NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
बार-बार विस्थापन से मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक रूप से टूट रहे आदिवासी
"जल, जंगल, जमीन ही हमारी सम्पत्ति है। सरकार हमें विस्थापित कर हमारी संस्कृति को ही खत्म कर देना चाहती है। यह तो आदिवासियों के साथ अन्याय है।"
रूबी सरकार
16 Oct 2021
mandala

नर्मदा घाटी के मध्य प्रदेश के हिस्से में 29 बांध बनाया जाना प्रस्तावित है, जिसमें से 10 का निर्माण हो चुका है और 6 का निर्माण कार्य प्रगति पर है। शेष 14 में से एक माइक्रो सिंचाई परियोजना में बदल दिया गया है। 13 प्रस्तावित बांधों में से 7 बांधों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 3 मार्च, 2016 को निरस्त करने की बात कही थी। निरस्त बांधों में मंडला जिले का बसनिया बांध का भी नाम आया था। लेकिन पूंजी और आदिवासियों के बीच की लड़ाई में फिर से इस बांध के निर्माण का प्रस्ताव आया है। बसनिया बांध विरोधी समिति के सदस्य राज्यपाल से मिलकर उन्हें पांचवीं अनुसूची में प्राप्त विधायिकी शक्ति के उपयोग के लिए आग्रह कर रहे हैं। परंतु आज तक राज्यपाल ने अपनी शक्ति का उपयोग आदिवासियों के मामले में किया हो , ऐसा कोई दृष्टांत संभवतः सामने नहीं आया है। मण्डला जिले में 30 साल पहले बरगी बांध के विस्थापितों का अब तक पुनर्वास नहीं हो पाया है, तो बसनिया के आदिवासियों का क्या होगा, बस यही चिंता उन्हें खाए जा रही है। इस चिंता ने उन्हें मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से बुरी तरह से प्रभावित किया है।

मंडला जिले के चकदेही गांव के प्रधान जगदीश धुर्वे बताते हैं कि इसे रोकने के लिए बसनिया बांध विरोधी समिति 5 अक्टूबर को यहां के शाहपुरा के घुघुवा फांसिल्स पार्क में राज्यपाल से मुलाकात की। हमारे साथ दो विधायक डॉ अशोक मर्सकोले और शाहपुरा विधायक भूपेंद्र मरावी थे, जिन्होंने राज्यपाल को प्रस्तावित बसनिया, राघवपुर बाध को निरस्त करने की मांग के साथ एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन के माध्यम राज्यपाल को याद दिलाया गया कि संविधान के अनुच्छेद 244 में यह व्यवस्था है, कि अनुसूचित क्षेत्रों में राज्यों की कार्यपालन शक्ति को पांचवी अनुसूची के प्रावधान (धारा 2) में शिथिल किया गया है,अर्थात अनुसूचित क्षेत्रों की प्रशासनिक व्यवस्था में राज्यपाल को सर्वोच्च शक्ति एवं अधिकार दिया गया है। पांचवी अनुसूची की धारा 5(1) राज्यपाल को विधायिका की शक्ति प्रदान करता है।

संविधान के किसी भी प्रावधानों से यह शक्ति मुक्त है।प्रावधान किया गया है कि आदिवासियों से किसी प्रकार के जमीन हस्तांतरण का नियंत्रण करना राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है। जल,जंगल और जमीन आदिवासियों की आजीविका का मुख्य साधन है। इसके खत्म होने से पलायन और भुखमरी जैसी स्थिति निर्मित होती है। देश में पेसा कानून वर्ष 1996 से लागू है। पिछले 17 वर्ष में प्रदेश के अंदर ग्राम सभाओं की अवहेलना करके आदिवासियों और ग्रामीण व्यवस्था को सरकारों द्वारा जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जा रहा है व आदिवासियों के अधिकारों का हनन हा रहा है। पांचवी अनुसूची के जो लोग अपने फैसले करने के लिए संवैधानिक रूप से अधिकारी थे। उनके अधिकारों को रोका गया है।

जगदीश ने बताया, "नर्मदा नदी पर प्रस्तावित बसानिया और राघवपुर बांध से डिंडोरी के 61 और मंडला के 18 आदिवासी बाहुल्य गांव विस्थापित एवं प्रभावित होंगे।इससे 10942 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगा,जिसमें 3694 परिवारों कि 5079 हेक्टेयर निजी भूमि, 2118 वन भूमि तथा 3745 हेक्टेयर शासकीय भूमि शामिल है।इस प्राकृतिक संसाधनों के खत्म होने से आदिवासी समुदाय की आजीविका पर प्रतिकूल असर पङेगा। जबकि इसी घाटी में नर्मदा घाटी विकास विभाग द्वारा लिफ्ट सिंचाई योजना से किसान के खेतों में पानी पहुंचाने की दर्जनों योजनाओं पर कार्य चल रहा है। इसलिए इस क्षेत्र में भी बांध की जगह लिफ्ट सिंचाई योजना के माध्यम से किसान के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।"

मंडला बडझर पंचायत के सरपंच तितरा मरावी बताते हैं, " इसे रोकने के लिए समिति की कई बैठकें हो चुकी है। हम सब आदिवासी बरगी बांध के विस्थापितों का हाल देख रहे हैं। हमारे पास कृषि कार्य छोड़कर और कोई स्किल्ड नहीं है। यहीं हमारी आजीविका के साधन है। सरकार हमसे जमीन छीनकर हमें उजाड़ना चाहती है। हम सब इससे बिखर जाएंगे। कौन कहां जाएगा , पता नहीं चलेगा। हमारा सदियों का सुख-दुख का साथ छूट जाएगा। सरकार पूंजीपतियों के लिए हमें बसाने के बजाय उजाड़ने पर क्यों तुली हुई है। यह एक सवाल हमेशा से हमारे मन में है। इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है।

तितरा ने कहा, "बरगी परियोजना को  वर्ष 1968 में मंजूरी दी गई थी। वर्ष  1974 में कार्य प्रारंभ हुआ  और 1990 में बांध बनकर तैयार हो गया। इससे मंडला, सिवनी तथा जबलपुर जिले के 162 गांवों के 11655 काश्तकार की 26797 हेक्टेयर भूमि डूब  में आई, जिसमें 8478 हेक्टेयर सघन वन भूमि तथा 3569 हेक्टेयर राजस्व भूमि भी शामिल है। 43 फीसदी आदिवासी, 14 फीसदी हरिजन तथा 38 फीसदी ओबीसी प्रभावित हुए हैं। पुनर्वास नीति नहीं होने के कारण प्रभावितों को मात्र मुआवजा मिला, परंतु पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनाई गई।

दलाल तथा बिचौलियों ने मुआवजा  के बाद लोगों को जमीन दिलाने के नाम पर लूटा। इसी लूट के शिकार हम लोग कब से होते रहेंगे।"
तितरा का 18 वर्षीय बेटा देवव्रत मरावी युवा होने के बावजूद सरकार के मुआवजे के पैसे का विरोध जताते हुए कहता है कि हमसे हमारी पुश्तैनी जमीन लेकर सरकार हमें मुट्ठी भर पैसा थमा देती है। वर्तमान में पैसे का क्या मोल है। जमीन से हमें कम से कम भरपेट भोजन तो मिल जाता है। मुआवजे के पैसे से न तो हमें कृषि भूमि मिलेगी और न उस पैसे से जिंदगी भर गुजारा चलेगा।

संघर्ष समिति के सदस्य  डिंडोरी जिले का महेश मरावी ने बताया, "प्रस्तावित बसनिया बांध से हमारा गांव 10 किलोमीटर दूर है। हमारे पास 10 एकड़ जमीन है। इसी जमीन के सहारे मेरा परिवार चार पीढ़ी से ठाट से जी रहा है। सरकार कोई भी हो, सब पूंजीपतियों के दबाव में है। हमें कहीं 10 एकड़ उपजाऊ जमीन दिला दें, फिर हमें विस्थापित करें। हम लोग प्रकृति के गोद में रहने वाले लोग हैं, हमें दुनियादारी से कुछ लेना देना नहीं है। जल, जंगल, जमीन ही हमारी सम्पत्ति है। सरकार हमें विस्थापित कर हमारी संस्कृति को ही खत्म कर देना चाहती है। यह तो आदिवासियों के साथ अन्याय है।"

इसी तरह विधायक डॉ अशोक मर्सकोले बताते हैं कि विस्थापन की लड़ाई संसद से सदन तक लड़ेंगे। बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राजकुमार सिंहा कहते हैं, "राजस्थान में बाड़मेर से लेकर गुजरात के सौराष्ट्र और मध्य प्रदेश के 35 शहरों और उद्योगों  की प्यास बुझाने का जिम्मा नर्मदा पर है। जबकि नर्मदा किनारे छोटे-बड़े 52 शहरों का  मल मूत्र व गंदगी नर्मदा में गिरता है। दूसरी तरफ  इस नदी पर बांध बनाकर पर्यावरण, जैव विविधता और लाखों हेक्टेयर उपजाऊ जमीन डुबोकर सरकार ने लोगों का काफी बड़ा नुकसान कर दिया है।"
गौरतलब है कि बसनिया बांध की प्रशासकीय स्वीकृति 1 अप्रैल 2017 को दिया गया है। यह बांध गांव ओढारी, तहसील घुघरी, जिला मंडला में बनाया जाना प्रस्तावित है।इस बांध में काश्तकारों की निजी भूमि 2443 हेक्टेयर, वन भूमि 2107 हेक्टेयर और शासकीय भूमि 1793 हेक्टेयर अर्थात कुल 6343 हैक्टेयर जमीन डूब में आएगा। इससे 42 गांव की 8780 हैक्टेयर जमीन में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विद्युत का उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।इसको बनाने की अनुमानित लागत 2731.17 करोड़ रुपए होगा। इस बांध से डिंडोरी के 13 और मंडला जिले के 18 गांव अर्थात कुल 31 गांव विस्थापित एवं प्रभावित होगा।  

यह भी बता दें कि मंडला का भौगोलिक क्षेत्र 5800 वर्ग किलोमीटर है। वन विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन 2020- 2021 के अनुसार 2015 में मंडला जिला का वन आवरण क्षेत्र 2835 वर्ग किलोमीटर था जो 2019 में घटकर 2577 वर्ग किलोमीटर हो गया है। 258 वर्ग किलोमीटर अर्थात 25800 हेक्टेयर वन आवरण कम हुआ है। इसी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए बसनिया बांध विरोधी संघर्ष समिति का कहना है कि बसनिया बांध को माइक्रो सिंचाई परियोजना में बदला जाए। जैसा कि नर्मदा घाटी की चिंकी-बोरास बांध परियोजना (नरसिंहपुर) को माइक्रो सिंचाई परियोजना में बदल दिया गया है जिससे न तो विस्थापन होगा और न ही जंगल डूब में आएगा।

Adivasi
tribals
Madhya Pradesh
Eviction
forest
dams

Related Stories

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में सैलून वाले आज भी नहीं काटते दलितों के बाल!

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License