NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्या धर्मशाला के पास नहीं गरीबों के लिए जगह ?
मांशी आशर
02 Jul 2016

जितनी मशकत हिमाचल के नेताओं और सरकार ने धर्मशाला को स्मार्ट सिटी की पदवी हासिल कराने में लगाई, उससे बहूत  कम समय और उर्जा लगी जिला प्रशासन की, इस शहर की पैंतीस साल पुरानी बस्ती को उजाड़ने में. स्मार्ट सिटी  बनने का मामला तो करोड़ों रुपयों का है पर धर्मशाला की सबसे  गरीब जनता को सस्ते में निपटा दिया गया. 17 जून को धर्मशाला नगर निगम ने लगभग 300 परिवारों की, चरान खड्ड  में बनी झुग्गियों पर बुलडोज़र चला दिया. शहर की मेयर रजनी देवी का कहना है की यह काम "बेरहमी से नहीं किया गया". बल्कि बड़े प्यार से 16 मई को दस दिन की महुलत देते हुए धर्मशाला  नगर निगम ने बस्ती को खाली करने के अादेश दिए. हालाकी इसके विरोध में शिमला उच्च न्यायालय का दरवाजा चरान खड्ड के निवासियों ने ज़रूर खटखटाया. न्यायालय ने फैसला सरकार पर छोड़ दिया और जिला प्रशाशन ने  लोगो को यह अश्वासन देते हुवे मामला  आगे बढ़ाया की उनका पुनर्वास किया जाएगा। कोर्ट का फैसला २५ मई को अाया और जून के पहले हफ्ते में नगर निगम ने झुग्गियों को हटाने का नोटिस जारी कर दिया . अादेश में बस्ती को हटाने के पीछे  की वजह यह बताई  गई  की यहां के लोग खुले में शौच करते हैं जिससे  महामारी फैलेने का खतरा हो सकता है. इस तर्क का खोकलापन साबित करने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की अावश्यकता भी नही।  यदि उंगली में चोट हो तो हाथ नही काटा जाता।स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर जो लाखों रुपये शौचालय बनाने के लिए केंद्र सरकार ने दिए हैं वो अाखिर किस काम में लग रहे हैं ये एक महत्वपूर्ण सवाल है जो कोई नहीं पूछ रहा। 

चरान खड के बाशिंदों को पुनर्वास के नाम पर बिना किसी प्रक्रिया  या कार्यवाही के, बड़े ही अनौपचारिक रूप से १५०० लोगो को तीन अलग गावों - गमरू, पास्सू और सर्रां में खाली ज़मीन दिखा के बोला गया 'यहाँ बस जाओ'.  इन गांवो के स्थानीय लोगों ने बिफर कर अपना विरोध जताया। और  गांव की सामूहिक ज़मीन दिखाने से पहले, प्रशासन को स्थानीय लोगो से वार्तालाप की प्रक्रिया चलाना भी अनिवार्य है. बल्कि प्रशासन को पुनर्वास करने के लिए सबसे पहले भूमि का अधिग्रहण करना चाहिए था | पर जिला प्रशासन ने ऐसा कुछ न करते हुए  झुग्गियां  तुड़वा दी.  रातों रात, महिलायें, बच्चे, बूढ़े, बीमार सड़क पर अा गए।  इसके बाद पुलिस का इस्तमाल करते हुए प्रशासन ने इनको डराया धमकाया और  सड़क से भी खदेड़ के निकाल दिया.  इसके बाद नगर निगम ने यह अादेश जारी कर दिया की  क्षेत्र मेें यदि किसी भी व्यक्ति ने इन को बसाया तो निगम सख्त कार्यवाही करेगा। परिणामस्वरूप  इनको, देव भूमि में,  कहीं भी  टिकने का ठिकाना नही रहा.

इस प्रकरण में धर्मशाला के निवासियों, मीडिया की चुप्पी और प्रशासन की उदासीनता की वजह क्या है अाखिर? यही की ये इस समुदाय की पहचान,  'गंदा', 'चोर', 'नीच' और 'बाहरी' जैसे शब्दों से करते है. परंतु इनकी जो असली पहचान है वो सब भूल गए हैं. ये लोग न केवल गरीब हैं पर बेघर भी, जो  वर्षों पहले अपने गांव छोड़ के यहाँ अ बसे. इनका प्रवास मुख्य रूप से राजस्थान और महाराष्ट्रा से हुअा. राजस्थान से जो 1980 के दशक में अाये ज्यादातर सांसी समुदाय के लोग हैं जो ऐतिहासिक रूप से एक घुमंतू  जाती थी. भारत की अधिकतर घुमंतू जातियां आज के दिन कहीं भी बसने और अाजीविका कमाने के लिए संघर्ष कर रही हैं क्यों की समाज ने इनको कभी अपना हिस्सा नही माना। वैसे ही महाराष्ट्र से अाये समुदाय  अपने को मांगरोड़ी बताते हैं. इस समाज के  लोग भी अनुसूचित जाती की श्रेणी में अाते हैं. समाज ने कभी इन बेघर लोगों को अपना हिस्सा नहीं माना। इज़्ज़त से दो वक्त की रोटी कमाना इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी. इसके बावजूद हिमाचल में इन्होंने पनाह पाई  और अाजीविका के साधन भी. 

अधिकतर लोग शहर के निर्माण कार्यों में कई वर्षों से दिहाड़ी लगा रहें हैं, कुछ मिनियारी के ठेले हैं और कुछ कबाड़ इकठ्ठा व  अलग करने का कार्य करते हैं. कई बुज़ुर्ग बताते हैं की शहर की सड़कों और घरों के निर्माण में उन्होंने काम किया है. किसी भी शहर को बनाने और बसाने में कामगार वर्ग का बड़ा योगदान रहता है. इसके बावजूद भी शहर इनको अपनाने से क्यों कतराता है ?  हम इनके कपड़े, इनकी  बस्तियों  को देख कर नाक सिकुड़ते हैं. पर हमें इनकी मजबूरी और इनकी अस्मिता, दोनो नज़र नहीं अाती। हम नहीं सोचते की चंद रुपयों की दिहाड़ी में ये कैसे गुज़र बसर करते हैं. शहर की ज़मीन के उछलते दाम देख लीजिए - क्या यह लाग कभी भी निजी संपत्ति हासिल कर पाएंगे। जब प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी  और बिजली जैसी सुविधा भी  मुश्किल से मुहइया होती है. कितनी असानी से हैम कह देते हैं की ये 'बाहरी' और 'अवैध' हैं. क्या हम भूल जाते हैं कि पहाड़ में अधिकतर लोग कभी न कभी बाहर से अा  कर बसे हैं. क्या हम भूल जाते हैं कि कई पहाड़ी लोग और जगह गए हैं अाजीविका कमाने के लीए ।क्या हम सब एक देश के नागरिक नहीं ? या देश प्रेम केवल क्रिकेट मैच में टीम इंडिया को चीयर करते वक्त और पाकिस्तान को गाली देते वक्त ही याद रहता है हमें। 

आज चरान खड्ड के समुदाय के अधिकतर बच्चे  सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर के अागे बढ़ रहें हैं. इनमें एक नया हौंसला दिखता है अपनी गरीबी मिटाने का और जीवन में अागे बढ़ने का. पर सरकार के इस एक कदम ने इनको ५० साल पीछे धकेल दिया है. अब जो बच्चे सड़क  पर अा गये - क्या होगा उनका भविष्य? क्या वो भीक मांगने या चोरी करने पर मजबूर नहीं होंगे ?   हमारे भारतीय संविधान की धारा 21  जीने के अधिकार को मूल भूत मानती है जिसमे सिर छुपाने के लिए एक छत होने  का अधिकार भी शामिल है.  कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार का यह फ़र्ज़ बनता है  कि समाज के गरीब, पिछड़े और दबे तबकों के इस अधिकार की रक्षा करे।धर्मशाला प्रशासन व नगर निगम द्वारा संवैधानिक व लोकतांत्रिक प्रक्रिया का  हनन गहन चिंता का विषय है. 

ज़रूर किसी भी भूमि पर अवैध कब्जे का विरोध होना चाहिए और इसके लिए हमारे पास कानून भी हैं और इन कानूनों की रक्षा होना भी अनिवार्य है.  परंतु चरान खड्ड  में तीन दशक से अधिक से बसे लोग, जिनकी जन  संख्या आज १५०० के करीब है, केवल चंद कनाल में सीमित थे।क्या धर्मशाला शहर इतना 'स्मार्ट' बान गया है कि एक टुकड़ा ज़मीन का मात्र् अावास के लिए इनके साथ बांटने में असमर्थ है? 

 

 

धर्मशाला
हिमाचल
स्मार्ट सिटी
भाजपा
कांग्रेस

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

एमरजेंसी काल: लामबंदी की जगह हथियार डाल दिये आरएसएस ने

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License