आज, 14 अप्रैल बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती है। इस मौके पर बहुत भाषण होंगे, लेख लिखे जाएंगे, लेकिन जिस तरह से युवा कवि राज वाल्मीकि अंबेडकर की तरफ़ से बोल रहे हैं और हमारे समाज का भेद खोल रहे हैं। वो अपने आप में काफ़ी महत्वपूर्ण है। पढ़िए उनकी यह नयी कविता—
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
सुनो गौर से भारत वालो
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
ज़रा इधर भी ध्यान लगालो
ज्ञान-चक्षु मैं खोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
लिंचिंग-मॉब कराने वालो
नफरत को फ़ैलाने वालो
झूठे सत्य बनाने वालो
नीयत तुम्हारी तोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
ब्राह्मणवाद अपनाने वालो
फ़ासीवाद को लाने वालो
ओ संविधान जलाने वालो
तुम पर ‘हल्ला बोल’ रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
मेरा भक्त बताने वालो
जाति भेद जताने वालो
हिन्दू राष्ट्र बनाने वालो
पोल तुम्हारी खोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
देवी उसे बताने वालो
दासी उसे बनाने वालो
नाहक उसे सताने वालो
तुम पर हमला बोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
मज़हब पर लड़वाने वालो
दंगों को करवाने वालो
जनता को भरमाने वालो
भेद तुम्हारे खोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
तानाशाहो होश में आ लो
रोक सको तो रोक लगालो
बच्चे-बूढ़े-युवा संभालो
सब के मुंह से बोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
नरक-सफाई करने वालो
झाड़ू छोड़ो कलम उठालो
शिक्षा-संगठन-शक्ति बढ़ालो
बात पते की बोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
दलित-ट्राइबल-बहुजन वालो
माइनोरिटी को साथ मिला लो
मिशन-एकता को अपना लो
तोल-मोल कर बोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
लोकतंत्र के ओ रखवालो
ख़तरे में है इसे बचा लो
चुप्पी छोड़ आवाज उठा लो
समता का रस घोल रहा हूँ
मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ
- राज वाल्मीकि
(कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता)