NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
नोटबंदी: वायू सेना ने सौंपा 29.41 करोड़ का बिल
नए नोटों को प्रिंटिंग प्रेस और उन्हें टकसालों से देश के विभिन्न हिस्सों तक ले जाने के लिये वायूसेना के विमानों ने 91 चक्कर लगाए।
हर्ष कुमार
10 Jul 2018
Failed demonetisation

नोटबंदी के डेढ साल बीत जाने के बाद भी सरकार यह बता पाने में नाकाम रही है कि इससे  देश को आखिर मिला क्या? डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी आर.बी.आई (भारतीय रिज़र्व बैंक) चलन से बाहर हुए 500 और 1000 के नोटों की गिनती पूरी नहीं कर पाया है। वहीं नोटबंदी के बाद से लगातार ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं जिससे मालूम चलता है कि यह जल्दबाज़ी में लिया गया एक फैसला था जिसने अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाया।  

हाल ही में एक आर.टी.आई से खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के बाद जारी किये गए 2,000 और 500 रुपये के नये नोटों की ढुलाई में भारतीय वायु सेना के अत्याधुनिक परिवहन विमान- सी -17 और सी -130 जे सुपर हरक्यूलिस के इस्तेमाल पर 29.41 करोड़ रुपये से अधिक की रकम खर्च की गई थी, जिसका बिल वायू सेना ने “सेक्युरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया” और “भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड” को सौंपा है। भारतीय वायु सेना द्वारा दिये गए जवाब के अनुसार नोटबंदी के बाद 2,000 और 500 के नए नोटों को प्रिंटिंग प्रेस और टकसालों से देश के विभिन्न हिस्सों तक ले जाने के लिये उसके विमानों ने 91 चक्कर लगाए थे।

नोटबंदी के बाद सरकार की ओर से जो सबसे बड़ा दावा किया जा रहा था वह यह था कि इससे कालाधन सामने आ जाएगा। वहीं अगर आँकड़ों की ओर नज़र डाले तो स्थिति एकदम उलट है। नोटबंदी से पहले 15.44 लाख करोड़ की रकम 500 और 1,000 रूपये के रूप में चलन में थी। आर.बी.आई की 2016-17 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार इसमें से 15.28 करोड़ रूपय बैंको में वापस लौट चुके हैं, मतलब लगभग 99% पैसे वापस बैंकों में लौट चुके हैं। यह रकम बढ़ भी सकती हैं क्योंकि अभी भी आर.बी.आई ने पुराने नोटों की गिनती पूरी नहीं की है।

यानी महज़ 16 हज़ार करोड़ रूपये वापस नहीं आये। वहीं कुछ न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार इस 16 हज़ार करोड़ के पुराने 500 और 1000 के नोटों में से 3,300 करोड़ रूपए नेपाल और भूटान के बैंको और नागरिकों के पास हैं जो अभी तक आर.बी.आई द्वारा बदले नहीं गए है।

वहीं नए नोटों की छपाई कि अगर बात करें तो इसपर आर.बी.आई ने वित्त वर्ष 2016-17 में  7,965 रूपय खर्च किए जबकि वित्तीय वर्ष 2015-16 में यह आँकड़ा 3,421 करोड़ रूपये था। यानी नोटबंदी के कारण 4,544 करोड़ रूपय का अतिरिक्त भार सरकारी खज़ाने पर पड़ा।

यह भी पढ़ें: साल हुआ सदमा-ए-नोटबंदी को

नोटबंदी के फ़ायदे गिनाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि इससे जाली नोटों को ख़त्म करने में मदद मिलेगी। आरबीआई को 2016-17 वित्तीय वर्ष में 762,072 फर्ज़ी नोट मिले, जिनकी क़ीमत 43 करोड़ रुपये थी जबकी वित्त वर्ष 2015-16 में  632,926 नकली नोट पाए गए थे। यह अंतर बहुत ज़्यादा नहीं है।

दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को 'यज्ञ' क़रार देते हुए कहा था कि इस फ़ैसले से किसानों, व्यापारियों और श्रमिकों को फ़ायदा होगा। मगर व्यापारियों, किसानों और श्रमिकों का बड़ा वर्ग इस क़दम की आलोचना करता रहा है।

साथ ही मध्यमवर्ग को फ़ायदा मिलने का भी दावा किया गया था। वहीं कुछ आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के कारण 15 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। वहीं नोटबंदी के कारण 100 से ज़्यादा लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी।

जब नोटबंदी के अन्य लक्ष्यों में सरकार ने खुद को विफल होता पाया तो नोटबंदी को कैशलैस इकोनोमी की ओर एक कदम की तरह दिखाया गया। मगर इस मोर्चे पर भी नोटबंदी पूर्णत: नाकाम  नज़र आती है। जहाँ 5 नवंबर 2016 यानी नोटबंदी से पहले 17.9 लाख करोड़ की नगदी चलन में थी वहीं 1 जून 2018 को यह राशी बढ़कर 19.3 लाख करोड़ हो गई है।

इन सभी तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इतिहास में नोटबंदी को काले अध्याय के तौर पर याद किया जाएगा।

 

नोटबंदी
नोटबंदी की मार
मोदी सरकार
RBI
काला धन

Related Stories

लंबे समय के बाद RBI द्वारा की गई रेपो रेट में बढ़ोतरी का क्या मतलब है?

आम आदमी जाए तो कहाँ जाए!

महंगाई 17 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर, लगातार तीसरे महीने पार हुई RBI की ऊपरी सीमा

रिपोर्टर्स कलेक्टिव का खुलासा: कैसे उद्योगपतियों के फ़ायदे के लिए RBI के काम में हस्तक्षेप करती रही सरकार, बढ़ती गई महंगाई 

आज़ादी के बाद पहली बार RBI पर लगा दूसरे देशों को फायदा पहुंचाने का आरोप: रिपोर्टर्स कलेक्टिव

RBI कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे: अर्थव्यवस्था से टूटता उपभोक्ताओं का भरोसा

नोटबंदी: पांच साल में इस 'मास्टर स्ट्रोक’ ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया

तबाही मचाने वाली नोटबंदी के पांच साल बाद भी परेशान है जनता

नोटबंदी की मार

तत्काल क़र्ज़ मुहैया कराने वाले ऐप्स के जाल में फ़ंसते नौजवान, छोटे शहर और गाँव बने टार्गेट


बाकी खबरें

  • aaj ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    धर्म के नाम पर काशी-मथुरा का शुद्ध सियासी-प्रपंच और कानून का कोण
    19 May 2022
    ज्ञानवापी विवाद के बाद मथुरा को भी गरमाने की कोशिश शुरू हो गयी है. क्या यह धर्म भावना है? क्या यह धार्मिक मांग है या शुद्ध राजनीतिक अभियान है? सन् 1991 के धर्मस्थल विशेष प्रोविजन कानून के रहते क्या…
  • hemant soren
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार
    18 May 2022
    एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश…
  • सोनिया यादव
    असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
    18 May 2022
    असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?
    18 May 2022
    मुंडका, अनाज मंडी, करोल बाग़ और दिल्ली के तमाम इलाकों में बनी ग़ैरकानूनी फ़ैक्टरियों में काम कर रहे मज़दूर एक दिन अचानक लगी आग का शिकार हो जाते हैं और उनकी जान चली जाती है। न्यूज़क्लिक के इस वीडियो में…
  • inflation
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?
    18 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार के पास महंगाई रोकने का कोई ज़रिया नहीं है जो देश को धार्मिक बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License