NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
'मोदीकेयर' को लेकर आख़िर कौन ज़्यादा ख़ुश है?
जुमलेबाज़ी मोदी सरकार की ख़ासियत है। इस सरकार में ख़ासकर सार्वजनिक नीति को लेकर खोखली जुमलेबाज़ी की गई।
अमित सेनगुप्ता
07 Feb 2018
hospital

जुमलेबाज़ी मोदी सरकार की ख़ासियत है। इस सरकार में ख़ासकर सार्वजनिक नीति को लेकर खोखली जुमलेबाज़ी की गई। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजटीय भाषण के दौरान दुनिया के "सबसे बड़े सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम" की घोषणा की। बीजेपी के प्रवक्ताओं ने जल्द ही इसका नाम'मोदीकेयर' दे दिया और इसे कॉर्पोरेट नियंत्रित मीडिया द्वारा बिना सवाल पूछे बखान करना शुरू कर दिया गया। इस कार्यक्रम के तहत बीमा कार्यक्रम के ज़रिए 10करोड़ परिवारों को कवर करने का प्रस्ताव है जो किसी परिवार के लिए हर साल 5 लाख तक अस्पताल में इलाज के लिए किए गए खर्चों को पूरा करने का वादा करता है। इस प्रस्ताव में आगे बताया गया है कि ख़र्च का 40% राज्यों द्वारा वहन किया जाएगा।

इस घोषणा के बाद स्वास्थ्य कार्यक्रम को बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित किया गया। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम दिए जा रहे सुविधा की वास्तविकता को जानने का प्रयास करें। आम लोगों को बहुत सी बातें याद नहीं रहती हैं। कुछ लोगों को शायद याद है कि इसी तरह की घोषणा 2016 में की गई थी! 2016 में अंतर केवल यह है कि एक परिवार के लिए प्रतिपूर्ति की सीमा 1.5 लाख रखी गई थी और 2018 की घोषणा ने इसे 5 लाख तक बढ़ा दिया है। अगर इस योजना को शुरू की जाती है तो बढ़ाई गई सीमा से बहुत कम लोगों को फ़ायदा होने की संभावना है, क्योंकि मौजूदा बीमा योजनाओं में सबसे अधिक प्रतिपूर्ति एक लाख से कम है। अधिकतम सीमा में मामूली वृद्धि का मतलब यह नहीं होगा कि अचानक प्रत्येक व्यक्ति 5 लाख प्राप्त करने लगेगा, लेकिन जनता को लुभाने का यह अच्छा तरीक़ा है।

आख़िर 2016 और 2018 के बीच क्या हुआ? वास्तव में कुछ भी नहीं हुआ। कोई भी नई योजना शुरू नहीं हुई। मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना(आरएसबीवाई) के लिए आवंटित किए गए केवल मामूली 1,000 करोड़ रुपए में से मात्र आधे हिस्से को वास्तव में 2017-18 में ख़र्च किया गया। लेकिन यह बयानबाज़ी की ताक़त ही है कि नई घोषणा को एक साहसिक कदम और एक 'गेम चेंजर' के रूप में भी बताया जा रहा है। जब कभी नए बीमा कार्यक्रम के शुरूआत की जाएगी दो तो यह केवल आरएसबीवाई और कई अन्य राज्य स्तरीय बीमा कार्यक्रमों का नवीनीकृत संस्करण होगा जो भारत में स्वास्थ्य सेवा में बढ़ते संकट को दूर करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया है।

2018-19 बजट में स्वास्थ्य के लिए अल्प वित्त

वास्तविकता यह है कि (मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद है) 2018-19 के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट 2017-18 बजट के संशोधित अनुमानों की तुलना में कम है। 2017-18 में स्वास्थ्य के लिए आवंटित संशोधित अनुमानों में 53,198 करोड़ रुपए की तुलना में इस साल का आवंटन 55,667 करोड़ रुपए है। यह वृद्धि मुद्रास्फीति की दर से कम है। ख़ास तौर से यह कि सरकार का प्रमुख स्वास्थ्य कार्यक्रम 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन' को वास्तव में कम राशि मिले है। 2018-19 में30,634 करोड़ रुपए का आवंटन 2017-18 में ख़र्च किए गए 31,292 करोड़ रुपए से कम है।खोखले वादों के साथ नीति बदलने में मोदी सरकार माहिर है। कुछ महीने पहले ही बड़े ज़ोर शोर से 2017 राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गई। दावा किया गया कि वर्तमान में 1.2% की तुलना में स्वास्थ्य पर ख़र्च 2025 तक जीडीपी का 2.5% तक बढ़ जाएगा। इसके लिए प्रत्येक वर्ष लगभग 20% तक आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता है। जैसा कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि 2018-19 में स्वास्थ्य के लिए आवंटित धन में कमी की गई है। वास्तव में जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से स्वास्थ्य पर धन आवंटन में कोई ख़ास वृद्धि नहीं हुई है।

बीमा योजना को वित्तपोषण

इसलिए अब हमें विश्वास है कि दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रम को एक ऐसी स्थिति में जादुई रूप से वित्तपोषित किया जाएगा जहां मौजूदा बजट में स्वास्थ्य के लिए कुल आवंटन घट गया है और इसमें प्रस्तावित बीमा योजना के लिए केवल 2,000 करोड़ रुपये का आवंटन शामिल है जो 50 करोड़ लोगों को कवर करेगा। इस स्थिति की असंगतता के संबंध में अनुभूति साफ हो गया है। ब्लूमबर्ग क्विंट के साथ एक साक्षात्कार में वित्त सचिव, हंसमुख अधिया ने स्पष्ट करने में जल्दबाज़ी दिखाई कि: "... इस योजना को लागू किया जाना है। इस योजना की रूपरेखा राज्य सरकारों के साथ मिलकर स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तैयार करना है"। उन्होंने कहा कि इस योजना के लिए वास्तविक आवंटन 2019 -20 में शुरू होगी। जाहिर है किसी भी चीज़ को दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम के रूप में कहना आसान है

क्या बीमा कार्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं?

कई अन्य चीजें अस्पष्ट हैं। राज्य, विशेष रूप से ग़रीब राज्य को इस कार्यक्रम के लिए किस तरह सह-निधि हासिल होगी। लेकिन समझे कि कोई चमत्कार होता है और पैसा इस योजना के वित्तपोषण के लिए मिल जाता है। देश के स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए इसका क्या अर्थ होगा? सार्वजनिक वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को लेकर हमारे पिछले अनुभव क्या संकेत देते हैं?

वर्ष 2009 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) नाम से राष्ट्रीयव्यापी स्वास्थ्य बीमा योजना की शुरूआत की। इसे इलाज के लिए क्षमता से अधिक ख़र्च से मरीज़ों की रक्षा के लिए तैयार किया गया था। यह योजना आंध्र प्रदेश के राजीव आरोग्यश्री योजना से प्रेरित थी। राष्ट्रीय बीमा योजना के अलावा कई राज्य-स्तरीय स्वास्थ्य बीमा योजनाएं हैं जिसका संचालन किया जा रहा है। वर्तमान में ये देश की आबादी का एक तिहाई कवर करते हैं। हालांकि यह कवरेज अव्यवहार्य है। एनएसएसओ (2014) के आंकड़े बताते हैं कि संभावित लाभार्थियों के केवल 12-13% वास्तव में कवर किए जाते हैं।

वर्तमान प्रस्ताव की तरह ये बीमा योजनाएं केवल हॉस्पिटल केयर के लिए है और प्रक्रियाओं की एक विशिष्ट सूची को कवर करती है। दो बुनियादी स्तंभ इस प्रकार के स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का समर्थन करते हैं। सबसे पहले वे 'वित्तपोषण और प्रावधान के बीच विभाजन' के तर्क पर काम करते हैं। यद्यपि वित्त पोषण सार्वजनिक संसाधनों (केंद्रीय या राज्य सरकार के निधियों) से होता है, इलाज किसी भी मान्यताप्राप्त संस्थान सार्वजनिक या निजी द्वारा किया जा सकता है। व्यवहार में जब प्रावधान की बात आती है तो मान्यता प्राप्त संस्थानों का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र का है। उदाहरण स्वरूप आंध्र प्रदेश के आरोग्यश्री योजना के मामले में 2007 से 2013तक इस योजना के तहत कुल भुगतान 47.23 बिलियन रूपए स्वीकृत थे, जिसमें से 10.71 बिलियन रुपए सार्वजनिक ईकाईयों की दी गई और 36.52 बिलियन निजी ईकाईयों को मिली।

इन योजनाओं का दूसरा स्तंभ यह है कि लाभार्थियों को कुछ बीमारियों के लिए बीमा किया जाता है जिसे इलाज के माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत होती है। लगभग सभी संक्रामक बीमारियां इस सीमा से बाहर है जिसका इलाज बाह्य-रोगी स्थानों पर किया जाता है। जैसे कि टीबी, इसका लंबा इलाज चलता है। पुरानी बीमारियां (मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग) या कैंसर का इलाज की आवश्यकता होती है, जो अस्पताल में भर्ती के लिए नहीं बुलाते हैं। अरोग्यश्री का ही उदाहरण फिर लेते है, अध्ययन से पता चलता है कि इस योजना में राज्य के स्वास्थ्य बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा है जबकि यह बीमारी के बोझ के केवल 2 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है। इस तरह की विषम प्राथमिकताओं ने स्वास्थ्य प्रणाली की संपूर्ण संरचना को विकृत कर दिया और पहले से ही प्रभावी कॉर्पोरेट स्वास्थ्य क्षेत्र को मज़बूत करने के लिए सार्वजनिक धन लुटाया जाता है।

सिद्धांत में बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियां पिरामिड की तरह है: सबसे ज्यादा मरीजों का प्राथमिक स्तर पर इलाज किया जा सकता है जहां लोग रहते हैं और काम करते हैं। कुछ को माध्यमिक स्तर जैसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए रेफर करने की आवश्यकता होगी और कुछ को विशेष इलाज के लिए तृतीयक अस्पतालों की आवश्यकता होगी। बेहतर प्राथमिक और माध्यमिक स्तरीय इलाज की मौजूदगी में कुछ ही रोगी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए ज़्यादा महंगी अस्पतालों का रूख करते हैं। स्वास्थ्य बीमा योजनाएं इस पिरामिड को उलट देता है और प्राथमिक स्तरीय केंद्र ख़ाली रह जाते हैं।

इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि ये सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाएं निजी प्रदाताओं के साथ साझेदारी के ज़रिए बड़े पैमाने पर लागू होती हैं। सिस्टम से धोखाधड़ी को लेकर कई राज्यों में दोषी ठहराया गया है। निजी केंद्र इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए अनावश्यक प्रक्रियाओं का संचालन करते हैं जिसके कई रिपोर्ट सामने आ चुके हैं। दिल दहला देने वाली घटनाओं की जानकारी सामने आ चुकी है। उदाहरण स्वरूप महिलाओं को 22 वर्ष की उम्र में ही अनावश्यक हिस्टेरेक्टोमीज़ (गर्भाशय के पूरे या कुछ हिस्से को निकालने के लिए ऑपरेशन करना) कर दी गई।

नव-उदार तर्क बीमा योजनाओं का समर्थन करता है

विवादास्पद प्रश्न यह है कि भारत में सरकारें (मौजूदा और पिछली सरकारें) बीमा योजनाओं को बढ़ावा देना पसंद क्यों करती हैं जिसमें अनिवार्य रूप से निजी प्रदाताओं की साझेदारी है? सार्वजनिक सेवाओं के लिए नव-उदार दृष्टिकोण में स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए ये प्राथमिकताएं अंतर्निहित हैं। बीमा योजनाएं निजी अस्पतालों में सार्वजनिक धन पहुंचाने का रास्ता तैयार करता है। ऐसी स्थिति में सार्वजनिक सुविधाएं कमज़ोर हो जाती हैं जहां निजी प्रदाता पहले से ही प्रभावी हैं। दूसरी ओर निजी प्रदाताओं को ग्राहकों का आश्वासन मिल जाता है। निजी क्षेत्र का प्रभुत्व विशेष रूप से ऐसी स्थिति में चिंता की बात है कि जहां न तो इलाज की गुणवत्ता और न ही इसके ख़र्च विनियमित किए जाते हैं।

अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में वास्तव में सरकार दिलचस्पी रखती है तो वह सार्वजनिक सेवाओं को मजबूत करने के लिए आवंटन बढ़ा सकती थी जो वर्तमान में गड़बड़ है। गोरखपुर अस्पताल में बच्चे की मौत जैसी कई घटनाएं सामने आ चुकी है। सार्वजनिक अस्पतालओं में इस तरह की घटनाएं कम फंडिंग और दशकों से उपेक्षा के चलते हो रही है। लेकिन नव-उदार तर्क यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि परिभाषा के अनुसार सार्वजनिक सेवाएं अक्षम हैं। फिर भी यूके और इसके एनएचएस, श्रीलंका, थाईलैंड, फ्रांस, क्यूबा जैसे देश में स्वास्थ्य सेवा की सफलता की सभी कहानियां मुख्यतः सार्वजनिक सेवाओं पर निर्भर करती हैं। 'हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर' (जिसे पहले उप-केंद्र कहा जाता था उसका एक नया नाम है) के निर्माण के अपने 'फ्लैगशिप' कार्यक्रम की तारीफ़ करते हुए जेटली ने इसके लिए सिर्फ 1200 करोड़ रुपए आवंटित किए, जो कि देश भर में प्राथमिक स्तर के केंद्रों के निर्माण की आवश्यकता का लगभग 5% है।

देश के ज़्यादातर हिस्सों में स्वीकार करने योग्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं हैं। इस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। प्राथमिक केंद्रों तक पहुंच स्थापित किए बिना देश के अधिकांश हिस्सों के मरीज़ों को अस्पतालों तक जाने की संभावना नहीं होगी और ख़़र्चीले निजी अस्पतालों में मोदीकेयर का लाभ उठाना होगा।

देखें, कौन ख़ुशी मना रहा है!

समाप्त करने से पहले हम देखें कि कौन मोदीकेयर घोषणा के लिए ख़ुशी मना रहा है। शायद भारत के बढ़ते हुए निजी स्वास्थ्य सेवा उद्योग का सबसे ज़्यादा उभरता चेहरा नरेश त्रेहान का कहना है कि "स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किए गए बजट को पूरा नंबर मिलना चाहिए, यह सेक्टर के बाकी हिस्सों को भी कवर करता है। सरकार से सवाल पूछा जा रहा है। हालांकि यह ग़रीबों को ज़रूरत को पूरा करता है। ये बजट सिर्फ देश को स्वस्थ्य नहीं बना रहा है बल्कि वंचित वर्गों को एक संसाधन देता है। निजी उद्योग क्यों उत्साहित है, इसका अनुमान लगाने के लिए कोई पुरस्कार नहीं। अब तक मैक्स, फोर्टिस, अपोलो, मेदांता, आदि जैसे कॉर्पोरेट अस्पताल सार्वजनिक वित्त पोषित बीमा योजनाओं से दूर रहे क्योंकि उन्हें लगा कि फायदा पर्याप्त नहीं था। फोर्टिस के मामले को याद कीजिए जहां अस्पताल ने बेशर्मी से एक लड़की के इलाज के लिए 18 लाख रुपए एेंठ लिया। लड़की की मौत डेंगू से हो गई थी। उधर मैक्स अस्पताल ने एक जीवित बच्चे को मृत घोषित कर दिया क्योंकि वे मरीजों से ज्यादा पैसे नहीं एेंठ सकते थे। इस उपहार की संभावना में उनकी खुशियों को कोई भी देख सकता है कि नई योजना के तहत हुई 5लाख की घोषणा ने उन्हें कमाने का नया रास्ता दिया है।

Hospitals
arun jetley
union budget
Modi

Related Stories

मोदी का ‘सिख प्रेम’, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सिखों को उपयोग करने का पुराना एजेंडा है!

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

ग्राउंड रिपोर्ट: स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रचार में मस्त यूपी सरकार, वेंटिलेटर पर लेटे सरकारी अस्पताल

कन्क्लूसिव लैंड टाईटलिंग की भारत सरकार की बड़ी छलांग

महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  

ग्रामीण संकट को देखते हुए भारतीय कॉरपोरेट का मनरेगा में भारी धन आवंटन का आह्वान 

5,000 कस्बों और शहरों की समस्याओं का समाधान करने में केंद्रीय बजट फेल

केंद्रीय बजट 2022-23 में पूंजीगत खर्च बढ़ाने के पीछे का सच

विशेषज्ञों के हिसाब से मनरेगा के लिए बजट का आवंटन पर्याप्त नहीं

अंतर्राष्ट्रीय वित्त और 2022-23 के केंद्रीय बजट का संकुचनकारी समष्टि अर्थशास्त्र


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License