NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
संदर्भ पेरिस हमला – खून और लूट पर टिका है फ्रांसीसी तिलिस्म
सौजन्य: हस्तक्षेप
17 Nov 2015
फ़्रांस की चमक-दमक में तीसरी दुनिया के मेहनतकशों और संसाधनों की लूट, वहां की जनता का बहाया खून का हिसाब यदि माँगा जाये तो एक दिन में यह मुल्क दिवालिया हो जाये, टोरंटो (कनाडा) से शमशाद इलाही शम्स की विशेष रिपोर्ट
 
पेरिस में हुए हमलों के बाद प्रचार माध्यमों के जरिये पूरी दुनिया में जैसे हडकंप मच गया हो, 129 मारे गए निरपराध नागरिकों के लिए पूरी दुनिया में संवेदना प्रकट की जा रही है, हमलों के दो दिन बाद फ़्रांस के विमानों ने सीरिया स्थित इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर बम बरसा कर अपने इरादे जग जाहिर कर दिए हैं। मध्यपूर्व का संकट और उसमें फ़्रांस की भूमिका एक सर्वथा भिन्न विषय है जिस पर अन्यत्र चर्चा की जायेगी लेकिन फ़्रांस क्या है, अभी समय है थोडा सा ठहर कर इस पर विचार जरूर किया जाना चाहिए।
 
 
इस लेख का आशय पेरिस हमलों के प्रति संवेदनहीन होना नहीं बल्कि किसी राज्य की उस प्रक्रिया और तंत्र को समझने का प्रयास है जिसमें हिंसा एक प्रमुख नीति रही है। हिंसा की प्रतिहिंसा और उसके प्राकृतिक नियमों पर एक नज़र डालना आज ही सबसे विचारणीय प्रश्न है, कहीं ऐसा न हो हम किसी सफेदपोश हत्यारे के पक्ष में ही न खड़े हो जाएँ और शोषित को ही निशाने पर ले लें।
 
फ़्रांस की चमक-दमक में तीसरी दुनिया के मेहनतकशों और संसाधनों की लूट, वहां की जनता का बहाया खून का हिसाब यदि माँगा जाये तो एक दिन में यह मुल्क दिवालिया हो जाये और फ्रेंच आवाम दुनिया भर के शहरों में भीख मांगती दिखाई दे। लेकिन मौजूदा विश्व व्यवस्था में यह इसलिए संभव नहीं, क्योंकि निजाम उन्हीं लोगों के हाथ में हैं जिनके जिस्म घुटनों तक खून में धँसे हैं और हाथों में उन्नत हथियार और जेब में दुनिया भर की सत्ताएं।
 
अफ्रीका के 14 मुल्क, बेनिन, बुर्किनो फासो,गिनी बिसाऊ, ऐवोरी कोस्ट, माली, नाईजेर, सेनेगल, टोगो, केमरून, सेन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड, गिनी और गेबोन, कोंगो जैसे देश आज भी फ़्रांस को उपनिवेश कर्ज चुका रहे हैं। इन देशों के विदेशी मुद्रा भण्डार का 85 % हिस्सा फ्रांस को उपनिवेश कर्ज की अदायगी में चला जाता है और 500 अरब डालर हर साल फ्रांस के मुद्रा कोष में इज़ाफा कर देता है।
 
फ्रांस की विदेश नीति में उपनिवेशवादी शोषण एक अभिन्न अंग रहा है
 
दक्षिणी अमेरिका के एक बहुत छोटे से देश हैती में फ़्रांस ने जब दास प्रथा समाप्त की, तब व्यापार और संसाधनों में हुए नुकसान का हर्जाना हैती पर फ्रेंच हकुमत ने ठोंका था। 150 मिलियन गोल्ड फ्रैंक का हर्जाना, ये बात 1804 की है और यह कर्ज हैती को 1947 तक बाकायदा चुकाना पड़ा। हर्जाने की कीमत घाटा कर 90 मिलियन की गयी थी, जो आज के हिसाब से 21 अरब डालर है जो हैती की कुल राष्ट्रीय आय का दस गुना है। हाल ही में हैती की सरकार ने इस पैसे को वापस माँगा है, जिसे फ़्रांस ने देने से इंकार किया है। फ़्रांस में चाहे समाजवादियों की सरकार रही हो या गैर समाजवादी, उसकी विदेश नीति में उपनिवेशवादी शोषण एक अभिन्न अंग रहा है। अफ्रीका में पिछले 50 सालों में 26 देशों में 67 सैन्य तख्ता पलट की कार्यवाहियां हुई हैं, जिनमें से 16 (61%) देश फ्रेंच उपनिवेश रहे हैं।
 
गिनी के पहले राष्ट्रपति सेकोऊ तौरे ने फ़्रांस के उपनिवेश को ख़ारिज कर वहां उपस्थित 3000 फ्रेंच सैनिको को चलता कर दिया, लेकिन जाते-जाते फ्रेंच सैनिकों ने स्कूलों, अस्पतालों, सरकारी भवनों, पुलों, ट्रेक्टर, गाय फार्मों जैसी तमाम सरकारी संपत्ति को तबाह कर दिया। फ़्रांस ने ऐसा करके आस-पास के दूसरे मुल्कों के नेताओं को सबक सिखा दिया कि गिनी के रास्ते पर चलोगे तो तबाही मिलेगी। इसके बाद जिस देश ने भी फ़्रांस से आज़ादी हासिल की उसे उपनिवेश काल के दौरान फ़्रांस द्वारा किये गए विकास के एवेज में कर्ज उतारने की शर्ते माननी पड़ीं, उपनिवेश कर्ज यही वह कर्ज है जिसे अफ्रीकी आवाम और सरकारें आज तक उतार रही हैं। जिन देशों के नेताओं ने ना नुकर की उनकी हत्याएं भी हुईं।
 
अल्जीरिया जैसे बहुत कम देश ही ऐसे थे, जिन्होंने फ़्रांस के शासक वर्ग के दांत तोड़ कर आज़ादी ली, वह भी बिना किसी उपनिवेश कर्ज की शर्त पर, लेकिन इसके लिए उसे सर्वाधिक शहादतें देनी पड़ीं। अल्जीरियाई क्रांति अफ्रीकी इतिहास में इसी कारण से अपना एक अलग मुकाम रखती है।
 
भारत क्यों खड़ा है फ्रांस के साथ ?
 
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद मौजूदा विश्व साम्राज्यवाद और अंतर्राष्ट्रीय पूंजी के गठबंधन का एक अभिन्न हिस्सा है, इस गठजोड़ में भारत जैसे उभरते हुए मार्केट देश का नेता जी -20 जैसी बैठकों में कहीं कोने में खड़ा अगर दिखाई देता है, तो इसलिए नहीं कि उसका कद बड़ा हो गया है, वह वहां इसलिए खड़ा किया जाता है कि पूंजी को अपने विस्तार के लिए आवश्यक बाजार की जरूरत होती है और पूंजी उसी बाज़ार में जायेगी जो उसकी शर्तों को निभाएगा। पेरिस पर हुए हमले को मानवजाति पर हमला बता कर भारत का नेता दरअसल पूंजी के आकाओं का विश्वास जीतना चाहता है, क्योंकि गिनी में जो 1958 में हुआ उसका सबक सिर्फ उसके पड़ोसियों ने ही सीखा हो, यह जरूरी नहीं। विश्व राजनय में ऐसी नजीरें बाकायदा विश्व विद्यालयों में पढ़ा दी जाती हैं।
 
About The Author
शमशाद इलाही शम्स, कनाडा स्थित स्तंभकार हैं। हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।
 
सौजन्य: हस्तक्षेप.कॉम
 
डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।
पेरिस
फ्रांस
आईएसआईएस
अमरीका
सीरिया
इराक

Related Stories

अमेरिकी सरकार हर रोज़ 121 बम गिराती हैः रिपोर्ट

वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में फिलिस्तीन पर हुई गंभीर बहस

उत्तर कोरिया केवल अपनी ज्ञात परमाणु परीक्षण स्थल को खारिज करना शुरू करेगा

अयोध्या विवाद पर श्री श्री रविशंकर के बयान के निहितार्थ

सीरिया के पूर्वी घौटा में क्या हो रहा है?

राष्ट्रीय वार्ता की सीरियाई कांग्रेस संवैधानिक समिति के गठन के लिए सहमत हैं

पर्यावरण सम्मेलन: बढ़ता प्रदुषण और कागज़ी कार्यवाही

मोदी का अमरीका दौरा और डिजिटल उपनिवेशवाद को न्यौता

शरणार्थी संकट और उन्नत पश्चिमी दुनिया

मोदी का अमरीका दौरा: एक दिखावा


बाकी खबरें

  • LAW AND LIFE
    सत्यम श्रीवास्तव
    मानवाधिकारों और न्याय-व्यवस्था का मखौल उड़ाता उत्तर प्रदेश : मानवाधिकार समूहों की संयुक्त रिपोर्ट
    30 Oct 2021
    29 अक्तूबर को जारी हुई एक रिपोर्ट ‘कानून और ज़िंदगियों की संस्थागत मौत: उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा हत्याएं और उन्हें छिपाने की साजिशें’ हमें उत्तर प्रदेश में मौजूदा कानून व्यवस्था के हालात को बेहद…
  • migrant
    सोनिया यादव
    महामारी का दर्द: साल 2020 में दिहाड़ी मज़दूरों ने  की सबसे ज़्यादा आत्महत्या
    30 Oct 2021
    एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल भारत में तकरीबन 1 लाख 53 हज़ार लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें से सबसे ज़्यादा तकरीबन 37 हज़ार दिहाड़ी मजदूर थे।
  • UP
    लाल बहादुर सिंह
    आंदोलन की ताकतें व वाम-लोकतांत्रिक शक्तियां ही भाजपा-विरोधी मोर्चेबन्दी को विश्वसनीय विकल्प बना सकती है, जाति-गठजोड़ नहीं
    30 Oct 2021
    पिछले 3 चुनावों का अनुभव गवाह है कि महज जातियों के जोड़ गणित से भाजपा का बाल भी बांका नहीं हुआ, इतिहास साक्षी है कि जोड़-तोड़ से सरकार बदल भी जाय तो जनता के जीवन में तो कोई बड़ी तब्दीली नहीं ही आती, संकट…
  • Children playing in front of the Dhepagudi UP school in their village in Muniguda
    राखी घोष
    ओडिशा: रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल बंद होने से ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न-आय वाले परिवारों के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित
    30 Oct 2021
    रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है कि जब अगस्त 2021 में सर्वेक्षण किया गया था तो ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 28% बच्चे ही नियमित तौर पर पठन-पाठन कर रहे थे, जबकि 37% बच्चों ने अध्ययन बंद कर दिया था।…
  • climate change
    संदीपन तालुकदार
    जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट : अमीर देशों ने नहीं की ग़रीब देशों की मदद, विस्थापन रोकने पर किये करोड़ों ख़र्च
    30 Oct 2021
    रिपोर्ट के अनुसार, विकसित देश भारी हथियारों से लैस एजेंटों को तैनात करके, परिष्कृत और महंगी निगरानी प्रणाली, मानव रहित हवाई प्रणाली आदि विकसित करके पलायन को रोकने के लिए एक ''जलवायु दीवार'' का…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License