NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत में ‘वेंटिलेटर पर रखी प्रेस स्वतंत्रता’, क्या कहते हैं वैकल्पिक मीडिया के पत्रकार?
RSF की प्रेस फ़्रीडम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता(रैंक-150) का रिकॉर्ड अब इतना खराब है कि यह युगांडा (132) रवांडा (136), क़ज़ाकिस्तान (122), उज़्बेकिस्तान (133) और नाइज़ीरिया (129) जैसे निरंकुश देशों से भी पीछे है।
सरिता पांडेय वाशिंगटन, DC
09 May 2022
Press Freedom

पिछले हफ़्ते डेनमार्क में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक मीटिंग से बाहर निकले तो भारतीय टीवी पत्रकारों ने उनको घेर कर शिकायत की कि उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया। इस पर लड़खड़ाती ज़ुबान में मोदी बोले, “अंदर अलाउड नहीं था? ओह माय गॉड। मैं पूछूँगा ऐसे कैसे हुआ।” फिर क्या था। मोदी का ये वीडियो ट्विटर पर ट्रेंड हो गया और मज़ाक़िया मीम की बाढ़ आ गई।

विडंबना है कि मोदी ने अपने आठ साल के कार्यकाल में ख़ुद कभी पत्रकारों को अंदर “अलाउ” नहीं किया है जिससे कि वो खुल कर सवाल पूछ सकें। आज तक मोदी ने जितने भी तथाकथित पत्रकारों को इंटरव्यू दिए हैं वो पहले से तय सवालों पर आधारित होते हैं और उनकी प्रशंसा में डूबे होते हैं।

दूसरी ओर वो लोग जो ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं मोदी सरकार और उसकी एजेंसियाँ उनका दमन करती हैं। प्रेस की स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली दुनिया की जानीमानी एजेंसी Reporters Sans Frontières (RSF) ने पिछले सप्ताह अपनी 2022 की रिपोर्ट में प्रेस की आज़ादी के मामले में 180 देशों में भारत को 150वां स्थान दिया।

भारत में पत्रकारिता की स्थिति का असली चेहरा इससे भी अधिक बदरूप और भयावह है। जो लोग मोदी और उनकी पार्टी भाजपा की नीतियों के प्रति थोड़े भी क्रिटिकल हैं उन्हें मोदी सरकार और पुलिस का कोप झेलना पड़ता है। फ़र्ज़ी FIR झेलनी पड़ती हैं। ED के छापे पड़ते हैं। व्यक्तिगत रूप से भी हमलों का शिकार होना पड़ता है। यही कारण है कि भारत में पत्रकारिता की स्थिति दिन-ब-दिन नाज़ुक होती जा रही है।

हाल ही में दुनिया के एक प्रीमियर मीडिया वॉचडॉग संस्थान (world’s premier media watchdog) आरएसएफ़ (Reporters Sans Frontières) ने मीडिया की आज़ादी को लेकर प्रेस फ़्रीडम रिपोर्ट 2022 जारी की है जिसमें भारत की रैंकिंग पहले के मुक़ाबले 8 स्थान और गिर गई है। इसके साथ ही भारत 180 देशों की सूची में 150वें स्थान पर आ पहुँचा है। ये भारत की अब तक की सबसे ख़राब रैंकिंग है जो भारत में मोदी सरकार के तानाशाह रवैये का स्पष्ट परिणाम है।

आरएसएफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का रिकॉर्ड अब इतना खराब है कि यह युगांडा, रवांडा, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और नाइजीरिया जैसे निरंकुश देशों से भी पीछे है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुक़ाबले संयुक्त अरब अमीरात, कतर और जॉर्डन जैसे शेखडोम और राजशाही देश भी पत्रकारों के साथ बेहतर व्यवहार करते हैं।

कथित तौर पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की इस चिंताजनक स्थिति पर आरएसएफ़ के एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र के डायरेक्टर डेनियल बस्तार ने 04 मई को अमेरिका के मानवाधिकार संघटनों द्वारा आयोजित एक “कांग्रेशनल ब्रीफिंग” के दौरान कहा, “कोई भी ये नहीं देखना चाहता कि भारत चीन की तरह डिक्टेटरशिप (तानाशाही) में जाए। लेकिन कुछ मामलों में आज भारत में स्थिति लगभग वैसी ही है।” उन्होंने आगे कहा कि कश्मीरी पत्रकारों को चुप कराने और उन्हें कैद करने की भारत की कोशिश, तिब्बती पत्रकारों के साथ चीन के व्यवहार के समान ही है।

भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के साथ मीटिंग करने वाले डेनियल बस्तार ने आगे एक गंभीर बात बताते हुए कहा,  “मोदी सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर अपनी छवि में हेरफेर करने की कोशिश की है। RSF के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग से “बेहद नाखुश" मोदी सरकार ने अपना 15 सदस्यीय “प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक निगरानी सेल” भी बनाया। उनमें से ज्यादातर सरकारी लोग थे। इनमें दो पत्रकार भी थे जो आयोग के काम करने के तरीके से बहुत ही नाखुश थे।”

“यह निगरानी प्रकोष्ठ हमारी पैरवी करने के लिए था, हमारे साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए ताकि हम भारत को बेहतर रैंकिंग दे सकें। लेकिन हमने कहा कि हमें समस्याओं से ठोस तरीके से निपटना होगा। और उन्होंने कहा कि नहीं, नहीं, आप अपने पश्चिमी (वेस्टर्न) पूर्वाग्रह में हैं।" बस्तार ने आगे कहा, “इससे आपको इस बात की जानकारी मिलेगी कि सरकार कैसे डेटा में हेरफेर करने की कोशिश करती है।"

मंगलवार, 3 मई के दिन RSF की प्रेस फ़्रीडम रिपोर्ट आने के बाद मैंने भारत में रहकर पत्रकारिता करने वाले कुछ पत्रकारों से बात की और इस रिपोर्ट के बारे में उनका मत जाना। इस दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि जितना RSF की रिपोर्ट बताती है ज़मीनी हक़ीक़त उससे भी अधिक भयावह है।

एनडीटीवी के पत्रकार और विश्व प्रसिद्ध रेमन मेगसेसे (Ramon Magsaysay) पुरस्कार से सम्मानित रवीश कुमार ने मुझसे कहा, “रैकिंग से भारत की मीडिया की स्थिति का सीमित अनुमान होता है। अगर स्वतंत्रता के साथ-साथ गोदी मीडिया के कटेंट का भी विश्लेषण होता तब दुनिया देख पाती कि गोदी मीडिया के ऐंकर किस तरह की भाषा बोल रहे हैं। रेडियो रवांडा के प्रजेंटर और गोदी मीडिया के ऐंकर में अंतर नहीं है। गोदी मीडिया उस सोच को लेजिटमाइज कर चुका है और दिन-रात उसे पेश करता है जिसे हम इतिहास के संदर्भ में जीनोसाइड के रूप में जानते हैं।”

भारत में “गोदी मीडिया” शब्द बीते कुछ सालों से अत्यधिक प्रचलित रहा है। इसका मतलब ऐसे मीडिया से है जो सरकार के प्रवक्ता की तरह काम कर रही है, जिसके एंकरों का काम सरकार के हर बुरे काम का भी बचाव करना होता है।

पत्रकार आशुतोष जो सत्य हिंदी नामक मीडिया संस्थान के फ़ाउंडर हैं, ने इस रिपोर्ट पर कहा, “भारत में लोकतंत्र उस तरह जीवंत नहीं बचा जिस तरह ये कभी हुआ करता था, आज भारत में लोकतंत्र हर रोज़ धीमी मौत मर रहा है।”

आशुतोष News18 नामक टीवी चैनल के मैनेजिंग एडिटर भी रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, “भारत में कुछ अपवादों को छोड़कर “फ्री प्रेस” एक मिथक भर है, साल 2014 से, जब मोदी इस देश के प्रधानमंत्री बने तब से ही भारत में प्रेस का स्पेस सिकुड़ता चला गया है।”

आशुतोष कहते हैं, “अधिकांश मुख्यधारा के समाचार पत्र और टीवी चैनल या तो स्वेच्छा से सरकार का ही एक विस्तारित हिस्सा बन गए हैं, या सरकार की जांच एजेंसियों के हथियारों के कारण सरकार की लाइन पर चलने के लिए मजबूर हो गए हैं।"

प्रसिद्ध पत्रकार अनिरुद्ध बहल, जिन्होंने दशकों पहले बेहद शक्तिशाली लोगों को बेनकाब करने के लिए छिपे हुए कैमरों का उपयोग करके पत्रकारिता में “स्टिंग ऑपरेशन" को दिशा दी थी, ने कहा कि वह हैरान हैं कि भारत डब्ल्यूपीएफ रिपोर्ट (World Press Freedom) में 150 वें स्थान पर आ गया।

साल 2018 में बहल की ही समाचार वेबसाइट कोबरा पोस्ट  ने पैसे के लिए दक्षिणपंथी प्रचार चलाने वाले भारतीय समाचार मीडिया के मालिकों के ऊपर एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट प्रकाशित की थी। बहल ने कहा, “इंवेस्टिगेशन ने मुख्यधारा के मीडिया मालिकों को उजागर किया कि वे क्या थे। हमारी स्टोरी का नाम “ऑपरेशन 136” था क्योंकि उस वर्ष प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंक 136 ही थी। लेकिन चार साल में यह घटकर अब 150 हो गई है!”

प्रसिद्ध टीवी एंकर रहे और ट्विटर पर 16 लाख फॉलोअर्स वाले स्वतंत्र पत्रकार अभिसार शर्मा ने कहा, भारत का टेलीविजन समाचार मीडिया भड़काऊ शो के माध्यम से “अराजकता फैला रहा है" जो “दंगा-भड़काने की सीमा तक” है।

अभिसार ने आगे कहा, “असली पत्रकारों को इनकम टैक्स के मामलों, या प्रवर्तन निदेशालय (ED) के छापों की धमकी दी जाती है, जबकि दूसरी तरफ रेडियो रवांडा का भारतीय संस्करण जो बड़े स्तर पर झूठ फैलाता है, वो पूरी तरह मुक्त है।” रिपोर्ट पर बात करते हुए शर्मा ने दो टीवी समाचार चैनलों का हवाला भी दिया, जिन्होंने राजस्थान में सांप्रदायिक हिंसा के लिए मुसलमानों पर झूठा आरोप लगाया था। उनके खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उन्होंने राज्य सरकार की निंदा भी की।

अभिसार कहते हैं, “विडंबना यह है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी, यानी राष्ट्रीय स्तर पर जो विपक्ष है उसका शासन है। लेकिन इस निर्लज्ज साम्प्रदायिक राजनीति में कांग्रेस हार रही है। एक तरफ़ न्यूज़ 18 और टाइम्स ग्रुप के एंकर हर रोज़ बड़े स्तर पर झूठ फैलाते हैं, दूसरी तरफ़ केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन जो हाथरस में एक लड़की से हुए रेप की रिपोर्ट करने गए, लेकिन आज वे दो साल से जेल में बंद हैं।"

PEN इंटरनेशनल के सलिल त्रिपाठी ने इस रिपोर्ट पर कहा कि “आज के भारत में कई प्रकाशनों के संपादक कठिन सवाल उठाने को तैयार नहीं हैं। इसमें एक ग़ैर-ज़िम्मेदार ब्रॉडकास्ट इंडस्ट्री भी शामिल है जो सरकार की चीयर-लीडर बनी हुई है। स्थिति ये है कि टीवी मीडिया के एंकर सरकारी विफलताओं के लिए भी विपक्ष से ही जवाब मांगते हैं।”

“द वायर” की पुरस्कार विजेता पत्रकार आरफ़ा खानम शेरवानी के अनुसार, “नरेंन्द्र मोदी के शासन में भारत एक ‘अघोषित आपातकाल’ में जी रहा है। मीडिया का अधिकांश हिस्सा गहरे अंधकार में बदल गया है और सरकार के प्रचार तंत्र का विस्तार बन गया है। कुछ पत्रकार अभी भी अपना काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें झूठे आपराधिक मामलों की धमकी दी जा रही है।” द वायर ने पिछले साल ही इस बात का खुलासा किया था कि भारत में कैसे पत्रकारों के  खिलाफ पेगासस  का इस्तेमाल किया जा रहा है।

आरफ़ा शेरवानी ने ये भी कहा, “कोई भी देश तब तक स्वतंत्र नहीं रह सकता जब तक कि वहाँ स्वतंत्र मीडिया नहीं है। मीडिया के लिए ख़तरा, देश के लोकतंत्र के लिए ख़तरा है। मेरी जैसी पत्रकार के लिए जो आज के भारत में एक ख़ास धार्मिक पहचान से आती है, तब काम करना और भी मुश्किल हो जाता है। एक मुस्लिम महिला पत्रकार होने के नाते मुझे बहुसंख्यकवादी चरमपंथियों द्वारा लगातार निशाना बनाया जाता है, जहां मुझे रोजाना ऑनलाइन उत्पीड़न, बलात्कार और जान से मारने की धमकियों का सामना करना पड़ता है।”

सीमा आज़ाद, इलाहाबाद की एक्टिविस्ट-पत्रकार हैं। उन्हें भी सरकार की आलोचना के कारण जेल जाना पड़ा था। लिखने-पढ़ने वाली सीमा आज़ाद दो साल से अधिक समय तक आतंक के आरोप में जेल में रहीं हैं। प्रेस फ़्रीडम रिपोर्ट पर उन्होंने कहा, “भारत में पत्रकारिता की रेटिंग गिरने की बड़ी वजह सरकारी दमन है, दमन की वजह से पत्रकारिता स्वतंत्र नहीं रह गई है। जिसे हम ‘मेन स्ट्रीम मीडिया’ कहते हैं, वह स्वतंत्र नहीं, बल्कि रवीश कुमार के शब्दों में ‘गोदी मीडिया’ है। मीडिया का महत्वपूर्ण पहलू ‘सरकार के प्रति आलोचनात्मक होना’ मुख्यधारा से लगभग खत्म ही हो गया है। इसकी शुरुआत यूपीए सरकार के समय से ही हो गई थी, याद कीजिए 2009-2010 में तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम की धमकी के बाद देश भर से 200 के लगभग पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई थी क्योंकि उन्होंने सरकार के खिलाफ खड़े समूहों की रिपोर्टिंग की थी, इनमें से ज्यादातर पर UAPA भी लगाया गया था। इन गिरफ्तारियों में मैं भी शामिल थी। उसके बाद से बेशक सरकार बदली है लेकिन ये सिलसिला रुका नहीं है।”

उमा शंकर सिंह, NDTV से जुड़े चर्चित पत्रकार हैं, जिन्हें भारत में पत्रकारिता का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार- रामनाथ गोयनका सम्मान भी प्राप्त है, उन्होंने कहा कि भारत में पत्रकारिता हमेशा निशाने पर रही है। सिंह ने कहा, “किसी न किसी तरह से परेशान किए जाने, एफआईआर में नामजद होने, गिरफ्तार होने और कानूनी (वास्तव में अवैध) जटिलताओं में घसीटे जाने का खतरा अब कई गुना बढ़ गया है।”

सिंह ने आगे कहा, “इसके साथ ही, सरकार का उद्देश्य "पत्रकारों को डराना है ताकि वे सार्वजनिक हित के मुद्दों को उठाने और सरकार की आलोचना करने के बजाय चुप हो जाएं।" सिंह NDTV इंडिया के साथ काम करते हैं, जो कि एक स्वतंत्र टीवी चैनल है। मौजूदा स्थिति में NDTV जैसा चैनल बने रह पाना भारत में दुर्लभ ही है।

न्यूज़लॉन्ड्री वेबसाइट के एग्जीक्यूटिव एडिटर अतुल चौरसिया से भी मैंने बात की। न्यूज़लॉन्ड्री भारत में जन्म ले रही वैकल्पिक मीडिया की दुनिया में जाना-पहचाना नाम है, जिसका मुख्य काम मीडिया पर नज़र रखना भी है। प्रेस फ़्रीडम पर अतुल कहते हैं, “रिपोर्टर विदआउट बॉर्डर के मीडिया इंडेक्स में भले ही हम 150वें पायदान पर पहुँच गए हैं, लेकिन ये हमारी मंज़िल नहीं है। हमें इस दिशा में वहाँ तक जाना है जहां दुनिया के दो सौ मुल्क मुड़-मुड़ के देखें और पूछें कि भारत तुम वहाँ पीछे क्यों खड़े हो? तब हम कहेंगे कि अभी तो हमें और नीचे गिरना है। ये नीचे गिरने का सिलसिला आज के हिंदुस्तान का सच है।”

अतुल आगे कहते हैं, “हमारे हर कामकाज को आज इस बात से तौला जाता है कि अफगानिस्तान में तालिबान ने क्या किया। हम किसी के जैसा बनने की रेस में हैं, और रेस भी उनसे जिनका कोई फ़्यूचर नहीं है। इसमें दो गड़बड़ियाँ हैं, एक तो हमारे पास अपना कोई मॉडल नहीं है। हम दूसरों की नक़ल कर रहे हैं। और अपने हर किए धरे को सिर्फ़ जस्टिफ़ाई कर रहे हैं। दूसरी गड़बड़ ये कि तुलना भी की जा रही है तो जहालत से। तो हम फ़िलहाल जहालत की रेस में शामिल हैं। तो मीडिया इससे कैसे अलग होगा? वह इसी समाज का हिस्सा है। वह बुरी तरह से समाज और कारपोरेट के एड रेवेन्यू का मोहताज है। कोई भी नेता या सरकार जिसके अंदर तानाशाही, फ़ासिस्ट टेंडेन्सी होगी वो मीडिया की इस मजबूरी का फ़ायदा उठाएगा। हिंदुस्तान में फ़िलहाल यही हो रहा है।”

न्यूज़क्लिक के साथ काम करने वाले पत्रकार श्याम मीरा सिंह, पहले एक बड़े टीवी चैनल की वेबसाइट में काम करते थे, उन्हें वहाँ से प्रधानमंत्री के लिए लिखे केवल एक क्रिटिकल ट्वीट के लिए नौकरी से निकाल दिया गया। बाद में उनपर एक मामले में UAPA जैसा एक्ट भी लगा दिया गया जो क़ानून आतंकियों पर रोक लगाने के उद्देश्य के लिए लाया गया था। श्याम कहते हैं, “प्रेस के मामले में भारत इस समय दोहरी स्वतंत्रता से गुजर रहा है। एक प्रेस वो है जिसे लाइव टीवी पर देश के करोड़ों मुसलमानों को टार्गेट करते हुए ‘जिहादी, आतंकी’ कहने की छूट है। हर दिन उनका प्राइम-टाइम शो- सिर्फ़ मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल तैयार करने वाला होता है। पिछले एक महीने के सभी तीस दिन के शो सिर्फ़ मुसलमानों पर होंगे या मोदी पर। वे मोदी सरकार की जितनी चाहें तारीफ़ और विपक्ष के बारे में जितनी चाहें झूठ बोल सकते हैं। दूसरी तरफ़ एक ऐसा मीडिया है जो सिर्फ़ वेबसाइटों और Youtube पर बचा है। अगर वे कोई सामान्य बात भी कह दें तो उनपर आतंकवाद तक के चार्जेस लगा दिये जाते हैं।”

श्याम आगे कहते हैं, “मेरे जैसे तमाम पत्रकारों और नागरिकों को कोई एक ट्वीट या पोस्ट करते हुए पचास बार सोचना पड़ता है कि कहीं किसी एंगल से फंसा ना दें।”

वे आगे कहते हैं, “देश के लगभग सभी बड़े मीडिया चैनलों पर आज सरकार समर्थित एंकरों का क़ब्ज़ा है। जो सरकार समर्थित नहीं हैं उन्हें विज्ञापन नहीं दिए जाते। उन्हें ED जैसी सरकारी संस्थाओं के अनावश्यक छापों से परेशान किया जाता है। अंततः उन सभी पत्रकारों को मीडिया संस्थानों से निकलवा दिया गया है जो सरकार को लेकर थोड़े से क्रिटिकल थे। आज सभी मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों पर ख़ास जाति-ख़ास धर्म और ख़ास विचारधारा के लोगों का इकतरफ़ा क़ब्ज़ा है। वैसे मैं प्रेस फ़्रीडम का सवाल ही नहीं उठाता। भारत में प्रेस जब बचा ही नहीं तो प्रेस फ़्रीडम का सवाल कहाँ रह जाता है।”

“भारत का मीडिया सिर्फ़ सरकार समर्थित मीडिया नहीं है, बल्कि वह दंगे उकसाने वाला, अफ़वाह फैलाने वाला तंत्र बन चुका है। वह पूरी तरह RSS-भाजपा समर्थित है। उसे किसी फ़्रीडम की आवश्यकता नहीं है। भारतीय मीडिया या कहें कि मेनस्ट्रीम मीडिया एंटी पीपल, एंटी मायनॉरिटी, एंटी डिमॉक्रेसी और एंटी फ़्रीडम है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को सबसे अधिक ख़तरा किसी और से नहीं बल्कि मीडिया से ही है और टीवी पर बैठे दंगाई मानसिकता के एंकरों से है।”

अल जज़ीरा में प्रकाशित होने वाले यूएस-स्थित कश्मीरी पत्रकार राक़िब हमीद नाइक से मैंने इस रिपोर्ट के बारे में बात की। नाइक कहते हैं भारत का लोकतंत्र ‘पतन की कगार पर’ है और प्रेस की स्वतंत्रता ‘वेंटिलेटर पर’ है क्योंकि पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई हर दिन बढ़ रही है।

“प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा हिंदू दक्षिणपंथी चरमपंथियों (भारत और विदेश) से भी आता है जो सक्रिय रूप से हिंसा, धमकी, ऑनलाइन उत्पीड़न, मुकदमा, जान से मारने की धमकी, और बलात्कार का उपयोग, पत्रकारों को मजबूर करके फ़्री स्पीच को ख़त्म करने का काम कर रहे हैं।”

नाइक ने कहा, “भारत ने कश्मीर में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए जो किया है वह पूरी तरह से अपने आप में एक त्रासदी है। अगस्त 2019 के बाद से, जब से कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति को समाप्त किया गया है, सरकार का इरादा कश्मीर में प्रेस की संस्था को पूरी तरह से समाप्त करना है। कश्मीरी पत्रकारों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी का उद्देश्य समग्र पत्रकार बिरादरी को एक व्यापक संदेश देना है: या तो लाइन में खड़े हो जाओ या अपने शेष जीवन को जेलों में बिताने के लिए तैयार रहो।”

यह कहानी पहली बार 05 मई 2022 को Americankahaani।com पर प्रकाशित हुई है।

[लेखिका सरिता पांडेय Washington, DC स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, उन्होंने भारत में भी कई मीडिया संस्थानों में काम किया है। व्यक्त विचार निजी हैं।]

Press freedom
Press Freedom Index
World Press Freedom Index
freedom of speech

Related Stories

किसकी मीडिया आज़ादी?  किसका मीडिया फ़रमान?

धनकुबेरों के हाथों में अख़बार और टीवी चैनल, वैकल्पिक मीडिया का गला घोंटती सरकार! 

दिल्ली : फ़िलिस्तीनी पत्रकार शिरीन की हत्या के ख़िलाफ़ ऑल इंडिया पीस एंड सॉलिडेरिटी ऑर्गेनाइज़ेशन का प्रदर्शन

भारत को मध्ययुग में ले जाने का राष्ट्रीय अभियान चल रहा है!

प्रेस स्वतंत्रता पर अंकुश को लेकर पश्चिम में भारत की छवि बिगड़ी

Press Freedom Index में 150वें नंबर पर भारत,अब तक का सबसे निचला स्तर

प्रेस फ्रीडम सूचकांक में भारत 150वे स्थान पर क्यों पहुंचा

नागरिकों से बदले पर उतारू सरकार, बलिया-पत्रकार एकता दिखाती राह

बलिया पेपर लीक मामला: ज़मानत पर रिहा पत्रकारों का जगह-जगह स्वागत, लेकिन लड़ाई अभी बाक़ी है

जीत गया बलिया के पत्रकारों का 'संघर्ष', संगीन धाराएं हटाई गई, सभी ज़मानत पर छूटे


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License