NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद प्रकरण: क्या सर्वोच्च न्यायालय में धर्मनिरपेक्षता का विस्तार होना चाहिए?
वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत को आधार बनाकर अपने तर्क दिया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
17 Mar 2018
ram mandir

14 मार्च को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (आरजेबीएम) की अपील को फिर से सुनवाई शुरू कर दी|कोर्ट ने 13 अपीलों के साथ-साथ तीसरे पक्षों द्वारा दायर सभी इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन को खारिज कर दिया। बेंच ने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वह तीसरे पक्ष के किसी भी आवेदन को स्वीकार न करे। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अपने तर्कों को फिर से शुरू किया, जिनका मुख्य आधार प्राचीन आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत पर आधारित था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित किए गए आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत को भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता को लागू करने के लिए तैयार किया गया है। यह सिद्धांत यह बताता है कि राज्य का कानून लोगों के धार्मिक पूजा करने के लिए जरूरी सिधान्तों और परम्परा के अलावा सभी धार्मिक प्रथाओं को विनियमित(नियंत्रती) कर सकता है। बेंच ने वरिष्ठ वकील से पूछा था कि अगर इस्माइल फारूक़ी विरुद्ध संघ(भारत सरकार) में निर्णय पुनर्विचार के लिए पांच न्यायाधीश संविधान खंडपीठों के लिए भेजा जाना चाहिए। इस्माइल फारुक्वी मामला आरजेबीएम (RJBM)के मुद्दे से संबंधित मामले पर निर्णय लेने वाले मामलों में से पहला था। इस मामले में यह माना गया था कि राज्य विवादास्पद संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है जब तक कि मामले का अंतिम रूप से फैसला नहीं दिया जाता।

धवन ने इस संबंध में दो मुख्य बिंदु उठाए। सबसे पहले, फैसले ने एक Privy Council के फैसले को बरकरार रखा था कि एक बार मस्जिद को गैर-मुसलमानों द्वारा प्रतिकूल रूप से पकड़ लिया जाता है तो वो अपने पवित्र चरित्र खो देता है और दूसरा, न्यायमूर्ति एम. वी. वर्मा की टिप्पणी है कि मुसलमान कहीं भी प्रार्थना कर सकते हैं। उन्होंने आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत के आधार पर इन दो बिंदुओं पर आपत्ति जताई। पहले बिंदु पर उन्होंने तर्क दिया कि इस सिद्धांत का विस्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि यदि कोई अपने सिद्धांतों या मान्यतओ को अपने सख्त अर्थों में लागू करना चाहता है तो यह अन्य कई लोगो के धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करेगा। विवादित ढांचे के गुंबद के साथ तुलना करते हुए, उन्होंने सवाल उठाया कि कोई यह कैसे निष्कर्ष निकाल सकता है कि किसी जगह ने अपनेपवित्र चरित्र को खो दिया है|

इस्माइल फ़ारुक़ी में दिए गए बयान पर कि मुसलमान कहीं भी प्रार्थना कर सकते हैं, धवन ने कहा कि यह कथन आक्रामक है। हालांकि, यदि इस सिद्धांत को निरुत्साहित धर्मनिरपेक्ष तरीके से लागू किया गया, तो किसी भी धर्म के लिए ऐसा कहा जा सकता है। अगर जरूरी प्रथाओं का सिद्धांत पश्चिमी धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुसार लागू किया जाता है, तो प्रार्थना की पेशकश को लेकर राज्य की शक्ति सीमाओं पर कोई सवाल उठता नहीं है । वंहा भी, ये सिद्धांत प्रार्थना की सामग्री को प्रभावित नहीं करेगा, लेकिन ये सिद्धांत इसके प्रारूप को प्रभावित कर सकता है दूसरी ओर, यदि यह धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा के अनुसार लागू किया गया है, तो प्रार्थना का प्रारूप भी इसके दायरे से अलग हो सकता है। यह, हालांकि, कसौटी पर न्यायालयों में लाए जात है। उदाहरण के लिए, धर्म का अंत और अंधविश्वास कहाँ शुरू होता है? जब सांसारिक लाभ के लिए प्रार्थना की पेशकश की जाती है, क्या इस तरह के लाभ पाने में विश्वास अंधविश्वास माना जा सकता है? एक तरफ, मौजूदा कानून प्रतिकूल कब्जे से मस्जिदों की रक्षा नहीं करता है, दूसरी तरफ, यदि आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत का विस्तार किया गया , तो यह धर्म और अंधविश्वास के बीच की रेखा को और भी धुंधला कर सकता है।

राम मंदिर
बाबरी मस्जिद
न्यायालय
हिन्दू-मुस्लिम

Related Stories

क्यों भूल जाएँ बाबरी मस्जिद ध्वंस से गुजरात नरसंहार का मंज़र

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (पीओए) कानून में किया परिवर्तन लेकिन, केंद्र इस पर चुप क्यों?

अयोध्या विवाद पर श्री श्री रविशंकर के बयान के निहितार्थ

रथ यात्राएँ असंवैधानिक, देश को बाँटने की कोशिश : उर्मिलेश

न्यायिक सेवाओं में विभिन्न जातियों का प्रतिनिधित्व आज भी सपना भर है

फिर राम मन्दिर राग

याकूब मेमन, पक्षपाती न्यायपालिका एवं मृत्युदंड

क्या ‘हिन्दू’ हमारी राष्ट्रीय पहचान है?


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    ‘हेट स्पीच’ के मामले 6 गुना बढ़े, कब कसेगा क़ानून का शिकंजा?
    15 Apr 2022
    2014 में देश में हेट स्पीच के कुल 336 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2020 में 1,804 मामले दर्ज हुए हैं। कुल मिलाकर सात साल में हेट स्पीच के मामले छह गुना तक बढ़े हैं।
  • राज वाल्मीकि
    बाबा साहेब की राह पर चल देश को नफ़रती उन्माद से बचाने का संकल्प
    15 Apr 2022
    आंबेडकर जयंती पर संसद मार्ग पर लगे जनता मेले में लोग फ़ासीवादी ताक़तों और उनके नफ़रती उन्माद की चर्चा करते नज़र आए। वर्तमान व्यवस्था  पर लोग आक्रोशित नज़र आए और ये संकल्प ले रहे थे कि इस नफ़रती…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट : दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते कोरोना के मामले
    15 Apr 2022
    देश में 24 घंटों में कोरोना के 949 नए मामले सामने आए हैं। इनमे से क़रीब 35 फ़ीसदी यानी 325 नए मामले दिल्ली से सामने आए हैं।
  • पुलकित कुमार शर्मा
    क्या देश में कोरोना के नए XE वैरिएंट से चौथी लहर का ख़तरा?
    15 Apr 2022
    दुनियाभर के कई देशों में कोरोना के नए XE वैरिएंट के बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है।
  • एम. के. भद्रकुमार
    रूस के यूक्रेन ऑपरेशन की कोई समय सीमा नहीं है
    15 Apr 2022
    बुधवार को पुतिन द्वारा की गई टिप्पणी से पता चलता है कि रूस किसी भी क़ीमत पर जल्दबाज़ी में हासिल की जाने वाली जीत की तलाश में नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License