NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
और कितना विष पीएंगे बाबा विश्वनाथ!
हमारी राजनीति शिव मंदिर में पूजा अर्चना और उसका दिखावा करना तो जानती है लेकिन वह अपने धर्म और संस्कृति के महान आदर्शों से अनभिज्ञ है। इस बात को इस देश की भोली भाली और धर्मभीरु जनता जितनी जल्दी समझ जाए उतना ही अच्छा है।
अरुण कुमार त्रिपाठी
17 Dec 2021
modi
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

एक ओर बाबा विश्वनाथ के नाम पर शब्दाडंबर, विज्ञापन और रोशनी और रंगों का उपद्रव अपने चरम पर है तो दूसरी ओर टेलीविजन के परदों पर एंकर सवाल कर रहे हैं कि विश्वनाथ मंदिर के भव्य गलियारे के लोकार्पण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गंगा में स्नान और जलाभिषेक के जो चित्र अखबारों और चैनलों के परदे पर झलके हैं उनसे भाजपा को 2022 के चुनाव में लाभ तो मिलेगा ना ? यही है वह राजनीतिक कर्म जिसने सनातन संस्कृति की महानता और शिव के असीमित व्यक्तित्व की कल्पना को सीमित कर दिया है। आप शब्दों और छवियों में चाहे जितनी भव्यता पैदा करें लेकिन अगर वह आपके आचरण में नहीं है तो वही द्वैध पैदा होता है जो भारतीय संस्कृति में लंबे समय तक रहा है और जिसे संघ परिवार दूर करने की बजाय बनाए रखना चाहता है। 

हर समय राष्ट्रवाद की रट लगाने वाले राजनेताओं से समक्ष आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर यह विचार रखा जाना चाहिए कि आखिर हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने मिथकों और इतिहास पुरुषों की कौन सी व्याख्या प्रस्तुत की थी और उसमें से किससे हमें क्या प्रेरणाएं लेनी चाहिए। वाराणसी में पहुंच कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अचानक राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा याद आ जाती है। जबकि योगी आदित्यनाथ को महात्मा गांधी की वह टिप्पणी याद आती है जिसमें वे काशी की गंदगी से विचलित हैं। निश्चित तौर पर गांधी काशी और विश्वनाथ मंदिर के आसपास की गंदगी से विचलित थे लेकिन उससे ज्यादा वे विचलित थे वहां की ठगी, दिखावे और लालच से। इसीलिए वे सुझाव भी देते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास शांत, निर्मल, सुगंधित और स्वच्छ वातावरण—बाह्य और आंतरिक—उत्पन्न करना प्रबंधकों का कर्तव्य होना चाहिए। वहां के पुजारियों और पंडों का लालची और धृष्टता भरा व्यवहार गांधी जी को खला था। जब उन्होंने पाई चढ़ाई और पंडा ने पाई फेंक दी और दो चार गालियां देकर बोले, ``  तूं यों अपमान करेगा तो नरक में पड़ेगा। ’’ 

लेकिन गांधी ने काशी और राम से जो प्रेरणा ली थी वह अपने आंतरिक वातावरण को स्वच्छ करने की। जिसमें न तो शब्दों का आडंबर होता था और न ही रंगों का उपद्रव। वे राम का नाम तो जपते थे लेकिन राम नाम की किंवदंती उनके लिए सत्य को पाने और साधने का सहारा थी। इसीलिए राम नाम के साथ ही उन्होंने उनके पुरखे सत्यवादी हरिश्चंद्र को अपने जीवन में उतार लिया था। गांधी ने अपने बचपन में सत्य हरिश्चंद्र नाटक देखा था और कहा था कि उन्होंने सत्य के लिए कितने कष्ट सहे। भला लोग उतना कष्ट क्यों नहीं सहते। उन्होंने बचपन में वह नाटक अपने मन में खेला था और बड़े होने पर जीवन में वास्तविक रूप में खेलते रहे। शायद जीवन के अंत तक खेलते रहे। यही थी राजनीति की नैतिकता जिसे उन्होंने स्वाधीनता संग्राम को दिया। जिसे हम आजाद भारत में कायम नहीं रख पाए। सवाल उठता है कि काशी की बाह्रय गंदगी को साफ करने का दावा करने वाले क्या आंतरिक गंदगी को भी साफ करने का साहस रखते हैं? 

गांधी के विपरीत विचार रखने वाले लेकिन उन्हीं की तरह राजनीतिक नैतिकता के आग्रही डा भीमराव आंबेडकर का मानना था कि सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म के ग्रंथ पवित्र नहीं हैं। बल्कि समाज की सारी गंदगी और भेदभाव तो उनके पाठ में ही भरा हुआ है। इसीलिए हिंदू समाज भी वैसा ही निर्मित हुआ है। इसलिए जब तक उन ग्रंथों और देवी देवताओं को त्यागा नहीं जाएगा तब तक भारतीय समाज नैतिक रूप से उन्नत नहीं होने वाला है। नैतिकता के लिए उन्होंने समाज को बौद्ध धर्म की ओर ले जाने की बात कही तो राजनीतिक व्यवस्था के लिए संविधान दिया। उनके नजरिए से देखें तो काशी से थोड़ी ही दूर पर वह सारनाथ है जहां पर भारतीय समाज की मुक्ति का वास्तविक मार्ग है। डा आंबेडकर ने भी जाति व्यवस्था के गरल को पीने और पचाने की कोशिश की थी। इसीलिए उन्हें बहुत किस्म की आलोचना और अपमान का सामना करना पड़ा और तनाव के इन्हीं कारणों से जल्दी चले भी गए। 

लेकिन मिथकों और किंवदंतियों के नवीन व्याख्याकार डा राम मनोहर लोहिया तो शिव की किंवदंती को अलग की तरीके से प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना था कि यह किंवदंतियां निश्चित तौर पर अशिक्षित व्यक्ति को सुसंस्कृत करती हैं लेकिन उनमें सड़ा देने की भी क्षमता होती है। उनके लिहाज से शिव की किंवदंती जहां असीमित व्यक्तित्व की कथा है वहीं वह प्रेम की अद्भुत कथा है। वह कथा पार्वती के प्रति शिव के समर्पण को प्रकट करती है और वे पार्वती के शरीर और फिर उससे गिरते अंगों को जिस तरह से लेकर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में घूम रहे हैं उससे हिंदुस्तानी समाज की एकता भी कायम होती दिखती है। लेकिन शिव की कथा में जो सबसे प्रासंगिक राजनीतिक विषय है वह है विषपान का। शिव देवासुर संग्राम में हिस्सा नहीं ले रहे थे। वे उससे अलग थे। लेकिन जब उस संग्राम के परिणामस्वरूप समुद्र मंथन हुआ तो पहले कालकूट विष निकला और उससे हाहाकार मच गया। तब शिव ने उसे पी लिया और शरीर के भीतर ले जाने की बजाय गले पर ही रोक लिया। इसीलिए वे नीलकंठ कहलाए।

बाबा विश्वनाथ यानी भगवान शिव के जीवन का यही प्रसंग आज के लिए विचारणीय है। वह विष है इस उपमहाद्वीप में बढ़ती सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता का। जिसमें जरा भी विवेक है वह समझ सकता है कि सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता से आप न तो आध्यात्मिक आत्मा में प्रवेश कर सकते हैं और न ही किसी समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। वह ऐसा विष है जो अगर फैल गया तो पूरे उपमहाद्वीप को फिर से उसी तरह लपेट सकता है जैसे उसने 1947 में लपेटा था। आज झूठ और सांप्रदायिकता मिलकर इस देश में जहर फैलाने में लगी हैं। वे कहीं धर्म परिवर्तन करा रही हैं तो कहीं धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कानून ला रही हैं। कहीं अल्पसंख्यक लोगों पर बेवजह हमले करा रही हैं तो कहीं उनके बारे में अफवाहें फैला रही हैं। 

विश्वनाथ गलियारे के उद्घाटन के समय जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औरंगजेब और शिवाजी का नाम लिया तो उनकी पार्टी के एक प्रवक्ता कहने लगे कि अखिलेश यादव औरंगजेब की तरह से व्यवहार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें अल्पसंख्यक समाज के लोग वोट दे रहे हैं। इस तरह की क्षुद्र मानसिकता भला शिव के असीमित और गरल पीने वाले व्यक्तित्व की कल्पना के साथ कैसे तालमेल बिठा सकती है। जो राजनीति इतनी संकीर्ण हो वह भला शिव जैसा मस्तिष्क और असीमित व्यक्तित्व कैसे रख सकती है। वह कैसे राष्ट्रीय एकता कायम कर सकती है। 

शिव को किसी ने गरल पीते हुए देखा नहीं है लेकिन किसी भी परिवार, संस्था या समाज में जो व्यक्ति सहनशील होता है उसे गरल पीने वाले व्यक्ति की संज्ञा दी जाती है। समाज महान गुणों को अपनी किंवदंतियों में ऐसे ही प्रक्षेपित करता है। ऐसे महान व्यक्तित्वों के कारण ही कोई राष्ट्र बनता है और कोई समाज लंबे समय तक चलता है। समाज उन लोगों के सहारे नहीं चलता जो समाज में गरल फैलाते रहते हैं। अगर अमेरिका में अब्राहिम लिंकन ने वैसा करके अमेरिका को जोड़ा तो हमारे ताजा इतिहास में महात्मा गांधी वैसे ही गरल पीने वाले व्यक्तित्व के धनी हुए हैं। उन्होंने सोचा था कि वे सांप्रदायिकता के गरल को पीकर देश को टूटने से बचा लेंगे। लेकिन वे गरल उन्हें निगल गया।  

बाबा विश्वनाथ मंदिर के साथ एक प्रसंग समाजवादी नेता राजनारायण का भी जुड़ा है। वे अछूतों को मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन चला रहे थे और पुलिस ने पीटकर उनका हाथ तोड़ दिया था। दूसरे दिन वे प्लास्टर चढ़ाकर प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे और बोले कि या तो वे अपना नाम विश्वनाथ बदल दें वरना हम कल फिर अछूतों को लेकर उनके यहां प्रवेश कराने आएंगे। आज भारत की एकता कोई विश्वनाथ ही बचा सकता है। ऐसा व्यक्तित्व जिसमें भाषण के लिए नहीं भीतर से विश्वास करने के लिए विश्न बंधुत्व की भावना हो। उसमें असीमित प्रेम की क्षमता होनी चाहिए और मौके पर कालकूट विष पीने का माद्दा भी रहना चाहिए। हमारी राजनीति शिव मंदिर में पूजा अर्चना और उसका दिखावा करना तो जानती है लेकिन वह अपने धर्म और संस्कृति के महान आदर्शों से अनभिज्ञ है। बल्कि उसके विपरीत आचरण कर रही है। इस बात को इस देश की भोली भाली और धर्मभीरु जनता जितनी जल्दी समझ जाए उतना ही अच्छा है।

Narendra modi
Assembly Eelections
UP ELections 2022
banaras
Hindutva
kashi vishwanath
kashi vishwnath corridor
BJP

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

मुस्लिम जेनोसाइड का ख़तरा और रामनवमी

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति


बाकी खबरें

  • JK
    अनीस ज़रगर
    कश्मीरः जेल में बंद पत्रकारों की रिहाई के लिए मीडिया अधिकार समूहों ने एलजी को लिखी चिट्ठी 
    16 Feb 2022
    मीडिया निकायों ने फहद की पत्रकारिता कार्य के विरुद्ध शुरू की गई सभी पुलिसिया जांच को वापस लेने का भी आह्वान किया। 
  • modi ravidas mandir
    राज वाल्मीकि
    रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
    16 Feb 2022
    कई जगह दलितों का वोट प्राप्त करने के लिए भाजपा के नेता भी आज रैदास मंदिर में नमन कर रहे हैं। इसे देखकर एक अम्बेडकरवादी होने के नाते मैं असहज हुआ।
  • Greta Acosta Reyes
    ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    वामपंथ के पास संस्कृति है, लेकिन दुनिया अभी भी बैंकों की है
    16 Feb 2022
    'जब हमारे समय की महान सांस्कृतिक बहसों की बात आती है, इतिहास की सुई लगभग पूरी तरह से वामपंथ की ओर झुक जाती है।लेकिन आर्थिक व्यवस्था के मामले में दुनिया बैंकों की है'।
  • UNEMPLOYMENT
    प्रभात पटनायक
    क्यों पूंजीवादी सरकारें बेरोज़गारी की कम और मुद्रास्फीति की ज़्यादा चिंता करती हैं?
    16 Feb 2022
    सचाई यह है कि पूंजीवादी सरकारों को बेरोजगारी के मुकाबले में मुद्रास्फीति की ही ज्यादा चिंता होना, समकालीन पूंजीवाद में वित्तीय पूंजी के वर्चस्व को ही प्रतिबिंबित करता है।
  • punjab
    न्यूज़क्लिक टीम
    अमृतसर: व्यापार ठप, नौकरियाँ ख़त्म पर चुनावों में ग़ायब मुद्दा
    16 Feb 2022
    भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार ख़त्म होने के बाद अमृतसर, तरन तारन और गुरदासपुर के हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए. इस व्यापार ने हज़ारों ट्रक ड्राइवरों, कुलियों, ढाबों को आबाद किया लेकिन अब सभी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License