैस उन्माद पर सवाल उठाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License