NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मोदी सरकार की सोची समझी नीतियों का परिणाम है बेरोजगारी और आर्थिक विषमता!
साल 2019 के बजट और आर्थिक सर्वे में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट यानी निजी निवेश के जरिये आर्थिक वृद्धि हासिल करने पर खूब जोर दिया गया था।
अजय कुमार
17 Sep 2020
u

 जब समाज के केंद्र में भयंकर बेरोजगारी और आर्थिक विषमता हो तो उस समाज में न्याय के सारे पैमाने ढहने लगते हैं। सारी बनी बनाई मान्यताएं और नैतिकताएं धरी की धरी रह जाती हैं। भारतीय समाज के साथ हाल-फिलहाल यही हो रहा है।

जिस तरह की नीतियों के सहारे हिंदुस्तान को चलाया जा रहा है, उसके परिणाम में बेरोजगारी और आर्थिक विषमता की खाई ही मिलती है। बेरोजगारी का आलम यह है कि इस समय हर दस में से एक शहरी बेरोजगार है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने कहा है कि अप्रैल-अगस्त के दौरान लगभग 2.1 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी खो दी। इसमें से अगस्त में लगभग 33 लाख नौकरियां गईं और जुलाई में 48 लाख लोगों ने अपनी नौकरी खो दी।

इसी संस्था के अध्यक्ष महेश व्यास कहते हैं कि भारत को हर साल तकरीबन एक करोड़ नौकरियों की जरूरत है। अगर यह नौकरियां नहीं मिलती हैं तो ग्रेजुएशन और मास्टर की पढ़ाई कर जिंदगी के संघर्ष से जुड़ने वाला बहुत बड़ा हिस्सा खुद को भटकन के अंधकार में झोंक देगा।

यह तो बेरोजगारी की वस्तु स्थिति है। इस वस्तु स्थिति को आर्थिक विषमता के धरातल पर ही पढ़ना चाहिए। वेतन पर काम करने वाले करीब 99 फीसदी लोगों की कमाई महीने में 50 हजार से कम है यानी यदि आपका वेतन 50 हजार मासिक से अधिक है, तो आप भारत के वेतनभोगी समूह के शीर्ष एक फीसदी में शामिल हैं।

कार्यबल में शामिल 86 फीसदी पुरुषों और 94 फीसदी महिलाओं की महीने की कमाई 10 हजार रुपये से कम हैं। देश के सभी किसानों की आबादी में 86.2 फीसदी के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है। इस हिस्से के पास फिर भी फसल उगानेवाली कुल जमीन का केवल 47.3 फीसदी ही है। आबादी के निचले 60 फीसदी के पास देश की संपत्ति का 4.8 फ़ीसदी हिस्सा है। देश की सबसे गरीब 10 फीसदी आबादी 2004 के बाद से लगातार कर्ज में है। ये आंकड़े कोरोना संकट से पहले के हैं। अब स्थिति और बदतर हुई होगी।

अब आप पूछेंगे कि ऐसा होता क्यों है? आखिरकार इस सरकार की नीति क्या है? साल 2019 के बजट और आर्थिक सर्वे में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट यानी निजी निवेश के जरिये आर्थिक वृद्धि हासिल करने पर खूब जोर दिया गया था। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह केवल इसी बार की पहल है।

साल 1990 के बाद से प्राइवेट इन्वेस्टमेंट करके आर्थिक वृद्धि करने पर ही जोर दिया जा रहा है। इस बार बस इतना हुआ है कि सरकार ने यह खुलकर स्वीकार कर लिया है कि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट के जरिये भारत की अर्थव्यवस्था को मुकम्मल बनाया जा सकता है। इस विषय पर पिछले साल के आर्थिक सर्वे में पहला अध्याय ही सुचिंतित तरीके से निजी निवेश के नाम से लिखा है।  

इस अध्याय का सारांश यह है कि आम जनता की बचत बैंकों में जमा होगी। बैंकों से आसानी से कर्ज़ मिलेगा। कर्ज़ से इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा। इन्वेस्टमेंट से उत्पादन से जुड़े साधनों जैसे उद्योग, कल-कारखाने लगाने के कामों में बढ़ोतरी होगी। इसकी वजह से रोजगार सृजन होगा यानी जनता को काम मिलेगा। इस पूरे चक्र में अर्थव्यवस्था के विकास में बढ़ोतरी होगी। जिससे टैक्स और नॉन टैक्स से सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होगी। और सरकार जनधन खाते में आधार के जरिये टारगेटेड जनसमुदाय तक पैसे पहुंचाकर वंचित समुदाय का उत्थान करेगी।

साथ में मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला जैसी योजनाओं को लागू कर पिछड़े हुए लोगों के जीवन में सुधार करती रहेगी। कानून का नियम लागू कर समाज का माहौल को ठीक रखेगी। 'इज ऑफ़ डूइंग बिजेनस' से जुड़े हर उपायों को अपनाकर इन्वेस्टमेंट के लिए सेहतमंद माहौल को पैदा करेगी। कॉर्पोरेट कानूनों में बहुत कम फेरबदल करेगी। ताकि कॉर्पोरेट माहौल में एक तरह का स्थायित्व बना रहे जिससे घरेलू और बाहरी इन्वेस्टमेंट में बढ़ोतरी होगी।

केवल देश के बाजार के लिए ही उत्पादन न किया जाए बल्कि विदेशों के लिए उत्पादन किया जाए। यानी एक्सपोर्ट बढ़ाने की कोशिश की जाए। चूँकि अर्थव्यवस्था से जुड़े सारे मसले एक दूसरे से जुड़े होते हैं, इनमें से किसी भी एक में कमी होने का मतलब है कि अर्थव्यस्था का चक्र सही से नहीं चल रहा है।

आर्थिक सर्वे में इसे विसियस सर्किल (Vicious Circle) ऑफ़ इकॉनमी कहा गया है। ऐसी स्थिति होने पर आर्थिक विकास नहीं हो पाता है। आर्थिक सर्वे ही कहता है कि इसके लिए जरूरी है कि अर्थव्यस्था में वरचुअस सर्किल (Virtuous circle) बने। यानी आर्थिक विकास के सभी कारकों का जब सदचक्र बनेगा तब आर्थिक विकास भी होता रहेगा।  

अब आर्थिक सर्वे में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट के जरिये आर्थिक विकास की जितनी भी बातें जटिल ग्राफ, आर्थिक सिद्धांत के जरिये कही गयी हैं, उनकी मूल आत्मा अर्थशास्त्र की किसी भी किताब में पढ़ने को मिल जाती हैं। और यही मॉडल अपनाते हुए भारत की अर्थव्यवस्था अभी तक काम करती आ रही है। तो फिर भी समावेशी यानी सबका विकास क्यों नहीं हो रहा है?

सबको रोजगार क्यों नहीं मिल पा रहा है? बहुत बड़ा हिस्सा अभी भी गरीबी में जीवन जीने के लिए अभिशप्त क्यों है? विकास के नाम पर पर्यावरण की धज्जियां क्यों उड़ाई जा रही है? सामजिक समरसता का ताना बाना टूटता क्यों जा रहा है? और भयंकर किस्म की आर्थिक असमानता की जकड़ में हम डूबते क्यों जा रहे हैं?

न्यूज़क्लिक के वरिष्ठ पत्रकार सुबोध वर्मा कहते हैं कि निजी निवेश से जुड़ा पूरा मसला बचत पर निर्भर है। और बचत तो तब होगी जब कमाई होगी। हमारे देश का बहुत बड़ा समुदाय 10 हजार रुपये प्रति महीने से कम कमाई कर पाता है।

स्टेट ऑफ़ वर्किंग इण्डिया की रिपोर्ट के तहत तकरीबन 92 फीसदी महिला कामगार और 82 फीसदी पुरुष कामगार 10 हजार प्रति महीने से कम की कमाई करते हैं। अगर ऐसी स्थिति है तो बचत कहाँ से होगी। यह स्थिति बहुत लम्बे समय से चली आ रही है। इसमें सुधार करने की कोशिश नहीं की जाती है। हर बार इस स्थिति को नजरअंदाज़ कर प्राइवेट इन्वेस्टमेंट की बात की जाती है।

इकोनॉमिक सर्वे 2017-2018 के अनुसार कुल आबादी की केवल 4.5 फीसदी आबादी ही कर दे पाती है। इसमें से भी बहुत बड़ी आबादी सबसे कम टैक्स स्लैब में आती है। इसके साथ सरकार की कमाई का सोर्स इनडायरेक्ट टैक्स, नॉन टैक्स, कर्ज़ पर ब्याज आदि होते हैं। इन सारे सोर्स को मिलाने के बाद आर्थिक वृद्धि की दर तो ठीक ठाक बन जाती है, लेकिन सबके लिए विकास या एक कल्याणकारी राज्य समावेशी विकास की स्थिति नहीं बना पाता है।

जब तक एक बहुत बड़ी आबादी को ठीक-ठाक कमाई नहीं होगी, तब-तक बचत नहीं होगी। इसके लिए जरूरी हैं जीवन के मूलभूत सुविधाओं जैसे कि शिक्षा, सेहत, भोजन, आवास पर तो सरकारी निवेश बढ़े ही, इसके साथ वंचित समुदाय से जुड़े लोगों पर भी सरकार ध्यान दे। लेकिन हम अक्सर सरकारी निवेश या पब्लिक इन्वेस्टमेंट का मतलब यह समझ लेते हैं कि केवल सोशल वेलफेयर से जुड़े योजनाओं पर सरकारी निवेश हो।

लेकिन ऐसा नहीं है। इकॉनमी में तेजी लाने के लिए सरकार उन जगहों पर भी इन्वेस्ट करती है, जहां बहुत अधिक लोग लगे होते हैं। जैसे की किसानी, जिसमें एमएसपी के दाम बढ़ाया जा सकता है। उर्वरकों और बीजों पर सरकारी निवेश किया जा सकता है। किसानी से जुड़े और भी दूसरे तरह के पूंजीगत व्यय का बोझ सरकार अपने कंधे पर ले सकती है। ताकि बहुत बड़े समुदाय को रोजगार भी मिले और उनकी ठीक ठाक कमाई हो। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि प्राइवेट सेक्टर केवल फायदा देखकर इन्वेस्ट करता है। अगर उसे फायदा नहीं दिखेगा तो इन्वेस्ट नहीं करेगा। इसलिए वह किसानी में इन्वेस्ट करे, ऐसा नामुमकिन है।    

इसी तरह दूसरे उद्योग-धंधे भी है, जिन्हें सरकार अपने हाथ में लेकर चला सकती है। सरकार खुद भी औद्योगीकरण का भाग बन सकती है। अगर अभी तक के औद्योगीकरण से बहुत कम लोगों को फायदा हुआ है, मजदूरों को ठीक मजदूरी नहीं मिली है। पर्यावरण का अकूत दोहन हुआ है तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि सरकार इसे अपने हाथ में लेकर सही तरह से चलाये, जिसमें बहुतों को रोजगार भी मिले और सही आय भी।

अभी भी ग्रामीण इलाकों में उद्योग धंधे नहीं लगते हैं। निजी निवेशकर्ताओं को ग्रामीण इलाकों में लाभ नहीं दिखता है। ऐसी जगहों का विकास क्या बिना सरकारी सहयोग के सम्भव है? या हम पूरी तरह से शहरीकरण के मॉडल को अपनाकर ही विकास करना चाहते हैं। जहां जिंदगी बदहाल होती जाती है और पर्यावरण का दोहन लगातार चलता रहता है।  

प्राइवेटाइजेशन के लिए यह कहा जाता है कि इससे कार्य संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। आखिरकार यह कार्य संस्कृति होती क्या है? प्राइवेट जगहों पर जमकर शोषण किया जाता है। काम करने की लंबी अवधि मेहनताना के तौर पर बहुत कम पैसा और सामाजिक सुरक्षा ना के बराबर। इन सबके बीच अगर आपने छुट्टी ले ली तो नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है।

ऐसे में प्राइवेटाइजेशन का समर्थन करने वाले यह कहते हैं कि यहां बहुत अच्छे से काम किया जाता है तो दरअसल वह छुपा देते हैं कि हां, शोषण भी बहुत ही अच्छे तरीके से किया जाता है। चमकने वाली पेंट और शर्ट के साथ लगी हुई टाई से इंसान को गरिमा पूर्ण जीवन नहीं मिल जाता। इस दुनिया में खुद को गरिमा पूर्ण जीवन में रखने के लिए कुछ आधारभूत सुविधाओं की जरूरत होती है। इन सुविधाओं के लिए ही कोई अपने जीवन में नौकरी करता है। अगर इस नौकरी से उन्हें यह भी  ना मिले तो आखिरकार वह नौकरी किस काम की? और वह माहौल किस काम का जिस माहौल में कोई नौकरी कर रहा है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर सुरजीत मजूमदार कहते हैं कि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट के जरिये उद्योग धंधे की स्थिति बेहतर होगी, निर्यात बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी। यह सोच अभी की नहीं है। तीस सालों से यह सोच जारी है। इसी सोच से सरकारें काम कर रही हैं। लेकिन अनुभव यह बताते हैं कि इससे आर्थिक असमानता की खाई बढ़ी है। इस वजह से बचत भी कम हुई है। पिछले दस सालों से भारतीय अर्थव्यवस्था में बचत की स्थिति कमजोर है। साल 2008 के मुकाबले अभी बचत दर में 4 परसेंटेज पॉइंट की कमी दर्ज की गयी है। ऐसी स्थिति में बाजार में मांग नहीं बनती है। और बाजार माांग की स्थिति नहीं पनपेगी तो बाजार में बढ़ोतरी कैसी आएगी। भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ दशकों से इसी परेशानी से गुजर रही है।

इसके साथ वैश्विक परिस्थितियां इस समय व्यापार के लिहाज से बिल्कुल नकारात्मक हैं। बहुत सारे देशों के बीच चल रहा आर्थिक झगड़ा और अपने बाजार को बचाए रखने के प्रति संरक्षणवाद का रवैया निर्यात के आधार पर विकास करने की मंशा को बहुत कमजोर कर देते हैं।

इसके साथ प्राइवेट इन्वेस्टमेंट के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह रही है कि यह जहां मुनाफा होता मिलता दिखाई देता है, केवल वहीं जाकर काम करता है। इसलिए जब बुनियादी ढांचे में इन्हें निवेश करने का मौका मिला तो इन्होंने बैंकों से कर्ज तो बहुत लिया लेकिन उनको सही अंजाम तक पहुंचा नहीं पाए। इसलिए बैंकों को बढ़ते हुए एनपीए का सामना करना पड़ा। यही हाल पॉवर सेक्टर से लेकर टेलीकॉम सेक्टर का है।

मुनाफा कमाने की मंशा की वजह से प्राइवेट सेक्टर उन जगहों पर इन्वेस्ट नहीं करता है, जहां उसे लाभ न मिले। इसकी वजह से ग्रामीण इलाके हमेशा से उपेक्षित रहते हैं। मूलभूत सुविधाओं सब तक नहीं पहुंच पाती हैं। अब अगर सेहत और शिक्षा की व्यवस्था नहीं की गई तो मानव संसाधन कैसे विकसित होगा। जब यह विकसित नहीं होगा तो कमाई कैसे होगी। हम उल्टे मॉडल पर चल रहे हैं। हम सर के बल पर खड़े है। जब तक मानव संसाधन को विकसित करने के उपाय नहीं होंगे तब तक बचत नहीं होगी। यही विसियस साइकल है, जो आज का कॉन्सेप्ट नहीं है। इसकी चर्चा बहुत लंबे समय से होती आ रही है।

अब आर्थिक सर्वे में व्यवहार बदलकर मांग पैदा करने की मांग की जा रही है। यह फिजूल बात है। सिम्पल कॉन्सेप्ट यह है कि जब तक हमारी जेब में पैसा नहीं होगा तब तक हम खर्च करने के लिए आगे नहीं आयेंगे। ऐसा करने के लिए जरूरी है कि सरकार अपनी सोच बदले, अर्थव्यवस्था को लेकर अपना रवैया बदले और बहुत सोच समझकर रणनीतिक तौर पर पब्लिक इन्वेस्टमेंट की तरफ बढ़े ताकि सबको नौकरी मिल पाए। नौकरी से जीने लायक पैसा मिल पाए। और जीने लायक पैसे से ऐसा तो दिखे कि भारत में आर्थिक विषमता भी कम हो रही है।


 

Image removed.

ReplyForward

 

national unemployement day
UNEMPLOYMENT IN INDIA
economic enquality
icious cycle
irtous cycle

Related Stories

क्या भारत महामारी के बाद के रोज़गार संकट का सामना कर रहा है?

सरकार की रणनीति है कि बेरोज़गारी का हल डॉक्टर बनाकर नहीं बल्कि मज़दूर बनाकर निकाला जाए!

छात्रों-युवाओं का आक्रोश : पिछले तीन दशक के छलावे-भुलावे का उबाल

सरकारी नौकरियों का हिसाब किताब बताता है कि सरकार नौकरी ही देना नहीं चाहती!

दिल्ली से लेकर एमपी तक बेरोजगारों पर लाठी बरसा रही सरकार !

बेरोज़गार भारत एक पड़ताल: केंद्र और राज्य सरकारों के 60 लाख से अधिक स्वीकृत पद खाली

सत्ता के आठवें साल में सरकार, नौकरी-रोज़गार की दुर्गति बरकरार!

मध्यम वर्ग में हुए 40 % गरीब

कोविड-19: लौट आए लॉकडाउन, क्या हुआ हमारी ‘V-आकार’ वाली रिकवरी का

पिछड़े और आपदाग्रस्त मुल्कों के बाशिंदे भी भारतीयों के मुकाबले ज़्यादा ख़ुशहाल क्यों?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License