NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
पीड़ा से प्रेम तक: नीरज
अभिव्यक्ति के एक युग का अंत हो गयाI
अजय कुमार
20 Jul 2018
gopal das neeraj
Image Courtesy: Indian Express

"छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों

कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।"

यह पंक्तियाँ जब बचपन में सुनी थी,तब अच्छी लगी थी लेकिन समझ में नहीं आयी थी। जब दूसरी बार सुनी ,तब समझ में आयी लेकिन मन को न छू सकी,लगा कि हारे हुए लोगों को संतोष देने के लिए लिखी गयी हैं। लेकिन अब ये पंक्तियाँ मन के भीतर  बैठती जा रही है। इसे सुनने पर लगता है कि  इस दुनिया से अंतिम विदाई के पहले भी कई बार मरना पड़ता है। इस मरने को सहर्ष स्वीकार कर फिर से जिंदा हो जाना चाहिए। ऐसे ही जिन्दा रहने में हमारे आस पास मौजूद कविताओं का एहसास कभी मरता नहीं। हमारे भीतर चुपचाप एक छोटा सा कोना बनता रहता है, जिसमें हम अपनी तमाम उदासियों को उड़ेलकर खुद को संभालते हुए चलते रहने का हुनर सीखते रहते हैं। हो सकता है यह अर्थ एक पाठक का इन पंक्तियों को देखने का नजरिया हो।  फिर भी इसी नजरिये पर यकीन करने का मन करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन पंक्तियों के कवि गोपाल दास 'नीरज' है।  गोपाल दास नीरज की पूरी काव्यात्मक दुनिया पीड़ा और प्रेम के मिलन के गीतों से बनी हुई लगती है।  इस मिलन से सजी हुई भाषा इतनी सहज,सरल, सुंदर और लयबद्ध है कि लगता है कि कवि ने पीड़ा और प्रेम से अपने भीतर के जहन को रच लिया है। जिस जहन से जो भी अभिव्यक्त होता है वह जीवन दर्शन होता है,जीवन जीने का हुनर सीखा रहा होता है। 

सपना क्या है,नयन सेज पर

सोया हुआ आँख का पानी

और टूटना है उसका ज्यों

जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों

कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

कविता कहने के इस तरीके में हिंदी की क्लिष्टता गायब है। हिंदी के सहजता को उर्दू का भी साथ मिला है। लय ऐसी है कि जनता सुनें तो खुद-ब -खुद बार -बार दुहराने लगे। अर्थ ऐसा है जैसे उदासियाँ शाश्वत है तो उदासियों से उबरने की जिद्द भी शाश्वत होनी चाहिए। 

पदम भूषण गोपाल दास नीरज ने 93 साल की उम्र में इस भौतिक दुनिया को अलविदा कह दिया। गांधी के लड़ाई के दौर में पैदा होने वाले 'नीरज' ने गोडसे बनने की तरफ बढे रहे भारतीय समाज के दौर तक अपनी जीवन यात्रा की। उन्होंने अपनी कविताओं में आह से लेकर चाह तक की बात की,जिसमें उनका साथ समय की आह ने सबसे अधिक दिया। चाहत की राह में सदियों से सिसकियाँ भरने वाले भारतीय समाज ने नीरज के कविताओं में अपनी महबूब से बातें की। महबूब के प्रेम और  पीड़ा के वियोग में गोपालदास को इतना गाया कि गोपालदास को दुनिया ने  'नीरज' के नाम से संवार दिया। आज जब डिजिटल मीडिया का प्रभाव हावी है और मोहब्बत में इन्तजार का मजा लेने के बजाए इजहार के लिए मैसेज करने जैसी आसान सुविधा है,तब नीरज हमें छोड़कर चल गए। इस समय इनका जाना बताता है कि अभिव्यक्ति के एक युग का अंत हो गया। आख़िरकार,अपनी सखी की चाह का इंतजार करते हुए अब भला  कहेगा कि 

इतना दानी नहीं समय जो 

हर गमले में फूल खिला दे,

इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी

हर ख़त का उत्तर भिजवा दे 

नीरज के खुद के शब्द हैं  कि पीड़ा से ही कविता जन्म लेती है। छः साल की उम्र में ही सर से बाप का साया उठ गया। बचपन से लेकर 26 साल की उम्र तक मैंने बहुत दुःख भोगा। मेरे पास केवल पिता की धुंधली यादें हैं,उनकी कोई तस्वीर नहीं है। पिता को लेकर दिमाग दिल का साथ नहीं देता है। मैंने बीड़ी की दूकान लगाई,पान की दूकान पर काम किया। गरीबी की वजह से पढ़ाई की फीस माफ़ थी। मैं 1 नम्बर से फेल हो गया। फेल होने पर फीस भरनी पड़ती तो मैं दौड़कर मास्टर साहब के पास पहुंचा और कहा कि मास्टर साहब मुझे पास कर दो, नहीं तो मेरी पढाई छूट जायेगी। उस वक्त मास्टर साहब ने कहा तुम गरीब के बच्चे हो,जो भी करना एक नम्बर करना,दूसरे नम्बर के लिए तुम्हारे लिए इस दुनिया में गरीबों के लिए कोई जगह नहीं है। मास्टर साहब की इस झिड़की ने मेरी जिंदगी बदल दी। शरीर की बिमारी की वजह से मुझे शरीर की पीड़ा सहनी पड़ी, प्रेयषी की तड़प में एकांत से मोहब्बत कर लिया जिसकी वजह से आत्मा की पीड़ा सहनी पड़ी और बचपन में ही पिता के गुजरने के वजह से मन की पीड़ा सहनी पड़ी। इस तरह से मैं त्रिमुखी पीड़ा का साथी रहा हूँ।  मेरे साथ जीवन का सारा रूप है। मैंने जीवन के द्वद्व को समझा है। मैंने समझा है कि जिन्होनें जीवन के द्वंदों को नहीं अपनाया,उनका जीवन छिछला है,सतही है,हवा है,हवाई है।  इसलिए मेरी कविताओं में विरोधाभास  है - अन्धकार के साथ प्रकाश है,निराशा के साथ आशा है,शान्ति के साथ क्रान्ति है और मैं पीड़ा से लेकर प्रेम तक का कवि हूँ। जीवन में मौजूद द्वद्व की जटिलता को नीरज की सहजता ऐसे कहती है  

तू जहाँ आया है वो तेरा - घर नहीं, गाँव नहीं

गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं

 

दुनिया है, और प्यारे, दुनिया यह एक सरकस है

और इस सरकस में - बड़े को भी, चोटे को भी

खरे को भी, खोटे को भी, मोटे को भी, पतले को भी

नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को 

बराबर आना-जाना पड़ता है 

नीरज ने हिंदी फिल्मों में खूब गीत गाये। मंच से लेकर मन तक उनके गीत हमारी स्मृतियों का हिस्सा हैं।उन्हें गा कर हमने अपनी प्रेम कहानियों में  रंग भरा है। उन्हें पढ़कर गीतकारों को नयी फसल तैयार हुई है। ‘कारवाँ गुज़र गया’ गीत अपने समय में इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे फिल्म में शामिल कर लिया गया जिसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया था। उसके बाद जब धुनों के दीवार पर गीत बनाने की गुहार निर्देशक करने लगे तो नीरज ने फ़िल्मी गीतों से अलविदा कर लिया। 

नीरज की कविता प्रेम से लेकर करुणा तक पहुँचती है। प्रेम में किसी दूसरे से अपेक्षा की जाती है कि कोई दूसरा भी प्रेम करे लेकिन करुणा में दूसरे से अपेक्षा नहीं की जाती है ,उससे संवेदना के स्तर पर जाकर छूने की कोशिश की जाती है। करुणा के सहारे व्यक्तिगत प्रेम से चलकर विश्व प्रेम तक पहुंचने का हुनर सीखा जाता है। इसलिए नीरज की करुणा कहती है 

जाति -पाति से बड़ा धर्म है 

धर्म  ध्यान से बड़ा कर्म है 

कर्मकांड से बड़ा मर्म है 

मगर सभी से बड़ा यहां 

यह छोटा सा इंसान है 

और अगर यह प्यार करे 

तो धरती स्वर्ग समान है। 

भाषा संवाद का माध्यम होती है। अगर इसका इस्तेमाल केवल संवाद के माध्यम तक सीमित होने लगे तो भाषा मशीन की तरह बर्ताव करने लगती है।भाषा के भीतर से जीवन जीने के सारे  मूल्य गायब होने लगते हैं।  इन मूल्यों को बाहर निकालने का काम कविताएं करती हैं। नीरज की कविताओं ने पीड़ा और प्रेम के बीच में बसे त्याग,समर्पण,लगाव,अपनापन,दया ,करुणा जैसे तमाम मूल्यों को अपनी कविता में  पिरोकर आम जनता तक पहुंचा दिया। इसलिए नीरज के जाननेवालों के लिए केवल नीरज के शरीर का अंत हुआ है बाकी 

खो दिया हमने तुम्हें तो पास अपने क्या रहेगा

कौन फिर बारूद से सन्देश चन्दन का कहेगा

मृत्यु तो नूतन जनम है हम तुम्हें मरने न देंगे।

धूल कितने रंग बदले डोर और पतंग बदले

जब तलक जिंदा कलम है हम तुम्हें मरने न देंगे।   

 

अंतिम प्रणाम। 

gopal das neeraj
hindi poetry
simple poetry

Related Stories

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

मंज़र ऐसा ही ख़ुश नज़र आए...पसमंज़र की आग बुझ जाए: ईद मुबारक!

देवी शंकर अवस्थी सम्मान समारोह: ‘लेखक, पाठक और प्रकाशक आज तीनों उपभोक्ता हो गए हैं’

गणेश शंकर विद्यार्थी : वह क़लम अब खो गया है… छिन गया, गिरवी पड़ा है

अदम गोंडवी : “धरती की सतह पर” खड़े होकर “समय से मुठभेड़” करने वाला शायर

हमें यह शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है : भगत सिंह की पसंदीदा शायरी

इतवार की कविता : तुम्हारी जाति क्या है कुमार अंबुज?

जन्मदिन विशेष: अदम, सौ में सत्तर नहीं सौ में नब्बे आदमी फ़िलहाल नाशाद है...

फिर फिर याद आए विष्णु खरे

भूल-ग़लती आज बैठी है ज़िरहबख्तर पहनकर


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License