एक तरफ पूरा देश जलियाँवाला में हुए नरसंहार को सौवीं बरसी में शहीदों को याद कर रहा है पर पेशावर के ख़्वानी बाज़ार में हुए कत्लेआम का नाममात्र ज़िक्र भी नहीं हो रहा। आज़ादी की लड़ाई का यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और साथ ही इसका अभिन्न अंग थे ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान जो इतिहास के किताबों में कही खो गए हैं। इन्ही पन्नो को एक बार फिर पलटने आपके साथ हैं इतिहास के पन्नों के इस नए अंक में निलांजन
एक तरफ पूरा देश जलियाँवाला में हुए नरसंहार को सौवीं बरसी में शहीदों को याद कर रहा है पर पेशावर के ख़्वानी बाज़ार में हुए कत्लेआम का नाममात्र ज़िक्र भी नहीं हो रहा। आज़ादी की लड़ाई का यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और साथ ही इसका अभिन्न अंग थे ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान जो इतिहास के किताबों में कही खो गए हैं। इन्ही पन्नो को एक बार फिर पलटने आपके साथ हैं इतिहास के पन्नों के इस नए अंक में निलांजन
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