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क्या देश को ऐसे चौकीदारों की ज़रूरत है?
“चौकीदार चोर है” नारे ने मोदी जी को इतना परेशान किया कि उन्हें इसके जवाब में “मैं भी चौकीदार हूँ” गाना बनाना पड़ा। लेकिन ये भी मज़ाक़ और आलोचना का शिकार बन गया। कहने वाले कहने लगे कि अपनी ‘चोरी’ छिपाने के लिए मोदी जी ने सबको चोरी में शामिल कर लिया।
सत्यम् तिवारी
18 Mar 2019
क्या देश को ऐसे चौकीदारों की ज़रूरत है?

2014 में बीजेपी पहली बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सत्ता के केंद्र में आई थी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी ने अपना प्रचार-प्रसार करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। सोशल मीडिया का जितना अच्छा इस्तेमाल बीजेपी ने अपने प्रचार के लिए किया है, वैसा किसी कॉर्पोरेट कंपनी ने भी आज तक नहीं किया। इस प्रचार के लिए जनता का कितना पैसा लगाया (पढ़ें- बर्बाद किया) गया है, वो बहस दूसरी ही है। 2014 के चुनाव से पहले जिस तरह से मोदीजी ने ख़ुद को 'चायवाला' बता कर चुनावों में बीजेपी का फ़ायदा करवाया था, वो सबने देखा ही था। इस दफ़ा बीजेपी और मोदीजी जनता के लिए एक नया बज़ूका लेकर आए हैं। वो बज़ूका निकला है राहुल गांधी द्वारा दिये गए एक जुमले से। जब मोदीजी ने अपने भाषणों में ख़ुद को देश का 'चौकीदार' कहना शुरू किया था, उसके बाद राहुल गांधी ने बीजेपी के राज में हुए भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए कहा कि 'चौकीदार चोर है' देश कि राजनीति जुमलों का खेल बन गई है, सो ये जुमला भी चल निकला। लोगों ने तमाम भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर कहना शुरू कर दिया कि 'चौकीदार ही चोर है'।  

अब जब 2019 के लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई है और पहले दौर के मतदान में एक महीने से भी कम समय बाक़ी है, तो बीजेपी ने अपने प्रचार के लिए एक वीडियो बनाया है। इस प्रचार गीत में देश के तमाम लोग कह रहे हैं कि "मैं भी चौकीदार हूँ"। वीडियो के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित बीजेपी के तमाम मंत्री-मुख्यमंत्रियों ने अपने नाम के आगे चौकीदार लगा लिया है। बीजेपी के आईटी सेल, जो कि बहुचर्चित है, ने इसे आगे बढ़ाने में कोई देरी नहीं की, और देखते ही देखते हज़ारों-लाखों आम लोगों ने अपने नाम के आगे चौकीदार लगा लिया है। 

chowkidar-modi-shah.jpg

मोदीजी ने एक बार ट्वीट कर के कहा था कि वो चाहते हैं कि इस सरकार कि आलोचना हो। आलोचना से लोकतंत्र मज़बूत होता है। मोदीजी ने भले ही इसे सिर्फ़ एक और जुमले की तरह लिख दिया हो, लेकिन सोशल मीडिया के एक बड़े तबके ने इसे काफ़ी संजीदगी से स्वीकार किया है। 'मैं भी चौकीदार हूँ' के कैम्पेन का सोशल मीडिया पर खुल कर मज़ाक़ बनाया गया है। 

जिन बीजेपी नेताओं ने ट्विटर पर अपने नाम के आगे चौकीदार लिखा है, उनमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हैं, जिनसे लोगों ने उनके बेटे जय शाह (जिनपे भ्रष्टाचार के आरोप हैं) पर सवाल करते हुए पूछा है कि "चौकीदार का बेटा कहाँ है?" 

5 years report card of #chowkidar @narendramodi and his chowkidar party @BJP4India. The pic says it all about their chowkidari. pic.twitter.com/RFLvFVDpyD

— #ChowkidarHiChorHai (Chandraprakash Tripathi) (@satyam7487) March 17, 2019

इसके अलावा ख़ुद को चौकीदार कहने वाले कई नेता तो वो हैं जिनका नाम उन भ्रष्टाचारियों कि लिस्ट में शामिल है जो रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री को भेजी थी, हालांकि उस लिस्ट पर कार्रवाई क्या हुई इसे गुप्त रखा गया है। 

सोशल मीडिया पर लोग चुटकी लेते हुए ये भी लिख रहे हैं कि जब रफ़ाल कि फाइल चोरी हुई, तब सारे चौकीदार कहाँ थे! इसके अलावा पिछले दिनों संत कबीर नगर के सांसद शरद त्रिपाठी ने भी अपने नाम के चौकीदार लिखा है, जो अपने आप में एक हास्यास्पद बात है। इन सांसद महोदय ने अपनी ही पार्टी के विधायक के ऊपर जमकर जूता चलाया था। हालांकि इन्हीं सांसद महोदय को मोदी जी भी विनम्रता की मिसाल कह चुके हैं।

We don't need such Chowkidars.. pic.twitter.com/ityFryqTrs

— Deepika Singh Rajawat (@DeepikaSRajawat) March 18, 2019

मैं भी चौकीदार अंततः सिर्फ़ वोट पाने के लिए बनाया गया नारा है जिसमें बीजेपी के बाक़ी नारों की तरह ज़रा सी भी हक़ीक़त नहीं है। इसके साथ ही 'मैं भी चौकीदार' गाने का जो वीडियो है, उसमें बीजेपी ने अपने प्रचार के लिए जवानों का इस्तेमाल किया है, और एक जगह ख़ुद मोदी सेना के टैंक में बैठे हैं और वी (विक्टरी) का निशान दिखा रहे हैं। ये एक चुनावी गीत है जिसमें "नमो अगेन" के नारे के साथ पार्टी का चुनाव चिह्न भी दिखाया गया है। सेना का इस तरह चुनाव में इस्तेमाल करना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है। इसे लेकर चुनाव आयोग पहले भी निर्देश दे चुका है।  

इन तमाम नेताओं के अलावा जिस एक नेता के नाम से सबको दिक़्क़त होनी चाहिए वो है एम.जे. अक़बर का नाम। एम.जे. अक़बर जिनका नाम दसियों महिला पत्रकारों ने मीटू कैम्पेन के वक़्त लिया था, कि उन्होंने उन महिलाओं का शोषण किया है। एम.जे. अक़बर का अपने नाम के आगे चौकीदार लिखना एक भद्दा मज़ाक़ ही है।

राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रचार एक ज़रूरी साधन है, ये सब जानते हैं। इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि आज सोशल मीडिया चुनावों के परिणाम में एक अहम किरदार अदा करता है। लेकिन ये सोचना भी ज़रूरी है कि 'मैं भी चौकीदार' कैम्पेन के तहत किस तरह के संदेश जनता तक पहुंचाए जा रहे हैं। मज़ाक़ की बात अलग है, लेकिन अपने नाम के आगे चौकीदार लिखने वाले नेताओं में जब 70% से ज़्यादा नेता भ्रष्टाचार में शामिल हैं, या भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधे बैठे हैं, ऐसे में ये भी एक सवाल खड़ा होता है कि क्या देश को ऐसे चौकीदारों की ज़रूरत है?

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