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भारत
राजनीति
क्या ‘हिन्दू’ हमारी राष्ट्रीय पहचान है?
राम पुनियानी
18 Feb 2015

1980 के दशक से देश में पहचान पर आधारित राजनीति का बोलबाला है। शाहबानो का मुद्दा, राम जन्मभूमि विवाद और रथ यात्राओं ने सम्बंधित पहचान के मुद्दों को सामने लाकर खड़ा कर दिया, और इस पहचान की राजनीति का सबसे पहला शिकार बाबरी मस्जिद हुयी। यह मुगालता  कि हम एक हिन्दू राष्ट्र हैं काफी गंभीर रूप में उभरा और इसके तहत यह भी कि “हम सब हिन्दू हैं” भी मुख्य चर्चा में आ गया। जब से मोदी-भाजपा सरकार असाधारण बहुमत के साथ सत्ता में आई है, इस मुद्दे को और ज्यादा दम-ख़म के साथ उठाया जाने लगा है।

1990 के आस-पास जब मुरली मनोहर जोशी भाजपा के अध्यक्ष थे, ने कहा कि हम सब हिन्दू हैं, मुस्लिम अहमदिया हिन्दू हैं, इसाई क्रिस्टी हिन्दू हैं और जैन-सिख-बौद्ध भी हिन्दू हैं। आर.एस.एस जैन, सिख और बौद्ध धर्म को हिन्दू देवालय से निकली शाखाएं मानते हैं। वो अलग बात है कि जब आर.एस.एस के पहले सरसंघचालक के। सुदर्शन ने कहा कि सिख कोई अलग धर्म नहीं है बल्कि यह एक हिन्दू धर्म से ही निकली एक शाखा है, पर पंजाब में विशाल जन-विरोध हुए।

                                                                                                                                        

अब मोदी के सत्ता में आने से, आर.एस.एस समूह पूरे दल-बल के साथ इसपर जोर देने लगा है कि सभी भारतीयों को ‘हम सब हिन्दू हैं’ कहना होगा। इसे दिमाग में रखते हुए, और इसकी तर्ज़ में तर्ज़ मिलाते हुए गोवा के उप-मुख्यमंत्री जो कि भाजपा से सदस्य हैं ने कहा कि इसाई भी हिन्दू इसाई हैं। आर.एस.एस प्रमुख मोहन भागवत ने बार बार दुहराया कि “पूरी दुनिया भारतीयों को हिन्दू के रूप में जानती है इसलिए भारत एक हिन्दू राष्ट्र है। यह तो काफी साधारण सी बात है कि अगर इंगलैंड के रहने वाले अंग्रेज हैं, जर्मनी वाले जर्मन है और अमरिका में रहने वाले अमरिकी हैं तो जो लोग हिन्दुस्तान में रहते हैं वे सब हिन्दू हैं”। हिन्दुत्व के साथ हिन्दू को मिश्रित करते हुए, वह भी सबसे जुदा श्रेणी में; वे कहते हैं “ सभी भारतियों की सांस्कृतिक पहचान हिन्दुत्व है और वर्तमान में देश में रहने वाले सभी निवासी इस महान संस्कृति की  संताने हैं,” इन सभी दावों के पीछे के राजनैतिक एजेंडे को स्पष्ट करने के लिए, गोवा के सहकारी मंत्री दीपक धावलीकर (भाजपा) ने विधानसभा में कहा कि नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से भारत “हिन्दुराष्ट्र” बनने की राह पर है।  

हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दुराष्ट्र के बारे में सारी बकवास एक सोचे-समझे राजनैतिक एजेंडे का हिस्सा है। इन तीनों को एक ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखने की जरूरत है। हिन्दुत्व के बारे में दावों  को वर्तमान के परिपेक्ष्य में देखना होगा। हिन्दू शब्द की परिभाषा की काफी लम्बी यात्रा है। समय के साथ इसके इस्तेमाल में परिवर्तन आता रहा है। इसका राजनीतिक मकसद के लिए इस्तेमाल; जैसे हिन्दुत्व को राजनैतिक तौर पर स्वीकार किया जाना और हिन्दुत्व का राजनैतिक मकसद हिन्दुराष्ट्र को बनाया गया। इन शब्दावलियों को संघ गठबंधन, ने राष्ट्रवाद जिस पर वे विश्वास करते हैं को बड़ी ही साफगोई से तैयार किया।   

यह बड़ी ही मजेदार बात है कि जिन शास्त्रों को हिन्दू कहा जाता है उनमें 8वी शताब्दी तक हिन्दू नाम का कोई जिक्र नहीं है। हिन्दू शब्द तब आया जब अरब और मध्य पूर्व से मुसलमान इस द्वीप के इस तरफ आये। इस तरह हिन्दू शब्द भौगोलिक श्रेणी के तहत आया। यहाँ तक आज भी दुनिया कईं हिस्सों में, खासकर पश्चिमी एशिया में भारत को हिन्दुस्तान के रूप में जाना जाता है। यहाँ तक कि सऊदी में जो मुस्लिम हज के लिए जाते हैं, उन्हें हिंदी बुलाया जाता है और सऊदी अरब में अंकगणित को वे अपनी भाषा में हिन्दसा (जो कि हिन्द से आया है) बोलते हैं।

बाद में चलकर इस हिस्से में धार्मिक परम्पराओं को हिन्दू धर्म बुलाया जाने लगा। यह धारणा कि यहाँ हिन्दू धर्म का प्रचलन था एक शुद्ध वैचारिक तामीर है। सिंधु घाटी सभ्यता की अपनी  विशेषताएं थी जोकि अन्य हिस्सों से भिन्न थी। आर्य शुरू से ही एक पुरोहिताई समाज था, और बाद में वे कृषि के लिए एवं राज्यों के निर्माण करने के लिए बस गए। देशी आदिवासियों की अपनी संस्कृति थी। ब्राह्मणवादी और बौद्ध परम्पराएं भी काफी भिन्न थी, यहाँ सबसे कठिन  इम्तिहान जाति व्यवस्था में विश्वास का होना था, ब्राहमणवाद जन्म से जातीय ढाँचे की श्रेणी को मानता था और बौद्ध धर्म इसके खिलाफ था। इस बात पर जोर देना कि एक ही तरफ की संस्कृति थी एक मिथ्या ही है। हम जानते हैं कि संस्कृति हमेशा मिलने जुलने से ही विकसित होती है वह भी पलायन और गतिशीलता से।

हिन्दुत्व शब्द का आगमन 19वी सदी के आखिर में नए-नए शुरू हुए भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विरुद्ध साम्प्रदायिक राजनीति की शुरुवात से हुआ। जब 1985 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ तो मुस्लिम सामंती वर्ग और हिन्दू सामंती वर्ग दोनों ने ही इसका विरोध किया और उसी वक्त दोनों ने अपनी साम्प्रदायिक विचारधारा को परिभाषित किया। हिन्दू साम्प्रदायिक धारा से आने वाली अस्पष्ट विचारधारा को हिंदुत्व बोला गया। इसे सावरकर 1924 में प्रमुखता से लेकर आये। सावरकर ने भी हिन्दू को परिभाषित करते हुए कहा कि जो लोग इस धरती का सम्मान करते हैं और इसे अपनी पितृ भूमि मानते हैं वे सब हिन्दू हैं, इस तरह से उन्होंने इसाईओं और मुसलामानों को हिन्दू की परिभाषा से बाहर कर दिया। हिन्दुत्व उनके मुताबिक़ पूर्ण हिन्दुकरण है, सामान नस्ल(आर्य) संस्कृति (ब्राहम्न्वादी) और वह भूमि जो सिन्धु से समुद्र तक फैली हुयी है। उन्होंने हिन्दू राष्ट्र के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को हिंदुत्व की विचारधारा का मकसद बनाया। 1925 से आर.एस.एस ने हिन्दू राष्ट्र को उद्देश्य बना लिया। हिन्दू राष्ट्र का उद्देश्य उस भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का विरोधी था जोकि धर्मनिरपेक्ष और जनवादी भारत का हिमायती था।

इस बात को भी जोर देकर कहा जाता है कि हम सबको अपने आपको हिन्दू बुलाना चाहिए क्योंकि यह ‘जीवन जीने का तरीका” है और यहाँ रहने वाले सब लोगों के लिए यह एक सामान्य बात है। यह धोखा देने की एक चतुर चाल है। बहुत सारे मुस्लिम साम्प्रदायिक लोग इसी तरह कहते हैं कि ‘इस्लाम एक जीवन जीने का तरीका’ है। धर्म अपने आप में ‘जीने का तरीका नहीं है, जीने के तरीके के बहुत ही व्यापक पहलूँ हैं जिसमें भाषा, स्थानीय-क्षेत्रीय सांस्कृतिक भेद, जोकि कभी भी एक जैसे नहीं हो सकते हैं शामिल हैं। धर्म अखंड नहीं है, जीवन का एक हिस्सा है वैसा नहीं जैसा कि हिंदुत्व के हिमायती मानते हैं। संविधान सभा में हमारी राजनैतिक पहचान को तय करने को लेकर काफी गंभीर बहस हुयी और निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस देश को “इंडिया जोकि भारत” है बुलाया जाएगा, जोकि तटस्थ धर्म का शब्द है। आज हिन्दू क्षेत्री-‘राष्ट्रीय’ पहचान नहीं है, यह प्राथमिक तौर पर धार्मिक पहचान है। सबको हिन्दू कहनेवाली यह धूर्तता भरी चाल पहले भौगोलिक पहचान पर बात करती है, सामान्य पूर्वज और फिर यह कहना कि जब हम सब हिन्दू हैं तो हिन्दू शास्त्र, गीता, मनुस्मृति सब हमारी राष्ट्रीय पुस्तक हैं, गाय हमारी राष्ट्रीय पशु है; और हम सब को राम आदि की उपासना करनी चाहिए।

यह कोई अहानिकर कदम नहीं है। शुरुवात में “हम सब हिन्दू हैं” फिर कहा जाएगा कि अब हम हिन्दू राष्ट्र हैं और फिर उसके बाद हिन्दू धर्म से आने वाले मठाधीशों की  बातें सुनों या फिर हिन्दू धर्म के रक्षक के रूप में अपने आपको घोषित करो। संविधान की स्थिति बहुत स्पष्ट है जिसमें यह साफ़ है कि हिन्दू एक धार्मिक पहचान है और भारत एक राष्ट्रीय पहचान है। यह सही है कि आर.एस.एस का स्वतन्त्रता आन्दोलन या भारतीय संविधान से कोई लेने-देना नहीं रहा इसलिए अपने एजेंडे को आगे बढाने के लिए भारतीय संविधान के विपरीत जोकि हमें भारतीय होने की पहचान देता है, आर.एस.एस हिन्दू पहचान को थोपना चाहता है।

आगे क्या होगा इसका अंदाजा हम आर.एस.एस के प्रशिक्षण शिविर में होने वाली चर्चा से लगा सकते हैं, जोकि हमें आर.एस.एस के पूर्णकालिक एजेंडे की ओर इशारा करता है। आइये इसके लिए हम आर.एस.एस कार्यकर्ता जोशी के बयान पर नजर डालते हैं, कुछ दशकों पहले, “एक सवाल-जवाब सत्र के दौरान एक कार्यकर्ता ने यदाराव जोशी से सवाल पूछा जोकि उस वक्त पूरे दक्षिण भारत के संघी कार्यकर्ताओं के प्रमुख थे, “ हम कहते हैं कि आर।एस।एस एक हिन्दू संगठन है। हम कहते हैं कि हम एक हिन्दू राष्ट्र हैं, और भारत हिन्दुओं का है। हम उसी सांस में यह भी कहते हैं मुस्लिम और इसाईओं को अपने धर्म को मानने का स्वागत है, और जैसे हैं वैसे ही रह सकते हैं अगर वे इस देश को प्यार करते हैं। हम ऐसी छुट उन्हें क्यों दे रहे हैं? हम स्पष्ट क्यों नहीं कह देते कि अगर हम हिन्दू देश हैं तो उनकी यहाँ कोई जगह नहीं है?। जोशी इसका जवाब देते हैं, “ अभी तक, आर.एस.एस व हिन्दू समाज इसाईओं और मुसलमानों को यह स्पष्ट जवाब देने के लिए मज़बूत नहीं है कि अगर आप लोग इंडिया में रहना चाहते हो तो हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो जाओ। या तो धर्मान्तरण कर लो वर्ना तबाह हो जाओगे। परन्तु जब हिन्दू समाज और आर.एस.एस काफी मज़बूत हो जायेंगें तो हम उनसे कहेंगे कि अगर तुम भारत में रहना चाहते हो और इस देश से मोहब्बत करते हो, तो तुम्हे यह स्वीकार करना होगा कि आपकी पिछली पीढ़ियां हिन्दू थी और इसलिए आप लोग हिन्दू धर्म में आ जाओ”।

पिछले 9 दशकों से जो संघ परिवार चाहता था उसे आज मोदी सरकार के सत्ता में आने से पूरी ताकत के साथ पेश किया जा रहा है। आर.एस.एस के भागवत और उसके लग्गे-भग्गे जो टी.वी पर आकर कह रहे हैं वह भारत के संविधान की गरीमा के खिलाफ है। तो हम किस राह पर जा रहे हैं यह एक बड़ा सवाल है जिसके बारे में हर नागरिक जागरूक होना और स्वतंत्रता आन्दोलन से जो हमें विरासत में मिला है और जिसे कि संविधान में नवाज़ा गया है उस पर बड़ी मजबूती से खड़े रहना होगा।

 

(अनुवाद:महेश कुमार)

 

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

 

 

 

 

 

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