NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पहाड़ क्यों छोड़ना चाहती हैं महिलाएं
“ऐसा नहीं है कि महिलाएं पहाड़ में नहीं रहना चाहती हैं। शहरों की ओर जाने की मुख्य वजह है शिक्षा और स्वास्थ्य। जशोदा कहती हैं कि उत्तरकाशी में आज एक भी डॉक्टर नहीं है। कई बार महिलाओं का प्रसव सड़क पर ही हो जाता है।”
वर्षा सिंह
29 Dec 2018
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: samvaad365.com

उत्तराखंड में अलग राज्य की नींव रखने से लेकर खेती-किसानी तक सारा संघर्ष महिलाओं के बूते ही आगे बढ़ा है। अपनी जान की परवाह न करती हुई, जंगल के पेड़ बचाने के लिए पेड़ों से लिपटने वाली महिलाएं, आखिर क्यों अपने पेड़, जंगल, खेत, घर, गांव और पहाड़ छोड़कर मैदानों की ओर कूच कर रही हैं?

सूरज निकलने से पहले ही उठना, घर के काम-काज निपटा कर खेतों का काम, पशुओं की देखभाल, खेतों से फुर्सत मिले तो जंगल की ओर जाना और पीठ पर लड़कियों का गठ्ठर लादकर लाना, चूल्हे पर रोटी पकाना, बच्चों का काम करना...। सुबह कब हुई और शाम कहां गई, ये पूछने की फुर्सत तो दूर की बात है। कब तीस की उम्र में थे, कब चालीस की उम्र को पार कर लिया, इसका भी पता नहीं चलता।

पौड़ी के पोखरा ब्लॉक के चरगाड गांव की दिव्या पोस्ट ग्रेजुएट हैं। मंगनी हो गई है। लड़का दिल्ली में रहता है। वे कहती हैं शादी करके दिल्ली जाना ही पड़ेगा, लेकिन कुछ सालों बाद गांव लौट आउंगी। पलायन रोकने की कोशिश करुंगी।

पलायन केवल महिलाओं की समस्या नहीं है। इससे पहले रिपोर्ट की गई ख़बर में हमने आपको बताया था कि उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्र के किसान खेती से दूर हो रहे हैं। इसकी कई वजहें हैं। पर्वतीय क्षेत्र के किसानों के पास ज़मीन बहुत कम है। इसलिए सरकार की योजनाओं का लाभ भी इन्हें नहीं मिल पाता। यहां किसानों के पास अधिकतम कृषि भूमि दो हेक्टेअर क्षेत्र में है। उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र के किसानों की तुलना में ये बेहद कम है। जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाना भी यहां एक बड़ी समस्या है।  उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अगस्त महीने में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पर्वतीय क्षेत्र के किसानों की हालत पर चिंता जतायी थी।

पढ़ें ये विस्तृत रिपोर्ट :  पर्वतीय क्षेत्रों के किसान कर रहे पलायन, दोगुनी आय है दूर की कौड़ी

लौटते हैं महिलाओं की समस्याओं की ओर। दिव्या कहती हैं कि मेरी मां ने खेतों में बहुत काम किया है लेकिन मैंने नहीं किया। यदि लड़कियों की शादी गांव में होगी तो उन्हें खेती करनी पड़ेगी, घास काटना पड़ेगा। यदि किसी ने खेती नहीं की, गाय नहीं पाली तो गांव के लोग उलाहने देते हैं। वो बताती है कि यहां महिलाओं पर वर्कलोड बहुत ज्यादा है। इसलिए गांव की लड़कियां सुविधाओं की तलाश में पलायन करना चाहती हैं।

हालांकि दिव्या ये भी कहते हैं कि जो लड़कियां पढ़-लिख रही हैं, उन्हें लगता है कि गांव के लड़के तो पलायन को रोकने में फेल हो चुके हैं, अब महिलाएं ही यहां रुककर पलायन को संभाल सकती हैं।

पौड़ी के पोखरा ब्लॉक की कुईं गांव की निर्मला सुंद्रियाल यहां की बहू हैं। हरियाणा के यमुनानगर में पैदा हुई, पली-बढ़ीं। निर्मला शादी के बाद यहां आईं। पिछले 11 वर्षों से वे गांव का जीवन जी रही हैं। निर्मला कहती हैं कि मैं बहुत ख़ुश हूं। मेरे घर में छह गाये हैं। उनका सारा काम करती हूं। गोबर भी उठाती हूं। अब स्कूल में पढ़ाती हूं इसलिए जंगल से लकड़ियां लेने नहीं जाना पड़ता। वे बताती हैं कि उनकी सासू जी जंगल से लकड़ियां लाने का कार्य करती हैं और चूल्हे पर ही खाना बनाने को कहती हैं। जबकि घर में गैस कनेक्शन है। लेकिन 900 रुपये का सिलेंडर एक महीने में खर्च नहीं किया जा सकता। ये पैसा उनके बजट के हिसाब से ज्यादा है। इसलिए सासू मां के कहने पर खाना चूल्हे पर ही बनाना पड़ता है। निर्मला बताती हैं कि गांव के ज्यादातर लोग खाना पकाने के लिए चूल्हे का इस्तेमाल ही करते हैं। ताकि एक सिलेंडर तीन-चार महीने तो चल ही जाए।

वे बताती हैं कि गांव में पलने-बढ़ने के बावजूद यहां की लड़कियां गांव में शादी के लिए तैयार नहीं हैं। वे चाहती हैं कि लड़का शहर में हो। क्योंकि गांव में श्रम बहुत है और शहर में सुविधाएं हैं।

ये पूछने पर कि ऐसा क्या किया जाए जिससे महिलाएं पलायन न करें। निर्मला कहती हैं कि यदि गांव में महिलाओं के लिए भी रोजगार हो, जिनसे महिलाओं को जोड़ा जा सके, जिससे उनकी आमदनी हो सके तो फिर वे गांव नहीं छोड़ेंगी।

मैंने निर्मला से पूछा कि क्या गांव की लड़कियां इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं। तो वे जवाब देती हैं कि यहां तो कम उम्र की लड़कियों के पास भी स्मार्ट फ़ोन है। वे फेसबुक-व्हाट्सएप पर हैं। हालांकि नेटवर्क की थोड़ी बहुत दिक्कत होती है।

शिक्षा और स्वास्थ्य बड़ी वजह 

उत्तरकाशी की ज़िला पंचायत अध्यक्ष जशोदा राणा कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि महिलाएं पहाड़ में नहीं रहना चाहती हैं। शहरों की ओर जाने की मुख्य वजह है शिक्षा और स्वास्थ्य। जशोदा कहती हैं कि उत्तरकाशी में आज एक भी डॉक्टर नहीं है। कई बार महिलाओं का प्रसव सड़क पर ही हो जाता है। गांव-घरों में आज की तारीख में जो सुविधाएं होनी चाहिए, वो नहीं है। स्कूलों की पढ़ाई से लोग संतुष्ट नहीं हैं। कई स्कूल में शिक्षक नहीं हैं, जो हैं वो महज हाजिरी लगाने आते हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष कहती हैं कि यदि पहाड़ों में घर पर ही सही शिक्षा और स्वास्थ्य मिल जाए तो लोग पलायन नहीं करेंगे। शहर में छोटे छोटे घरों में रहने से बेहतर है कि वो अपने गांव में रहे।

 सामाजिक कार्यकर्ता और “पलायन एक चिंतन” अभियान चलाने वाले रतन सिंह असवाल कहते हैं कि आज के समय में पहाड़ के लोग ही पहाड़ में रहना नहीं चाहते। उन्होंने ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में पढ़ रही लड़कियों पर पलायन को लेकर एक सर्वेक्षण किया। लड़कियों से पूछा गया कि यदि एक व्यक्ति जो गांव में रहता है और खेती-बाड़ी, व्यवसाय या किसी भी ज़रिये से दस हजार रुपये कमाता है, उतने ही पैसे कोई व्यक्ति शहर में रहकर अर्जित करता है तो वे किससे शादी करना चाहेंगी। रतन बताते हैं कि करीब 82 फीसदी लड़कियों का जवाब था कि वे शहर के लड़के को चुनना पसंद करेंगी।

उनका कहना है कि शादी के रिश्ते में गांव का नौजवान अंतिम पायदान पर होता है। मां-बाप को जब शहर में कार्य कर रहा लड़का नहीं मिलता तो वे अपनी लड़की का ब्याह गांव में करते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता रतन असवाल कहते हैं कि गांव में औरत के हिस्से में बहुत अधिक कष्ट है। बच्चा पैदा करते समय, उन्हें पालते समय, औरत यदि बीमार पड़ी तो उन्हें इलाज नहीं मिलता, इसलिए वो क्यों चाहेगी कि उसकी बेटी की ज़िंदगी भी वैसी ही कष्टमय बीते।

बोझ कम होने की बजाय और बढ़ा

रतन के मुताबिक राज्य बनने के बाद से पहाड़ की महिलाओं का बोझ कम होने की जगह और अधिक हुआ है। क्योंकि यहां के नेताओं में कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। वे खुद पहाड़ नहीं चढ़ना चाहते। न ही पहाड़ में रह रहे लोगों का जीवन बेहतर करने के लिए जरूरी उपाय किये गये।

आखिर में ये तस्वीर, जो मैंने लगभग भागते हुए अपने मोबाइल फ़ोन से ली है। पिक्चर क्वालिटी पर ध्यान न दें, तो ये तस्वीर बहुत हद तक पहाड़ की महिला का जीवन दर्शाती है। जबकि ये राजधानी देहरादून की सड़क पर गुजरती महिला की तस्वीर है।

IMG_20181222_171429 (1).jpg

सूरज उगते समय पहाड़ की चढ़ाइयां चढ़ती और सूरज ढलते समय पहाड़ के ढलान से उतरती स्त्री, जिसकी पीठ झुककर धरती के समांतर आ जाती है, क्या ये स्त्री चाहेगी कि इसकी बेटी की पीठ भी बोझ से झुककर यूं दोहरी हुई जाये। या वो पढ़ लिखकर अपने लिए एक बेहतर ज़िंदगी बनाए। वो बेहतर ज़िंदगी गांव में भी हो सकती है, यदि हम गांव को उन सारी सुविधाओं से लैस करें, जिसके लिए लोग शहर भागते हैं। जिसमें कम से कम अच्छी शिक्षा, अच्छे डॉक्टर और अच्छा रोजगार होना शामिल है।

पौड़ी से पलायन रोकने के लिए इसी महीने आई पलायन आयोग की सिफारिश रिपोर्ट में एक पैरा ये भी है कि हमें पहाड़ में महिलाओं के जीवन की कठिनाइयों को कम करना होगा। सामाजिक-आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी लानी होगी और उन्हें ध्यान में रखकर नीतियां बनानी होंगी।

ये भी पढ़ें : उत्सव मनाने की स्थिति में नहीं 18 वर्ष का उत्तराखंड

Uttrakhand
uttrakhand kisan
uttarakhand farmer
women farmers
महिला किसान
farmer crises
पहाड़ से पलायन

Related Stories

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

दिल्ली से देहरादून जल्दी पहुंचने के लिए सैकड़ों वर्ष पुराने साल समेत हज़ारों वृक्षों के काटने का विरोध

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव परिणाम: हिंदुत्व की लहर या विपक्ष का ढीलापन?

उत्तराखंड में बीजेपी को बहुमत लेकिन मुख्यमंत्री धामी नहीं बचा सके अपनी सीट

EXIT POLL: बिग मीडिया से उलट तस्वीर दिखा रहे हैं स्मॉल मीडिया-सोशल मीडिया

यूपी चुनाव: छुट्टा पशुओं की बड़ी समस्या, किसानों के साथ-साथ अब भाजपा भी हैरान-परेशान

उत्तराखंड चुनाव: एक विश्लेषण: बहुत आसान नहीं रहा चुनाव, भाजपा-कांग्रेस में कांटे की टक्कर

उत्तराखंड चुनाव: भाजपा के घोषणा पत्र में लव-लैंड जिहाद का मुद्दा तो कांग्रेस में सत्ता से दूर रहने की टीस

उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल


बाकी खबरें

  • make in india
    बी. सिवरामन
    मोदी का मेक-इन-इंडिया बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा श्रमिकों के शोषण का दूसरा नाम
    07 Jan 2022
    बहुराष्ट्रीय कंपनियों के गिग कार्यकर्ता नई पीढ़ी के श्रमिक कहे जा सकते  हैं, लेकिन वे सीधे संघर्ष में उतरने के मामले में ऑटो व अन्य उच्च तकनीक वाले एमएनसी श्रमिकों से अब टक्कर लेने लगे हैं। 
  • municipal elections
    फर्राह साकिब
    बिहारः नगर निकाय चुनावों में अब राजनीतिक पार्टियां भी होंगी शामिल!
    07 Jan 2022
    ये नई व्यवस्था प्रक्रिया के लगभग अंतिम चरण में है। बिहार सरकार इस प्रस्ताव को विधि विभाग से मंज़ूरी मिलने के पश्चात राज्य मंत्रिपरिषद में लाने की तैयारी में है। सरकार की कैबिनेट की स्वीकृति के बाद इस…
  • Tigray
    एम. के. भद्रकुमार
    नवउपनिवेशवाद को हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका की याद सता रही है 
    07 Jan 2022
    हिंद महासागर को स्वेज नहर से जोड़ने वाले रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण लाल सागर पर अपने नियंत्रण को स्थापित करने की अमेरिकी रणनीति की पृष्ठभूमि में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की अफ्रीकी यात्रा काफी…
  • Supreme Court
    अजय कुमार
    EWS कोटे की ₹8 लाख की सीमा पर सुप्रीम कोर्ट को किस तरह के तर्कों का सामना करना पड़ा?
    07 Jan 2022
    आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग को आरक्षण देने के लिए ₹8 लाख की सीमा केवल इस साल की परीक्षा के लिए लागू होगी। मार्च 2022 के तीसरे हफ्ते में आर्थिक तौर पर कमजोर सीमा के लिए निर्धारित क्राइटेरिया की वैधता पर…
  • bulli bai aap
    सना सुल्तान
    विचार: शाहीन बाग़ से डरकर रचा गया सुल्लीडील... बुल्लीडील
    07 Jan 2022
    "इन साज़िशों से मुस्लिम औरतें ख़ासतौर से हम जैसी नौजवान लड़कियां ख़ौफ़ज़दा नहीं हुईं हैं, बल्कि हमारी आवाज़ और बुलंद हुई है।"
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License