NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
लो एक और साध्वी मंत्री का गीता-ज्ञान
चंचल चौहान
12 Dec 2014

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्ववाली आजकल की केंद्र सरकार ने अवाम को जो सुनहरे सपने दिखाये थे, वे अभी सपने ही बने हुए हैं, लोग काले धन में से पंद्रह लाख रुपये मिलने की आस लगाये बैठे हैं, उधर महंगाई बढ़े जा रही है, सरकार जब डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा रही है तो हर चीज़ महंगी हो ही जायेगी, इज़ारेदारों और बड़े व्यापारियों को इसका पूरा फायदा मिल रहा है, उनके तो ‘अच्छे दिन’ आ ही गये, जनता भूखी नंगी रहे तो सरकार की बला से। जनता में क्रोध पनपना शुरू हो, उससे बचने के लिए मोदी सरकार के नाकारा मंत्री कोई न कोई ऐसा बयान दे देते हैं जिससे हंगामा शुरू हो जाये और असली मुद्दे जस के तस बने रहें। यह अजब संयोग है कि ऐसे बयान महिला मंत्रियों की ओर से आ रहे हैं, वे आर एस एस की सदस्य नहीं बन सकतीं, मगर सारे कारनामे वे ही करती हैं जिनसे समाज में सांप्रदायिक नफरत फैले, संविधान के अपमान में उनकी गिरफ्तारी की मांग भी करने में हमारे भद्र समाज को संकोच होता है, क्योंकि हम महिलाओं की इज्जत करते हैं।

अभी मुश्किल से एक साध्वी मंत्री के क्षमा मांग लेने के बाद माहौल पटरी पर आ ही रहा था कि दूसरी साध्वी, सुषमा स्वराज ने गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ घोषित करने की अपनी मांग एक उत्सव में रख दी। वे यह भूल गयीं कि ईश्वर की सौगंध खा कर उन्होंने यह शपथ ली थी कि वे भारत के संविधान के प्रति वफादार रहेंगी और बिना किसी भेदभाव के और बिना किसी के दबाव में आ कर अपना प्रशासनिक काम करेंगी। मगर यह क्या कर रही हैं सुषमा जी। भारत का संविधान इस देश को ‘धर्मनिरपेक्ष’ बताता है जो कि यह है, और सभी धर्मों, संप्रदायों, जातियों, संस्कृतियों और भाषाओं का यह देश अपनी विविधता में ही एकता हासिल किये हुए है। ऐसे देश के लिए किसी एक धर्म की कोई पुस्तक पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए ‘राष्ट्रीय’ होने का दर्जा नहीं पा सकती, न वेद, न पुराण, न बाइबिल, न कुरान। गीता में कृष्ण तो आह्वान कर डालते हैं कि “सर्वधर्माणि परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज’ यानी सभी धर्म छोड़ कर मेरी शरण में आओ’। भारत अब एक आधुनिक देश है जहां वे सब जो सदियों से रह रहे हैं और जो यहां के नागरिक हैं, जिनकी पिछली पीढ़ियों ने आजादी के लिए जानें कुर्बान की हैं, जो अपने तन धन से आज देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं, केंद्र के मंत्रियों से इस तरह के संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण की अपेक्षा नहीं रखते।

सुषमा स्वराज को पूरा हक है कि वे अपने घर में खूब गीता पढ़ें, मंत्रालय का काम तो नरेंद्र मोदी खुद संभाल ही रहे हैं, इसलिए आफिस में भी दस बारह घंटे गीता ही पढ़ें। अपनी पार्टी के सदस्यों को भी सारा कामधाम छोड़ कर गीता पढ़ने में ही लगा दें, मगर बहुत से धर्मों वाले इस सतरंगी देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ की तरह चलाने की कोशिश न करें। उन्हें गीता से प्यार हो सकता है, यह उनका अधिकार है, जन्मना हिंदू होते हुए भी, मुझे गीता में लिखे हुए बहुत से श्लोकों से आज के समय में एक लोकतांत्रिक देश में ऐसे असंगत उपदेशों की गंध आती है जो मानव समाज के विकास के लिए रोड़ा जैसे लगते हैं। सुषमा जी तो एक नारी भी हैं, वे गीता पढ़ते समय क्या यह श्लोक नहीं पढ़तीं जिसमें नारी के बारे में कैसा कुत्सित विचार प्रकट किया गया है

उक्त उद्धरण ज्यों का त्यों गीता में से स्कैन करके यहां चिपकाया है जिससे कोई यह आरोप न लगाये कि गीता में यह श्लोक नहीं है, मेरा बना बनाया हुआ या क्षेपक है। यहां कुल स्त्रियों को प्रदूषित न होने देने और वर्णशंकर औलाद न पैदा होने देने के लिए नारियों पर वही नियंत्रण रखने की सलाह है जो मनुस्मृति में दी गयी है, और रामचरितमानस में रामभक्त तुलसी बाबा ने और भी गंदे तरीके से दोहरायी है, “जिमि स्वतंत्र हुइ बिगरहिं नारी” या “ढोल गंवार शूद्र पसु नारी/ये सब ताड़न के अधिकारी’ या ‘अवगुन आठ सदा उर रहहीं’ और कलियुग में वर्णशंकर लोग होने का रोना रोया है।

इस देश की महिलाओं के प्रति ऐसा हिकारतभरा उपदेश जिस किताब में हो, उसे इस देश का ‘राष्ट्रीय’ ग्रंथ बनवाने की सिफारिश एक महिला की ओर से ही आ रही है, इससे बड़ा दुर्भाग्य इस देश का क्या हो सकता है। यही नहीं, गीता उस सदियों पुराने ब्राह्मणवादी मनुवादी सामाजिक ढांचे को बनाये रखने की वकालत करता है जिसे एक आजाद और लोकतांत्रिक आधुनिक गणराज्य में समाज के बहुसंख्यक दलित समाज और वैज्ञानिक सोच का कोई भी भारत का नागरिक स्वीकार नहीं कर सकता। उसमें वर्णव्यवस्था को यह कह कर गौरवान्वित किया गया है कि यह व्यवस्था तो स्वयं कृष्ण की बनायी हुई है। कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि

अब जिस वर्णव्यवस्था को सुषमा स्वराज के भगवान कृष्ण ने बनाया है तो उसके उन्मूलन का काम तो ईश्वरविरोधी हो जायेगा, और हमारा संविधान भी इस तरह कृष्णविरोधी हुआ। ऐसे कृष्णविरोधी संविधान के नियमों की रक्षा और उसका पालन करने की शपथ उसी ईश्वर को साक्षी मान कर क्यों ली। इस तरह खुद सुषमा स्वराज ईश्वरविरोधी हो गयीं।

गीता और संविधान दो विराधी दृष्टिकोणों से रचे ग्रंथ हैं, दोनों के समय और समाज भिन्न हैं, गीता बहुत दूर अतीत में रचे एक महाकाव्य का हिस्सा है जो उसी तरह पढ़ा जाता है जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, महाकाव्य पढ़े जाते हैं, वह हमारे रोजमर्रा के काम काज में और जीवन व्यवहार में अमल में लाने के लिए नहीं है, न अमल संभव ही है। अगर हर नागरिक अमल करने लगेगा तो कोई जिंदा ही नहीं बचेगा, क्योंकि गीता में कृष्ण अर्जुन को यही सिखा रहे हैं, कि अपने सगे संबंधियों का कत्ल करना कोई गुनाह नहीं, शरीर तो पुराने वस्त्रों की तरह है, आत्मा थोड़े ही मरेगी, इसलिए बेहिचक मारो, तुम्हें पाप नहीं लगेगा, युद्ध में जीते तो मजे और मारे गये तो स्वर्ग में मजे, बकौल तुलसीदास, दोनों हाथों में लड्डू, “दुहूं हाथ मुद मोदक तोरे’’।

गीता के तर्क से सभी हत्या के जुर्म में कैद सभी अपराधियों को रिहा कर देना चाहिए क्योंकि उन्होंने गीता के मुताबिक कोई पाप किया ही नहीं, जिसे मारा, उसका पुराना चोला ही फट गया, आत्मा जो कि असली चीज है, वह तो अक्षुण्ण है, फिर इन मुकदमों पर हजारों रुपया क्यों बरबाद कराया जा रहा है, इतनी पुलिस, इतने जज, इतने कालेज, इतनी किताबें, जर्नल्स, और न जाने कितने उद्योग, मसलन कागज, छापाखाने, कूरियरवाले, सब बेकार अपना अपना धंधा इसी हत्या के अपराध पर चला रहे हैं, ये सब बंद हो जायेंगे, आर्थिक सुधारों में यह नया मोड़ गीता पर अमल करने से आ सकता है। सुषमा जी, जल्दी करो, इन सबकी दुकानें बंद करा दो। गीता से एक आर्थिक सुधार उधार जरूर ले लिया है, वह है कर्म कराओं, मजदूरी के बारे में मत सोचो, श्रम करना तुम्हारा अधिकार है, मजदूरी मांगना तुम्हारा अधिकार नहीं। जाओ, सुषमा जी, यह श्लोक मारतीय मजदूर संघ की किसी सभा में सुनाओ कि “कर्मण्येवाSधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’’। वहां मजदूर आपका टमाटरों से स्वागत करेंगे, यह आपको मालूम नहीं क्योंकि ट्रेड यूनियनें मंहगाई का सूचकांक बढ़ने पर अपनी कम मजदूरी को बढ़वाने के लिए रोज संघर्ष करती हैं, तब जा कर वे जीवनयापन करने की मामूली हालत में मजदूरों को ला पाती हैं। आप उन्हें गीताज्ञान सिखाने की कोशिश करके देखिए, तो असलियत का पता लग जायेगा। मंत्रालय में कामधाम है नहीं, मोदी सरकार का कोई ऐसा महान काम अभी दिखा नहीं जिसका गुनगान कर सकें, तो खाली दिमाग शैतान का अड्डा ही हो सकता है, सो हो रहा है।

                                                                                                                            

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

सुषमा स्वराज
गीता
संविधान
नरेन्द्र मोदी
भाजपा
साध्वी निरंजन ज्योति

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License